
सूर्यपाल नामदेव “चंचल”
जयपुर (राजस्थान)
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ऐ सौदागर, मतलबपरस्त इस दुनिया में
किसी को किसी से प्यार नहीं है।
लिए बैठा है कब से मुनाफाखोर बाजार में,
दर्द कोई व्यापार नहीं है।
होते है सौदे जज्बातों के यहां हर पल,
गम का कोई खरीदार नहीं है।
बिन पूंजी लाभ की चाहत,
स्वर्ग चाहिए सबको
मरने को कोई तैयार नहीं है।
बिकते है चांद और तारे जमीन पर,
आसमान का कोई जमींदार नहीं है।
होते है सौदे सूर्यकिरण के,
खाली जेब हो जिनकी वो
इसका हकदार नहीं है।
दाम लगा है खुशियों का भी,
न हो भुगतान तो कोई
दुख में भागीदार नहीं है।
सपनो के बाजार सजे है हर पल,
यहां झूठ हैं बिकते जो
इनके पहरेदार नहीं हैं।
भूख बिके दर्द बिके देह के भी
कर जाते सौदे, इज्जत को
समझे ऐसे किरदार नहीं है।
बिना स्वार्थ न दान भी होता,
भक्ति भाव के ऐसे दिलदार नहीं है।
खुशियों में सब संग ही होते,
दुख में खड़े साथ मिले
ऐसे हिस्सेदार नहीं हैं।
खुद की गाते खुद की खातिर,
हाथ मिलाने में हो माहिर
ऐसे जिम्मेदार नहीं हैं।
तू सौदागर, क्या
खरीदेगा क्या बेचेगा,
मोहब्बत इंसानियत के
कोई अहंकार नहीं है।
करुणा प्रेम और व्यवहार हो कीमत,
व्यापार में आए ऐसे अंधकार नहीं है।
मिले सड़क लाचार कभी जो,
देने से हाथ कोई रोके अभी
ऐसे अधिकार नहीं हैं।
सौदे की सीमा घर रिश्तों के जो
बाहर रहती, मिले द्वेष
ऐसे परिवार नहीं है।
शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट)
व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता
निवासी : जयपुर (राजस्थान) ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
