मैं भी लिख दूँ नाम कोई
विवेक रंजन 'विवेक'
रीवा (म.प्र.)
********************
दिल तो करता है दिल पर मैं भी लिख दूँ नाम कोई,
वो नाम ही बन जाये चेहरा हो आँखों में पैग़ाम कोई।
जीवन की आपाधापी में बस संघर्षों का प्यार मिला,
मन का मधुवन महक उठे ऐसी भी आये शाम कोई।
वाइज़ भी था मैखाने में,साकी ! कई लुढ़के जाम दिखे,
मदभरे नयन जब छलकेंगे पियूँ उसी का जाम कोई।
कोई मसल गया मासूम कली मैंने उसको बेदर्द कहा,
नज़र लग गयी है फूलों की अब कर ना दे बदनाम कोई।
बिखरी ज़ुल्फ छनकती पायल पर विवेक क्यों तुम घायल,
तुमने ही नहीं बनना चाहा था मजनूँ या गुलफ़ाम कोई।
जिस रौशन मकसद की खातिर अँधियारी तुम राह चले,
तुम चलो फ़क़त चलते ही रहो चाहे करता हो आराम कोई।
.
परिचय :- विवेक रंजन "विवेक"
जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी ह...
























