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देशवासियों को जगाऊंगा
कविता

देशवासियों को जगाऊंगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** प्यार की डोर लेकर मंजिल को तलाश रहा हूँ। गीत मिलन के लिखकर गाये जा रहा हूँ। पैगाम अमन चैन का गीतों में दिये जा रहा हूँ। और भारतीय होने का फर्ज निभा रहा हूँ।। दोष मुझ में लाख है पर इंसानियत को जिंदा रखता हूँ। है अगर कोई मुश्किल में तो यथा सम्भव मदद करता हूँ। मिला है मनुष्य जन्म हमें पूर्व जन्मों के कर्मो से। इसलिए इस भव में भी अच्छे कर्म कर रहा हूँ।। छोड़कर मान कषाय को शांत भाव से जीता हूँ। और मानव धर्म का निर्वाह सदा ही मैं करता हूँ। फिर भले ही चाहे मुझे मान सम्मान न मिले। पर मानवता को ऊपर रखकर देशवासियों को जागता रहता हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से ...
कुष्मांडा
स्तुति

कुष्मांडा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज नवरात्र चतुर्थ दिवस। आया चहुँ ओर दुर्गा चौथा। रूप कुष्मांडा छाया। मां अपनी मंद हंसी संग। ब्रह्मांड उत्पन्न कर। कुष्मांडा नाम पाया। चहुँ ओर व्याप्त अंधकार। ब्रह्मांड रचना कर हटाया। कुष्मांडा मां तू सृष्टि आदि स्वरूपा तू ही आदिशक्ति। तू अष्ट भुजाधारी। तेरे सप्त कर कमंडल, धनुष, बाण, पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र, गदा धारे। आठवें कर सकल सिद्धि। अरु निधिदायी जपमाला धारे। मां तू सिंह वाहन सवार हो। आती, जो कुष्मांडा मां। उपासना करें वह निश्चित। आयु,यश,बल, स्वास्थ्य। वृद्धि पाते। मां कुष्मांडा में कर जोड़ूँ। शीश नवाऊँ अरू करूं। प्रार्थना मुझ पर दया करो। महारानी क्षमा करो। मेरी नादानी। पिंगला ज्वालामुखी निराली। भीमा पर्वत पर डेरा तेरा। स्वीकारो प्रमाण मेरा। मेरे सकल कारज पूरे ...
शक्तियों की प्रतीक देवियां
कविता

शक्तियों की प्रतीक देवियां

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवरात्रि में ये महा देवियां निज स्वरूपों के देती संदेश इनके आचरण के पालन से सुधर जाता अपना परिवेश पार्वती कर देती है परिवर्तन विस्तार को बना देती है सार पीहर व ससुराल के रिश्तों में बहती रहती सदा नेह की धार जगदम्बा देवी सहनशील बन माँ सी करती है रक्षा अपरंपार बिना शर्त ही सबसे प्रेम करो करो सर्वदा निश्छल व्यवहार संतोषी माँ सी धैर्यशील बनके हर कण चांवल करे स्वीकार अवगुणों को समाकर दिल में सर्व गुणों का कर देती संचार गायत्री महान परख की देवी गन चक्षु की रखती तीक्ष धार हंसिनी सी बस मोती चुगती देती है न्याय का सार ही सार शारदा विद्या निर्णय की देवी हाथ में शास्त्र व वीणा झंकार जब सुर संगीत की धुन छेड़े सर्व जनों का हो जाता उद्धार मुंडो की माला पहन के काली मिटा देती है संसार के विकार विपदा की घड़ियों में...
अभिनन्दन नये वर्ष का
कविता

अभिनन्दन नये वर्ष का

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** अभिनन्दन हो नये वर्ष का लेकर पूजा की थाली झूमें नाचें दीप जलायें मंगल गायें आओ आलि खलिहानों में सरसो फूले झूमें बाली गेहूंओं वाली कृषक झूमते अपने मद में और झूमे नारी नखराली वृक्ष वृक्ष पर नई कोंपलें लकदक अमुआ की डाली रंगोली भी एक बनाएं इंद्रधनुषी रंगों वाली नया गीत हो नई थाप हो नव्य नवेली हो ताली जले कपूर नेह प्रेम का हो सुवासित रातें काली माता आई नवदुर्गा बन घर घर छाए खुशहाली वंदन करें नव वर्ष का लेकर पूजा की थाली !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
मेरी मईया के द्वार
भजन, स्तुति

मेरी मईया के द्वार

संगीता श्रीवास्तव शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी मईया के द्वार ज्योति जली है बड़ी रोशनी है बड़ी रोशनी है। खुशी इस जहां मे कहीं और भी है, नहीं है ,नहीं है ,नहीं है, नहीं है। अंधेरे मे सिमटी रही जिन्दगानी, बढ़े हैं कदम आज दर पे भवानी, नहायी रोशनी से अब राहें मेरी हैं। बड़ी रोशनी..... क्या करे कंचन काया क्या करें लेके माया, बिना भक्ति के व्यर्थ जीवन गंवाया, रोकती राह क्यों बन्धनों की कड़ी है बड़ी रोशनी..... मन में श्रद्धा के दीपक जलाए हुए, चले आओ दर मां के धाए हुए, वो है करुणा मयी वो है वरदायिनी दुख संताप तेरे सब हर लेगीं। उनकी नज़रें इनायत सबपे रही हैं। बड़ी रोशनी.......।। परिचय :- संगीता श्रीवास्तव निवासी : शिवपुर वाराणसी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
श्रीराम के गुणगान की महिमा
भजन, स्तुति

श्रीराम के गुणगान की महिमा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो श्रीराम के गुणगान की महिमा सुनाते हैं समर्पण और भक्ति की नई गाथा सुनाते हैं सिया संग जंगलों में जो भटककर धर्म पर चलते उसी युगपुरुष के चरणों में यह कविता सुनाते हैं अनुज लक्ष्मण की भातृ भक्ति को दुनियां समझती है लखन के त्यागमय उस शक्ति को दुनियां समझती है सिया और राम के चरणों में उनका जो समर्पण था मधुर उस प्रेम की अभिव्यक्ति को दुनिया समझती है निशाचर मुक्त करके जो सदा संतो को तारे हैं जो दशरथ और माता कोशिला के भी दुलारे हैं शरण में जो चला जाता है उसको थाम लेते हैं वही श्री राम जी मेरे हृदय में प्राण प्यारे हैं किये लंका दहन जो राक्षसों को दंड देकर के विभीषण को भगति के पुष्प का मकरंद देकर के अयोध्या वासियों के साथ खुशियां जो मनाए थे दुखों से व्याप्त भक्तों को नया आनंद दे कर के प...
दशरथ महल जन्मे रघुराई
भजन, स्तुति

दशरथ महल जन्मे रघुराई

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सखी हर्षित मन देती हूं मैं बधाई, दशरथ महल जन्मे रघुराई माह चैत्र पक्ष शुक्ल तिथि नवमी पुनीता दशरथ महल जन्म लीन्हो प्रभु दीनदयाला सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई हर्षित चकित नयन भई सब रानी दमकत मुख अनूप शोभा अति न्यारी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई स्यामल गात नयन पुनि-पुनि जात बलिहारी मंगल गान शुभ रुदन स्वर गूंजे अवधपुरी सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई झूमत शाख हर्षित लतावृंद उपवन शोभा न्यारी देव अप्सरा सब गगन से करत सुमन वृष्टि सखी मिल मंगल गाओं दशरथ महल जन्मे रघुराई आंगन-आंगन सजी रंगोली घर घर दीप जले नाचत झूमत अवध नर नारी बधाई गीत गूंजे सखी मिल मंगल गाओ दशरथ महल जन्मे रघुराई परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
जहाज का पंछी
कविता

जहाज का पंछी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं इस जहाज का पंछी हूं मेरा दूजा कोई ठौर नही धरती पर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं। भूख नामुराद जहाज पर लाई है मेरा तो ठिकाना और था जो गुजर गया वो गुजर गया फिर आएगा ऐसा दौर नहीं। परिवार कहां और मैं कहां उस परिवार के लिए तड़पता हूं सहा नहीं जाता मुझसे अब तो जालिम लहरों का शोर नहीं जो इस जहाज पर मिल जाता है उससे भूख मिटाता हूं आंखों के आगे अंधेरा है दिखाई दे ऐसी कोई भोर नहीं। उम्मीद लगाए रहता हूं मै कब धरती का साहिल मिल जाए बीत गई सो बीत गई अब करता उसपर मैं गौर नहीं। नसीब में जो लिखा है वह तो मिलना ही निश्चित है अपनी किस्मत के आगे चलता किसी का जोर नहीं। पेट की भूख ने आदमी को क्या से क्या बना डाला इस भूख का दुनिया में कहीं कोई और न छोर नहीं। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : धवल...
हिन्दू नववर्ष प्यारा
कविता

हिन्दू नववर्ष प्यारा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हम हैं हिन्दुस्तानी, है हिन्दुस्तान हमारा । चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा ।। संस्कारों की धरती है यह, भारत भूमि हमारी । जान से भी बढ़कर लगती है, हम सब को यह प्यारी ।। यही हमारी आन बान और, यही है शान हमारा चलो मनाएं साथी, हिन्दू नववर्ष प्यारा चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है पावन, इस दिन इसे मनाते । करके शक्ति की आराधन, मन में जोश जगाते ।। श्रृष्टि के कण कण में छाईं, अद्भुत रूप नजारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा रीत रिवाजों से है पूर्ण, इसकी शान निराली । संस्कृति से सजी ये धरती, खुशिऑ देने वाली ।। ऑंख उठाकर देख रहा है, आज इसे जग सारा चलो मनाएं साथी हिन्दू नववर्ष प्यारा मंगलमय हो वर्ष नया यह, गीत खुशी के गाएं । स्वागत में इसके आओ हम, मंगल दीप जलाएं ।। राम मिला कुदरत से हमको, यह...
स्वप्न बहते रहे
कविता

स्वप्न बहते रहे

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पल-पल क्षण क्षण बीता यादों के झुरमुट में स्वप्न बहते रहे मेरे अंतर्मन में मुट्ठी भर आकाश झांकता। बने झरोखे से झींगुर कहता मैं साथ हूं रात के सन्नाटे में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
तूम प्रीत की बारिश करना
कविता

तूम प्रीत की बारिश करना

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तूम प्रीत की बारिश करना बरखा के सावन की तरह मैं आकुल हूँ बस तेरे लिए प्यासा समंदर की तरह। तुम मेरी चाँद बन जाना निशा में पूनम की तरह। मैं बस तुझे निहारा करूँ आतुर चकोर की तरह। तुम मेरी बहार बन जाना महकते फूलों की तरह। मैं बस यह गुनगुनाता रहूँ बावरा भ्रमरों की तरह। तुम मेरी साया बन जाना मेरे हमसफ़र की तरह। मैं हरदम तेरे साथ रहूँ फूलों में खुशबु की तरह। तुम मेरी बरखा बन जाना सावन में बूंदों की तरह। ये तन मन भी भीग जाए प्यासा धरती की तरह। तुम मेरी धड़कन बन जाना मेरे सीने में दिल की तरह। ये जीवन मधुमय हो जाए वसन्त के बहारों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
भावों की खुशबू
कविता

भावों की खुशबू

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सब कुछ योजनानुसार चल रहा अचानक जो हुआ उम्मीद से बहुत आगे, सब कुछ इतना तीव्र था कि समझना मुश्किल था। ऐसा भी हो सकता है, मन हाँ-न के उहापोह में उलझकर रह गया। पर सब कुछ सामने था मेरे साथ हो रहा था नकार भी कैसे सकता था, पर सपने जैसा था, जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए तभी तो आँखों में आँसू तैर गए बस किसी तरह सँभाल सका खुद को। मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता उस अनजानी अनदेखी शख्शियत के साथ हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना मन श्रद्धा से भर गया, उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर क्योंकि हिम्मत नहीं हुई उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की असम्मानित करने की क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ। मगर ...
हमें भी वही राह दिखला रही है।
ग़ज़ल

हमें भी वही राह दिखला रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमें भी वही राह दिखला रही है। हवा जिस दिशा में चली जा रही है। जो आदत नहीं है निभाने की हममें, रिवायत वही बात समझा रही है। पता ही नहीं है किसी को हक़ीक़त, भुलाओं में दुनियाँ पली आ रही है। रखें मान किसका, रहें साथ किसके, सदाएँ, सदाओं को भरमा रही है। करे पार कैसे वो दरिया-समुन्दर, जो कश्ती हवाओं से टकरा रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
नारी तुम सशक्त हो
कविता

नारी तुम सशक्त हो

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तुम सशक्त हो कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा कभी झांसी की रानी कांटों की राह पर चलती नि:सहाय निर्बला नहीं आंधी की तरह कष्टों को चीरती प्रबल वात तुम, प्रचंड पर्वत की तरह अटल हो। कभी झुकती नहीं, रुकती नहीं, टूटती नहीं तुम समर्थ हो। तुम मन से प्रबल तन से सबल, देवी का स्वरुप हो। तुम करुणा का सागर मानव जाति का संबल हो। भर्तायर की सच्ची सहचरी, राखी के बंधन को अक्षुण्ण रखती बहना, वात्सल्य की छाया देती जननी, स्नेह की डोर से बंधी पुत्री, नारी विविध रुप तुम्हारे अभूतपूर्व, अलौकिक, अतुलनीय जग जननी, वंदनीय तुम्हे शत शत नमन हो। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत ...
मेरा साथी कौन
कविता

मेरा साथी कौन

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  एक दिन मुझे भगवान् मिले मैंने उनसे पूछा कि भगवन् आप मुझे बताएं कि मेरा साथी कौन मैं राही मेरी मंजिल है कौन मैं पंछी मेरा घोसला है कौन मैं तूफान मेरा साहिल है कौन मैं हूँ नाव मेरा नाविक है कौन मैं इठलाती नदिया मेरा सागर है कौन मैं वनफूल मेरा वनमाली है कौन मैं मिट्टी मेरा कुम्हार है कौन मैं नश्वर शरीर मेरी आत्मा है कौन मैं लोभी मेरी तृप्ति है कौन मैं मोह का ताला मेरी कुंजी है कौन प्रभु मुस्कुराते हुए बोले हे मानव तेरा सच्चा साथी तेरा सारथी हूँ मैं तू राही तेरी मंजिल हूँ मैं तू पंछी तेरा घोसला हूँ मैं तू तूफान तेरा साहिल हूँ मैं तू चलती नाव तेरा नाविक हूँ मैं तू इठलाती नदिया तेरा सागर हूँ मैं तू वनफूल तेरा वनमाली हूँ मैं तू है मिट्टी तेरा कुम्हार हूँ मैं तू नश्वर शरीर तेरी अंतरात्मा हूँ मैं तू परमलोभी तेरी तृप्त...
भोर की ठंडी छुअन
गीतिका

भोर की ठंडी छुअन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भोर की ठंडी छुअन-सी, प्रीति का अहसास हो तुम। चंद्र मुख पर खिलखिलाता पूर्णमासी हास हो तुम।।१ रूपसी हो देख कर, शृंगार भी तुमको लजाता, रत्नगर्भा पर सजा, सौंदर्य का मधुमास हो तुम।।२ बिन तुम्हारे सब तिमिर घन, आ खड़े हैं क्लेश लेकर, जिन्दगी का हो उजाला, हर्ष का आभास हो तुम।।३ शील संयम ज्ञान साहस, उर दया भरपूर लेकिन, भूख तन की प्यास मन की, प्राण का वातास हो तुम।।४ बन पपीहा मन पुकारे, मैं यहाँ पिय तुम कहाँ हो, द्वार सजती अल्पना हो, पर्व का उल्लास हो तुम।।५ रागिनी हो राग हो सुर ताल लय का तुम निलय हो, धड़कनों से छंद गाती, गीत का विश्वास हो तुम।।६ कुंज 'जीवन' का सुवासित आ करो मधुमालती बन, मोगरा, चम्पा, चमेली, कौमुदी से खास हो तुम।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा ...
हिन्दू नववर्ष
धनाक्षरी

हिन्दू नववर्ष

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** मनहरण घनाक्षरी हिन्दू नववर्ष आया, चारों ओर हर्ष छाया, नई किरण का सब स्वागत तो करिए। दीप मंगल जलाए, अंधकार को मिटाए, नई उम्मीदों के साथ प्रेम गीत गाइए। राग-द्वेष छोड़कर, स्नेह-भाव बहाकर, समानता के भाव से साथ-साथ चलिए। सोच सदा मंगल हो, धर्म-कर्म मंगल हो, चहुंओर मंगल हो ऐसा भाव रखिए।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच. डी, जीएसईटी सम्प्रति : अध्यापन कार्य, आर्टस कॉलेज मोडासा, जि. अरवल्ली, गुजरात प्रकाशित रचनाएँ : ४० से अधिक पद्य रचनाएँ प्रकाशित, नेशनल और इंटरनेशनल पत्र-पत्रिकाओं में ३५ से अधिक शोध -पत्र प्रकाशित । प्रकाश्य पुस...
हमें वो याद आते हैं
कविता

हमें वो याद आते हैं

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** जरा सी बात से अक्सर, हम इतना टूट जाते हैं। वो हमको भूल बैठे हैं, हमें वो याद आते हैं। हमारी गिनती होती है, शहर के गुनहगारों में, गलतियां कोई करता है, सजा बस हम ही पाते हैं। वो अब तक मुझसे रूठा है, कोई उसको मनाओ अब, वहां वो रूठ जाते हैं, यहां हम टूट जाते हैं। ज़माने की हकीकत को अभी तुम जानते हो क्या, जिन्हें हम दिल से चाहेंगे, वही अक्सर रुलाते हैं। मेरे सारे गुनाहों की सजा मुझको मुनासिब हो, वो मेरी खातिर क्यूं तड़पे, जिसे हम ही सताते हैं। यहां हम छोटी बातों को लगाकर दिल से बैठे हैं, वो अक्सर दिल से रोते हैं, मगर सबसे छुपाते हैं। मैंने इन चंद छंदों में है दिल का दर्द लिख डाला, पढ़कर तुम भुला देना, हम लिखकर भूल जाते हैं। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहस...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
अस्तित्व
कविता

अस्तित्व

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अपनी इच्छाओं के वश हो, ना मुझे जंजीर बांधो, सृजन, करुणा प्रेम संबल से हृदय की पीर साधो। दमन की दीवारें तोड़ो, होने दो अन्तस उजाला, मिटाकर विभेद मन के, प्रेम की ओढें दुशाला। सुरमयी सी साँझ में, खुद को अकेला पाओगे जब, पवन के झोंकों के संग कोई गीत मेरा गाओगे तुम। माँ-बहन बेटी प्रिया पत्नी सभी है रूप मेरे, जन्म से लेकर मरण तक, निरंतर कर्तव्य मेरे। दुख व संकट के समय में, मैं सदा संबल बनी हूँ, उलझनों की गिरहा खोलू, सवालों के हल बनी हूँ। आसमां मुझसे ना छीनो, हैं जमीं मे पांव मेरे, पंख ना नेकी के काटो, उड़ने को हैं ख्वाब मेरे। सांस में हूँ, धड़कनों में, यादों में नयनों से बहती, आह ना निकले हृदय से, दर्द, सारे हँसके सह्ती। सच, दया और न्याय करुणा, धरा सा व्यक्तित्व मेरा, बिन ...
जिंदगी के ख्वाब
कविता

जिंदगी के ख्वाब

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शराब पीकर रातों को बने शहंशाह सुबह हो जाते भिखारी बच्चे स्कूल जाते समय पापा से मांगते पॉकेट मनी ताकि छुट्टी के वक्त दोस्तों को खिला सके चॉकलेट| फटी जेब और खिसियानी हंसी बच्चों को दे न पाती पॉकेट मनी और उनके लिए कभी कुछ कर न पाती बच्चों के चेहरे की हंसी को छीन लेती इसलिए होती शराब ख़राब| सुनहरे ख्वाब दिखाती किंतु वादे पूरे ना कर पाती डायन होती शराब पूरे परिवार को खा जाती और उजाड़ जाती जिंदगी में बने हुए ख्वाब। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी को डांटकर...
माफ़ी
कविता

माफ़ी

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या संभालेगा ये बेदर्द ज़माना तुम्हें, जो जताता है झूठी मुहब्बत तुम्हें, अच्छा हुआ जो तुमने हमसे नफरत की, हम देते हैं बेपनाह नफरत करने कि इजाज़त तुम्हें। जब तुम्हारे खिलाफ होगा ये ज़माना, तो तुम लौट के आ पाओगे क्याॽ एक दिन तुमने हमसे दगा किया था, अपना चेहरा भी हमें दिखा पाओगे क्याॽ अगर तुम्हें हमारी ज़रा भी परवाह है, तो सुनो सुनाते हैं सच्ची बात तुम्हें कई बार डुबा देते हैं तुम्हारे दिल के जज़्बात तुम्हें। अगर तुम अपनी सारी खताओं को कुबूल करते हो, तो हम देते हैं माफ़ी, तोहफा-ए-खैरात तुम्हें ।।.. परिचय :- साक्षी उपाध्याय आयु : १५ वर्ष निवास : इन्दौर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरा नव वर्ष आ गया
कविता

मेरा नव वर्ष आ गया

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा नव वर्ष आ गया अब, सजी धरा विशेष है। सुरेश महेश दिनेश रमेश, हाथ जोड़े शेष है। आदिशक्ति की वंदना करत, प्रसन्नता छाई है। नया वर्ष हिंद की आपको, हृदय से बधाई है। जन जन का जो जन त्राण करे, चाह जन कल्याण हो। मृत चेतन में जो प्राण भरे, चले न शब्द बाण हो। ऐसे सज्जन हेतु यह वर्ष, विशेष मंगलमय हो। शोषित होकर पोषण करते, कृषक वर्ग की जय हो। रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, प्रकृति देख हर्षित है। हिंदू नव वर्ष हमारा तो, सदियों से चर्चित है। भँवरे कोयल स्वागत करते, मधुर गीत सुना रहे। त्रिविध बयार इत्र छिड़क चली, सभी के मन भा रहे। सबको उचित न्याय मिले और, सबका सम भाव बने। सबको समान सम्मान मिले, मन हो नहीं अनमने। रामकुमार के मन में यही, आज बात आई है। हिन्दू नया वर्ष की सबको, हृदय से बधाई है। च...
घिरी मझधार में नैया
ग़ज़ल

घिरी मझधार में नैया

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ घिरी मझधार में नैया मुसीबत ने भी मारा है सुनो हे मातु नवदुर्गा तुम्हें मैंने पुकारा है सजाऊँ माँग में बेंदी दमकती नाक में नथुनी चुनर है लाल तेरी माँ सितारों से सँवारा है गले में हार है शोभित लिए हो हाथ में खप्पर बजे जब पाँव में पायल लगे सुंदर नज़ारा है बड़ा हूँ पातकी बालक सदा करता हूँ नादानी करो उद्धार माँ अब आपका ही इक सहारा है तुम्हारे ही सहारे है भवानी अब मेरी कश्ती करो अब पार रजनी को नहीं दिखता किनारा है परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाश...