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लघुकथा

भगवान और भिखारी
लघुकथा

भगवान और भिखारी

विनय मोहन 'खारवन' जगाधरी (हरियाणा) ******************** धार्मिक प्रवृत्ति के राम लाल हर रोज साईकल से उस शिव मंदिर में पूजा करने आते थे। मंदिर के सामने ही एक भिखारी बैठता था। जिसे राम लाल रोज एक रुपया देता था। ये नियम सा बन गया था। उस दिन भी रामलाल साईकल से घर से चला, पर मंदिर पहुंचने से पहले ही साईकल में पंचर हो गया। साईकल को पैदल ही लेकर पंचर की दुकान तक पहुंचा। पंचर लग गया। पैसे जेब से निकालने लगे तो पता चला पर्स ही घर रह गया। अब क्या करें। दुकानदार को सारी बात बताई पर दुकानदार नही माना। रामलाल ने इधर उधर देखा, सामने भिखारी पर नज़र पड़ी। भिखारी रामलाल को ही देख रहा था। रामलाल भिखारी के समीप गया। भिखारी ने बिना कुछ बोले, बिना कुछ पूछे रामलाल को दस का नोट थम दिया। रामलाल समझ गया कि ये भिखारी सब देख चुका है। भिखारी नीचे मुँह करके अपना कटोरा खड़काने लगा। रामलाल ने दुकानदार के पैसे दिए व मंन्दिर...
इंसानियत
लघुकथा

इंसानियत

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आखिर तुम समझती क्यों नहीं? क्या समझूँ, तुम खुद को बड़े समझदार मानते हो? पत्नी की आँखों में गुस्सा साफ झलक रहा था। क्या किसी की मदद करना गलत हैं? ये मदद करना नहीं होता, सुरेश। ये तो मौत को अपने पास बुलाना होता। जब गाँव का कोई आदमी उसकी लाश को हाथ लगाने को तैयार नहीं था, तो तुम क्यों जिद्द पर अड़े हुए थे। तुम्हें पता है, सुरेश उसकी मौत कोरोना महामारी से हुई। फिर भी तुम.....। क्या तुम्हें डर नहीं लगता? हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं।तुम्हें कुछ हो गया तो। कोरोना छूने से फैलता है। अब बस भी करो, सुजाता। तुम कितनी मतलबी हो? वो एक लाश ही नहीं हैं। कुछ घंटों पहले जीती-जागती औरत थीं। जिसे तुम बार-बार लाश कह रही हो। उसने हमारी कितनी मदद की थीं? वो हमारी क्या लगती थीं? उसनें हमेशा इंसानियत के नाते, हमारी मदद की थीं। ठीक हैं, सुरेश मैं मानती हूँ। पर तुम...
सकारात्मक सोच
लघुकथा

सकारात्मक सोच

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** शहर में चारों तरफ महामारी आतंक मचा रही थी, हर कोई दशहत में था कि मुझे कुछ हो न जाये। लेकिन इन सबसे परे कोई और भी था जो सुनहरे भविष्य के लिये सपने बुन रहा था, राज.... एक बहुत अच्छा और सवेंदनशील लड़का, जिसको बहुत कुछ हासिल करना था। लेकिन लॉक डाउन के चलते वह खुद को बहुत असहज महसूस कर रहा था। उसे लगता था कि जिंदगी की रफ्तार रुक सी गई है। और लोग हताश रहने लगे हैं। और मैं इन लोगों के लिये चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा। अचानक सोशल मीडिया पर उसकी मुलाकात उसकी एक बहुत पुरानी दोस्त से हुई, जो कि डॉक्टर थी और दिन रात मरीजों के इलाज में लगी हुई थी, फिर भी वह तनाव मुक्त थी,,, उससे बात करके राज को महसूस हुआ कि जीवन में खुद से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं। खुद का मनोबल बनाये रखना बहुत जरूरी है। धीरे-धीरे उसने खुद में सकारात्मक बदलाव किया और अपने परिवार और दोस...
नियति
लघुकथा

नियति

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता बाहर खड़ी आँसू बहा रही थी। सभी उसे मूक दर्शक बने निहार रहे थे। तभी एक कटु आवाज ने जैसे सारा सन्नाटा भंग कर दिया था।गीता, गीता अन्दर आ जाओ, वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा। लोकेश उसे खींचते हुए अन्दर ले गया। और जमीन पर पटकते हुए उसे पीटने लगा। बाहर सिर्फ गली-गलोज और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। अब तो यह हर रोज का काम हो गया था। पहले छोटी-छोटी बातों पर कह-सुनी होती, फिर हाथापाई होती। बीस साल पहले जब गीता विवाह करके इस घर में आई थी। तब किसने सोचा था कि यह रिश्ता इतना उलझ जाएगा? लोकेश को शराब पीने की बुरी लत तो शादी से पहले ही थी। पर शादी के बाद तो वह पूरी तरह से इस में डूबता जा रहा था। माता-पिता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था। वह अपने परिवार की एक नहीं सुनता था। जब भी कोई उसे समझाने की कोशिश करता, वह चुपचाप सुन लेता। गीता का पत्न...
मंदाकिनी
लघुकथा

मंदाकिनी

सीमा गर्ग "मंजरी" मेरठ कैंट (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्पताल के कमरे में प्रसव पीड़ा से मुक्ति प्रयत्न हेतु रीमा चिकित्सक की सलाह से टहल रही थी। प्रसव पीड़ा बढती जा रही थी। उसका पति समीर कभी कमर सहलाता तो कभी सिर अपने कन्धे पर रख मन बहलाने के लिए कोई चुटकुला छोड देता। तभी नर्स ने रीमा को प्रसूति कक्ष में ले लिया। बेचैन समीर बाहर चक्कर लगाते हुए सोचने लगा। वे दोनों अपने गाँव से बाहर शहर में नौकरी पर आये थे। यूँ तो रीमा ने सासूमाँ को फोन कर दिया। परन्तु उनको गाँव से पहुँचने में थोड़ा सा टाइम तो लगना ही था। उनके गाँव में नवरात्रि उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पिछली बार नवरात्रि पर समीर भी छुट्टी लेकर रीमा को साथ ले दस बारह दिन माता पिता के पास रह कर आया था। नवरात्रि उत्सव में मातारानी की अलौकिक वात्सलयमयी छवि रीमा के हृदय में अंकित हो गयी थी। मातारानी की दिव्य शक्ति करूणा की ...
हमारा लॉकडाउन
लघुकथा

हमारा लॉकडाउन

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पूरा शहर बंद हो गया था। पता नहीं महामारी से कब तक देश में लॉकडाउन रहेगा? वर्षा सब कुछ सुन रही थी पर चुप थी। उसका मन तो कर रहा था। इसे आज ही एहसास हुआ है कि लॉक-डाउन सुबह से चालू हो गया हैं। आज से सभी दुकानें बंद रहेगी। स्कूल, कॉलेज बंद रहेंगे।यात्रायात के सभी साधन बंद रहेंगे। घर में किस तरह रहेगा यह, बंद होकर इसकी अय्याशी जो बंद हो जाएगी। रोज की महफिले, वही दारू पीकर तमाशा करना। जिस महफिल में रोज मजा मारता है वह बंद हो जाएगा। कॉलेज भी बंद हो गया है, वह कर रहा था। बेटे की पढ़ाई का क्या होगा? साल खराब हो जाएगा। वर्षा मन ही मन सोच रही थी वैसे कौन सा बेटा पास हो जाएगा? वह भी तो बाप पर ही गया है। किताबे तो उसे हमेशा दुश्मन दिखाई देती है। मैं ही उसकी किताबों को समेटती रहती हूँ। किताबे तो ज्ञान का भंडार होती हैं। ऐसा ही कहते थे मेरे पिताजी। ...
सवेरे-सवेरे
लघुकथा

सवेरे-सवेरे

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** सवेरे-सवेरे पूना से किसी नारायण जी का फोन आया, गिड़गिड़ाते हुऐ बोले- बेटा! वाट्सएप पर किसी ने आपका संदेश फारवर्ड किया है कि आप कोरोना मरीजों को खाना भिजवा रहे हैं, मेरे भाई इन्दौर के 'महक अस्पताल में भरती हैं, अकेले भर्ती हैं, क्या आप उन्हें खाना भिजवा सकते हैं ? मैंने उन्हें आश्वस्त किया तो वे रोने लगे। मैंने अपने कुछ साथियों के साथ ऐसे लोगों के लिये भोजन बनवाना शुरू किया जो किसी ऐसे अस्पताल में भर्ती हैं, जहाँ चिकित्सा तो हो रही है पर भोजन नहीं मिल रहा। अधिकतर ऐसे मरीज जो अकेले रहते हैं, या पढने या नौकरी के सिलसिले में इन्दौर में रहते हैं। झटपट पूनावाले के बुजुर्ग भाई की सब जिम्मेदारी ले ली। आज वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो गये और अपने घर चले गये। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल नि...
फिजुल ख़र्च
लघुकथा

फिजुल ख़र्च

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मां- "बेटा पंडित जी को ५०० रु. देना, तुम्हारे नाम से ज्योत जला देंगे।" दीपक पंडित जी को ५०० रु. बेमन से दे देता है। पंडित जी के जाने के बाद दीपक मां से- ये क्या मां आजकल तुम बहुत फिजुल ख़र्च करने लगी हो, कभी यहां दान करो, कभी गौशाला के लिए चारा दे आओ, कभी पंडित जी को दान, हर साल आज के दिन मंदिर में ज्योत जलाना, ये सब क्या है मां बहुत खर्च हो रहा है कुछ कम करो।" ऐसा कहकर दीपक चला गया, मां ने कुछ नहीं कहा, ऐसे भी मां कहां कुछ कहती हैं, फिर आज तो दीपक का जन्म दिन है। रात होते तक घर में दीपक के दोस्तों की महफ़िल सज़ चुकी थी, जहां महंगें शराब का दौर चल रहा था। जुए पर दांव भी लगाएं जा रहें थे, भले ही शौक के लिए खेला जा रहा था पर सब खेल रहे थे। मां अपने कमरे में बैठकर सोच रही थी कि फिजुल ख़र्च कहां हो रहा है। परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूष...
मासूमियत
लघुकथा

मासूमियत

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   'वक्त की कैद में जिंदगियाँ हैं, मगर चंद घड़ियाँ हम सब सब्र करें, प्राण वायु की आपूर्ति के लिए तो कम से कम।' संपूर्ण विश्व की त्रासदी से हम सब वाकिफ हैं। एक अनाहत भय से हर शख्स परेशान सा है। बच्चें, बूढ़े एवं युवा सब-के-सब आज की स्थिति का गुनहगार स्वयं को मान रहे हैं। स्वार्थांध होकर मानव ने प्रकृति के साथ की हुई ज्यादतियां या खिलवाड़ का नतीजा वर्तमान स्थिति में कैसा भारी पड़ रहा है, सब देख रहे हैं, मान भी रहे हैं। 'वनराजी, वृक्षबेलियाँ हमारे सगे-संबंधियों जैसी है', यह हमारे देश की परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है। ऐसे में एक घर की बुजुर्ग महिला सुबह-सुबह उठकर, नहा-धोकर, पुजा की थाल हाथ में लेकर जंगल की ओर निकल पड़ती है। दरवाजे की आहट सुनकर उसका छोटा पोता उठकर, "दादी माँ, रुको। मैं भी आपके साथ जंगल की और आता हूँ," कहकर जल्दी से ह...
तेजू की धुन
लघुकथा

तेजू की धुन

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** लंबे इंतजार के बाद वातावरण बदलने लगा था। महामारी और लाॅकडाउन से लोगों को निजात मिलने लगी थी। रामबाबू भी अपने रूकें कामों को पूरा करने में जुट गये थे। स्कूल के पट खुलने लगे थे। सबके कारोबार गति पकड़ ही रही थी, तो कोरोना की दूसरी लहर बेभान हो उछाले मारने लगी। तेजू अपनी झोपड़ी के बाहर टूटी सी खटिया पर बैठे कभी मुस्कुराता तो कभी गंभीर चेहरा बनाये टेढ़े बांके हाथ किये कुछ बड़बड़ाता था।आते जाते लोग कहते विक्षिप्त है। बच्चे उसकी पीठ पर मारते तो कोई खाने की चीज उसके सामने डाल देते थे। उसे महामारी से कोई सरोकार नहीं था, लेकिन चौकस रहता था। लोगों की भेंट की चीजें लेते समय कहता 'जागते रहो, अरे! पगले भला हो कहते हैं। राम बाबू हमेशा उसे टोकते किन्तु तेजू ने अपनी चाल नहीं बदली। राम बाबू की समाज सेवा में तेजू और उसकी माँ को प्राथमिकता थी। उन्हें तेजू से प्...
महादान
लघुकथा

महादान

कु.चन्दा देवी स्वर्णकार जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ज्योत्सना अपनी पति जगदीश के साथ हॉस्पिटल में ३ दिन से एक ही बेंच पर बैठी टकटकी लगाए उस कमरे की ओर देख रही है जहां उसका बेटा भर्ती है डॉ. उसे मिलने नहीं दे रहे हैं सड़क दुर्घटना में वह इस तरह से घायल हो गया है की उसे डॉ. किसी भी तरह से नहीं बचा पा रहे हैं। इन ३ दिनों में पति ने अनेकों बार उसे कुछ खा पी लेने के लिए कहा किंतु वह टस से मस न हुई और मन ही मन अनेक देवता देवी देवताओं को मनाती रही कि मेरे पुत्र को जैसे भी बने वैसे ठीक कर दो। अन्दर से डाक्टरों का समूह जैसे ही बाहर निकला उनमें से एक ने जगदीश को अपने पास बुलाकर जो कुछ समझाया उसे सुन कर जगदीश के हाथ पैर ढीले पड़ गये वे एकदम से गिरते-गिरते बचे। पत्नी ने पति के काँधे पर हाथ रखा और कहा- "मुझे बताते की जरूरत नहीं मैंने सब कुछ सुन लिया है। मेरा चिराग कुछ ही पल में जाने वा...
एक पल
लघुकथा

एक पल

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कुछ पल की चहलकदमी के बाद एक जगह ठहर गई 'पिया' उसका पोर पोर दर्द की वेदना से भरा था! कितने हाथ पैर मारे थे! पर उसकी कौन सुनता 'जब भौकाल चरम पर होता है तो सबकी मानसिकता ही बदल जाती है! पर अब क्या 'निपट अकेली रह गईं थी! पिया' निरीह वो सारे वादे बिना निभाये जा चुका था! खुद को ठगा महसूस कर रही थी! पर वो न भूली थी 'उसकी भरी आंखें' चंद बूँदे अश्रु की जो उसने भरसक छुपाने की कोशिश की थी! नही वो भटकाव न था! वो उसका प्रेम ही तो था! जिसे पाने की खतिर खैर उसनें एक लम्बी सांस ली उसे पता था! अब वो कभी वापस नहीं आऐगा' बुखार से तन तप रहा था उसका 'कुछ तो समझ न आ रहा था! उसे'तो 'सच मे चला गया हमेशा के लिऐ वेदांत'.... एक सिसकी और एक और लुढक गई पिया की गरदन 'उसकी निस्तेज आंखों मे लिपटा काली तिरपाल मे वेदांत का शरीर और अब न रही: 'एक पल की प्रतिक्षा..... !! ...
बेबस
लघुकथा

बेबस

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आज, मेरा चिंटू नज़र नहीं आ रहा हैं, पापा ने ऑफिस से आते ही दीपा से पूछा? दीपा बिना कुछ कहें ही किचन में चलीं गई। वह बड़ा हैरान रह गया! उसे लगाआज जरूर "दाल में कुछ काला है"। दीपा, हाथ में चाय का कप लिए उसके सामने खड़ी हो गई। लो चाय, उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। क्या हुआ, दीपा, कुछ कहोगी या नहीं? क्या कहूँ, आप पर तो किसी बात का कोई असर नहीं होता? वह चुपचाप सब सुन रहा था। अच्छा, छोड़ो क्या तुम मेरे साथ पार्क में चल रहीं हो? क्यों, क्या अब मेरी भी नाक कटवानी बाकी हैं? दीपा, क्यों छोटी सी बात को इतना बड़ा बनानें पर तुली हो? छोटी सी बात, सुबह चिंटू को रमेश जी, ने खूब खरी-खोटी सुनाई। तो क्या हुआ, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर बच्चे गलती करेंगे तो... वह इतना ही कह पाया था। दीपा, का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका चेहरा लाल हो गया, वह चिल्ला...
बड़ा भिखारी
लघुकथा

बड़ा भिखारी

ममता रथ रायपुर (छत्तीसगढ़) ********************   नवरात्रि का समय था, सभी देवी मंदिरों में काफी भीड़ लगी हुई थी। आज मंदिर में सभी वर्गों के लोग देवी को प्रसन्न करने में लगे थे।एक सेठ भी अपने परिवार सहित दर्शन करने आए थे। सेठजी पूजा करके अपनी कार की तरफ जाने लगे, तभी एक भिखारी उनसे टकरा गया। सेठजी गुस्सा होकर चिल्लाने लगे, इस पवित्र जगह पर इन मैले-कुचले कपड़ों में घूमते भिखारियों का क्या काम है, पता नहीं ये लोग यहां कहां से आ जाते हैं। "भिखारी बहुत दुखी हुआ। पास में ही भिखारी का अपाहिज बेटा बैठा था, उसने हाथ जोड़कर सेठ से कहा-" सेठजी ये देवी का मंदिर है यहां छोटा बड़ा कोई नहीं होता, फिर भी आप ऐसा सोचते है तो आप ही बताइए कि यहां आप जैसे लखपति लोग देवी के सामने करोड़पति होने की भीख मांगते हैं, वे बड़े भिखारी हुए या हम जैसे अपाहिज, जो सिर्फ दो वक्त की रोटी ही यहां मांगने आते हैं वे बड़े भिखा...
पागल
लघुकथा

पागल

शुचि 'भवि' भिलाई नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कैसी हो? फोन पर प्रश्न पूछते ही मानो भूकंप आया हो। सरिता स्तब्ध हो गयी थी कि अचानक रेणुका को ये हो क्या गया है। कितना अनाप-शनाप बोल रही थी वो और उसका ये रूप तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। इससे पहले कि सरिता कुछ बोल पाती, रेणुका ने फोन काट दिया था। सुदूर विदेश से सरिता चाह कर भी आ भी तो नहीं सकती थी अपनी बचपन की सहेली से मिलने। उसने कई बार दोबारा फोन लगाने की कोशिश की मगर नाकाम रही। सरिता ने रेणुका के भाई को फोन लगाया और रेणुका के संबंध में पूछा कि वो कैसी है। सरिता की चीख़ निकल गयी ये सुन कर कि एक सप्ताह पहले जो खिलखिलाती रेणुका थी वो आँसुओं के सैलाब में इस क़दर डूबी कि अपना अस्तित्व ही भूल गयी है। पति, देवर और पुत्र तीनों कोरोना की भेंट चढ़ गए थे। १५ दिन पहले ही घर में जश्न था, देवर की सगाई का। सरिता ने समझाया भी था कि...
नीना
लघुकथा

नीना

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन रात बढ़ते संक्रमण पर काबू पाते और मरीजों की सेवा करते डाॅक्टर नीना निढाल हो टेबल पर गर्दन रखते ही नींद के साथ अतीत के आगोश में चली गई थी। अरे! सुन, बेटीके लिए इतना अच्छा घर मिला है। देर सबेर नीना के हाथ पीले करने ही है। लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में कोई कालेज का लड़का छाया हुआ है। जाति भी कुछ अलग है। साफ मना करती है शादी के लिए। देख शिबू नीना की सहेली कह रही थी। लड़के ने अपने परिवार की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली है।एक साल होने आया है। फिर भी तेरी बिटिया मानती नहीं। प्रेम में पूरी दिवानी हो गई है। ध्यान रखना शिबू प्यार से समझाना नहीं तो उल्टा गलत काम कर लेगी तो समाज में नाक कट जायेगी। माँ आप इतनी चिन्ता मत करो। मुझे समाज की चिंता नहीं बेटी के भविष्य की चिंता है। पढ़ी लिखी जवान लड़की उसे बहुत सारे बड़े काम करने हैं यह कौन समझाए। मां आज...
असली रंग
लघुकथा

असली रंग

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आज सोमेश जैसे ही ऑफिस से घर पहुँचा सीमा ने कहा चाय रेडी है पहले आप फ्रेश हो जाओ फिर बुलबुल को आज रंग गुलाल दिला लाना कब से यही रट लगाये बैठी है सोमेश ने कहा ठीक है बुलबुल से कहो रेडी होने मैं ले चलता हूं उसे। बुलबुल झट से तैयार हो कर आ गयी और बहुत खुश नजर आ रही थी। सोमेश बुलबुल के साथ मार्केट गये। वहाँ उसने बुलबुल की पसंद का सारा सामान खरीदा पर सोमेश ने एक बात नोटिस किया कि बुलबुल जो भी सामान लेती पापा एक और प्लीज कहकर सारा सामान का एक और सेट खरीद लिया और अलग-अलग कैरी बेग में रख लिया। लौटते वक्त पापा ने देखा कि आज बुलबुल बहुत खुश लग रही थी और उसे खुश देखकर पापा भी खुश थे। घर पहुँच कर सोमेश ने सीमा से कहा- पता है आज हमारी बुलबुल बहुत खुश है उसने सारा रंग गुलाल पिचकारी मास्क और भोपू के दो-दो सेट खरीदे हैं। इसी बीच बुलबु...
वो नीलपक्षी
लघुकथा

वो नीलपक्षी

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ********************                               गर्मीं की रातों में नींद तो सुबह ही आती है। ओर उसमें भी रात को बिजली चली गईं हो। सुबह नींद लग ही रही थी कि नीम के झाड पर असंख्य चिड़ियों का मेला लगा था। वे चहचहा रहीं थीं मानों अपना दिनभर की योजना के बारे में चर्चा कर रहीं हों। मुझे उठना ही पड़ा। चाय लेकर बरामदे मैं बैठी तो एक नीले पंख की चिड़िया बरामदे में लगे शीशे पर बैठ शीशे में अपनी ही छवि को देख लगातार अपनी चोंच मार रही थी कि ये मेरे जैसी दूसरी चिड़िया कौन? देख मैं मुस्कुरा दी और सोचने लगी कि कितनी नादान है ये? आखिर थककर वह मुंडेर पर जा बैठी। यह उसका रोज का ही कार्यक्रम बन गया था। सूरज अपना साम्राज्य खोले उसके पहले ही इसकी हरकतें शुरू हो जातीं। मेरे बरामदे की बेल से नीम्बू के पेड़ से गुलाब के गमले में फुदकती पर पास लगे अशोका के पेड़ पर कभी न जाती। वह आँगन में ...
डायरी का वो पन्ना
लघुकथा

डायरी का वो पन्ना

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** अक्सर ये कहा जाता है कि मतलब या काम निकलने के बाद लोग सब भूल जाते हैं। शाम का समय था, दिनेश अपने घर के हाल में अकेले बैठा था कि डोर बेल बजी। दरवाजा खोल कर देखा तो सामने चाचा जी खड़े थे। जय श्रीकृष्णा चाचाजी, आइए पधारिए की ओपचारिकता के बाद दोनों सोफे पर बैठ गए। चाचाजी मुझे फोन कर दिया होता तो मैं ही बस स्टैंड पर लेने आ जाता। थोड़ी देर की बातचीत के बाद चाचाजी मै आपके लिए चाय बना के लाता हूं। चाय की चुस्कियां लेते हुए चाचा जी बात किए जा रहे थे कि अचानक से नाराजगी वाले अंदाज से बोले कि बेटा आज कल कौन किसको याद करता है। ये दुनिया बड़ी मतलबी है। काम या वक्त निकलने के बाद सब भूल जाते हैं। चाचाजी की बात दिनेश को समझ आ रही थी कि आखिर चाचाजी ऐसा क्यों कह रहे, कहीं मुझे ही लक्ष्य करके तो नहीं बोल रहे हैं। दिनेश चाचाजी से ऐसी बात नहीं ह...
ज्ञान
लघुकथा

ज्ञान

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कश्मीर की घाटी और सरहदी इलाका। दो आतंकी एक घर में घुसे। पंडित जी और उनकी पत्नी घबरा गये। आतंकी ने बंदूक तानते हुए पूछा- "तुम हिंदू हो या मुस्लिम?" पंडित जी ने बहुत साहस कर बोला- ये दाढ़ी नहीं देख रहे, मैं भी तुम जैसा ही मुसलमान हूं। "अगर मुसलमान हो तो कुरान की आयत सुनाओ।" आतंकी ने कहा। पंडित जी तब पेशोपेश में पङा गये। मन ही मन भगवान को याद कर गीता का श्लोक सुना दिया। आतंकवादी वापस चले गये। पंडिताईन तब घबराती हुई बोली- "एक तो आपने इतना बड़ा झूठ बोला, ऊपर से कुरान के आयत के बदले गीता का श्लोक सुना दिया। अगर वो जान से मार देते तो?" "पंडित जी ने तब हंसते हुए कहा- "भाग्यवान, अगर उन्हें इतना ही ज्ञान होता तो आतंकवादी क्यों बनते।" परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
पेड़ की पीड़ा
लघुकथा

पेड़ की पीड़ा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर ८ दिन बाद मेरा जीप द्वारा उधर से निकलना होता था। सड़क कच्ची और पथरीली थी सड़क की दूसरी ओर घना जंगल था वहां हमेशा सन्नाटा पसरा रहता था। एक बार मै उधर से गुजर रही थी तो कुछ टकराने की आवाज सुनाई दी मैंने वाहन चालक से पूछा तुम्हें भी कुछ सुनाई दे रहा है, वह बोला हां कुछ ठोकने की आवाज आ रही है दूर से देखा कोई एक पेड़ को काट रहा था, पेड़ पर पड़ते आघात मेरे मन को आहत कर रहे थे। आंसू बहाता आकाश पत्नी धरती से कह रहा था... देख रही हो तुम्हारे द्वारा भेजा गया संदेश लेकर वह मेरे पास आ रहा था ऊपर उठ रहा था। की वह मुझे संदेश सुना सके, देखो कैसे उसे ऊपर चढ़ते चढ़ते नीचे गिरा दिया फिर से तुम्हारी गोद में सारे पत्ते झर गए कभी ना लगने के लिए वह अडीग छाया देने के लिए फल देने के लिए और वर्ष वर्षा करने में सहायक था, पर अब ऐसा नहीं होगा। अगर बदली बरस जा...
सच्ची समाज-सेवा
लघुकथा

सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
हिचक
लघुकथा

हिचक

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** "काका कोरोना का टीका आ गया है। वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" गोमू ने काका को समझाते हुए कहा। "नहीं, मैं यह टीका नहीं लूंगा- पता नहीं क्या हो जाय?" काका के स्वर में भय एवं हिचकिचाहट का मिला जुला भाव था। "काका कुछ नहीं होगा- बीमारी से लङने की क्षमता बढेगी।" "अब कौन सा मैं मुंबई शहर में हूं। पैदल ही सही पर अपना गांव तो आ गया। यहां कुछ खतरा नहीं है। नहीं लेना है टीका-वीका।" "काका आपको मुंबई से गांव आने में कितनी मुसीबतें झेलनी पङी और आने में लगभग दस दिन लग गये। पर कोरोना को पुनः शहर से गांव आने में चंद मिनट ही लगेंगे।" भतीजे की बात सुनकर काका पुनः सहम गया और हिचक गायब हो गई..... परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
नारी शक्ति
लघुकथा

नारी शक्ति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वह सुबह सवेरे बड़ा सा झोला लेकर निकल पड़ती है, बिना सन्देह के एक लक्ष्य लेकर कि आज दो-तीन किलो प्लास्टिक का कचरा मिल जावेगा तो पीहर आई बेटी को भरपेट खाना खिला सकूंगी। इसी उधेड़बुन में वह इस प्लाट से उस प्लाट तक कचरा खोजती हुई आगे बढ़ गई विचार मन में चालू थी कि अचानक पीछे से आवाज आई... इधर आओ वह घबरा गई पीछे मुड़कर देखा एक व्यक्ति खड़ा उसे आवाज लगा रहा था वह धीरे-धीरे पास गई वह बोला मैं सफाई कर्मचारी का अधिकारी हूं क्या तुम रोज कचरे के ढेर से पन्नी अलग छांटने का काम करोगी.... ४ घंटे काम करना होगा और तुम्हें ६० रु. मिलेंगे मंजूर हो तो मेरे साथ ऑफिस में चलकर नाम लिखवा दो। उसने मन में सोचा इतने पैसे से तो मैं अपने शराबी पति का इलाज भी अच्छी तरह से करा सकूंगी और बेटी को पेट भर खाना भी नसीब होगा यह सोच वह उस व्यक्ति के साथ आफीस गई और अपना न...
विडंबना
लघुकथा

विडंबना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिसंबर की कड़ाके की ठंड में वह अपने फटे कंबल से शरीर को ढकने की कोशिश करता हुआ सड़क के किनारे बैठा था। सड़क की दूसरी ओर एक चाय की गुमटी पर बहुत सारे लोग अपने शरीर को गरम करने के लिए चाय की चुस्कियां ले रहे थे, उसे लगा कोई उसे भी एक प्याला चाय पिला दे इस आशा से वह गुमटी पर खड़े लोगों की ओर तथा चाय की पत्ती ली से निकलती भाप की ओर अपलक देख रहा था कि कोई उसकी और देखें परंतु सब अपने मैं व्यस्त थे। किसी की नजर उस पर नहीं पढ़ रही थी, वह इसी आशा से बार-बार उधर देख रहा था की कोई तो देखें उसे परंतु किसी को उसकी ओर देखने की फुर्सत नहीं थी, सब अपने मैं मस्त हो चाय की चुस्की ले रहे थे, यह कैसी मानव की विडंबना है या उसकी नियति यह सब समझ से परे है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप...