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मिट्टी के खिलौनें
कविता

मिट्टी के खिलौनें

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** बचपन में खेला जिन मिट्टी के खिलौनों से मैंने आज जाकर उन मिट्टी के खिलौनों से मैंने जीवन की असली सीख पाई है, सपनों की टूटी इस दुनियाँ में मैंने फिर से जीवन जीने की आस जगाई है।। नन्हीं सी होती थी तब मैं जब मिट्टी के खिलौनें बनाती थी, उन गीले कच्ची मिट्टी के खिलौनों को मैं आँगन की दीवार पे रखकर सूखाती थी, रोज़ सुबह जल्दी उठ कर "वो सूखे या नहीं " ये देखनें मैं छत पर फिर चढ़ जाती थी।। तस्तरी, गिलास, बेलन, चौका, भगौना, चूल्हा बाल्टी और मैं कई बर्तन नए बनाती थी, नन्हीं सी इक गुड़िया थी मेरी मैं उस गुड़िया का ब्याह रचाती थी।। पंडित,नाऊ और धोबी भी बनते थे हम सब उस प्यारी गुड़िया के ब्याह में, नन्हीं प्यारी गुड़िया की बारात भी इक दिन आई थी, कुछ नन्हें दोस्त मेरे बने थे बराती वहां खेल-खेल में उस दिन हमनें, सब...
श्री रामदेव चालीसा
दोहा

श्री रामदेव चालीसा

  डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. *******************      रामदेव जयंती पर विशेष २०/८/२० कलि काल प्रभु जन्म लिया, राम देव अवतार। जन जन के तो दुख हरे, दुष्टन को संहार।। जब जब होय धरम की हानी। करते रक्षा प्रभु जग आनी।। जय जय रामा पीड़ा हारी। भक्तन के तुम हो हितकारी।। भादो शुक्ला दूज सुहाई। संवत चौदह बासठ भाई।। बाड़मेर में उण्डू ग्रामा। जन्मे रामदेव भगवाना।। राजा रुणिचा मनुज सुधारक। दीन दुखी के पीड़ा हारक।। मैना देवी राज कुमारा। अजमल जी के घर अवतारा।।। अजमल मैना तप को जाई। पुरी द्वारका अरज लगाई।। कृष्ण मुरारी दे वरदाना। ईश अंश जन्में भगवाना।। बहिना सुगना लाछो बाई। वीरमदेवा थे बड़ भाई।। पांच पीर मक्का से आये। बाबा से परचा करवाये।। मांगे बर्तन निज के अपने। भाजन पाये जैसे सपने।। अमरकोट की राजकुमारी। बेटी थी नेतलदे प्यारी।। राजा ने पंडित भिजवाया। पाती राम ब्याह की लाया।। अ...
शहीद का बाप
कविता

शहीद का बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** बेटे के सेना में भर्ती होने का समाचार सुन बूढ़ा बाप खुशी से झूम उठा, क्योंकि सेना में जाकर देशसेवा का भाव बेटे रूप में आज फिर से जाग उठा। अपने समय में किया हर जतन आज बेटे ने पूरा कर उसके सपने को साकार कर दिया। और आज फौजी न सही फौजी का बाप कहलाने का बड़ा गर्व महसूस हुआ। देखते देखते वह दिन भी आ गया, जब दुश्मन ने धोखे से देश पर हमला बोल दिया। कुछ जवानों की शहादत से देश तो युद्ध जीत गया, परंतु उसका बेटा दुश्मनों की मक्कारी का शिकार हो गया। पर न वो रोया, न ही पछताया, देश पर बेटे की कुर्बानी से बड़ा गर्व हो आया। आज शहीद का बाप होने का उसने सम्मान जो पाया। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक नि...
असली भगवान है सिर्फ़ “मां”
आलेख

असली भगवान है सिर्फ़ “मां”

शिवांकित तिवारी "शिवा" सतना मध्य प्रदेश ********************              इस सृष्टि की रचना करने के कारण हम सभी ईश्वर को सबसे बड़ा रचनाकार मानते है। उसी तरह मां भी इस धरा पर शिशु को नौ माह तक अपनी कोख में रख अथक पीड़ा सहन करने के उपरांत जन्म देती है अर्थात् शिशु की रचना करती है। इस प्रकार ईश्वर के कृत्य को आगे बढ़ाने में उसकी पूर्णतः सहभागिता होती है। इसीलिए मां को धरती पर ईश्वर का रूप कहते है। मां की कोख में रहने पर शिशु की पूरी संरचना होती ही है एवं जन्म के पश्चात भी मां उसकी ऐसी परवरिश करती है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाये और अपने जीवन में सफलता हासिल करें। इस तरह मां सिर्फ जन्मदात्री ही नहीं अपितु उसकी पालनकर्ता भी है। मां के बिना संतान का जीवन पूर्णतया अधूरा, सूना और रुका हुआ होता है। वास्तविकता में मां हर किसी के जीवन में विशेष महत्व रखती है, इस एहसाह को शब्दों में बयां नहीं किय...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जि...
लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार
लघुकथा

लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ********************                   सुनैना अभी-अभी छाछ की हाण्डी रखने आयी थी। तीनों भाभीयां ने सुनैना को देख लिया। उसे रोककर वे तीनों उससे बातें करने लगी। तीनों भाभीयां चूपके से अनिल को शरारात भरी आंखों से देख रही थी। अनिल शरमा के यहाँ-वहां हो जाता। सौमती का पुरा परिवार आज उसके साथ था। लाॅकडाउन चल रहा था। दोनों बेटे अपने परिवार सहित विधवा मां सौमती के यहां पैतृक गांव आये थे। उन दोनों बेटों के चार बेटे और तीन बेटों की पत्नीयां तथा इन तीन जोड़ों के कुल पांच बच्चों से सौमती का सुना घर खुशियों से भर उठा था। सौमती का छोटा बेटा रामचंद्र अपनी मां के साथ ही था। उसकी पांच बेटीयां थी। सौमती के मंझले बेटे दयाराम का पुत्र अनिल विवाह योग्य हो चला था। सौमती ने उसी गांव की सुनैना की बात अनिल के लिए चलाई थी। मगर दयाराम अपने पढ़े-लिखे अनिल के लिए वैसी ही बहु चाहते थे ताकी सम...
कवि हैं…..
कविता

कवि हैं…..

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** कवि हैं..... खुले आसमान में, निश्छल मन से अपनी बात को सरल, सहज अभिव्यक्त करने वाला कवि हैं..... अपने शब्दों के अंदाज से, कठिन बात को सरल कर दें अपनी बातों से सरलता का परिचय देने वाला कवि हैं..... गहन चिंतन, मनन आदि से, शब्दों का तालमेल बनाऐ अपनी बातों से सभी का ध्यान आकर्षित करने वाला कवि हैं..... छोटी-छोटी बातों से मार्मिक व भावनात्मक पहलू को जगाने वाला अपनी बातों से हृदय और मन मस्तिष्क पर अमिट छाप देने वाला कवि हैं..... बहुत बड़ी-बड़ी बातों को सारांश में कहां जाए अपनी बातों से स्पष्टता झलकाने वाला कवि हैं..... सच्चे व जोशीले शब्दों से सभी व्यक्तियों में जोश भर दे अपनी बातों से गर्मजोशी का माहौल बनाने वाला कवि हैं..... उचित शब्दों से विचारणीय पहलू, गंभीर मुद्दे, हास्य व्यंग्य आदि को कह दे अपनी बातों से विषयों पर विशेष छाप छोड़ देने वाला...
जय मंगलमूर्ति
भजन

जय मंगलमूर्ति

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जय मंगलमूर्ति ...श्री गणेशा। जय विघ्न विनाशक। हरो कष्ट कलेशा।। संपूर्ण विश्व का उद्धार हो। जीवन का आविर्भाव हो। विपदा में दुनिया है सारी। बस तुम पर आस बंधी भारी। अब कोरोना का संहार हो। जीवन का नवनिर्माण हो। जय मंगलमूर्ति ....श्री गणेशा। जय विघ्न विनाशक हरो कष्ट कलेशा। सारी दुनिया थम -सी गई है। तेरी करुणा जम- सी गई है। संकट में शुभ और लाभ है। व्यवसायों से लक्ष्मी थम- सी गई है। जय मंगलमूर्ति श्री गणेशा। करो कृपा अब कल्याण हो। दरिद्रता का कुछ समाधान हो। रिद्धि-सिद्धि का विस्तार हो। कोरोना का पातक काल हो। जय मंगलमूर्ति ....श्री गणेशा। जीवन का अब विकास हो। चिंता का कुछ ह्रास हो। शुभ काज का आविर्भाव हो। नित नव नवीन संसार है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
अवगुण धोती शिक्षा
कविता

अवगुण धोती शिक्षा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** बहुत जरूरी होती शिक्षा, सारे अवगुण धोती शिक्षा। चाहे जितना पढ़ ले हम पर, कभी न पूरी होती शिक्षा। शिक्षा पाकर ही बनते है, नेता, अफसर, शिक्षक। वैज्ञानिक, मंत्री, व्यापारी, और साधारण रक्षक। कर्तव्यों का बोध कराती, अधिकारों का ज्ञान। शिक्षा से ही मिल सकता है, सर्वोपरि सम्मान। बुद्धिहीन को बुद्धि देती, अज्ञानी को ज्ञान। शिक्षा से ही बन सकता है, भारत देश महान।। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा शिक्षा : बी.एड, एम.ए. निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
राधा की लालसा
कविता

राधा की लालसा

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जीवन में तुम आओ न आओ, पर इस मन में समाये रहना। उठें घटाएं काली काली, झूम उठे हर डाली डाली, हर तरु की हर डाली पर, झूमें कोयलिया हो मतबाली, मन प्रांगण में छाओ न छाओ, इन अंखियन में कजरा बन रहना।। पपिहा की ध्वनि लागे सुहानी, पुलके तन मन सुधि बिसरानी, सखियन के संग बैठ बैठ के, उन्हें सुनाऊं कुछ कथा पुरानी, स्वाति बूंद बन बरसो न बरसो, पपिहा की प्यास बने तुम रहना।। जमें महफिलें नित ही दर पर, बजे शहनाई तन की वीणा पर, झूम झूम के नाचे राधा, सुन के बोल तेरी वंशी पर, महफ़िल में तुम आओ न आओ, मन वीणा में समाये रहना।। अक्षर अक्षर जोडूं पल पल, दिल करता गाऊं मैं हर पल, प्रीत डोर बना बना के, कविता रूप संबारूं हर पल, निकलें शब्द भले न मुख से, तन वीणा में स्वर भरते रहना।। छाई बदरिया आसमान में, टप टप बरसे घर आंगन में, कब बरसोगे बन के बदरा, हर पल आस रहे यह मन में...
गरीब की बेटी
लघुकथा

गरीब की बेटी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मालूम है!", रामदीन कास्टेबल को एस. पी साहब ने पाँच सौ रुपए का नगद ईनाम दिया"। क्यों भला? रातों रात नेताजी की भैंस ढ़ूँढ दी।" "ये तो भैय्या सच में बड़ी बात हुई। पर उसने उनकी भैंस पहचानी कैसे? सभी तो एक समान दिखती हैं, कोई निशान विशान था क्या? "चुप कर,! खबर, बताकर गलती की, कोई सुन लेगा तो नौकरी गई पक्की" ननकू बड़ा हैरान परेशान है, कभी किसी साहब का कुत्ते खो गया, तो किसी की गाय, सब ढूँढ़ निकालते हैं पुलिस वाले, गरीब की बेटी तो जानवरों से भी बदतर है, तभी तो, मेरी बिटिया गायब हो गई, पर रिपोर्ट भी लिखने को तैयार नहीं हुई पुलिस....। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : यह...
मानव श्रृंगार की बात करो
कविता

मानव श्रृंगार की बात करो

पूनम धीरज राजसमंद, (राजस्थान) ******************** ना सम्मान की बात करो ना अपमान की बात करो ना किसी अस्तित्व की छेड़ो धुन बस तुम प्यार की बात करो सम्मान मिले ना अपनों से सम्मान मिले ना सपनों से सम्मान मिले स्व कर्मों से अपने कर्तव्य की बात करो अपमान से दिल पर चोट लगे अपमान से तन पर खोट लगे अपमान से अविचलित रह कर अपने स्वाभिमान की बात करो अस्तित्व तुम्हारा खोकर भी तुम मैं खुद को पा जाएगा आदर्श बनो अपने ही लिए अपने आत्माभिराम की बात करो चाहो तो स्नेह सदा चाहो पालो तुम प्यार का पूरा ज्ञान हो सर्व समर्पित प्रेम प्रति मानव श्रृंगार की बात करो परिचय : पूनम धीरज जन्म : १८ जून १९८३ निवासी : राजसमंद, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
सवेरा
कविता

सवेरा

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ******************** निशा नाश की नीव लगी तब, समझो उदित हुआ उजियारा। दैत्य प्रसंग विलुप्त भए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा।। हुई यामिनी, लुप्त बिलख कर, तारे चांद को निद्रा आई। भोर की प्रीत, पड़ी अंबर से, शीतल मंद, पवन उठ आई। पीत रंग, में रंगा दिवाकर, जगा, जगत का पालनहारा, दैत्य प्रसंग, विलुप्त भये तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... खग, नभ में भये प्रसन्न चित्त तब, कृषक, वृषभ ले चला सुखियारा। पनघट, रंग बिरंग भयो तब, पुष्प प्रतीक भए किलकारा। बजी पुण्य आवाज शंख की, शुरू हुए आदर सत्कारा,, दैत्य प्रसंग विलुप्त हुए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... विघ्न विनाशक मंगल दायक, नवरत्न, पूरक गणनायक। नित उम्मीद जगे नवज्योति, तमस को, भोर भयो खलनायक। विश्व, निशा से मुक्त भयो तब, ज्योति अलख जगाए सवेरा, दैत्य प्रसंग विलुप्त भये तब, किरणों ने, धरा पर, पैर पसारा।। परिचय : स...
दोहरे किरदार
कविता

दोहरे किरदार

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बाहर से खुश हैं अंदर गमों का बाजार लेके चलते हैं लोग चेहरे पे चेहरे और दोहरे किरदार लेके चलते हैं। रोटी,धोती,मकान की महती पूर्ति के लिए ही तो यहाँ हम अपने कंधों पे दुनिया भर का भार लेके चलते हैं। दिल में है हसरत स्वंय लिए बस फूल पाने की मगर दूसरों की खातिर निज हाथों में खार लेके चलते हैं। परहित में काम कोई किया ना फूटी कौड़ी का मगर दिखावे के लिए सिर्फ जुबानी रफ्तार लेके चलते हैं। पछुआ हवा का असर उनपर इस तरह हावी हुआ है अब कहाँ वो अपनी संस्कृति,संस्कार लेके चलते हैं। वो क्या जमाने का भला कर पाएंगे तुम सोचो निर्मल जो औरों के लिए केवल दिल में गुबार लेके चलते हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली...
बेटियाँ
कविता

बेटियाँ

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर की सौगात, खुशियों की बरसात हैं बेटियाँ। आँगन की चिड़ियाँ, पापा की गुड़िया हैं बेटियाँ। हर घर की खुशहाली, आंगन की हरियाली हैं बेटियाँ। तारों की शीतल छाँव, दिल का लगाव हैं बेटियाँ। फूलों की सुन्दर क्यारी, सबसे प्यारी न्यारी है बेटियाँ। समुद्र सी विशाल, गंगा सी निर्मल हैं बेटियाँ। औैस की बूँद सी, शंख की गूंज सी हैं बेटियाँ। घर की न्यारी रौनक, खुशियों की दौलत है बेटियाँ। अपने पापा की जान, माँ की पहचान होती हैं बेटियां। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
चमकदार
लघुकथा

चमकदार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर का माहौल काफी गमगीन था। सभी नीमी को बार-बार समझा रहे थे कि वो अपना निर्णय बदल दे। पर वह मानने को तैयार नहीं थी।परिवार के सभी लोग हार चुके थे। वह अपने फैसले पर अडिग थी। माँ कह रही थी, पता नहीं सोनू ने मेरी बेटी को क्या घोल कर पिला दिया है? अब सिर्फ पापा ही कुछ कर सकते हैं, यह उनकी बात कभी नहीं टाल सकती। पापा इसे सबसे ज्यादा लाड़ करते हैं। अगर इसने सोनू से शादी कर ली तो पूरे परिवार की नाक कट जाएगी। पापा सारी घटना को जान कर भी कैसे अनजान रह सकते हैं, भाई चिल्ला उठा? मम्मी मैं पापा से खुलकर बात करूँगा, आखिर उनके मन में क्या चल रहा है? उन्हें पूरा हक है कि वह नीमी को रोक दे। वरना अनर्थ हो जाएगा। क्या हमारी बिरादरी में अच्छे लड़के खत्म हो गए हैं? क्या सोनू ही अकेला कामयाब लड़का रह गया है? मुझें समझ नहीं आता, यह लड़की मान क्यों नहीं रही है? न...
घर एक मन्दिर ही है
आलेख

घर एक मन्दिर ही है

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                   यह बात निस्संदेह नितान्त सत्य ही है कि घर एक मन्दिर की तरह है। मन्दिर में जाते ही प्रभु से समीपता का एहसास होता है, ऐसे ही घर में जहाँ परस्पर प्यार,लगाव, आकर्षण है, जाते ही अपनेपन का एहसास हिलोरें लेना लगता है, घर की देहरी में आते ही सारी थकान दूर हो जाती है तो यह मंदिर ही जैसा लगता है,नहीं तो मकान ही है, ईंट सीमेंट से बना, जहां एक दूसरे से विमुख कुछ प्राणी बस किसी तरह रहते हैं। पति-पत्नी दोनों या सिर्फ पति की नौकरी,बच्चों के स्कूल,टयूशन व शाम को ऑफिस से लेट आना, फिर घर रसोई के काम, बच्चों से पढ़ाई व अन्य जानकारी लेना अगले दिन फिर वही रूटीन, जिंदगी यूं ही बीतती जाये तो मशीन से क्या अलग है,एकाएक इस महामारी के कारण हुए लॉकडाउन या अब कुछ अनलॉक के कारण जीवनधारा तो बिल्कुल ही बदल ही गई, पहले कहते थे,मरने की फुर्सत न...
देश मेरा
कविता

देश मेरा

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सीमा पर तैनात है जवान जो, सर्दी, गर्मी व बरसात सहन कर लेते हैं। ऐच्छिक सेना बनकर पीछे कभी ना हटते, दुश्मनों को कभी ना भीतर आने देते हैं। सबसे प्यारे जवान हमारे सबसे प्यारा देश मेरा... दुनिया के पवन रूपी में सुप्रसिद्ध हुआ भारत जो, तरह-तरह की संस्कृति, तरह तरह का वेश। भाषा है जो अनेक, तीर्थ स्थल है यहां अनेक, जगतगुरु व स्वर्ण चिड़िया कहलाया भारत देश। कितना सुंदर कितना निराला भारत देश मेरा..... हर क्षेत्र में ना कभी पीछे हटता भारत, खेल में सबसे आगे रहता है जो। प्रथम प्रयास पर मंगल पर पहुंचता है भारत, संकट में जात पात धर्म भूल जाता है। हर मुसीबत में साथ निभाता है भारत, चार धाम है जहां पर वो भारत देश मेरा.... परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाण...
यह कैसी आजादी है
कविता

यह कैसी आजादी है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सीमा पर सिपाही गोलियां झेल रहा है देश में नागरिक समाज-समाज खेल रहा है इस महान देश में,यह हो क्या रहा है। यह कैसी आजादी है। किसान गरीबी से तड़प रहे है मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे है देश के युवा बेरोजगार घुम रहे हैं नसीब नहीं दो वक्त की रोटी,खुदखुशी कर रहे है। यह कैसी आजादी है। बेटियाँ देश की अकेली सफर करने से डरती है यदि रात में गलती से भी चली जाती है तो वह लौटकर कभी नहीं आ पाती है। यह कैसी आजादी है। अस्पताल तो सैकड़ों यहां है मगर स्वास्थ्य का कोई वजूद नहीं है सड़कों पर रोगियों की, कई जानें जाती है। यह कैसी आजादी है। मुल्क के लोग बड़ी चाह से जिसे चुनते है वही तो अपना रुख बदल लेते हैं सरकारें बदलती है, योजनाएं वहीं है विकास की किसी में,जगी भावनाएं नहीं है। यह कैसी आजादी है। आस जगी थी,सदियों की गुलामी के बाद एक ज्योत जली थी, कई ...
प्रेम
कविता

प्रेम

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** प्रेम पावन गंगा, प्रेम में शक्ति अपार। प्रेम उत्तंग हिमालय, प्रेम है उपहार। प्रेम वेद ऋचा, प्रेम अनन्त रसधार। प्रेम गीता ज्ञान, प्रेम सावन की बौछार। प्रेम मानस की चौपाई, प्रेम फागुन की बौछार। प्रेम समर्पण, प्रेम बंधन, प्रेम पैनी तलवार। प्रेम वात्सल्य, प्रेम भाग्य, प्रेम अनन्त उदगार। प्रेम भाव, प्रेम भाषा, प्रेम सकल संसार। प्रेम संस्कृति, प्रेम सभ्यता, प्रेम संस्कार। प्रेम मंदिर, प्रेम पूजा, प्रेम प्रकृति उपहार। प्रेम चंदा, प्रेम दिनकर, प्रेम आत्म वरदान। प्रेम नवरंग, प्रेम सौंदर्य, प्रेम पारावार। प्रेम मोक्ष दाता, प्रेम ईश साकार। प्रेम पावन गंगा, प्रेम में शक्ति अपार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह ...
राम भारत का स्वाभिमान
कविता

राम भारत का स्वाभिमान

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ******************** भगवान राम से है भारत की पहचान शुरू हो गया रामजन्म स्थल निर्माण राम मंदिर हम सभी भारतीयों का स्वाभिमान राम सभी के, सभी राम के ये हमारी शान संस्कृति ओर संस्कारों पर हमें हो अभिमान सर्वें भवन्तु सुखीन: परिपाटी करें सब का सम्मान त्याग, बलिदान, साहस, धैर्य की थी वह मूर्ती तभी सारे विश्व में है आज सियाराम जी की कीर्ति वानर सेना ने दिखाई प्रभु राम जी में भक्ति तभी समुद्र पर पुल बनाने की उन्हें मिली शक्ति रावण जैसे बलशाली राक्षस को मार समझाई, बुराई पर अच्छाई की जीत चारों भाई सगे न होने पर भी रिश्तों को साथ रखने की सीख अपने आराध्य के चरणों में बिन संदेह समर्पित होना तभी मोक्ष और जन्म मरण से छुटकारा पाना विनम्र आचरण से बड़ों का सम्मान, मानों छोटों का आभार उम्र, लिंग भेदभाव बावजूद समान करो व्यवहार युगों से न हो सका अब हो रहा साकार वर्षों ...
संसार का बदलता स्वरूप
कविता

संसार का बदलता स्वरूप

काकोली बिश्वास सिमुलतला (बिहार) ******************** संसार का बदलता स्वरूप हो रहा कुत्सित, बड़ा कुरूप मर्यादा रहती ताखों पर, और बड़े-बुजुर्ग हैं, खामोश और चुप! युवाओं का मन डोल रहा संस्कारों की कमी बोल रहा बोले इनका असंयमित मन धैर्य का हुआ अब वक्त खतम! बनना था इन्हें हमारा कल ये हैं अटूट-अडिग-अचल ये कहते चाहे जो हो जाए न बनेंगे हम भारत का बल न बनेंगे हम भारत का कल! हम अपनी धुन पर चलते चले हमें दुनिया की परवाह कहाँ, हमारा अपना जहाँ वहां.... सुख-समृद्धि-कुकृत्य जहाँ! नशा जुर्म हमसे हैं फलते अपने पास है वक्त कहां!! ईश्वर के हम अद्भुत सृष्टि मानव का ऊर्जामय रूप पर इस ऊर्जा की बर्बादी पर देश की जनता क्यूँ है चुप??? क्यों नहीं ये आवाज उठाती इन्हें सही राह पर लाती... 'बिगड़ा युवा, बिगड़ेगा देश' क्यों आखिर ये समझ न आती? शेष है अब भी वक्त है थोड़ा लोहा है गर्म मारो हथौड़ा... न जाने किस करवट बदले द...
आजादी
कविता

आजादी

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** खुली हवा में चैन की सांस ले रहे हैं हम सभी जान गवाई उन वीरों ने जो थे पिंजरे में कैद कभी अपने वतन पर फिदा वो इस कदर की जान से प्यारी उन्हें आजादी लगी नमन है मेरा उन वीरों को जिनके कारण आजाद है हम अभी परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंद...
शिक्षा का मन्दिर
कविता

शिक्षा का मन्दिर

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहा में ज्ञान दिया करती थी, वहा में बेसहारों को साहारा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो चावल में अपने लाडलो को ना खिला सकी, वो मैने बेसाहरो को खिलाया है। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जो शिक्षा के गुरु कहलाते थे, वो कोरोना योद्धा बने अपने लिए नहीं, अपने देश वासियों के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। मैने अपना कर्तव्य छोड़ा, इस कोरोना को हराने के लिए। तुम भी अपना कर्तव्य निभाओ, इस कोरोना को हराने के लिए। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी। जहां मैं जंजीरों से बंधी हुई थी, फिर भी में अपने लाडलो को ऑनलाइन शिक्षा देती रही। रुक कर भी में चलती रही फिर से शिक्षा का मन्दिर बनूंगी।...
नन्हा बीज
कविता

नन्हा बीज

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** एक छोटा सा नन्हा सा बीज वो प्यारा सा बीज कभी मिट्टी में बोया था मैंने,,, सोचा नहीं था कि अनन्त सम्भावनाएं है उसमें पहले उससे अंकुर निकला, नई जड़े जमीन को पकड़ने लगी,, फिर नव कोपल आये फिर तना, शाखा, फूल फल और वो बढ़ता ही चला आकाश की ओर बस थोड़ी सी मिट्टी मांगकर,,, और फिर वो देता ही चला कभी छांव, कभी फल, कभी आश्रय और भी बहुत कुछ और एक हम है जो उस मुठ्ठी भर मिट्टी के बदले लिये जा रहे उससे , उसका सबकुछ रोज कुछ न कुछ लेते जा रहे उससे,,,, लेकिन वो आज भी मुस्कराकर, सर झुकाकर देता ही जा रहा हम जैसे स्वार्थी लोगो को वो जड़ होकर भी चुका रहा कर्ज उस माटी का और इंसानो को देखो अपना तो ठीक, लेकिन दुसरो का भी हक़ खा रहा समझ नही आ रहा कि जड़ वृक्ष है या इंसान जो प्रकृति के करीब होकर भी उसे समझ नही पा रहा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रह...