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काज़िब
कविता

काज़िब

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने मंत्रमुग्ध हो औरों के लिए अपने लिए थोड़ा होते तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो झूठ अहम के लिए किसी पर रहम के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो मतलबी हंसी के लिए मासूम मुस्कराहट के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो दूसरों को नीचा दिखाने के लिए खुद के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के लिए होते तो क्या बात थी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छ...
आने वाली पीढ़ी के नाम
कविता

आने वाली पीढ़ी के नाम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमारी सन्तानों! याद रखना अपने बेहतर दिनों में और अचानक टूट पड़ने वाली विपत्तियों के समयों में भी कि बीसवीं सदी के अन्त में जब लगभग सारा कुछ नष्ट हो गया था एक ज़लज़ले में, हमने तम्बू गाड़े थे दिन को आग उगलते, रात को हड्डी कँपाते निचाट रेगिस्तानों में। हम बहुत थोड़े ही बचे थे और जो भी थे, बिखरे हुए थे। हाँ, लगभग सब कुछ खो दिया था हमने। बस, अपने साथ बचाकर ले आ पाये थे जीने की ज़रूरत और कुछ उम्मीदें, थोड़ी आग और रोशनी। ख़ून और पसीना अपना था ही, बची हुई उम्र थी, विचार और अनुभव थे अपनी पिछली पीढ़ियों से और अपने ख़ुद के प्रयोगों से अर्जित। याद रखना कि इतनी सी, बस इतनी ही सी चीजों से हमने एक नयी शुरुआत की थी एक बेहद कठिन समय और बेहद ख़राब मौसम में तमाम-तमाम विभ्रमों, तटस्थताओं और रहस...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** संघर्ष उसी को चुनता है, जो लायक इसके होता है। जो चलना भी ना शुरू करे, वो अनंत आकाश को खोता है।। राज-पुत्र होकर भी, संघर्ष राम ने चुना था। चौदह वर्ष वनवास काटकर, राज-पाठ का मौका भुना था।। संघर्ष राजा हरिश्चंद्र ने किया जीवन भर, तब संघर्षों के आदि कहलाए। राज खोया, पुत्र खोया, तब हरिश्चंद्र सत्यवादी कहलाए।। संघर्षों को बिना चुने, ना कोई मंजिल को पाता है। बिना संघर्ष जीवन क्षण भंगुर, केवल आता और जाता है।। संघर्ष के ही कारण गोताखोर, नदी पार कर जाता है। सौरभ केवल किताबों को पढ़कर, कोई तैरना नहीं सीख पाता है।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
रावण ही रावण
कविता

रावण ही रावण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जिस रावण को मारा था श्रीराम ने, लोगों के मन में अभी भी जिंदा है। हर दिन रावण लीला हो रहा है यहाँ, असत्य, अज्ञान, बुराई की निंदा है।। कोई नर हवस के पुजारी बन बैठा है, मासूम स्त्रियों का कर रहा बलात्कार। बार-बार रावण का रूप धारण कर, फिर क्यों कर रहा उन पर अत्याचार।। घर के आँगन में बैठी रोती है नारी, माथे का सिंदूर बन जाता है अंगार। घड़ी-घड़ी होती उनकी अग्नि परीक्षा, देश की बेटी हैं घरेलू हिंसा का शिकार।। पराई स्त्री पर नजर रखते हैं मनचले, प्रेम झाँसा देकर बहलाते, फूसलाते हैं। जीवन भर रानी बनाकर रखूँगा कहकर, अंत में घर से भगाकर कहीं ले जाते हैं।। बुरे मानव के अंदर रावण-ही-रावण है, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम कहाँ से लाऊँ। रावण राज में अधर्मी, पापी, दुराचारी हैं, अच्छाई का राम राज फिर से कैसे बनाऊँ।। परिचय...
करिया अउ वोखर रूख
आंचलिक बोली, कविता

करिया अउ वोखर रूख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) करिया ल बनेच रिस आगे, ओखर तत घलो छरियागे, मोर लगाय रूख ल काट के कोन लेगे, मोर हिरदे ल बड़ दुख देगे, मोर कइ पीड़ही बर छैंहा बनाय रहेंव, सुखी रही संहंस लिही तेखर जोगाड़ जमाय रहेंव, लइका ह इसकुल ले घर आके बताइस, के गुरूजी कहे हे एक ठन रूख अपन दाई के नांव म लगाबे, पानी पलो के वोला बड़का बनाबे, करिया अकचका गे, सुन के झंवुहागे, खटिया म बइठे रहिस त नइ गिरीस, पानी ठोंके म संहंस हर फिरिस, अब आन संग अपन आप ल कइसे समझावां, अपन पीरा ल काला बतावां, जब पइसा वाला मन दोगलाई म उतर जाथें, त हमर अस गरीब के जंगल ल कटवाथें, हमर पुरखा मन अपन महतारी भुंइया के हरियर रूख ल कभु नइ काटिन, ए जंगल ह हमर दुख दरद ल बांटिन, फेर कथनी करनी के फेर ल देखव तमनार अउ हसदेव जइसन जंगल के हजारों लाखों पे...
अब ए.आई. भी आई बन सकती है!
व्यंग्य

अब ए.आई. भी आई बन सकती है!

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** सुबह अख़बार हाथ में लिया तो एक खबर ने मेरी चाय में डूबे हुए बिस्कुट को इतना शर्मिंदा किया की वो शर्म से गल कर डूब ही गया l खबर थी - "अब ए.आई. से पैदा होंगे बच्चे!" मतलब अब ‘प्यार में धोखा’ नहीं, सीधा ‘कोड की कोख में होगा गर्भधारण!’ कृत्रिम बुद्धि अब कृत्रिम बुद्धिपुत्र को जन्म देगी। इस दुनिया में हम क्यों आए... इसका कोई "नियर-टु-ट्रूथ" उत्तर हो सकता है तो यही कि शायद शादियाँ करने... और शादियाँ क्यों कराई जाती हैं? ताकि महिला ‘माँ’ यानी कि ‘आई’ बन सके। हमारे समाज में आज भी बिना ब्याही लड़की और बिना औलाद की स्त्री को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता। शादी होते ही लड़के और लड़की दोनों के माँ-बाप इस आस में लग जाते हैं कि घर में किलकारियाँ गूंजें, बधाइयाँ गायी जाएँ। एक साल बीतते न बीते कि पडौसी ...
दीवाली
गीत

दीवाली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, नवल भोर पाएँगे।। लेंगे जब संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। सुखद शान्ति के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। भोजन वसन प्रचुर हो जनहित, मानव को दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी, आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। कर्मयोग संचालक कान्हा, राधा सम भव बाला।। रामराज्य संचारित जग में, समरसता की लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। नेह-सिक्त शुभ संबंधों से, महकेगा जग सारा। कोण-कोण रसधार बहेगी, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका,...
दीपावली
गीत

दीपावली

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** मन का उपवन खिला खिला खुशियों के हैं दीप जलाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं घर घर में है जग मग, खुशियों के हैं दीप जलाए दीपों का उत्सव ये सबके मन में अनुपम प्रीत जगाए। मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं अंगना में लक्ष्मी स्वागत को, रंगोली की शोभा न्यारी द्वारे बंदनवार सजाए, तेरी कृपा की आस लगाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं प्रभु जी तुम नित खेल करो दीन दुखी के कष्ट हरो तेरी करुणा पाने को आशा के हैं दीप जलाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) व्यवसाय : नेत्र विशेषज्ञ सेवा निवृत, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष नेत्र विभाग, के.जी.एम.यू. लखनऊ अन्य गतिविधिया...
दीप बनो, जो जग को जगाए
कविता

दीप बनो, जो जग को जगाए

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** दीप बनो जो राह दिखाए, जो अंधियारा दूर भगाए। जलो मगर सेवा के लिए, ना कि केवल मेवा लिए। दीप बनो जो सत्य जलाए, झूठ और भय सब मिट जाए। जग में जो अन्याय हुआ है, उस पर सच्चा नाद सुनाए। दीप बनो जो ज्ञान बढ़ाए, हर मन में उजियारा लाए। बिन शिक्षा सब सूना सूना, दीप बनो जो बुद्धि जगाए। दीप बनो जो मानवता दे, भूले को फिर सजगता दे। हाथ में दीप अगर जलाओ, तो मन में भी गरमाहट दे। दीप बनो जो धर्म बताए, राष्ट्र प्रेम का गीत सुनाए। अपने भीतर आग जगा लो, फिर भारत जग में चमकाए। दीप बनो जो द्वेष बुझाए, प्रेम का सागर लहराए। जात, पंथ की दीवारें तोड़ो, मानवता का दीप जलाए। दीप बनो जो कर्म बताए, स्वार्थ नहीं, सद्भाव सिखाए। भूखे के हिस्से की रोटी दो, यही असली दीवाली आए। दीप बनो जो दिल को छू ले, सत्य की राह में तन झ...
प्रकाश का पर्व: दीपावली
कविता

प्रकाश का पर्व: दीपावली

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** दीपों का ये पर्व है निराला, हर घर में छाए उजियाला। अमावस की रात में चमके दीया, हर मन गाए प्रेम का जिया। रामचंद्र जब लौटे वन से, चौदह बरस बिताए बन से। अयोध्या वासी ने दीप जलाए, राम-सीता का स्वागत पाए। यही है दीपावली की बात, सदियों से चलती परंपराओं की बात। अंधकार पर जब होती जीत, तभी मनाते दीपों की रीत। लक्ष्मी माता आतीं द्वार, संग में लातीं सुख-सम्पार। धन, समृद्धि, शांति का वास, हर मन में हो प्रेम प्रकाश। गणेश जी का हो पूजन, बिना उनके नहीं शुभ आरंभन। वो देते हैं बुद्धि-विवेक, सच्चे पथ पर चलना नेक। धनतेरस से मेला छाए, हर गली, हर घर मुस्काए। नरक चतुर्दशी लाए शुद्ध विचार, दीप जलाएं, करें संहार। फिर आती अमावस रात, हर कोना रोशन, हर बात खास। पटाखों से न हो शोर बड़ा, प्रकृति बचाना भी है सदा। ...
सत्य की राह
दोहा

सत्य की राह

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सत्य साधकर गति करो, तब ही बनो महान। केवल सच से ही बने, इंसाँ नित बलवान।। सत्य चेतना को रखे, जिसमें रहे विवेक। रीति-नीति को साध ले, रखकर इच्छा नेक।। सत्य बड़ा गुण जान ले, इसका हो विस्तार। जीवन में खिलते सुमन, बनकर के उपहार।। सत्य सदा ही जीतता, गाता मंगल गीत। इसको हम अब लें बना, अपने मन का गीत।। सत्य सदा हित साधता, लाता है उत्थान। जो चलता सद राह पर, सदा पूर्ण अरमान।। सत्य धर्म का रूप है, जिसमें हैं भगवान। सच के पथ पर जो चले, उसका हो यशगान।। सत्य दमकता सूर्य-सा, देता जो आलोक। जिससे होता दूर नित, जीवन का हर शोक।। सत्य सुहाता है जिसे, उसकी हो जयकार। कभी सत्य हारे नहीं, होकर के लाचार।। सत्य एक है साधना, साधक हरदम वीर। वक़्त संग परिणाम है, देखो बनकर धीर।। सत्य सनातन मान्यता, सत्य बड़ा इक युद्...
चीज
कविता

चीज

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** "हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है समय पर ना मिले तो अधूरी है बस इसी मेल-मिलाप की दूरी है वरना, हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है " परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) ...
नई दिशा
लघुकथा

नई दिशा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मन्नत एक सीधी सादी और घर की इकलौती बेटी थी। हर काम करने में सबसे आगे रहती थी बस दूसरों के आगे बात करने में उसको हिचकिचाहट होती थी और अक्सर ज्यादा लोगों को देखकर वो घबरा जाती थी। इस बार गांव में बने नए विद्यालय का उद्घाटन होना था। जिसमें प्रदेश के शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे थे। मन्नत के पिता गांव के सरपंच थे इसलिए कार्यक्रम का सारा भार उसके पिता पर था और वो पिता का हर काम में हाथ बटा रही थी। आयोजन का दिन आया सभी बहुत खुश थे क्योंकि शिक्षा मंत्री स्वयं पहली बार उनके गांव में आ रहे थे मगर कार्यक्रम के आरंभ में ही बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई क्योंकि जिस मंच संचालक को बुलाया गया था वो किसी कारण नहीं आ रहा था और उधर मंत्री जी के आने का समय भी हो रहा था। मन्नत के पिता ने गांव के सभी लोगों स...
पश्चाताप क्या हैं?
कविता

पश्चाताप क्या हैं?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* पश्चाताप स्मृति रंध्रों से पीड़ा का रिसाव है पश्चाताप हमारी समझ और विवेक का अधूरापन है और हमारे बेहतर मनुष्य होते जाने का प्रमाण भी। पश्चाताप हमारी वस्तुपरकता को ठण्डी निर्ममता से बचाता है और सारी गतिविधियों के केन्द्र में मनुष्य को रखना सिखाता है। पश्चाताप इतिहास का संवेदनामूलक समाहार है और संवेदना का इतिहास लिखने की सबसे अच्छी भाषा है। हम बार-बार पीछे मुड़कर देखते हैं और जीवित रहने के लिए पश्चाताप करने लायक कुछ न कुछ ढूँढ लाते हैं। पश्चाताप प्रेरणा की विकल आत्मा है। पश्चाताप यदि देवता के सामने पाप स्वीकृति या क्षमायाचना बन जाये तो हम कमज़ोर, स्वार्थी और घुटे हुए पापी बन जाते हैं पश्चाताप आत्मकथा का विवेक और कविता की प्राणवायु है। पश्चाताप हमें तानाशाह बनने और त...
मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ
कविता

मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ टिमटिमाये दीप क़तारों में मन प्रफुल्लित हुआ है आनंदित लक्ष्मी के आकार प्रकारों में झिलमिलाये दीपशिखा की लौ प्रीत जुड़ी प्रीत के तारों से रजनीगंधा सुमन सौरभ ले मुस्काये मधुर बहारों से महक उठे घर आँगन सारे ऋंगार, मिष्ठान, उपहारों से छिप-छिप चिहुंकै नव युगल बजे सरगम गुम सितारों से मन से मन कब मिलते हैं यहाँ स्वार्थ के स्वार्थी अभिसारों से भुल सभी गिले शिकवे पुराने गले मिलो अब निज प्यारों से जीवन दीप जले कोटि कोटि दिवाली मने दूर विकारों से ऋद्धि-सिद्धि बढ़े हो शुभ सब का वरदान मिले ईश अवतारों से परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पु...
पता नहीं क्यों?
कविता

पता नहीं क्यों?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब तक निःस्वार्थ भाव से कोई जुड़ा रहता है समाज सेवा में, तब तक उनका ध्यान रत्ती भर नहीं जाता मलाई व मेवा में, तब मन में चलता रहता है कि मेरा समाज कहीं दुखी तो नहीं है, नजर आ जाता है कमी यही कही है, लोगों को हर उस नियम को बताता है, जिसे अपना कुछ मुस्कान लाया जाता है, संविधान की एक एक अनुच्छेद रह रह याद आने लगता है, भ्रष्ट लोगों को चमकाते नहीं थकता है, वो भूल जाता है अपना दुख, लोगों से की हंसी में खोजता है अपना सुख, मगर जैसे ही वो सामाजिक कार्यकर्ता से एक कदम आगे बढ़ नेता बन जाता है, बदलाव नजर आने लगता है सीना तन जाता है, उनके पिछले कार्य उन्हें दिलाता है कुर्सी, यहीं से शुरू हो जाता है मनमर्जी, अब वो बहाने बनाना जान जाता है, झूठ बोलने की बहुत बड़ी दुकान लगाता है, अब उन्हें लोग प्यारे नहीं लगते प...
आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए
गीतिका, छंद

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द में जो स्वयं कर्तव्य पथ की, साधना को साध लें। आपदा की आँधियों को, मुट्ठियों में बाँध लें। थरथरा उट्ठें कलेजे, नाम सुनकर पाप के। शब्द अपने आप उल्टे, लौट जाएँ शाप के।। क्रूर होकर जो अहं को, खूँटियों पर टाँग दें। हर प्रहर मुर्गे सरीखी, जागने की बाँग दें। जो हृदय इंसानियत के, राग के आगार हों। देश पर हर हाल मिटने, के लिए तैयार हों। वे पुरुष हों या कि नारी, चाहिए इस देश को। आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।। दूसरों के मुँह न ताकें, साथियों को साथ दें। जो गिरें उनको उठा लें, हाथ को निज हाथ दें। भारती माँ की न निन्दा, भूलकर भी सह सकें। देख कर बेचैन धरती, खुद न जिन्दा रह सकें । प्रेम को पूजा समझ कर, धर्म को आधार दें। जो हृदय की बीथियों में, व्योम सा विस्तार दें। क्या घृणा क्या...
जीवन का सार
कविता

जीवन का सार

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अपनी अंतर आत्मा से पूछो? "क्या खोया क्या पाया है" क्या जग से है लिया है हमने, क्या जग को लौट आया है। कितना प्रेम दिया है हमने, कितना प्यार लुटाया है, कितना दिन दुखीयो को हमने, अपने गले लगाया है। कितना दान दिया जीवन मै, कितना छिना दुनिया से, कितना राग द्वेष किया है, जग में जीने वालों से। भला किया या बुरा किया, हिसाब लगा लो आत्मा से, कितने दिलों को तोडा़ हमने, कितना सेतू जोड़ा है। "एक पल हम मर कर है देखे", कौन रोये कोन हंँसता है, कौन हमें अच्छा है कहता, कौन बुरा आज कहता है। यदि अश्रुधार भये जन जन की, तो जग मै नाम है कमाया है, पीछे से अपशब्द जो बोले, जीवन में नाम डुबाया है। यही आनंद दिवाली का जीवन, यही होली का रंग लगाया है, यही दशहरे की जीत है पाई, राखी का प्रेम कमाया है। जीवन का हिसाब...
तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें
कविता

तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते की डोर जो एक दूसरे को बांधे रखती है निभाने के लिए भी तो कुछ कहना पड़ता है। चुप रहने से दूरियां बढ़ जाती हैं पहल करो तो राह मिल जाती है इसलिए आओ ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। जीवन के इस आपाधापी में वक्त के पहिए के साथ चलने में वास्तविक मुस्कान छिन रही है होठों से आओ, जीवन को असली मुस्कान दें तुम कुछ बोलो ... कुछ हम बोलें ...। जिंदगी बहुत छोटी है, यह हम जानते हैं तो फिर क्यों ना, टूटते रिश्ते जोड़ने की पहल करें आपस की गलत फहमी मिटाएँ तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। आओ, इस वसुधा के आंचल को संवारे नदियाँ बचाने के लिए कार्य करें नया इतिहास रचने, आगे बढ़ें महापुरुषों से प्रेरणा लें नई पीढ़ी को जागरूक करें आओ, तुम कुछ बदलो ... हम कुछ बदलें ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। ...
नादान है इंसान
कविता

नादान है इंसान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अभी तक नादान है इंसान उसी डाल को काटे जिस पर खुद बैठा नादान। अपने पैर कुल्हाड़ी मारे दिखा दंभ अभिमान। जानबूझ सच भूल गया सब मन के माने-मान, उलटी पढ़ी ज्ञान की पाठी उल्टा हो गया ज्ञान। सदा नकारे सच को मूरख होश करे न भान स्वार्थ में हो अंधा ऐसा बेचा सब ईमान। खुद की करनी छुपे न खुद से झूठी -धरता शान, अंदर-अंदर रहता हरदम परेशान -हलकान। तन को खाना-पीना सबको हासिल सभी जहान मन की भूख अपूर सदा ही मन की माँग अजान। मन मूरख खुद भी नहीं जाने क्या उसका अरमान पगलाया फ़िरता दुनिया में चढ़ गई मुफ्त थकान। मन के संग-संग मूरख लागे ज़रा करे न ध्यान मन के संग-संग घायल होकर घर लौटे नादान। मन नहीं जाना जब तक अपना सच न हो संज्ञान मन नहीं जाना तब तक अपना बोध हुआ न ज्ञान. अभी तक नादान है इ...
प्रेम करना सीखें
कविता

प्रेम करना सीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम निभाना सीखें प्रेम तो हर कोई कर लेता है, प्रेम का अर्थ समझे बिना प्रेम व्यर्थ है ! इस जीवन के सफर में सब कुछ पीछे छूटता जाता है, केवल स्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं , समय के साथ ये स्मृतियां भी धुंधली पड़ने लगती हैं , मानो रेत की गहराई में दब कर कहीं गुम हो जाती हैं ! बाकी बच जाता है, रिक्तता-मौन, जो बचा खुचा प्रेम भी सोख लेती है ! मौन का अर्थ अहंकार नहीं होता, कभी-कभी भावनाओं की थकान होती है, टूटते विश्वास और थकते दिल की गवाही होती है, निःशब्द अन्तराल के बाद वेदनाओं की बहती कहानी होती है!! मौन इतना गहरा हो जाता है, जहां से शब्द टकरा कर वापस लौट आते हैं एक प्रतीकात्मक प्रतीक्षा रह जाती है, अंतहीन प्रतीक्षा, जहां प्रेम के लौटने की कोई आहट नहीं आती!! परिचय ...
शिक्षा
कविता

शिक्षा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा से कल्याण है, सहज बढ़ाती ज्ञान। शिक्षा तो वरदान है, देती है सम्मान।। देती है सम्मान, करे जीवन उजियारा। करती है उद्धार, भगाती है अँधियारा।। अज्ञानी नादान, पढ़ो लो गुरु से दीक्षा। करे सदा उपकार, निखारे जीवन शिक्षा।। ज्ञानी शिष्ट सुशील हो, सतत् पढ़ो विज्ञान। जीवन होगा फिर सफल, अध्ययन हो सुजान।। अध्ययन हो सुजान, बने ज्ञानी हर पीढ़ी। वृद्धि होगी विवेक, चढ़ोगे नित नव सीढ़ी।। होंगे फिर विद्वान, अगर महिमा पहचानी। करो नित्य अभ्यास, मिलेगी विद्या ज्ञानी।। करती पूजन शारदे, दो शिक्षा वरदान। माता विद्या दो हमें, ले लो अब संज्ञान।। ले लो अब संज्ञान, पढें हम जाकर शाला। नित्य बढ़ेगा ज्ञान, मिले साहस मतवाला।। विद्या है रस खान, कष्ट सारे ही हरती। शिक्षा दे पहचान, स्वप्न सब पूरे करती।। ...
मेरे आदर्श
कविता

मेरे आदर्श

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** क्या अर्पण करूं तुझे हे! माधव, जो मानव जीवन तुमने दिया। मेरे पापों की मैली चुनरिया पर, कुछ सितारे शायद पुण्य के होंगे।। यह जीवन है कितना अनमोल, मैं निमूर्ख यह समझ ना पाई। तब मेरे पिता का रूप धरकर, गोविंद, तुमने ही तो राह दिखाई।। जब जीवन की उलझने बढ़ने लगी, मैं दिन- दुखी और चित्त उलझाया। तब मेरे गुरु के रूप में ही, माधव तुमने तो दिया जलाया।। मेरे आदर्श मेरे गुरुवर की वाणी, मेरे उसूल मेरे पिता के वचन। किसी का दिल न दुखे और न राह भटकू, तभी सार्थक होगा मेरा यह जीवन।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
परिवर्तन लाना पड़ता है
कविता

परिवर्तन लाना पड़ता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपने आप आती है बारिश, थमने नहीं स्वीकारती कोई गुजारिश, आंधी के आने का कोई काल नहीं है, जिसे रोकने के लिए कोई जाल नहीं है, खुद-बखुद आ जाती है तूफान, क्या पता ले ले कितनों की जान, मगर किसी की जान लिए बिना महापुरुष गण परिवर्तन लाते हैं, तात्कालिक अवरोधों से बेफिक्र टकराते हैं, भले ही सड़े गले लेकिन तत्कालीन समय के सशक्त प्रचलित व्यवस्था से टकराना, कोई बांये हाथ वाला खेल नहीं है, जहां विचारों का होता मेल नहीं है, अवैज्ञानिक, अमानुषिक नियम हर किसी के लिए समान नहीं होते, विभेदों से भरे ग्रंथवाणी में ज्ञान नहीं होते, इंसान होकर भी इंसान इंसान नहीं होते, ऐसी प्रथाओं के लिए खपना बलिदान नहीं होते, इस दुनिया में अंधविश्वास, पाखंड और भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है, नैतिकता, सत्य, दया से बड़ा भगवान नहीं है...
प्रकाशोत्सव की कुंडलिया
कुण्डलियाँ

प्रकाशोत्सव की कुंडलिया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली का आगमन, छाया है उल्लास। सकल निराशा दूर अब, पले नया विश्वास।। पले नया विश्वास, उजाला मंगल गाता। दीपक बनकर दिव्य, आज तो है मुस्काता।। नया हुआ परिवेश, दमकती रजनी काली। करें धर्म का गान, विहँसती है दीवाली।। अँधियारे की हार है, जीवन अब खुशहाल। उजियारे ने कर दिया, सबको आज निहाल।। सबको आज निहाल, ज़िन्दगी में नव लय है। सब कुछ हुआ नवीन, नहीं थोड़ा भी क्षय है।। जो करते संघर्ष, नहीं वे किंचित हारे। आलोकित घर-द्वार, बिलखते हैं अँधियारे।। दीवाली का पर्व है, चलते ख़ूब अनार। खुशियों से परिपूर्ण है, देखो अब संसार।। देखो अब संसार, महकता है हर कोना। अधरों पर अब हास, नहीं है बाक़ी सोना।। दिन हो गये हसीन, रात लगती मतवाली। बेहद शुभ, गतिशील, आज तो है दीवाली।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ ...