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कविता

एक बाप
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एक बाप

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** एकटक देखता रहा निहारता रहा नहीं निगाहें ओझल है उसकी, चेहरे पर खुशी होंटो पर मुस्कान लिए देखता रहा प्यार भरी निगाहों से, एक पिता बचपन सा दुलार बचपन का प्यार, गाड़ी में बिठाते उसका सामान चढाते फिर टकटकी लगाते देखता रहा खिड़की में से, एक बाप ! जब तक बस ना चली जाए खिड़की पर ताकता रहा देखता रहा, पर बेटे की निगाहें ना टिकी अपने बाप पर। नहीं मुस्कान नहीं सम्मान बस डिग्री थी और ऊंचे पद और शिक्षा का अभियान, नई दुल्हन, नया शहर, नई नौकरी, बस अपनी मस्ती में मस्त था एक नौजवान, भूल गया बचपन ! पिता के कंधे वह मेलों में जाना जलेबी, गराडू खाना, खिलोने की जिद, गाड़ी पर बैठकर आम और आइसक्रीम लाना, स्कूल के लिए बस में बिठाना और चॉकलेट टॉफी दिलाना, मैं देखती रही उसके मिजाज, उसके आव-भाव, बस यहां तक ही...
अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना
कविता

अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** जीवालय अनुलोम ============ नाहक हय खरगोश वकी मछली गो गज सेरह। नाहर बकरी नाग खर सुअर, बारह कपि तेरह।। शब्दार्थ :- नाहक=अनावश्यक, हय=घोड़ा, वकी=मादा बगुला, गो=गाय, गज=हाथी, सेरह=भेड़िया, नाहर=शेर, खर=गधा, कपि=बन्दर अनुलोम का अर्थ =========== स्वामी ने स्वामी से पूछा हमारे जीवालय में कुल कितने जीव हैं इस पर सेवक ने स्वामी को बताया कि आपने अनावश्यक ही अपने चिड़िया घर में कई पशु पक्षी जिनमें घोड़ा खरगोश बगुली मछली गाय हाथी भेड़िया शेर बकरी नाग गधा सभी एक एक व बारह सुअर एवं तेरह बन्दर पाल रखे हैं। यलवाजी-विलोम =========== हरते पिक हर बार असुर खग, नारी कब रहना। हरसे जग गोली छमकी वश, गोरख यह कहना।। शब्दार्थ :- हरते=चुरा लेते हैं, पिक=कोयल, असुर=राक्षस, खग=पक्षी, रहना=बचना, हरसे=प्रसन्न होता है,...
निर्झर
कविता

निर्झर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निर्झर निरन्तर, निर्झर निर्मल निर्झर निशब्द नही निर्झर नमित हे धरा को निर्झर, निर्भय नित प्रवाहित। कभी लगता निर्झर श्वेद है लगता कभी निर्झर बर्फ का झाग है निर्झर, झरझर बहता लगता, लक्ष्य की ओर भाग रहा उस लक्ष्य की ओर जिसका उसे ठौर ज्ञात नही। धरा को नमन करता निर्झर सरगम के स्वर गाता निर्झर कही दिखता, पाषाणो को तोडता निर्झर कहीं पाषाणो को पीछे छोड सीमा लाथता निर्झर वृक्ष को अपनी ओर झुकाता सा निर्झर निर्झर की फुहारो का आनंद लेते चक्षु कही तन मन को भिगोता निर्झर । निर्झर लगता कही प्रकृति के गले के हार सा कही प्रतित होत पकृति की पायल सा रूनझुन, रूनझुन गीत गाता क्या कहु इस निर्झर को, जन जन को है लुभाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी...
चिंगारी
कविता

चिंगारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चकमक जैसा शौर्य नदी में, चिंगारी ऐसी लहकी। चाल चली शकुनी ने टेढ़ी, आग युद्ध की फिर दहकी।। काली पड़ती चंचल हिरणी, धूप तेज है कुँवार की। कोमल कलियाँ भी झुलसी हैं, कैसी रुत है बहार की । शहर गाँव वीरान पड़े हैं, उम्मीद नहीं सुधार की। अपने तोता से बिछड़ी जो, मैना है बहकी बहकी।। हुए घरों के खंडित चूल्हे, बिलखें गोदी में बच्चे। दूर कबीला छूटा कुनबा, सगे मगर रिश्ते कच्चे।। चौसर की कपटी बिसात में, फँसतें धर्मराज सच्चे। पृथकवाद की राजनीति में, विद्रोही आहट चहकी।। जहरीला इंसान हुआ है, निष्ठाऐं सच की जलतीं। मोल नहीं है बलिदानों का, हिय बस छलनाएं पलतीं।। तेजाबी माहौल हुआ है, गोली अंतस को छलतीं। कटुता के भावों में पनपी, क्षति फिर अंदरुनी महकी।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : ज...
संशय
कविता

संशय

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हां मैं लिखता हूं तुम्हारी मुस्कुराहट में अपना वजूद लिखता हूं। हां मैं देखता हूं तुम्हारी छुपती निगाहों में अपना अस्तित्व देखता हूं। हां मैं मुस्कुराता हूं तुम्हारी स्मृति में खोकर हृदय तल से मुस्काता हूं। हां मैं डरता हूं एक बेनाम रिश्ते को एक नाम देने से डरता हूं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
छत्तीसगढ़ के पहली तिहार
आंचलिक बोली, कविता

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) खेत-खार दिखे हरियर-हरियर रँग, डीह अउ डोंगर म पानी के बहार हे। नरवा अउ नदिया उलानबादी खेलँय, जम्मों कोती हरियाली के उछाह हे।। मेचका मन बजाथें मांदर, गुदुम बाजा, केकरा मन बजाथें सुलुड अउ बसुरी। जलपरी मछरी मन नाचँय मगन होके, पिरपिटीया साँपिन चुप देखथे बपुरी।। बनिहार मन गावत हें ददरिया गीत, बबा ढेरा चलावत गावत हे आल्हा। सुआ अउ मैना मया के गोठ गोठियाथें, कारी कोइली चिरई रोथे बइठे ठल्हा।। गाँव ल बाँधे बइगा करके जादू-टोना, लोहार ह चौंखट म खीला ल ठोंकथे। सियारी फसल म रोग-राई नइ होवय, यादव मन लीम डारा ल घर म खोंचथें।। छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली, सावन महिना म किसान मन मनाथें। नाँगर, हँसिया, कुदरी के पूजा करँय, लइका मन बाँसिन के गेड़ी खपाथें।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीस...
सावन
कविता

सावन

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आया सावन झूम के। सावन की झड़ी संग, बूंद-बूंद से मोती सजे। देख नज़ारा सावन भी खुद, महादेव को जल चढ़ाने आया। बदरा ने भी ढोल बजाया। आराधना के तीज त्यौहारों में, महादेव भी चौमासे के त्योहार लाये। झरते झरने मन को कितना रिसायें। बरसे सावन की घटाएं, मन को रिझायें। नव-श्रंगार कर, सखियां मिले। मिलकर मन मोतियों से झूला सजायें। खुशियों मे सबका मन समाये। उमंगों का झूला लहरायें। उमड़ घुमण बरसे सावन, बदरा ने भी ढोल बजाये। झरते-झरने मन को रिझाये, झूम के बरसे सावन की घटाएं। पेड़ो की डाले भी झुक झुक जायें।। हरियाली की बिछा चादर धरा को घूंघट उड़ायें। नाचे मेरा मयूर मन। सावन की घटाएं मन को इतना रिझायें। झूमके बरसे सावन की घटायें। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता...
सावन महीना
आंचलिक बोली, कविता

सावन महीना

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ल भावत हे! हरियर-हरियर खेत दिखत हे कोयली गीत सुनावत हे !! झरझर-झरझर पानी गिरइ तरिया डबरी लबलबावत हे! खोचका, डबरा पानी भरगे मेचका हर घलो मेछरावत हे !! किसानमन के दिनबादर आगे किसानी गोठ गोठियात हे! करे बियासी नांगर धोवय जुरमिल हरेली जबर मनावत हे!! सावन सोमवारी रहे उपवास शिवभोला के गुण गावत हे! बेल, धतुरा, नरियर धरे शिव भोला म पानी रितोवत हे !! बोलबम के जयकारा लगावत कांवरिया मन ह जावत हे! सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ला भावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
बचपन का जमाना
कविता

बचपन का जमाना

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** बारिश की बूंदों का टिमटिमा के बरसना स्कूल की छूटी होते ही बारिश के पानी में चलना मानो जिंदगी का सारा आनंद और सुकून देके चला गया हो वो बचपन का जमाना। छोटे-छोटे हाथों से छतरी लेके चलना नन्हे-नन्हे कदमों से बारिश के कीचड़ में मस्ती करना मानों जिंदगी का सारा खज़ाना देके चला गया हो वो बचपन का जमाना। बारिश की बूंदों से उठते हुए बुलबुलों का फटना थक कर स्कूल से आते ही दोस्तों के संग बारिश में खेलना मानों जिंदगी की सारी आज़ादी देके चला गया हो वो बचपन का जमाना ... वो बचपन का जमाना ... परिचय :- रमेश चौधरी पिता : श्री नारायण लाल जी चौधरी माता : श्रीमती सुन्दरी देवी शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) निवासी : तह.- सोजत सिटी पाली (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
सावन में भीगी मेरी गौशाला
कविता

सावन में भीगी मेरी गौशाला

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सावन की बारिश में भीगी गौशाला, पीपल, नीम, बरगद की शाला, झूमे हर जीव बन के मतवाला, अद्भुत निराली, अनुपम गौशाला!! उन्मुक्त पवन के झोंके निराले, सारे जीव लगते है बड़े न्यारे! रिमझिम बरखा की पड़ती फुहार, नन्हें गौ वंशों की रूनझुन बयार! सावन की सोंधी मिट्टी की खुशबु, चूल्हे पर सेंकते भुट्टे की सुवास, अभावों के बीच भी सौंदर्य है अपार खुशियाँ बरसती यहाँ अपरम्पार! हरी भरी खेतों की क्यारी निराली, सावन की सोंधी खुशबु से फैली हरियाली! गौशाला का जीवन है कितना पावन, हर एक जीव में मिलता अपनापन!! बरसती यहां सिर्फ करुणा और स्नेह, यहाँ आके सबको मिलता है प्रेम! माटी की जड़ में जहाँ बसते हैं रिश्ते, देवी-देवता यहां हर रंग-रूप मे बसते! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश क...
थोड़ा तरस खाओ
कविता

थोड़ा तरस खाओ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** निरीह प्राणी शिक्षक को न समझा जाये भगवान, सत्ता वालों की नजर में नौकर है अपनी दुर्गति से वो नहीं अनजान, हमने देखा है शौच करने वालों की निगरानी उनको करना पड़ा, उसने तो ड्यूटी कह मान लिया जग ने देखा व्यवस्था है पूरा सड़ा, आफत के समय शिक्षक ही थे जां लगा दांव ड्यूटी थे किये, संग पुलिस वालों ने राहगीरों से भर भर पैसे खुलेआम लिये, अब वक्त है उनसे ट्रैफिक ड्यूटी कराने का, उन्हें उनकी औकात बताने का, कल को नाली साफ करने कहा गया तो बेझिझक करेंगे, उन्हें सरकारों का खौफ है बुरी तरह से डरेंगे, ऐसा कोई काम नहीं जिससे शिक्षक डरते हैं, वो शिक्षा पर ही जीते हैं और शिक्षा पर ही मरते हैं, सियासतदानों अपनी हरकतों से बाज आओ, अपनी लिखी किताबों के भगवान रूपी शिक्षक पात्रों पर तो थोड़ा तरस खाओ। ...
बिखर गए सांसों के मोती
कविता

बिखर गए सांसों के मोती

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शब्द श्रद्धांजलि : मृतक बच्चें (हादसा - पीपलोदी शाला, झालावाड़) बिलख रहे बापू जिनके, वो छोड़ गए मां को रोती। टूट गई जीवन की माला, बिखर गए सांसों के मोती। पोथी बस्ता अनाथ हुए, और कलम रह गई सोती। तम के गहरे आघातों से, बुझ गई जीवन ज्योति। मृत्यु बड़ी निर्दय हुई, बाल-सभा को खाती। वीभत्स दृश्य चीत्कार देख, हर आंख आँसू बहाती। मौत भी मजबूर हो, जिस गुलशन को आती। बरसों से क्यों पाले थे, फिर मरघट की सी थाती। क्या आंखो से अंधे थे, अथवा गांधारी की जाति। दिखी नहीं सर्पणी जिनको, मासूमियत को डसती। तुम शीशमहल में रहते हो, क्यों कच्चे हमको पाती। कौन जिम्मेदार बुझाने को, बच्चों की जीवन बाती। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
माँ का खत
कविता

माँ का खत

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। वह घर-आंगन में खेलना और पेड़ों पर चढ़ना। उछल -कूद करके सारा दिन मां को बहुत सताना। इसने मेरे बचपन की सारी नादानियों को याद दिलाया है। बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। सबका लाड़ला था मैं, वहां न कोई पराया था। हर घर से ही मैंने प्यार बहुत पाया था। बहुत मजबूत था, हम यारों का याराना। खुशी का हर गीत ही मैंने बचपन में ही गया है। बहुत दिनों के बाद मेरी मां का खत आया है। उसकी सोंधी खुशबू ने मेरा गांव याद दिलाया है। शुद्ध हवा और शीतल पानी। झरने-नदियां कहती अपनी ही कहानी। तालाबों में मैंने देखी मीन की अठखेलियां। बारिश की नन्ही बूंदों ने हर तरु का मन हर्ष...
परछाइयाँ
कविता

परछाइयाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कब पीछा छोड़ती है परछाइयाँ ये प्रतिबिंब होती है उसके व्यक्तित्व की झलक होती है निजी अस्तित्व की आभास होती है प्रछन्न अनुभूति की प्रबल विश्वास होती है मानसिक संवेदनाओं की... इसकी सघन जकड़न में अलग उन्माद है अजब आक्रोश है भीनी महक है चुलबुल चहक है सहमी सी कुंठा है पाने की उत्कंठा है सही की आशा है गहन जिजीविषा है.... फिर भी परछाई तो परछाई है कभी कभी दिखती है शेष बस अहसास है प्रत्यक्ष है... परोक्ष है... परंतु प्रति पल संग है.... ये तो मीठी मीठी सिहरन है पगलायी सी विरहन है नीलोत्पल की दमक दामिनी आवेश की सरस चाशनी पागलपन भी कैसा कैसा प्रिय-प्रिये मिलन जैसी परछाइयाँ.. पर क्या टूटेगा ये अमर प्रेम स्व से परछाई का वहम ना... कभी नहीं... क्योंकि ये स्व का दर्पण है स्व श्रद्...
मातृत्व दिवस
कविता

मातृत्व दिवस

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ को मै पलको पे रख लूँ, उनकी बाते सर पर रख लूँ, गुढ रहस्य की बाते माँ मै, इतिहास के पन्ने हे माँ मै, जीवन के सब सपने माँ मै, खाने का भण्डार है। (अन्नपूर्णा) माँ मै, बीते दिनो की याद है माँ मै, संस्कृति और संस्कार है माँ मै, मान और सम्मान है माँ मै, दुनिया के हर अनुभव माँ मै। घर मै एक वर्चस्व ही माँ है, घर की एक रौनक ही तो माँ है, बच्चो का तो सब कुछ माँ है, जीवन का एक पथ ही माँ है, भले बुरे की पहचान है माँ मै, मन के भाव की पहचान है माँ मै, गम को पीना खुशी से रहना, सबको लेकर साथ है चलना, यही भाव तो माँ रहता, घर मै सदा सजग है रहना, चौकन्ना सदा ही रहना, यह सब तो माँ मै ही रहता, मेरा तो यह अनुभव दिल का, बिन माँ के हम (बच्चा) पथ विहीन है रहता, जीवन का पथ माँ से मिलता, शिखर को छूने का साहस दे...
केवल प्यार
कविता

केवल प्यार

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** स्पर्श हीन। रंग हीन। गन्ध हीन। पर अगोचर विस्तार वो है प्यार, प्यार,प्यार। छुपा है दीपक में ज्योति सा सीप में मोती सा दर्पण में छवि सा। प्यार ... बसा है रवि रश्मि में प्रकाश बनकर। विधुलेखा में आस बनकर। जीवन रेखा में स्वास बनकर। गुंजित है कोयल की कूक में। ग्रीष्म की फूंक में। दिल की हूक में व्याप्त है। फूलों की सुगन्ध में बच्चों की किलकारियो में। चिड़ियों के कलरव में प्यार-प्यार-प्यार ... परिचय :- शकुन्तला दुबे निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र। सम्प्रति : सेवा निवृत्त शिक्षिका देवास। घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
खुली खिड़की
कविता

खुली खिड़की

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जब खिड़की खोलकर देखता हूं बाहर का नजारा चिड़ियों की चहक दोस्तों का दिखना ठंडी हवा फूलों की खुशबू कर देती मन को ताजा सूरज की किरणें घर में उजास भर देती जब सुबह खिड़की खोलती। अब मेरी आदत खिड़की खोलने की चिड़ियों ने चहचाहट कर रोज़ डाल दी अब महसूस हुआ प्रकृति कितनी सुंदर है ऐसा लगता तितलियां, भोरें और पंछी मानो मेरा अभिवादन कर रहे हो। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर...
असमंजस
कविता

असमंजस

राम राज सिंह उन्नाव (उत्तर प्रदेश) ******************** मौन  मुखर हो जाता है साहस जब भर जाता है बस वही विजय को पाता है प्रण पावक जो बन जाता है असमंजस के अंधकार में दीप नया जलने दो ... जीवन को पलने दो ... बाधाओं के उद्यानों में अपमानों की अमर बेल से घोर घृणा के तूफानों में अरमानों के मरण मेल से अटक भटक से पृथक, सरपट पग चलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... असफलता के भय से व्याकुल प्राण द्वंद में क्यों जीते? क्षमता को परिमार्जित कर फिर लक्ष्य नए क्यों न सीते? स्वजनों के जो स्वप्न सरल न गरल में ढलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... तमतमाते क्षितिज से मिलने चिंगारी जुगनू की होड़ अंग झुलसते विकल बिलखते किंतु नहीं पथ लेते मोड़ सरिता सम तुम दिशा बदल दशा बदलने दो, जीवन को पलने दो ... जीवन को पलने दो ... संघर्ष प्रकृति है जीवन ...
रुख लगावव… रुख बचावव…
आंचलिक बोली, कविता

रुख लगावव… रुख बचावव…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता रुख लगावव, रुख बचावव बारी बखरी खेत खार म, बंजर धरती अउ कछार म, जुरमिल के जम्मों संगवारी, सुग्घर रुख राई लगावव..!! रुख राई के अब्बड़ महत्ता औषधि गुन ले भरे हवय ! फर, फूल अउ शुद्ध हवा, रुख-राई ले मिलत हवय..!! रुख बिना जिनगी अबिरथा, रुख म जिनगी समाय हवय ! झन कांटो रुख-राई ल संगी, जिनगी के इही आधार हरय !! काँट काँट के जम्मों रुख राई, चातर झन कर भुइयाँ ला ! आज लगाबे ता काली पाबे, सुग्घर रुख-राई के छइयाँ ला !! रुख हावय त जिनगी हावय, सिरतोन कहे हे सियानमन ! रुख लगाबोन, रुख बचाबोन ए कसम खावव मनखेमन !! चारों कोती रुख-राई लगाके, धरती ल हरियर बनावव जी ! रुख लगाके रुख ल बचावव, ए धरती के मान बढा़वव जी!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला...
वैराग्य का मौन
कविता

वैराग्य का मौन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** थक चुकी है वो मग़र, ना रिश्तों के बोझ से ना जिम्मेदारियों से वो थकी है खुद के भीतर के शोर से ! उसे कोई शिकायत नहीं, कोई प्रश्न नहीं, सूख चुकी है उसके भीतर की नदी जो निर्मल बहा करती थी अब वो स्थिर शांत हो गई है ! कुछ पल चाहती है जिंदगी से सिर्फ अपने जीवों लिए उन पलों में वो जी भर के उनको प्यार करना चाहती है, उनके चेहरे की मुस्कान बनना चाहती है ! कभी पत्नी, कभी माँ, कभी बेटी बनकर जो निभाये थे कर्तव्य उसने, मित्र बनकर जोड़ा था टूटे दिलों को उसने धूमिल पड़ चुके है उनके रंग और रिश्तों की चमक, नहीं है शेष कोई उल्लास कोई अभिलाषा उसकी !! ढूँढ रही है कुछ ऐसे पल जिसमें" वो "केवल वो "रहे, ना "किसी की" ना "कोई" बन जीना चाहती है ! अब ना आँसू बचे थे, ना मुस्कराने की कोई चाहत, बस है...
मौन और संवाद
कविता

मौन और संवाद

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आज मै फ़िर बैठी हूँ उसी जगह वही समय और वही चांद है मेरे सामने बस तुम कहीं खो गए हो. बादल तो हमारे यहां हल्के हैं इस बरसात में भी शायद तुम्हारे यहां के बादल तुम्हें छिपाकर रोक लिया चांद को दिखाने से कुछ यूं ही हम तुमको सोच रहे हैं. क्या वो मछली स्पर्श कर पाई होगी कमल को या वो वैसे ही बैचेन उद्धत है आज भी चूमने को उस कमल को? नहीं शायद वो घबरा गई होगी मेघों को देख के या कहीं छिप गई होगी उसी कमल के पत्तों में लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो दिखें न तो वो होगा ही नहीं बस ऐसे ही घुमड़ रहे हैं कई सवाल जो सिर्फ़ और सिर्फ़ दिमाग़ की उपज हैं. इसलिए कि कुछ प्रश्न उसके अनुसार अनुत्तरित रहते हैं हां सही भी है हर सवालों के जवाब मिल जाए जरूरी तो नहीं. आज फ़िर बैठी हूँ तो उ...
एक  चिंतन
कविता

एक चिंतन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कर्म बड़ा या जाति प्रश्न‌ यह तो चोखा है। कर्म बड़ा होता मानो, नहीं कोई धोखा है।। कर्म से जीवन बनता, यह ही सब मानो। कर्म की गति-मति को, सब ही पहचानो।। ऊँचनीच में रखा नहीं कुछ, सब बेमानी। समता को धारण करने की क्यों न है ठानी।। आज नया चिंतन, नव जीवन लाना होगा। जुड़ गया जो गुलशन फिर महकाना होगा।। ईश्वर की सब रचनाएँ सब हैं अति सुंदर। आज बना पावनता से घर को मंदिर।। कर्म सदा शोभित होता है विजय उसी की। जिसने नैतिकता नहीं मानी,है क्षय उसकी।। सोच सही होगा तब ही जीवन महकेगा। होगा सब का भला और जीवन चहकेगा।। सभी आदमी सदा बराबर, यह ही साँचा। यह कहते वे, जिन ने गीता ग्रंथ को बाँचा।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), ए...
सच से ऊबते लोग
कविता

सच से ऊबते लोग

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** पानी से पानी का चरित्र पूछते हैं लोग, आईना देख शर्म से पानी में डूबते हैं लोग। लाखों की भीड़ में खुद को ही ढूंढते हैं लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। खुदगर्ज हैं कि अरमानों में ही टूटते हैं लोग, मतलबपरस्ती में लोगों की खुशी लूटते है लोग। गुनाहों को अपने आसानी से भूलते है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। मुश्किलों में अपनी जी जान फूंकते है लोग, कठिनाइयों में लोगों की खुशी से झूमते हैं लोग। शर्मसार हो खुद जब फिर आंखें मूंदतें है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। कामयाबियों को अपनी सरेआम चूमते हैं लोग, सफलताओं को दूसरे की शक से घूरते हैं लोग। फल कर्मों का मिल जाए तो रूठते है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : ...
शब्द
कविता

शब्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो शब्द ही है जो जोड़ता है दिलों को और एक झटके में किसी को भी करा देता निःशब्द, नन्हे बच्चों को शब्दों का ज्ञान कराते हैं, जब वह बोलने लगता है जबरन चुप कराते हैं, शब्द हृदयस्पर्शी भी हो सकता है और शूलों से भरा भी हो सकता है, यदि संभाल कर न उपयोग किया जाए सारे किये कराये को धो सकता है, किसी के व्यक्तिगत व्यवहार को उनके प्रयुक्त किये गए शब्दों से आंकते हैं, इसी से उनके हृदय की गहराई नापते हैं, यही है जो देश दुनिया से रूबरू कराता है, वैश्विक परिदृश्य बेझिझक बताता है, शब्दों के आदान प्रदान से नये नये भौगोलिक रिश्तों का प्रवाह आया है, रिश्तों का बराबर निबाह आया है, कोई चालाक मीठे बोल प्रधान बनते हैं, नासमझी में उलझे भीड़ के हुक्मरान बनते हैं, सबको पता है इस जहां में आना और जाना है, ...
मेरे सतगुरु
कविता

मेरे सतगुरु

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कौन जाने मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन जाने। कौन तारे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन तारे। कौन संभाले मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन संभाले। कौन समझे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन समझे। कौन सँवारे मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन सँवारे। कौन ज्ञान चक्षु दें मेरे सतगुरु तुम बिन मुझ कौन दें। कौन भव पार करें मेरे सतगुरू तुम बिन मुझ कौन पार करें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...