सड़क का गढ्ढा
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जितेंद्र शिवहरे
महू (इंदौर)
मुख्य बाजार की सड़क से गुजरना हुआ। वहीं कुछ दूरी पर लोगों की भीड़ जमा थी। सड़क के इर्द-गिर्द बहुत से लोग खड़े थे। सभी की आखें नीचे सड़क पर थी। मुझे भी उत्सुकता हुई। मैंने वहां भीड़ के नजदीक जाकर देखा। सड़क के बीचों-बीच एक गहरा गढ्ढा हो गया था। राहगीर जैसे-तैसे बचते बचाते निकल रहे थे। दो पहिया वाहन तो गढ्ढे के आसपास से निकल जाते मगर चार पहिया वाहन युं ही सड़क की दोनों ओर पंक्ति बध्द खड़े थे। चार पहिया वाहन स्वामियों को अमिट विश्वास था कि कोई न कोई उस गढ्ढे को भरने अवश्य आयेगा। तब वे आराम से निकल जायेंगे। इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी-अपनी कार में बैठे थे। कुछ लोग गाड़ी से नीचे उतर कर सड़क किनारे भुट्टें की दुकानों पर टूट पड़े थे। मैंने साहस कर कहा- "अरे भाई कोई म्यूनिसिपल ऑफिस को फोन करो। वहां से कोई आयेगा तब ही पेंच वर्क शुरू होगा।" मेरी बात वहां सुन...
























