कंकाली स्तुति
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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श्री कंकालीकायै नमः
जगत कल्याणी जानकर,ब न्दों चरण तुम्हार।
समस्त कामना पूर्ण करो, हरहु क्लेश हमार।
जय माँ कंकाली क्लेश बिनाशनी।
जग-जननी शम्भु भामिनि।।
शवारूढ़ श्मशान -वासिनी।
उग्ररूप अभयंकर करणी।।
श्याम-वर्ण बाघम्बर धारी।
लक्ष सूर्य सम ताप तुम्हारी।।
पिंगल जटा अरुण त्रिनैनी।
चतुर्बाहु भुजदंड बिशाला।।
खप्पर जलज कत्री कृपाणा।
हस्त लिए तुम काल समाना।।
पद नख झलमल ज्योतिरत्न की।
छुअत खुलत कपाट नयन की।।
वाक चातुरी छंद गायिका।
तू पूर्ण ब्रम्ह ब्रमांड नायिका।
तू माँ पूर्ण पुनः तू रीता।
सगुनागुण से परे अनिता।।
जड़ चेतन अरु जीव प्रवीणा।
सब तुममे तुम सबमे लीना।।
सभी तुम्ही से जीवन पाते।
अन्त समय तुझमे मिल जाते।।
यंत्र मंत्र इतिहास पुराना।
आगम निगम वेद प्रमाणा।।
घोर छटा माँ तरी जितनी।
परम कारुणिक हो तुम उतनी।।
दया मात्र माँ जा पर तेरी।
ऋद्धि-सिद्धि...






















