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अब समझ आ रही है
कविता

अब समझ आ रही है

रामकृष्ण शर्मा गुलाबपुरा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ऑक्सीजन की कीमत अब समझ आ रही है काटे थे पेड़ धड़ल्ले से अब धड़ल्ले से जान जा रही है बहुत रह लिए शहर अब गांव की याद आ रही है बसाए बेहिसाब सामान अब जिंदगी "बेड'' पर सिमटी जा रही है समझते रहे खुद को शहंशाह अब जीने में भी मुश्किल नज़र आ रही है जिंदगी हाथ में है हमारे अब लापरवाही भारी पड़ती जा रही है परिचय :- रामकृष्ण शर्मा (व्याख्याता) निवासी : गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
कोरोना का संदेश
कविता

कोरोना का संदेश

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** धरती के प्रबुद्ध प्राणियों माना कि तुम सब संसार के सबसे जहीन प्राणी हो। मगर ऐसा तुम सोचते हो, मेरी नजर में तो तुम बुद्धिहीन ही नहीं सबसे बड़े बुद्धिहीन हो। क्योंकि तुम स्वार्थी हो,निपट कलंकी हो, खुद को इंसान कहते हो, पर इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। गलतियां करके भी औरों को दोष देना तुम्हारी फितरत है, तुम्हें तो अपने आप से भी नफरत है। तुमने तो भगवान को भी हमेशा दोषी ठहराया, अपने कर्मों में कभी खोट न नजर आया, जबसे मैं आया तुम्हारे तो भाग्य खुल गए भाया। मैं कोई रोग नहीं दहशत भर हूँ, बहुत कुछ देखने सुनने तुम्हें समझाने भी आया हूँ तुम्हारी औकात बताने आया हूँ। क्या तुमने इंसानी धर्म निभाया? अपने माँ बाप, परिवार, समाज को तुमने क्या-क्या नहीं दिखाया? लूट, हत्या, अनाचार, अत्याचार षडयंत्र, भ्रष्टाचार का नंगा नाच दिखाया। प्रकृति...
विपुरुषत्व की परिभाषा
कविता

विपुरुषत्व की परिभाषा

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बच्चे से जब जवान हो, बढ़ती है परिजन आशा, विकास में हो भागीदारी, ये पुरुषत्व की परिभाषा। पुरुषत्व वो गुण होता है, जो करता जनहित काम, हर क्षेत्र में जन नाम हो, जीवन बन जायेगा धाम। हर युग में हुये पुरुष वो, मिटा डाले जिन्हें संताप, धर्म कर्म की बेल फैली, उड़ ये पल में सारे पाप। एक से बढ़कर एक हुये, किसका यहां पे नाम लूं, किस गुण की चर्चा हो, हर मानव को पैगाम दूं। भगवान राम अवतार ले, राक्षसों को संहार किया, पुरुषत्व की दी परिभाषा, अमन का ये पैगाम दिया। भागीरथ का जन्म हुआ, लाया वो धरती पर गंगा, जीवन भर वो संघर्षमय, कर गया जन भला चंगा। श्रीकृष्ण अवतार लिया, पुरुषत्व का दिया पैगाम, पापी मिटा दिये पल में, धर्म कर्म का फैला नाम। देव आये हर युग में तो, पुरुषत्व का ले सिर भार, जुटे रहे काम में हरदम, मानी नहीं कभी भी हार।। पुरुषत्व की...
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन सम्पन्न।
साहित्य समाचार

राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का अखिल भारतीय कवि सम्मेलन सम्पन्न।

इंदौर। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आज अखिल भारतीय वर्चुअल कवि सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमे अलग-अलग प्रदेश से सम्मिलित २२ रचनाकारों ने अपना काव्य पाठ किया कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नरसिंहपुर मध्य प्रदेश की वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम" थीं। कार्यक्रम का शुभारम्भ कु. श्रीधी मकवाना ने सरस्वती वन्दना गाकर किया।   तत्पश्चात कवि सम्मेलन में उपस्थित शरद नारायण खरे (मंडला), अखिलेश यादव इंदौर, शोभारानी तिवारी इंदौर, धर्मेंद्र कुमार श्रवण बालोद (छत्तीसगढ़), स्वाति सिंह इंदौर, डॉ.उपासना दीक्षित गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश), विभा पांडेय पुणे (महाराष्ट्र), प्रीती जैन इंदौर, कालूराम अहिरवार भोपाल, वाणी जोशी, डॉ. घूरसिंह चिरोंजे "सारंग" (सिवनी), आनन्द कुमार आनन्दम शिवहर (बिहार), भीमराव झरबड़े (बैतूल), खुमानसिंह भाट बालोद (छत्तीसगढ़), रेखा दवे (इंदौर), मृगें...
आओ मिलकर किला लड़ायें
कविता

आओ मिलकर किला लड़ायें

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ मिलकर किला लड़ायें कोरोना को दूर भगायें दो गज दूरी मास्क जरूरी का गतिरोध बना बढती गति पर हम रोक लगायें। कोरोना की दूसरी लहर गांव कस्बा या हो शहर नहीं सुरक्षित है कोई भी हर तरफ इसका कहर बारंबार सेनेटाइजर लगायें कोरोना पर काबू पायें। कोरोना का देखो वार हर घड़ी में एक शिकार अनवरत बढ़ रहा निरंकुश सकल राष्ट् में हाहाकार लापरवाही छोड़ सभी हम जीवन है अनमोल बचायें। आगे और बड़ा संकट है पथ पर कंटक ही कंटक है आक्सीजन कम कैसे बचें हम समस्या विकराल विकट है हम सुधरेंगे युग सुधरेंगे पंक्ति को चरितार्थ बनाये। विपत्ति का ये दौर है विपक्ष कर रहा शोर है सर्वदल एकजुट हो जायें वरना ना होगी भोर है इन्हें छोड़ आगे आयें कोरोना को दूर भगायें। जान है तो जहान है नेता भीड़ हेतु परेशान हैं अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता इनका तो बस लक्ष्य एक है जीवन अपना सुल...
देखते-देखते
कविता

देखते-देखते

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आंखे है दहकी दहकी बातें है बहकी बहकी मैं बस देखता ही रहा वो गया देखते देखते हालात बिगड़े बिगड़े रहनुमा तगड़े तगड़े रोक सकते थे उसे पर वो गया देखते देखते मंजर सहमा सहमा माहौल गरमा गरमा अपने देखते ही रह गए वो गया देखते देखते कोई नही अपना अपना हर रिश्ता सपना सपना करते रहो अब इंतजार वो गया देखते देखते दिया प्यार तौल तौल की नेकी बोल बोल कौन सुने दिल खोल वो गया देखते देखते वो गया देखते देखते। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
प्रहार
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प्रहार

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कब थमेगा सिलसिला' मौत के प्रहार का! हे प्रभु तिनेत्र धारी' काल के संहार का! जो यहाँ निर्दोष है' वो भी है 'डरे हुए! धैर्य अब बचा नही' दर्द है 'प्रलाप का! दूर कही हंस रहा' काल मुंह फाडे हुए! बिषम परिस्थिति बनी, जल रहा दवनाल सा! मौत ताण्डव करे, धरा भी अब शून्य है! अब क्रोध चहुँ ओर है' कुछ कही थमा नहीं! गरल विष फैला हुआ, हर तरफ बस 'धुध है! रक्त पानी बन चला, कैसा ये संताप है! लडे तो किससे लडे" जिसका न अस्तित्व है! कुछ तो अब रास्ता दिखा' मेरे प्रभु तू है कहाँ! कोई शक्ति ढाल दे, अस्तित्व को आकार दे! अब तो अधेरा दूर कर, प्रकाश ही प्रकाश दे! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
सकारात्मक
मुक्तक

सकारात्मक

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सकारात्मक खबरों की तू बात कर, हौसलों को, बढाने की, तू बात कर, बांट सके दर्द को, कुछ काम, कर ऐसा, आसूंओं को पोछने की ही तू बात कर." "लोग करते न कभी हमसे आंखे चार, पंछी भी नहीं करते अब हमसे दुलार, खुरदरी काया बन गई पहचान हमारी, मीठे फलों की सौगात, हम देते हजार." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी निवासी...
चांदनी
कविता

चांदनी

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान में बादलों का डेरा और चांद का सफर गोरे काले छितरे से बादलों में चांद कभी छुपता कभी निकलता बच बच के भागा जा रहा है ना जाने कहां? मध्यम सी रात नीरवता छाई है चांदनी फिसल रही है छतों से मकानों से आकर पेड़ों पर अटक गई आहिस्ता-आहिस्ता पत्तियों से टपकने लगी चांदनी ... अब धीरे से गली में बिखरने लगी असीम शांति की अनुभूति ... मैं आंखों से बटोरने लगी अस्तित्व में समोने लगी चांदनी की शुभ्रता चांद फिर बादलों से उलझा अठखेलियां करने लगा चांदनी सिमटी फिर बरसने लगी पेड़ों के साए बढ़ने लगे अजब खुमारी छाने लगी लगा समय थम जाए बस ये चांद चलता रहे मैं चांदनी पीती रहूं इस निशब्दता को जीती रहूं ये हठी चांद चलता ही जा रहा है अब खिड़की पर ठिठक गया श्वेत धवल चंचल चंचल चांदनी कमरे में बरस पड़ी उनिदी आंखों से मैं फि...
आज फिर कोई रोया
कविता

आज फिर कोई रोया

अंकु कुमारी शर्मा गोपालगंज (बिहार) ******************** आज फिर कोई रोया फिर कोई टूटा कितनी निर्भया, कितनी प्रियंका अब किसकी है बारी न्याय का गुहार, मोमबत्ती जलाकर क्या फायदा हर रोज जलती इस नर्क में कई नारी और कितना नारियों का चीरहरण बाकी है न्यायालय भी शान्त पड़ी है, किससे अब गुहार लगाए क्यों होती है चरित्रहीन नारियां ही नारी क्या इंसान नहीं। हर युग में चीरहरण होता है नारी की अग्नि परीक्षा भी देती नारी क्या... ये नारी का अपमान नहीं। सर्व शक्तिमान मान बैठे हैं पुरुष पुरूष क्या भगवान है खुद के गिरेबान में झांक कर देख ये बल रहा अभिमान है ये ताकत दिखाते फिरते क्या इतना बड़ा शक्तिमान हो ये शक्ति नहीं है तेरी निचता से भी नीच तेरा काम है। कल तक थी खुशी की जिन्दगी कब आ जाएं निर्भया, प्रियंका की जिंदगी क्यों कदम बढ़ाते डर सहम कर? दुनिया के हजारों प्रश्नों में घिर जाती है नारी पुरूष से क्यों क...
नारी
कविता

नारी

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** नारी से ही जगत में, है नर का सम्मान। शक्ति बिना शिव भी बनें, पल में शव प्रतिमान।। जिसकी गोदी में पलें, उद्भव और विनाश। शक्ति पुञ्ज शिव सहचरी, काटे भव के पाश।। नारी से ही चल रहा, यह जैविक संसार। नारि बिना नर का सकल, बल विक्रम बेकार।। नारि बिना संसार का, हो न चक्र गतिमान। अतः सदा इसका रखें, सभी तरह से ध्यान।। परिचय :- अनन्या राय पराशर निवासी : संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
जिंदगी का ये कारवां
कविता

जिंदगी का ये कारवां

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** यूं ही गुजरे जा रहा हैं जिंदगी का ये कारवां, बेगुनाह इंसान और दम तोड़ रही हैं जिंदगियां। थमने का नाम नहीं, और बढ़ता ही जा रहा ये सिलसिला। कहां कमी हुई हुक्मरानों से और अपनों से बड़ी गलतियां। गर संभल गये तो रुक सकता हैं अब भी मौत का ये कारवां। गलतियों को गर सुधार ले तो, बिखेर सकते हैं खुशियों का दारवां। अपनों के बीच आज अपने ही बेगानें हो चुकें हैं, पास होकर भी लाशों से कितने दूर हो चुकें हैं। चाह कर भी कोई रीति रिवाज ना निभा पा रहे हैं हम। अपनों के ही सामने अपनी जान को बचा रहें हैं हम। सिसकती मौत और जिंदगी की ये कैसी जंग हैं, ना कोई दृश्य शत्रु हैं ना कोई शरीर भंग हैं। एक वायरस के आगे महाशक्तियां भी दंग हैं, जिंदगी जिना भी चाहे तो अब जिंदगी कितनी बदरंग हैं। हाथ उठते हैं मदद के तो क्यों थम जाता हैं, इंसान भी आज इंसान की ...
संकल्प
कविता

संकल्प

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आद्य मन के भाव समर्पित l कृतज्ञता से करें अर्पित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l माँ के रक्त से तन है सिंचित, वाणी से वर्त्तन पोषित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर करें वंदना अति हर्षित l स्वर से वर्ण है श्रृंगारित, हिंदी पल्लव (रस, छंद, अलंकार) से सुरभित l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l द्यू लोक से उत्तर धरा पर, व्यक्त हुई यह वाणी है l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l भारत गौरव गाथा की, परिचायक हिंदी भाषा है l भाषा भारती मात हमारी, हम ही उत्तराधिकारी l संकल्पित हो हिंदी दिवस पर, करें वंदना अति हर्षित l परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा ...
कौन है
कविता

कौन है

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मन बेचैन है, न जाने किसके ढुंढ रहा है जी चाह रहा है, किसी को गले लगा लूँ। किसे लगाऊ? जो मुझे अच्छा लगे, या मैं जिसको अच्छी लगूँ पृथ्वी ने आकाश को चूना सागर ने नदी को, चाँद ने चाँदनी को, सूरज ने रश्मि को, मेरे मन ने उसे माँगा, जो पहुँच से बाहर है, जिसके स्पर्श से मैं अनजान हूँ, वो मेरे प्राणों को व्याकुल करता है।। मैं ढूँढ रही हूँ उस ज्योति को, जो जीवन राह को अंधेरे से निकाले, मेरी मौन व्यथा को सुने संगीत रागिनी का रस-पान कराये।। भटक रही हूँ मैं कौन है जिसे दूँ प्यार, जो मुझे अच्छा लगा, या मैं उसे अच्छी लगूँ ।। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा पास की। आप गृहणी की भुमिका निभाते हुए कई संस्थाओं में ...
घड़ियाली आंसू
कविता

घड़ियाली आंसू

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** चारों तरफ मौत कर रहा तांडव, संकट में जिंदगी, संकट में मानव, दिल व्यथित, विलाप कर रहा है, ना जाने किस गलती का पश्चाताप कर रहा है, अपने अपनों से मिल नहीं पा रहे, अपनों का शव घर भी नहीं ला रहे, सारी उन्नति हमें मुंह चिढ़ा रहा है, प्रकृति हमें हमारी हैसियत बता रहा है, कितने हुए तबाह, कितने आंसू बहा रहे, फिर भी कुछ लोग सियासती अहम दिखा रहे, इंसानिय मौन, नैतिकता शरमा रहा है, मौत अपना विभत्स रूप दिखा रहा है, यह सबक कठोर, सीख है बड़ी, हम मौत से लड़ रहे, उन्हें कुर्सी की पड़ी, इंसान अपनी मूर्खतापूर्ण तरक्की की सजा पा रहा है, इन लाशों की ढेर पर कोई घड़ियाली आंसू बहा रहा है परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ह...
फिर से होगी सहर
कविता

फिर से होगी सहर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** फिर से होगी सहर उजाला आएगा। अंधियारे का बादल ये छंट जाएगा।। फूल डालियों पर लौटेंगें। भंवरे आकर पहरा देंगे।। गंध हवा में घुल जाएगी। कोयल कूंकेगी गाएगी।। फिर बदला मौसम आएगा। सबमें जीवन छा जाएगा।। हरा भरा गुलशन फिर नगमे गाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिर से हाथ मिलाएंगे हम। मिलजुल जश्न मनाएंगे हम।। रंग उड़ेंगे फिर होली के। बंद खुलेंगे फिर चोली के।। नृत्य करेंगे गीत गाएंगे। हाथ कमर में रख पाएंगे।। फिर से रूठी राधा कृष्ण मनाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। फिरसे रोज अजानें सुनकर। नहीं रहेंगे बैठे हम घर।। फिर मंदिर में हलचल होगी। पूजा फिर से अविरल होगी।। धर्म - कर्म लेंगे अंगड़ाई। कर देंगे पिछली भरपाई।। ईश्वर का आशीष नहीं तरसाएगा। फिर से होगी सहर उजाला आएगा।। रोजगार फिर घर आएंगे। अन्न पेट भरकर खाएंगे।। नहीं पलायन होगा...
इश्क़-सी कुछ लगे है हवा
कविता

इश्क़-सी कुछ लगे है हवा

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** इश्क़-सी कुछ लगे है हवा मनचली-सी लगे है हवा इससे उससे लिपटती फिरे पागलों-सी लगे है हवा मौसमों-सी बदलती है यह दिल्लगी-सी लगे है हवा बाग, जंगल, पहाड़ी, नदी, ये तो सब को लगे है हवा बन्द कमरों से बाजा़र तक बेहया-सी लगे है हवा परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० ...
यह रात कब खत्म होगी….??
संपादकीय

यह रात कब खत्म होगी….??

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर निकलता दिन कोरोनाकाल की निर्ममता को बढ़ाता जा रहा हैं।सभी सुबह का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन लोग कह रहे हैं कि पीक आना अभी बाकी है ,अभी आलम यह है तो आगे की तो कल्पना करना भी मुश्किल है, मानवीय भाव और संसाधन खत्म होते जा रहे हैं, इंसानियत, मानवता, हॉस्पिटल, बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन, दवाइयां, रिश्ते, प्रकृति, ये सब खत्म होते जा रहे हैं। क्या-क्या देखना बाकी है, यह तो नहीं पता लेकिन आसपास के लोग पुराने परिचित रिश्तेदारों को जाते देख मन दिल दिमाग बैठा जा रहा हैं। और ऐसा लगता है जैसे प्रकृति गुस्से में तांडव कर रही है और सभी को अपने कोप का भाजन बना रही है, मुसीबत में आम आदमी सरकार, सिस्टम डॉक्टर और भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहरा रहा है, लोगों की मन:स्थिति बिगड़ रही है, अपनों के सहारे के समय, अपनों से दूरी बनानी पड़ रही है। प्रकृ...
लौटेगी ज़िंदगी
कविता

लौटेगी ज़िंदगी

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** इसी कोरोना वायरस ने दुनिया के पहिये को थाम दिया आप भी थम से गए में भी थम गया ओर मानो ज़िंदगी का पहिया जैसे थम सा गया। दिन-रात भी यू कट रही ज़िंदगी पलभर में क्या से क्या बदल गया दुनिया अपनो के जाने से गम के अश्रुओं में बहने लगी सावधानी हटी, नज़र लगी ओर खुशियों को गम में बदल दिया दुनिया के अच्छा वक्त भले ही आज थम गए हो लेकिन उम्मीद है कि ये वक्त भी बदलेगा एक दिन। आज चेहरे की नकली हंसी जैसे चेहरे का नूर ही गुम हो गया सब्र रखो हर चेहरे पे मुस्कान आएगी फिर लौटेगी ज़िंदगी पटरी पे एक दिन। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
अकेला हूं मैं
कविता

अकेला हूं मैं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सांसों का सिलसिला हूं मैं माया के झंझा बातों में सांसो की आवाजाही में माटी का पुतला हूं मैं पल-पल आघात होता दिल पर कहने को कारवां है कहां तक साथ चले कोई पत्ते उलीचती पगडंडी पर अकेला हूं मैं पल में पथिक पीछे था जाने कहां खो गया उस साथी की छाया में अकेला हूं मैं रविचंद्र भी कभी साथ नहीं चलते इसी तरह विधि के बंधन में बंधा हूं मैं माटी का पुतला हूं मैं परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व व...
एक पल
लघुकथा

एक पल

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कुछ पल की चहलकदमी के बाद एक जगह ठहर गई 'पिया' उसका पोर पोर दर्द की वेदना से भरा था! कितने हाथ पैर मारे थे! पर उसकी कौन सुनता 'जब भौकाल चरम पर होता है तो सबकी मानसिकता ही बदल जाती है! पर अब क्या 'निपट अकेली रह गईं थी! पिया' निरीह वो सारे वादे बिना निभाये जा चुका था! खुद को ठगा महसूस कर रही थी! पर वो न भूली थी 'उसकी भरी आंखें' चंद बूँदे अश्रु की जो उसने भरसक छुपाने की कोशिश की थी! नही वो भटकाव न था! वो उसका प्रेम ही तो था! जिसे पाने की खतिर खैर उसनें एक लम्बी सांस ली उसे पता था! अब वो कभी वापस नहीं आऐगा' बुखार से तन तप रहा था उसका 'कुछ तो समझ न आ रहा था! उसे'तो 'सच मे चला गया हमेशा के लिऐ वेदांत'.... एक सिसकी और एक और लुढक गई पिया की गरदन 'उसकी निस्तेज आंखों मे लिपटा काली तिरपाल मे वेदांत का शरीर और अब न रही: 'एक पल की प्रतिक्षा..... !! ...
संजीवनी बूटी कहा ढुढोगें
कविता

संजीवनी बूटी कहा ढुढोगें

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** तबाह कर दिये जंगल पठार, पर्वत, बची थी खेती जमीन उस पर भी बना लिए पत्थर के जंगल मानवता इंसानियत भी खत्म होती जा रही है, बतलाऔ कहा ढुढोगें अब संजीवनी बूटी और मर रहा है आदमी। हां हां कर मचा विश्व में कृत्रिम आक्सीजन के लिए इस लॉकडाउन महामारी में, उजाड़कर सृष्टि को जो खूबसूरत है, कभी तुमसे कुछ नहीं मांगा बल्कि दिया हमेशा अतुलनीय अनमौल उपहार, आज आदमी बन गया है, आदमी का दुश्मन और मर रहा है आदमी। शैतानी दिमाग पाया है, ईश्वर में भी आस्था कम हो गई है, कुछ अविष्कार क्या कर लिया, ईश्वर को झुठलाने लगा है गगन और तो और अपनी गलती छुपाने के लिए कलयुगी दुहाई देकर बच जाना चाहता है, देख नहीं रहा अपनी गलती आज मर रहा है आदमी। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदे...
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन
कविता

ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन

अनुपमा पांडेय 'भारतीय' शालीमार गार्डन (साहिबाबाद) ******************** संसद की पावन देहरी से, रक्त दुर्ग की अटारी से, संविधान की गूंजती ऋचाओं से, रावी की झंकृत लहरों से, मां के सुने आंचल से, कफन में लिपटे तिरंगे से, आवाज यही गूंजेगी सदा, आवाज यही गुजरेगी सदा.. ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन, ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन, नमन नमन नमन नमन, नमन नमन नमन नमन, एक बार नहीं शत बार नमन, शत बार नमन, शत बार नमन... हिमालय की तुंग शिखरों से, हिंद सागर के उफानो से, गांधी के अहिंसा के चरखों से, सुभाष के गरजते अंगारों से, फांसी को चूमते भगत, सुख, राज के नारों से, सेलुलर जेल की सलाखों से, जलिया वाले बाग की दीवारों से, सरफरोशी के बसंती चोला से, बिस्मिल की आजादी की गजलों से, इंडिया गेट पर जलती अमर ज्वालों से, आवाज यही गूंजेगी सदा .... ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन..... ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन.... नमन नमन नमन नमन, एक बार नहीं ...
अंतिम विकल्प
कविता

अंतिम विकल्प

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** थम सा गया है हर तरफ शोरगुल जो बांधे कोरोना ने एक से अनेक पुल ये पुल है सबसे अनोखे कि मिलने पर है बिछड़ने के धोखे चारों ओर है बस भय व्याप्त न जाने जीवन कब हो जाए समाप्त खड़े हो रहे हैे शवों के शिखर जो अब तक समेटा, एकदम से जा रहा है बिखर अटल सत्य "अकेले आये सब, सबको जाना भी है अकेले" पर अब तो अनिवार्य हो गया, साथ छोड़ रहना भी है अकेले एकत्र होकर कही स्वयं ही स्वयं को लगा न दे आग तनहा रहे तो आगे ले सकेंगे जीवन के रंगमंच पर भाग वरना जरा जान लो उनसे जिन के घर के बुझ गए चिराग टूटे महामारी का पुल, जो ले हर एक से दूरी रखने का संकल्प न निभा सके संकल्प तो तालाबंदी का पहरा ही है अंतिम विकल्प परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा ...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "लोग अक्सर करते हैं जिक्र हमारा, देखते नहीं क्या हो रहा है, हश्र हनारा, जल जंगल जमीन का बिखर रहा नाता, मायूसी के आलम में टूट रहा, सब्र हमारा, जहां, लहलहाते थे, मीलों हरे भरे, जंगल, कुल्हाडी के घावों से रिस रहा लहू हमारा, चीख-चीख कर आगाह कर रहे कई लोग, मतिभ्रम से हो रहा पल पल विनाश हमारा, अनियंत्रित हो रहे हैं, सारे दुनिया, में मौसम, बढती उष्मा से पिघल रहा ग्लेशीयर हमारा, प्रकृति हमेशा देती, इस बात की पूर्व चेतावनी, समय रहते ही जाग कर, बचा लो संसार हमारा." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन...