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घर घर दीप जलाएं हम
कविता

घर घर दीप जलाएं हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम। आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। दीप जलाएं मेटें मिलकर अंधियारे, रोशन कर दें अवनी अम्बर हम सारे। ये त्यौहार नहीं है सिर्फ अकेले का, याद उन्हें भी रक्खें जो हैं दुखियारे।। उनको भी खुशियों में भागीदार करें, पल खुशियों के आए भूल न जाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। सुख बांटो तो कई गुना बढ़ जाता है, रगरग से ये स्नेहसुधा बरसाता है। इंसानों की एक अलग पहचान रही, मिलजुल करके खाना इनको आता है।। हम दानव के वंशज नहीं न दानव हैं, इंसां हैं, ये इसां को समझाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घरघर दीप जलाएं हम।। धन प्रकाश का सुन्दरता का वर ले लें, लक्ष्मी माता से अपने जेवर ले लें । विजय न्याय की होती है विश्वास करें, अन्यायी का उठें उतारें सर ले लें।। स...
किसी को जहाँ में किसी ने छला है।
ग़ज़ल

किसी को जहाँ में किसी ने छला है।

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** किसी को जहाँ में किसी ने छला है। मुझे तो मेरी बेबसी ने छला है।। रही चार दिन तक जुदा हो गई फिर। मुझे उम्र भर हर खुशी ने छाला है।। बढ़ी तिश्नगी जिस क़दर पी किसी ने। उसे क्या पता मय कशी ने छला है।। अंधेरों से डर के भी क्या कीजिएगा। पतिंगे को जब रोशनी ने छला है।। ये दुश्मन हैं बेहतर की खुलकर खड़े हैं। छला है तो बस दोस्ती ने छला है।। नहीं कोई शिकवा किसी से जहाँ में। मुझे ख़ुद मेरी ज़िंदगी ने छला है।। छलावा है दुनिया निज़ाम इससे बचना। यहाँ हर किसी को किसी ने छला है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
स्वप्निल झिलमिल दीप जलायें
कविता

स्वप्निल झिलमिल दीप जलायें

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** जिस तरह रजनीगंधा से जीवन की हर शाम सुवासित। तारों की नन्ही उमंग से मन की आशायें हुईं प्रकाशित। अब न कहीं भी रहे मूक, एक दिया भी कुम्भकार का। चहुंदिश हो जाये उजियारा, निराकार उस निर्विकार का। सत्य ही जब जब जला है, आस्था का एक दीपक, सदियों से गवाही दी है समय ने अंधियारे मन के, विलीन हुए हैं। ले उसकी ज्योति प्रज्ञ प्रभा हम कर्म के पथ पर लीन हुए हैं। इस दीप पर्व भी संकल्पों के, कुछ ज्योति कलश हम भी छलकाएं! प्रेरणा के, आस्था के स्वप्निल, झिलमिल दीप जलाएं!! परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप...
गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व
कविता

गाय चराना शर्म, कुत्ता घुमाना गर्व

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** दुर्भाग्य इस देश में गाय चराना शर्म है कुत्ता घुमाना गर्व है, कुत्ते से मनाते पर्व है। दुर्भाग्य है इस देश में गंदगी को गले लगाते, बुराई को दिल लगाते गाय नहीं पास बुलाते। गाय गोबर काम का, लिपते चूल व चौका कुत्ता पालकर पाते हैं, मल उठाने का मौका। गाय का घी दूध भी बहुत सेहतमंद होता, कुत्ता काटे जब कभी, फिरता रहे जन रोता। गाय को माता कहते देश में यह प्रथा रही, कुत्ते से करते प्यार वे कहते उसे बाप नहीं? गाय पालो धर्म काम मां की सेवा करते हैं लेकिन ये लोग अब गायों से ही डरते हैं। कुत्ता गंदगी करता हैं घर में कोई काम नहीं, कुत्ता काटता जब कभी, मिले कभी आराम नहीं। अब पाल लो घर गाय सेहत बुद्धि बढ़ जाएगी, पूरे जगत में होगा नाम, खुशियां लौट आएगी। कुत्ता का मल उठाओ, नहीं किसी काम का, कुत्ता रोगों का घर है, राम का न श्याम का।। परि...
आओ मनाएं दीवाली।
कविता

आओ मनाएं दीवाली।

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** पूनम सी दमकेंगीं राते ये काली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। दीपों की कड़ियाँ हैं, फूलों की लड़ियाँ हैं, रंगोली द्वारे पर, झिलमिल फुलझड़ियाँ हैं। आशा की जोत हो,मन में उजियाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। लक्ष्मीजी पूजित हैं, नारायण वन्दित हैं, है अर्चन हृदयों से, आराधन गूंजित है। झोली में सबकी बरसे खुशहाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। अब कोई रोये ना, खुशियों को खोये ना, राहों मे कोई भी, शूलों को बोये ना। भण्डार भर जाएँ, बौराये थाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। शांति का प्रकाश हो, शक्ति का विकास हो, हो धरती हरियाली, रिमझिम आकाश हो। हो भारत सिरमौर , परम शक्तिशाली। आओ सब मिलके मनाएं दीवाली। परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़...
मिट्टी की दीया
कविता

मिट्टी की दीया

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** मिटटी की बनी ये जो कुम्हार का दीया है, हमारी सांस्कृति तथा परम्परा को जीवित किया है। दीया हमारी सास्कृति विरासत की ढाल है, तमसो मां ज्योति की कायम मिसाल है। मिट्टी की दीया हम भारतीय की पहली पसंद है, आधुनिक युग में भी दिया का प्रयोग नहीं बंद है। दीये से आती हमारी मातृ भूमि की सोधी-सोधी सुगंध है, हम सब का इस दीये से बहुत पुराना सम्बंध है। दीयों का पर्व मन भावनी दीपावली आई है, हर घर-घर की सफाई और रंगाई कराई है। टूटे-फूटे पुराने बर्तनों को नये में बदलवाई है, मिट्टी के दिये हम सभी के मन को लुभाई है। माताए और बहने मिट्टी के दीये खरीद कर लाई हैं, घर को खूब अच्छे से खूबसूरत सजाई हैं। मिट्टी के दीये से अपने घर में प्रकाश फैलायेगी, दीपावली के पावन पर्व को हँसी-खुशी मनायेगी। दीपावली दीपो का पर्व बहुत नजदीक है, ये मिट्टी के दीये हमारी...
चिड़ियों की चहचहाहट
कविता

चिड़ियों की चहचहाहट

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद पहाड़ों पर जाती पगडण्डी मन आकाश में चाँद के इंतजार में घुप्प अंधेरा रात स्याही विरहन सी। पत्तो की सरसराहट उल्लू की कराहती आवाजे लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी चाँद निकला बादलों से। सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न। जंगल कम नदियाँ प्रदूषित हो सूखी मानों ऐसा लगता मौत हो चुकी पर्यावरण की। धरा से आँखे चुराता चाँद छूप जाता बादलों की ओट निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा भोर हुई उजाला आया नई उम्मीदों से जंगल सजाने। नदियों की कलकल चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया पर्यावरण को पुनर्जन्म। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार प...
आखिर हो क्या गया जमाने को
कविता

आखिर हो क्या गया जमाने को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सच्चे दिल से साथ निभाए उसे पागल समझा जाता है दंगा, बात-विवाद को ही समस्या का हल समझा जाता है। कड़वी हकीकत कहने में जरा भी देर नहीं करता हूँ मैं दुख है कि मेरी बातों को आज नही कल समझा जाता है। पर पीड़ा देख आखों से बहते गंगाजल जैसे पावन आंसू निर्मम लोगो द्वारा आंसू को भी सादा जल समझा जाता है। बदलने वाले तो अक्सर बदल ही जाया करते हैं जमाने में ईमान, वफा,सच्चाई को भी अब केवल छल समझा जाता है। अदब से झुका वही करता, जिसमें होते संस्कार सभी अच्छे अफ़सोस जमाने में ऐसे लोगों को निर्बल समझा जाता है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
मां अहिल्या चालीसा
दोहा

मां अहिल्या चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* होल्करों के वंश में, अहिल्या भइ महान। भारतभूमि धन्य करि, कीना जन कल्याण।। जय जय जयति अहिल्याबाई तिहरी कीरति सब जग छाई। १ कोख सुशीला से जग पाया। पिता माणको की हो छाया। २ धनगर ग्वाला बेटी माया। इंदुर नगरी धन्य बनाया।। ३ चौड़ी गांव जनम तुम्हारा सुंदर जस छाया संसारा। ४ बालपने की कथा पुरानी। शिव को अर्पण कीना पानी। ५ राव मल्हार आपहि देखा। सादा जीवन कन्या वेशा। ६ उमा रूप पाया महरानी। गाथा आपन कवी बखानी। ७ खांडे रावा संग भवानी। चौड़ी से रथ इंदुर आनी। ८ काशी मंदिर को बनवाया। विश्वनाथ पूजन करवाया। 9 गंगा रेवा घाट बनाये। बापी कूआ बहुत खुदाये। १० इंदुर राजा की थी रानी। माहेश्वर कीनी रजधानी। ११ प्रजा कारणे कष्ट उठाया। देवी माता का पद पाया। १२ शिव का पूजन करती रानी। मां रेवा का पीती पानी। १३ चारो धाम बारह शिवालय। सात पुरी में निर्मि...
हमें गर्व है
कविता

हमें गर्व है

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** हमें गर्व है बुजुर्गों के किए हुए उपकारों पर, गर्व है हमें माँ-बाप ने दिए सभ्य संस्कारों पर। हमें गर्व है अपने परम् पूजनीय हिंदुस्तान पर, गर्व है हमें राष्ट्र की आन-बान-शान-ईमान पर। हमें गर्व है भारत माता के वीर जवानों पर, गर्व है हमें अन्नदेवता भूमी पुत्र किसानों पर। हमें गर्व है क्रन्तिकारी कवियों के विचारों पर, गर्व है हमें कलमरूपी अमिट हथियारों पर। हमें गर्व है अपनी सामाजिक संस्कृति पर, गर्व है हमें सबसे निराली भारतीय प्रकृति पर। हमें गर्व है हमारी अनेकता में एकता की शक्ति पर, गर्व है हमें यहां भगवान के प्रति प्रेम की भक्ति पर। हमें गर्व है अशफ़ाक़, आज़ाद और सरदार पर, गर्व है हमें उस सच्चे बादशाह के पहरेदार पर। हमें गर्व है लाला, लोहपुरुष, कलाम और अटल पर, गर्व है जवानों की बंदूकों और किसानों के हल पर। हमें गर्व है ...
परशुराम चालीसा
दोहा

परशुराम चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* भृगुकुल वंश शिरोमणी, विप्र रूप अवतार। परशुराम को नमन करूं, कहत है कवि विचार।। जय-जय परसुराम अवतारी। तुम्हरी महिमा जगत विचारी।।१ पितृ भक्त संतन सुख दाता। सब जग गावे तुम्हरी गाथा।।२ मालव भूमी जन सुखकारी। लीला धारी प्रभु अवतारी।।३ माटी उपजउ फसल अनेका। सादा जीवन सब ने देखा।।४ इंदौर मुंबई रोड सुहाई। सरपट वाहन चलते भाई।।५ रेणुक पर्वत पाव पहाड़ी। कलरव पंछी हरिया झाड़ी। ६ पर्वत फोड़ निकलते झरना। उद्गम चंबल जीवन तरना।।७ तनया गाधि सत्यवति देवी। पतिव्रतधारी भृगु की सेवी।।८ ताके सुत जमदग्नी नामा। तेजवान सुंदर गुणधामा।।९ रेणूका संग ब्याह रचाये। जासे पांच पुत्र जग पाये।।१० पंचम पूत गरभ में आया। सुंदर समय जगत को भाया।।११ बैसख शुक्ला तीज सुखारी। प्रथम पहर में भै अवतारी।।१२ मंद पवन चल धूप न छाया। पावन बेला प्रभु की माया।।१३ नैन विशाल धरम...
ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…
कविता

ले गया है सब लुटेरा भीड़ में…

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** ले गया है सब लुटेरा भीड़ में। लुट गया संसार मेरा भीड़ में। बादलों ने ढँक लिया है सूर्य को सांझ में बदला सवेरा भीड़ में। रूठकर बैठी कहीं है रोशनी शेष है केवल अंधेरा भीड़ में। अजनबी अनजान है इन्सान वो डालकर बैठा जो डेरा भीड़ में। गा रहा है कोई सुन्दर प्रेम गीत रेशमा के साथ शेरा भीड़ में। धातु के बर्तन नहीं,फल-सब्ज़ियाँ बेचता है अब कसेरा भीड़ में। वह अकेला क्या करेगा अब 'रशीद' आफ़तों ने उसको घेरा भीड़ में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...
प्रसाधन
हास्य

प्रसाधन

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हैरान है, परेशान है क्या करें, क्या न करें इसी ऊहापोह में कुछ सहायता मिल जाये लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। छोटे लोगो की छोटी समस्याएं लगती उन्हें पर्वत सी हो निदान शीघ्रता से इसी आशय से लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। सीमांत किसान अंत के करीब दिहाड़ी मजदूर दहाड़े मारता जिनके आँसू छुप जाते है पसीने में, मिले कुछ राहत लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। जिले से शुरू परिक्रमा राजधानी तक पोहच कर भी, अंतहीन है करने अंत उसका लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। इन्हें सुना, उन्हें सुना सुना-सुना कर काम भले ही न हुआ पर मन हल्का हो गया बताने ये बात लगाया फोन साहब को जवाब मिला साहब बाथरूम में है। कितनी भग्यशाली व ऐश्वर्य लिए है साहब की बाथरूम जो निरंतर उन्हें सुख दे सानिध्य पाती है साहब क...
जीवन एक उत्सव
कविता

जीवन एक उत्सव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जीवन एक उत्सव, इसे क्षण-क्षण, उत्सव कर जायें। जीवन के लक्ष्य को, अक्षय कर जायें।। युगों युगों से चल रही। अनन्त अमर जीवन धारा को, प्रेम से संचित कर। नित-नित उत्सव हम मनायें।। जीवन एक उत्सव, इसे क्षण-क्षण, उत्सव कर जायें।। जीवन का संचार उत्सव। मन का हर्षोल्लास उत्सव। चेहरों का निखार उत्सव। मेलजोल की बात उत्सव। खुशियों का विस्तार उत्सव। शुभता का संचार उत्सव। प्रेम का आलाप उत्सव। नव्यता का इंतजार उत्सव। सोचियें....! बिना उत्सव के.....? सब बेकार हो जायेंगा। आस कहा रहेंगी। जीवन निरसता से, निराश हो जायेंगा।। आईयें.....! एक उल्लास भर कर। जीवन को, हम उत्सव बनायें। जीवन की, जीवंत महिमा को, नये-नये उत्सवों से भर जायें। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी...
दीप
कविता

दीप

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीप तुम जलाओ,या फिर मैं जलाऊं। उजाला तुम्हारा न मेरा होता है। दीप हम जलाएं कि जलते रहें दीप। वो तो हथेली पे उगा सूरज होता है। वह तमस की सूनी-सूनी देहरी पर, गश्त लगाता इक प्रहरी होता है। सच कहें अंधेरों में बसने वालों का, उत्साह-सुरक्षा का विश्वास होता है। किसी अकिंचन के स्वप्न का आधार। किसी बेबस कश्ती की पतवार होता है। बिन प्रकाश दीप का अस्तित्व केसा? वह तो आस्था-प्रेम का पर्याय होता है। दीप-दान करते रहें, प्रीत-दान होगा। शनै:-शनैः मानव संस्कारी होता है। दीप कभी विद्युत का पूरक नहीं होता। वह तो संस्कृति का आधार होता है। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहे...
मतलब की नदी
कविता

मतलब की नदी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नकारात्मक कविता का पक्षधर नहीं व्यवहारिक जीवन अनुभव बड़ा महती है क्योंकि तारीफों के पुल के नीचे से तो मतलब की नदी ही बहती है। हर आँगन लोग पलते पनपते हैं कितने रिश्ते समाज परिवार में गढ़ते हैं उपलब्धियों पर तारीफों में कहे लफ्ज़ निश्चित ही सुंदर भविष्य रचते हैं। पर वाकिफ होंगे जनाब आप भी निश्फिकरी मय बोली रद्दी रहती है क्योंकि तारीफों के पुल के नीचे से तो बस मतलब की नदी ही बहती है। लोक प्रदर्शन कार्य भी अति जरूरी होते दिनचर्या के उचित वक़्त में सम्पादित होते उन्हें पालने स्थल पर जब जाते हैं उत्सर्ग भाव का एहसास कर जाते हैं जन्म लेता तब एक व्यक्तित्व यहां पर अपनत्व से भरी राह खुदी बनती है क्योंकि तारीफों के पुल के नीचे से तो बस मतलब की नदी ही बहती है। राजनीति गलियारों को समझ चुके मोटी चर्बी बेशर्मी बोली से कान पके पक्ष-विपक्ष का जोर खत...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग्य

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजराती भाऊ बिजनेस औ...
करवाँ चौथ
कविता

करवाँ चौथ

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** सिर्फ आपके लिए इबादत में मुहब्बत का इक विस्तार रह कर निराहार कर के सोलह श्रृंगार करूँ जमीं से उस चाँद का दीदार जो है इस पवित्र रिश्ते का आधार आया करवाँ चौथ का त्यौहार सिर्फ आपके लिए पूजा-थाल, करवाँ लिए हाथ में करूँ पूजन माँगू अखण्ड सौभाग्यवती का वरदान एक झलक पाने को पल-पल उत्सुक मन है प्रेम, श्रद्धा का यह उत्सव पावन सिर्फ आपके लिए ना करना कभी मेरे प्रेम का उपहास चाहे हो ना हो आपको मेरे प्रेम का आभास हर वर्ष आस्था से रखती हूँ आज के दिन उपवास सिर्फ आपके लिए चाहे कैसी भी रहे मजबूरी करूँ कामना कभी ना आए हमारे बीच दूरी माथे पर अपनी भरूँ माँग सिंदूरी सिर्फ आपके लिए करती हूँ इंतजार आपका हर क्षण-क्षण बसे इस रिश्ते में प्यार और विश्वास का कण-कण आपके जीवन में हो अपार खुशियाँ अर्पण सिर्फ उपवास नहीं, यह है मेरा एक समर्पण सिर्फ आपके लिए ...
छली गई शाम
गीत

छली गई शाम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम। पीपल की फुनगी पर जा बैठा घाम।। कौन यहाँ मेरा है, समझ नहीं पाई, चन्दा सूरज किसकी करते भरपाई; बार बार अपनों से छली गयी शाम।। नियराते दिन का तो टूट गया चक्का, पीछे से रजनी भी मार रही धक्का; कहाँ ठौर खोजे अब बेचारी शाम? चलना जीवन है, चलते रहना है, लेकिन कब तक यों ढलते रहना है; चल-चल के, थक-थक के अब हारी शाम।। टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
अपनत्व की पंखुड़ियां
कविता

अपनत्व की पंखुड़ियां

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** चलता है वह खूबसूरत एहसास लेकर, कीचड़ के छीटे गिरते उसी पर! चलता है वह रंगों का गुलाल लेकर, कालिख के रंग उड़ते उसी पर! चलता है वह भरोसे के रोशन दिए लिए, षड्यंत्रो की आंधियां रहती उसी पर! चलता है वह अपनत्व की पंखुड़ियां लिए कांटे बिखेर दिए जाते हैं उसी पर! चलता है वह मुस्कुराहटों की चादर ओढ़कर, कड़वाहटें उड़ेल दी जाती है उसी पर! चलता है वह एक अलग तस्वीर का सपना लिए, धमकियां देकर कैनवास गिरा दिया जाता, क्यों उसी पर! परिचय :- मीना सामंत निवासी : एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अ...
सत्य की जीत है
कविता

सत्य की जीत है

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** सत्य सुन्दर है, सौम्य सुदर्शन है सत्य खुद्दार, सत्य की जीत है, सरसता, कोमलता सत्य वाणी में सौहार्द, सत्य के प्रेम की प्रीत है। सत्य ईमान है, इज्जतदार है हर इक प्राणी का श्रृंगार है। सत्य में लाज़ है, लिहाज़ है ज़िंदगी जीने का आधार है। सत्य में संस्कारों की संहिता भारतीय समाज की संस्कृति है, चाँद-सूरज, नभ-धरा सत्य सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, सत्य प्रकृति है। पवित्र गुरु-ग्रंथ साहब है सत्य सत्य है रामायण और पुराण, ऋषि-मुनियों, की वाणी सत्य सत्य है वास्तविक पाक कुरान। सत्य अहिंसा, पुण्य कर्म है अखंड-अमिट, सत्य अटल है, राजा हरिश्चन्द्र जी है सत्य युगांतर है सत्य, आज-कल है। सत्य पथ पर चलना सदैव सत्य हमारे पूर्वजों की रीत है, वक़्त लगता है सत्यता को हाँ धर्म और सत्य की जीत है। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी...
ये मजबूरी हमारी है
ग़ज़ल

ये मजबूरी हमारी है

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ये मजबूरी हमारी है, छुपाकर रख नहीं सकते चिरागों को हवाओ से, बचाकर रख नहीं सकते हज़ारों दर्द देता है, उसी से प्यार भी तो है निगाहों से उसे पलभर हटाकर रख नहीं सकते हमे ख़्वाहिश फ़लक की है, वहाँ भी देखना होगा हमेशा सामने ये सर, झुकाकर रख नहीं सकते अभी तक जो भी चाहा है, उसे पाकर रहे हैं हम ये बाहों को हमेशा यूं उठाकर रख नहीं सकते हक़ीक़त में अगर तू आ सके तो आ घड़ी भर को तेरी तस्वीर ही दिल से लगाकर रख नहीं सकते ये पानी और ये है आग संगम हो तो कैसा हो ग़म-ए-दिल को खुशी के संग मिलाकर रख नहीं सकते "शलभ" मालूम है दुनिया तबाह हो जाएगी अपनी ये सोए दर्द को पलभर जगा कर रख नहीं सकते परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वा...
दिवाली के दीप जलाये
कविता

दिवाली के दीप जलाये

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** आओ मिलकर दीप जलाये। हर घर आँगन मै रंगोली सजाये। वनवास पूरा कर आये भगवन। अयोध्या के मन भाये भगवन। लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती का करे पूजन। घर घर जाये करने मिलन। हम अपने दिलों से नफरतों को मिटायेँगे! अपने घरों में हम आज स्नेह के दीप जलाएंगे! मन के अँधेरो को दूर कर खुशियों के बादल बरसायेंगे। दीए की ज्वाला में छल कपट ईर्ष्या को जलायेंगे। हम एकता ओर सदभावना का सबक सिखायेंगे। आज रात हम सब दिव्य दीप जलायेंगे। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
ठंडी-ठंडी हवा
कविता

ठंडी-ठंडी हवा

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** ठंडी-ठंडी हवा चले तुम्हारे लेकर दिल का पैगाम मस्ती में झूमें लहरा तुम्हारे लेकर दिल का पैगाम समा और है सुहावना ये जो भा रहा है दिल को मेरे कुछ पलों के लिए दिलबर आज जागे हैं अरमान मेरे नाचूँ और झूमूँ नहीं हैं ये पैर आज जमीं पर मेरे देखती हूँ जब उड़ते बादलों को लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... आज इस दिल के फूल खिले हैं सनम मुहोब्बत के मेरे छेड़े दिल के तान दिल ये यादों के फसाने लिए मेरे जो बीते लम्हों की भरते हैं इस तन्हा दिल को मेरे देखती हूँ भँवरों को गाते गीत लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... ये प्यार मेरा ना कम होगा जीवन में महबूब मेरे नाम हम लेते रहेंगे जब तक साँसे दिल में हैं मेरे जज्बात दिल ये समझेगा जब तक दिल में आशा है मेरे देखती हु मन अंतिष में जब कभी लेकर दिल का पैगाम ठंडी-ठंडी.... परिचय :- बबली राठौर निवासी - पृथ्वीपु...
बचपन का जमाना
कविता

बचपन का जमाना

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** याद आता है। वो गुजरा जमाना, बहुत याद आता है। मिट्टी की सोंधी खुशबू, वो गांवों की हरियाली, वो पेड़ों की डाली, बहुत याद आता है। वो खेती और बारी, फसलों पर बैठ, चिड़ियों का चहचहाना, मचान पर चढ़कर जोर-जोर से चिल्लना, बहुत याद आता है। बारिश का पानी, वो कागज के नाव, उसमें चींटी की सवारी, बहुत याद आता है। वो पत्थर और पानी, वो गुल्ली और डंडा, वो छुप्पम-छुपाई, बहुत याद आता है। ऊंचाई से तालाबों में कूदना और छपाक की आवाज़ आना, वो झुंडो की मस्ती, एक अलग सा याराना, बहुत याद आता है। दादी नानी की कहानी, मां का लोरी सुनाना, स्कूल ना जाने का, हर रोज एक नया बहाना बनाना, बहुत याद आता है। याद आता है, वो बचपन का जमाना बहुत याद आता है। परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं...