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कविता

दिल की गहराईयों में …
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दिल की गहराईयों में …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** तुम्हारी याद मुझे हर वक्त आती है। दिल की गहराईयों में समा जाती है। ******** इतना लम्बा साथ था कैसे भूलूंगा तुम्हे। जब तक जिंदा रहूंगा याद करता रहूंगा तुम्हें। ******* जब कभी तुम्हारी कही कोई बात याद आती है। फिर तुम्हारी मोहिनी सूरत मेरे सामने आती है। ******* तुम रहती हो मेरे दिल में कोई तुम्हें नही निकाल पायेगा। किराया दो या मत दो पर यह तुम्हारा घर कहलायेगा। ******** मैं किसी को याद नही करता दिल की गहराइयों से। केवल एक तुम हो जो रहती हो दिल की गहराइयों में। ******** जब तक जिंदा हूं तुम्हे याद करता रहूंगा। हर जन्म में तुमसे मिलने की फरियाद करता रहूंगा। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर...
प्रश्न घनैरे उठते भीतर
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प्रश्न घनैरे उठते भीतर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रश्न घनैरे उठते भीतर और समाधान भी पाया है. पर एक प्रश्न सदा से बाकी समझ नहीं जो आया है। यक्ष-प्रश्न से होते तो मैं भी उत्तर कब के दे देता. निजी-प्रश्न मुझी से मेरा पर अपनों में कह लेता। बडा़ सहज सा प्रश्न स्वयं से अक्सर करता रहता हूँ. मै-मैं-मैं-मैं करूँ रात-दिन, हूँ भीतर कहाँ रहता हूँ? आँत-औज़ड़ी हृदय-फेफड़ें हड्डी़-पसली भरी पड़ी है. आमाशय भी भरा फेफड़ें साँस के उपर साँस खडी़ है। मकड़-जाल से जटिल-जाल सिर में सारे नसें भरी हैं. और नसों में रक्त दौड़ता ऐसे-जैसे नस नगरी है। नयनों में भी दृश्य समाये और कानों में घुस आया शोर. आधा-जीवन रात भर गई आधा ही जीवन होती भोर। बाहर तो मैं देखूँ सबको भीतर भी सब जान गया हूँ. कोई जगह नहीं खाली भीतर मैं हूँ तो फिर रहे कहाँ हूँ। इतना त...
अब आदमी जलने लगा
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अब आदमी जलने लगा

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** देखके दूसरों की सम्रद्धि, अब आदमी जलने लगा, करता जो जिनकी मदद, वो ही उनको छलने लगा। कैसे आयेगा ज़िंदगी में, कोई किसी के काम अब, स्वार्थ सिद्ध होते हो जाते, लोग नमक हराम तब। लोभ, मोह-ओ-कुंठा की, तन-मन में भरी गंदगी, धरके बगुला जैसा भेष, करे प्रभु की नित बन्दगी। बिखरा है दिग-दिगन्त, छल-छदम भरा व्यवहार, बनकर हम सब रौशनी, मुखरित करें यह संसार। भलाई से नही तोड़ना, भूलकर भी नाता कभी, एक दिन मिट ही जाएगी, बुराई से पोषित छवि। अपनी आंखों के सामने, देखना दगाबाज़ का नाश, होगी विजय सत्य की ही, अंर्तमन ऱखना तू विश्वास। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
चलो खुलकर मुस्कुराते हैं
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चलो खुलकर मुस्कुराते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुस्कुरा लो यार तलब न दबाओ, हर एक क्षण खुश नजर आओ, इसके फायदे एक नहीं अनेक है, महत्व इसका बहुत ही विशेष है, सोचो हमने कब कब मुस्कुराया है, हमें हर पल उन्होंने सिर्फ जलाया है, पर हम निराश नहीं हैं, उदास भी नहीं हैं, क्योंकि उपलब्धि की वो कील मेरे बाप ने ठोंके है, विषमताओं का प्रवाह सिर्फ उसने रोके है, वरना मुस्कुराने के पहले गिड़गिड़ाना होता था, हर देहरी पर सर झुकाना होता था, बाबा साहेब ने हर मिथक तोड़ा, अपने पैरों पर खड़ा कर हमें छोड़ा, हम अब शिक्षा की अलख जगा रहे हैं, इत्मीनान से यदि मुस्कुरा रहे हैं, तो इसका कारण सिर्फ बाबा भीमराव है, स्वतंत्र अस्तित्व की ओर जिनका झुकाव है, पुरखों का अहसास सोच भी सिहर जाते हैं, हर पग की कठिनाइयां जो बताते हैं, तो चलो खुलकर मुस्कुराते हैं, हमा...
अस्तित्व की स्मृतियाँ
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अस्तित्व की स्मृतियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्तित्व की स्मृतियाँ कभी व्यथित मन को सूकून दे ने वाली थपकियाँ भी बन जाती हैं कभी किसी कोने मे खुद की पहचान बनाने के लिए संघर्षरत रहतीं हैं!! वक़्त के बेरहम घाव पर मरहम बन जाती हैं समय मिले तो कभी सुनना मेरे अस्तित्व की स्मृतियाँ ! अगर कभी गुम हो जाए अचानक ये स्मृतियाँ तो ढूंढ लेना फ़ूलों की मीठी खुशबू में ओस की चमकती किरनों में नीले अम्बर में सूकून से उड़ते परिंदों में किसी जीव की करुणामयी पुकार में, किसी जीव की मुस्कराती आँखों में!! फिर भी ना ढूँढ पाओ तो ढूँढ़ना चिता की अग्नि में समाई हुई, यहीं मिलूंगी, यही से समझना है जीवन जीने की परिभाषा, थाम सको तो थाम लेना मेरी थोड़ी सी स्मृतियाँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म :...
क्या रावण मर गया बता दो?
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क्या रावण मर गया बता दो?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मिलकर उसे जलाया सबने, ठोक रहे निज छाती। क्या रावण मर गया बता दो, लाज नहीं क्यों आती? पुतला एक विशाल बनाकर, दस सिर उसे लगाए। राम बने बालक ने पल में, लंकाधीश जलाए। रावण जला, गिरा धरती पर, खड़ा हुआ पल भर में। मुझे जलाने से क्या होगा, रावण हैं घर-घर में? जिसने मुझे जलाया उस पर, प्रकरण हैं थाने में। छेड़ चुका कई बार बच्चियाँ, सकुचाता आने में। राम बने बालक से पूछा, क्यों कर मुझे जलाया? देखे नहीं आचरण खुद के, मुझे जलाने आया। हो गंभीर बताया उसने, मिलकर तुझे जलाते। दोष ढाँक लेते सब अपने, पापी तुझे बताते। दोषारोपण करें और पर, दोष न देखें अपने। मुझे जला, अच्छे बनने के, खूब देखते सपने। गुस्से में रावण झल्लाया, मैं सीता हर लाया। मेरी पुष्प वाटिका में पर, फिर भी कष्ट न पाया। पावनत...
वियोग की पीड़ा में श्रृंगार
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वियोग की पीड़ा में श्रृंगार

शिवम यादव ''आशा'' ग्राम अन्तापुर (कानपुर) ******************** श्रृंगार का अंदाज था। वियोग का भाव। बिछड़ने का डर था, संयोग का अभाव। मिलन का ख्वाब था, बातों का लोभ था। दृश्य ऐसा अपनाया, मिट गई सुंदर काया। संयोग पर हस्ते, वियोग पर रोते। अस्थाई प्रेम पर वचन सुनाते, वियोग होने पर रोते ही जाते। वियोग और संयोग-संयोग से होता है, वियोग खुद संयोग से रोता है। रोद्र भरे मन से निर्वेद की ओर चले, श्रृंगार ऐसा करें अद्भुत सबको लगे। .परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह : ...
बार-बार जल जाने को
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बार-बार जल जाने को

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** बार-बार जल जाने को बार-बार मर जाने को बार-बार मिट जाने को प्रतिवर्ष आ जाता है रावण अन्याय और अत्याचार असत पूर्ण दुर्व्यवहार का होकर प्रतीक और कटु और कटुतर बनकर लेकिन, रावण ही नहीं आता है बारम्बार! आते राम भी हैं बारम्बार कलेवर बदल बदल कर। अन्याय के ध्वंस हित अत्याचार के विध्वंस हित रुक नहीं पाते हैं राम वह भी आते हैं प्रतिवर्ष रूप, वेश भूषा बदल-बदल कर हम पहचान नहीं पाते हैं पर, वह आते अवश्य हैं। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति...
बंद करो अब जयकार
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बंद करो अब जयकार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का, पर्व है दशहरा, छूपा निज ह्रदय में रावण कहते गर्व है दशहरा। जन-जन का अंर्तमन लगता, दशानन जैसा ही, क्षण-क्षण पर छल-कपट करते रावण वैसा ही। जला रहे सिर्फ़ पुतले असली रावण तो जिंदा है, देख मनुज का दोगलापन लगे रावण शर्मिंदा है। सत्य खड़ा पहरेदारी में, कैसे संभव होगा न्याय, पाखंडी पग-पग प्रतिष्ठित, कैद हैं लाखों बेगुनाह। कथनी-करनी का अंतर, स्पष्ठ दिखे कण-कण में, बगुले-सा लिया रूप धर, विष भरा है तन-तन में। निज ह्रदय बैठे रावण की बंद करो अब जयकार, सत्य न्याय ईमान धर्म से, करो सुरभित ये संसार। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
चाहे जितनी पीड़ा दे दो
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चाहे जितनी पीड़ा दे दो

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो। नैनों नीर भरा रहता मैं, तुम इतना कैसे हँसती हो। कल तक उर में समा रही थी, आज नदी सी निकल पड़ी हो। मैं पर्वत सा रुका वहीं हूँ, तुम सागर से पहुँच मिली हो। बस एकम अब ध्येय तुम्हारा, एक ही इच्छा बस बाकी है.. 'कुछ अतीत की बात रहे ना, वर्तमान ही बस साथी है।' जुड़े न तुम सँग नाम हमारा... षडयन्त्रों को यों रचती हो। चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, मुझमें बसती हो।। मैं गीतों के फूल बिछाऊँ, काँटो के तुम तानें रखती। मैं वाणी मधुरस बरसाता, चुभी-बात से तुम हो डसती। कोयल की जब ‌ तान सुनाऊँ, तुम दादुर के ढोल बजाओ! मेरे सम्मुख हर विरोध में कुटिल भाव से फिर मुस्काओ! लाज नहीं अब रही हमारी, क्या कहती हो, क्या करती हो? चाहे जितनी पीड़ा दे दो, हे! निर्मम, ...
सफ़र
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सफ़र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती चलती हैं पतवार के सहारे सागर मचलता हैं लहरों के सहारे दर्दे दिल रोता हे अतीत के सहारे कहां खोजे हम किनारा समन्दर में पत्थरों की फिसलन के मारैं। दरख्तो के सायों का हुजुम चलता हैं साथ-साथ पगडंडी के सफ़र मे कांटे जो हैं साथ आसमां से झांकता आफ़ताब हंस रहा था हम पर कह रहा था मानों मुड़ हो अब निकले हों सफ़र पर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्री...
हुआ क्या … ?
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हुआ क्या … ?

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या ? घटना घटी देखकर पूछते हो ! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? निजी स्वार्थ में इस तरह रंँग गए हो, किसी दूसरे रंग में जी न पाए। सदा दूसरों को दिया कष्ट तुमने, सुखी जिन्दगी को समझ भी न पाए।। कपट लोभ लालच छुपाया सभी से, बताते सभी को बताती बुआ क्या? बहाने बना कर उलट पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? नशे के विकट जोश में होश खोकर, स्वयं को स्वयंभू गुणागार माना। परम वैभवी दिव्यता छोड़ बैठे, दुराचार को ही सदाचार जाना।। अकड़ में तने ही रहे हिमशिखर से, तुम्हारे अहम ने कभी नभ छुआ क्या? तुम्हें सब पता है मगर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? विषय की विकारी मनोरम्यता में, रमे तो किसी की ...
आवाज
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आवाज

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सशक्त बनो शक्तिशाली बनो, लक्ष्मीबाई तलवार की धार बनो एक हाथ में पुस्तक हो, दूसरे मे तलवार सा हथियार भी हो। यह वक्त न बहस, मोमबत्ती का, यह समय हे हाथो मे हथियारो का, अब क्लास लगा दो बालिकाओ की, अब दे दो छूट महिलाओं को, बालिकाओ को उन किशोरीयो की, अपनी सुरक्षा और मान सम्मान की। तलवार सीखे, वह बंदूक सीखे, वह अत्याचारीयो पर वह भारी बने, तन और मन से शक्तिशाली बने। फांसी के फंदो पर झूला दो उन्हें, जो अत्याचार करे जो जुल्म करे। कोई भी धर्म मजहब का हो, कोई भी रिश्ते नाते हो। ना छोडो अत्याचारो को इन राक्षस दानव दुष्टो को, नही दया दिखाओ इन दानवो पर भूखे ही मरने दो इन राक्षसो को, यह हर महिलाओ की आवाज भी है, यह हर बालिकाओ की ललकार भी है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन...
बहुमूल्य योगदान
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बहुमूल्य योगदान

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बड़े गुस्से से वो निकले थे पूरे लाव लश्कर के साथ उस मतदाता के हाथ पांव तोड़ने, तभी चुनावों की तारीखों का एलान हो गया, त्वरित नेताजी परेशान हो गया, अब वो उसी लाव लश्कर के साथ घूम रहे हैं हाथ पांव जोड़ते, चंद घंटे पहले की अकड़ छोड़ते, ये किस्सा गिरती हुई नैतिकता का पूरा हाल बता गया, और सब जान गए कि मौकापरस्त राजनीति का ये खूबसूरत दौर है नया, तो अब नेताजी घर-घर जा सही काम का भरोसा दिलाएंगे, गिर पैरों पर गिड़गिड़ाएंगे, पिला चार पेटी, खिला दो बोटी, फिर अपनी ईमानदार छवि के दम पर वहीं सीट फिर से जीत लाएंगे, तथा देश की उन्नति में अपना बहुमूल्य योगदान दे पाएंगे, हमें भरपूर भरोसा है कि यह नेता संविधान को खत्म होने से बचाएंगे, और वोटरों के घर वहीं पुराने गरीबी व भुखमरी के दिन ला पाएंगे। ...
डर यहां है
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डर यहां है

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** मुझे डर लगता है लिखने से, बोलने से, प्रदर्शनों में जाने से। क्यों लगता है? इसके जवाब कई हैं- ट्रॉलिंग, मार-पिटाई, देशद्रोही का समाजिक टैग, रिश्तेदारों के तानों का, विवाह न हो पाने का, दोस्तों से दूर हो जाने का। झूठे मुकदमे में पुलिस, सीबीआई, या ईडी द्वारा फंसाए जाने का, फिर उस मुकदमे को लड़ने के लिए कर्ज लेने का, या बिना धन के जेल में सड़ने का। अदालतों की तारीखों से, उनके निर्णय से, मीडिया की चीखों से, मृत्यु के खौफ से। मुझे डर लगता है हर उस व्यक्ति से, जो भले उस विचारधारा से दूर हो, लेकिन धार्मिक हो, और मेरे लिखने, बोलने से मेरी मॉब लिंचिंग कर देगा। इस डर के कारण यह लिखते हुए भी हाथ कांप रहे हैं, कि मुझे डर लगता है आज़ाद भारत में बोलने से, लिखने से- आजादी के पचहत्तर व...
औरत नदी होती है
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औरत नदी होती है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** औरत नदी होती है, जो बहती रहती है। वात्सल्य से पूरित, स्नेह में परिपूर्ण हो। पहाड़ों से ढलानों में, घाटियों से मैदानों में। असंख्य पत्थरों को, भावों से ठेलती हुई। पिता से पति तक, उतार चढ़ावों से गुजरती पहुंचती है ज्वार भाटे सी, सागर तक बहती हुई। बचपन की वर्जनाएं वह भूलती नहीं है। "शोभा नहीं देती तेरी यह मुंह फाड़ू हंसी", अगले घर जायेगी, तू लड़की है। बालपन से किशोरी होने तक, कितनी ही बार सुनती है। अदब से रहना सीख ले, तेरे संग बंधी है घर की इज्जत। जैसे यह घर उसका नहीं, पिता का घर, माता का घर, जहां उसका जन्म हुआ, वो उसका ठिकाना नहीं है। समझती है वो सत्य को, वो तो सृष्टि की सृजक है, उसे तो पराएं घर जाना है। पहाड़ों से जंगलों में बहकर, मिलना है सागर के खारेपन में। खपाकर जीवन को फिर से, वाष्प बनकर...
वक्त की दिवार
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वक्त की दिवार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त की दिवार ने कुछ ऐसा रोका मानो आते-आते तुफान रुक गया हो वक्त का साथी कोई नहीं होता। बीच राह मे छोड़ जाने के लिए। अपना आत्म बल साथ होता हैं। वक्त की आवाज दब जाती हैं जीवन की आपाधापी में वक्त बढ़ता जा रहा है अपनी लीक पर इन्सान का मुंह चिढ़ाते हुए उसे मूढ़ कहते हुए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक ...
प्रकृति के अंश
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प्रकृति के अंश

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक पत्थर से जैसे ही उसने ठोकर खाया, उस पाषाण को उसने उठाया, हृदय और माथे से लगाया, और बोला कि अच्छा हुआ कि मेरा पैर आपमें लगा यदि आप खुद आकर मेरे पैर में लगे होते तो आज मेरा पग टूट गया होता, कहीं बैठे-बैठे मैं उस पल को रोता, प्रकृति के नियमों से चलने वाला हूं, स्वार्थ के लिए उसे नहीं छलने वाला हूं, इस तरह से हुई होगी पत्थरों को पूजने की शुरुआत, प्रकृति को पूजने की आगाज, जो आज भी जारी है आदिवासियों में, धरती के मूलनिवासियों में, तब कुछ चालाकों के मन में आया होगा विचार, पाषाणों को दे दिया होगा आकर, और बोला होगा साक्षात साकार, जो है दुनिया को चलाने वाला निराकार, फिर डर-डर कर रहने वालों पर हुआ होगा पहला प्रहार, तब प्रारंभ हुआ होगा डर का व्यापार, इस तरह लोग मानने हो गए मशगूल,...
जाने आजाद कब होंगें
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जाने आजाद कब होंगें

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ना जाने आजाद कब होंगें जात-पात के झगड़ों से, धर्म-धर्म के दंगों से, जहर बुझे वाणी के तीरों से, बढ़ते अपराधों से, ना जाने आजाद कब होंगें, बढ़ती बेरोजगारी से, रूठ चुके अफसानों से, भुखमरी, कालाबाजारी से, टूट रहे अरमानों से, ना जाने आजाद कब होंगें बारूद की पहरेदारी से, नफरत की चिंगारी से, घोटालों- धांधली से, भाषाओं की चार दीवारी से, ना जाने आजाद कब होंगे दहशत के अंगारों से, धर्म के ठेकेदारों से, मजहब की दीवारों से, अंग्रेजी की गुलामी से, ना जाने आजाद कब होंगे, रंग नस्ल की बोली से, रूढ़िवादी जंजीरों से, जहरीली तकरीरों से, क्षेत्रवाद की दीवारों से, ना जाने आजाद कब होगें परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (म...
कर्मों का बहीखाता
कविता

कर्मों का बहीखाता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सब जानते हैं जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल पायेंगे गीता का यही ज्ञान, है जीवन का विज्ञान। कौरव पांडव का उदाहरण सामने है रावण विभीषण, सुग्रीव बाली के बारे में हम सब जानते हैं कंस का भी ध्यान है या भूल गए। सबका बहीखाता चित्रगुप्त जी ने सहेजा, किसी को राजा तो किसी को प्रजा तो किसी रंक बनाकर भेजा अमीर गरीब का खेल भी मानव का नहीं कर्मानुसार उसके बहीखातों का खेल है। यह और बात है कि हमें अपने पूर्व जन्म या जन्मों का ज्ञान नहीं होता, इसीलिए अपने कर्मों का भी हमें पता नहीं होता। और हम सब इस जन्म के साथ ही पूर्वजन्मों के कर्मों का फल पाते हैं। क्योंकि हमारे कर्मों का बही खाता निरंतर भरता रहता है, उसी के अनुसार कर्म फल का निर्धारण होता है और हमें अच्छा बुरा कर्म फल मिलता है। वर्...
भारत के सिपाही
कविता

भारत के सिपाही

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** तिरंगा आन-बान-शान है वतन के। इसके वास्ते, मर मिटूँगा कसम से।। सीमा में जान की आहुति देने मैं चला। मेरे रहते माँ तू फिक्र करती क्यों भला? वर्दी खून से लाल-लाल लथपथ है। मातृभूमि की रक्षा करूँगा शपथ है।। तेरे लिए गोलियाँ खा लूँगा बदन पे। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। न कभी हारा था, न ही अब हारूँगा। न कभी रूका था, न ही अब रूकूँगा।। मन में साहस भर के मैं लड़ता रहूँगा। लेकर हाथ में तिरंगा आगे बढ़ता रहूँगा।। मर जाऊँ तो, राष्ट्र ध्वज हो कफन के। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। नव जीवन पा फिर जिंदा हो जाऊँगा। जन्म लेकर मैं भारत भूमि में आऊँगा।। सिपाही बन प्राण अर्पित करने तत्पर। तुम्हारी सेवा करने के लिए आगे सत्वर।। वंदे मातरम बोलूँगा गीत देश सदन के। तिरंगा आन-बान-शान है वतन के।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगे...
आधुनिक घुसपैठिए
कविता

आधुनिक घुसपैठिए

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सदियों का संताप अब ठहर सा गया है। घरौंदो से निकल कर आधुनिकता की दहलीज़ पर बह सा गया है। तराशा हुआ आदमी महानगर की गुलामगिरी में ढह सा गया है। भौतिकता का घुसपैठिया नगर से गांव तक छा सा गया है। विश्वबंधुत्व मुआयने के शिखर में बंगड़ मेघ की भांति रह सा गया है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शिक्षक की वाणी अनमोल शब्द सिखाते बिना मोल गुरु शिष्य परंपरा के प्रतीक होते है जैसे होती दिया और बाती ज्ञानार्जन का प्रकाश फैलाते शिष्य तभी तो आगे चलकर बड़ी पदवी पाते कर्म निर्माणकर्ता बन कर शिक्षक ने शिष्यों के जीवन आबाद किये जीवन बन गया स्वर्ग सफलता के उपवन में उन्नति के फूल खिलाये शिक्षक बिना ज्ञान अधूरा जैसे बिना सूरज के गहराता अंधेरा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंत...
देश की शान है गाँधी
कविता

देश की शान है गाँधी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सत्य के राह पर भले कांटे हो सही चलना पड़ेगा हमें जो राह हो सही डर जाये ऐसी कोई आंधी नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है गाँधी की तपस्या को ना भूले हम सत्य की राह, चले कदम दर कदम सत्य जैसा कोई चमत्कार नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है सच की लाठी को हम सब जाने उसकी ताकत को भी तो पहचाने बराबरी में उस जैसा दूजा नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है अहिंसा सदा जिसका ढाल बना जो सबके लिए एक मिसाल बना जिससे अब कोई अनजान नहीं है देश की पहचान गाँधी ही सही है स्वच्छता से उन्हें सम्मान दीजिये राष्ट्रपिता को आज मान दीजिए सत्य अहिंसा ही पहचान सही है देश की पहचान गाँधी ही सही है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़...
प्यारा सजा है दरबार
कविता

प्यारा सजा है दरबार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गली-गली गूंजी मैया की, प्रेम भरी जय जयकार, आई नवरात्रों की घड़ियां, प्यारा सजा है दरबार। शेरावाली, मेहरावाली की, लीलाएं हैं अपरम्पार, जो निर्मल मन जपे माता, छटे विपदाएं बेसुमार। अप्रितम छवि मैय्या की, तन मन धन वारी जाऊं, सदा करूं माँ का चिंतन, सदा ही माँ को में ध्याऊँ। सौहार्द, समर्पण, भरा हुआ, होता है नवरात्रा पर्व, मुखरित करें मानवता हम, त्याग छदम छल गर्व। विविध भांति धर स्वरूप, दुष्टन का कियो संहार, मैय्या से ही जीवंत जमी, मैय्या से ही यह संसार। करे नमन सकल सृस्टि, जगजननी महारानी को, करना क्षमा हुई मुझसे, भूल सभी अनजानी को। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...