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बातें अनछुई

पुष्पा खंगारोत
जयपुर (राजस्थान)
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कुछ बातें अनछुई
सी रह जाती है
बात जब जज्बातों
की आती है,
क्या ही कहिये
बातों का होना
यहाँ फसानो सी जब
जिंदगी हुई जाती है,
रहा होगा वक्त कभी
किसी जमाने में लोगो
के पास एक दूजे के लिए
आज तो मशीनों से
बत्तर जिंदगी होती है,
कभी ख्वाब आंखों
में सजा करते थे
आज तो नींद भी
बहुत दूर रहती है,
अजीब कशमकश में
ढल जाती है जिंदगी
न पत्थर सी है न
पत्थर से कम लगती
जाती है जिंदगी,
कुछ बातें अनछुई
रह जाती है
ना भुलाई जाती है
ना जहन से जाती है ll

परिचय : पुष्पा खंगारोत
निवासी : जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

3 Comments

  • Pratishtha Rathore

    “नई रचना के लिए हार्दिक बधाई! भूआसा हुकम आपकी कलम यूँ ही नई ऊँचाइयाँ छूती रहे।”
    “खूबसूरत शब्दों की इस नई शुरुआत पर आपको फिर से बहुत-बहुत शुभकामनाएँ—आपका सृजन सच में प्रेरणादायक है।”

    • Sunita rathore

      सच्ची बात लिखी है बाईसा, बहुत ही अच्छा लिखा हुकुम।

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