मिट्टी के खिलौनें
आरती यादव "यदुवंशी"
पटियाला, पंजाब
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बचपन में खेला जिन मिट्टी के खिलौनों से मैंने
आज जाकर उन मिट्टी के खिलौनों से
मैंने जीवन की असली सीख पाई है,
सपनों की टूटी इस दुनियाँ में मैंने
फिर से जीवन जीने की आस जगाई है।।
नन्हीं सी होती थी तब मैं
जब मिट्टी के खिलौनें बनाती थी,
उन गीले कच्ची मिट्टी के खिलौनों को मैं
आँगन की दीवार पे रखकर सूखाती थी,
रोज़ सुबह जल्दी उठ कर "वो सूखे या नहीं "
ये देखनें मैं छत पर फिर चढ़ जाती थी।।
तस्तरी, गिलास, बेलन, चौका, भगौना, चूल्हा
बाल्टी और मैं कई बर्तन नए बनाती थी,
नन्हीं सी इक गुड़िया थी मेरी
मैं उस गुड़िया का ब्याह रचाती थी।।
पंडित,नाऊ और धोबी भी बनते थे
हम सब उस प्यारी गुड़िया के ब्याह में,
नन्हीं प्यारी गुड़िया की बारात भी इक दिन आई थी,
कुछ नन्हें दोस्त मेरे बने थे बराती वहां
खेल-खेल में उस दिन हमनें, सब...

























