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कविता

सीख
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सीख

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** फूलों से सीखा मैंने है महकना। पेड़ों से सीखा मैंने है झुकना। नदीयो से सीखा बढ़ते है रहना, धरती से सीखा धैर्य है रखना, आकाश से सीखा मौन है रहना, पशु पक्षी से सीखा नियम में चलना। संतो से सीखा संयम में रहना, गुरु से सीखा आत्मा में रमना, कांटों से सीखा सम्भल कर चलना। शत्रु से सीखा कूटनीति का ज्ञान, दोस्त से सीखा का स्नेह और प्यार, मां से सीखा संस्कारों का ज्ञान, पिता से सीखा दुनिया की पहचान। प्रकृति का कण-कण हमें दे रहा है सीख, गुढ़ रहस्य उसमें छुपा, ज्ञान ध्यान और योग। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्र...
मन
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मन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपनी आँखों से काजल उतार कर मेरे माथे पर टीका लगाती। मेरे होंठों पर लगे दूध को अपने आँचल से पोछती होठों से प्यार की चुम्बन देती माथे पर शुभाशीष की तरह। फिर भी माँ के मन मे नजर ना लग जाए कहीं भय समय रहता। भले ही माँ भूखी हो मुझे आई तृप्ति की डकार से माँ संतुष्ट हो जाती। आईने में संवारने लगी हूँ खुद को क्योकि मे बड़ी जो हो गई। पिया के घर माँ की दी हुई पेटी जब खोलकर देखती हूँ उसमे रखे मेरे बचपन के अरमान जिसे संजो के रखे थे मेने गुड्डे -गुडिया कनेर के पांचे और खाना बनाने के खिलौने। इन्हें पाकर मन संतुष्ट लेकिन आँखे नम आज माँ नहीं है इस दुनिया मे। अपनी बेटी के लिए आज वही दोहरा रही हूँ जो सीखा-संभाला था अपनी माँ से मैने कभी। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्...
देह  से परे
कविता

देह से परे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** काया से परे, एक स्त्री के भूगोल को जान पाए हो कभी ? उसके भीतर उलझी हुए सडकों को कभी समझ पाये हो क्या ? एक खौलता हुआ इतिहास है भीतर उसके, क्या पढ़ पाये हो कभी!! नहीं समझ पाये आज तक उसको रसोई और घर-परिवार से परे भी एक दुनिया है उसकी, पुरुष से परे क्या उसकी जमीन समझा सकते हो उसको ? सदियों से तितर-बितर हुई ढूंढ रही अपने घर का पता बता सकते हो उसे ? कभी विस्थापित कभी निर्वाचित हुई उसके सम्मान को समझा सकते हो समाज को? उसकी दहलीज पर पड़े मौन शब्दों को जाना है कभी ? इस कुरुक्षेत्र में कई बार छली गई उसके मर्म की अनुभूति तुमको हुई है कभी ? उसकी पीठ पर पड़े अनगिनत गांठों को टटोला है तुमने, नहीं ना .....? वो कहना चाहती है" "इस देह से परे भी स्त्री की एक दुनिया है!! पर...
कुछ सिखा है
कविता

कुछ सिखा है

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** टूटे हुए लफ्ज़ों को बटोर कर मैंना लिखना सिखा हैं। बहतें अश्कों के दरिया में डूबकर मैंना तैरना सिखा है। जिस मिट्टी में मेरे अपनों ने ही मुझे मिट्टी किया, उस मिट्टी से मैंना खुद को ढालना सिखा हैं। जिस ऊंचाई के अहं में लोगों ने मुझे नीचे गिराए, उस ऊंचाई के भी आसमाँ को मैंना छूना सिखा है। मुकाम-ऐ-दौर में अपनों से ही मुझे जो ठोकरें मिली, उन ठोकरों से मैंना आगे बढ़ना सीखा हैं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
मैं बेचारा तन्हा अकेला
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मैं बेचारा तन्हा अकेला

बाल कृष्ण मिश्रा रोहिणी (दिल्ली) ******************** मैं बेचारा तन्हा अकेला भीगी राहों पर ढूँढ रहा, खुद को, कहीं। सड़कें भीगीं, शहर धुंधला, आसमान में घना कोहर। भीगे आँखों से छलके यादों की धार, हर बूँद में गूँजे तेरा प्यार। शहर की भीड़ में, मैं खुद से पूछता, अपनी परछाई से ही अब मैं रूठता। पत्थरों में चमक, पर दिल में अँधेरा, टूटे सपनों सा लगता जीवन। खोया है कुछ, या पाया सवेरा? मैं मुस्कुराता नहीं मगर, हार भी मानता नहीं। सपनों की राख से, गढ़ता कोई सितारा। परिचय :- बाल कृष्ण मिश्रा निवासी : रोहिणी, (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
रिश्तों में दरार
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रिश्तों में दरार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सबको अपनी पड़ी है कोई नहीं कर रहा विचार, पता नहीं क्यों आ जाते हैं रिश्तों में दरार, अपनों का रूखापन, अपनों की दगाबाजी, किसी को मजबूत कर देता है तो कई बन जाते हैं अपराधी, रिश्तों की दरारों से बढ़ सकता है बैर, एक दूजे को भूल, नहीं सोचते कभी खैर, करने लग जाते हैं एक दूसरे की बुराई, इसकी न उसकी नहीं किसी की भलाई, तब हो जाये शायद बच्चों का बंटवारा, दुलार भी नहीं सकते चाहे हों सबसे प्यारा, आना जाना खतम और बढ़ती है दूरी, पहल कोई भी कर सकता है नहीं कोई मजबूरी, मगर इस हालात में आड़े आता है अहम, बुराई मेरी ही कर रहे सब हो जाता है भरम, लग जाते हैं पहुंचाने को नुकसान और अपनाते हैं साम-दाम- दंड-भेद की नीति, भूल जाते खून से बंधे संबंध व प्रीति, हां ये मेरा भी दर्द है, घुस चुका मुझमें भी ये मर्ज ह...
बातें अनछुई
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बातें अनछुई

पुष्पा खंगारोत जयपुर (राजस्थान) ******************** कुछ बातें अनछुई सी रह जाती है बात जब जज्बातों की आती है, क्या ही कहिये बातों का होना यहाँ फसानो सी जब जिंदगी हुई जाती है, रहा होगा वक्त कभी किसी जमाने में लोगो के पास एक दूजे के लिए आज तो मशीनों से बत्तर जिंदगी होती है, कभी ख्वाब आंखों में सजा करते थे आज तो नींद भी बहुत दूर रहती है, अजीब कशमकश में ढल जाती है जिंदगी न पत्थर सी है न पत्थर से कम लगती जाती है जिंदगी, कुछ बातें अनछुई रह जाती है ना भुलाई जाती है ना जहन से जाती है ll परिचय : पुष्पा खंगारोत निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
बचपन
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बचपन

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** खोया है बचपन, जवानी की हसीं उम्मीद में। जैसे बेच डाला हो सबकुछ, मामूली खरीद में।। बचपन खोया, खोया भाई-बहनों का प्यार। मोह्हले की रंगत खोयी, खोये सभी त्यौहार।। मौज छुटी, मासूमियत छुटी, छुटा दोस्तों का हाथ। दिखावे के रिश्ते बनाये, लगाये बैठे है जो घात।। बचपन के खेल खोये, खोये गिल्ली-डंडा और माल दड़ी। बचपन वाला समय, नही बताती अब हाथ घड़ी।। सूर्योदय सा बचपन बीता, बीत रही दोपहर सी जवानी। कब सूर्यास्त हो जाये क्या पता, कब ख़त्म हो जाये कहानी।। सूर्यास्त होने से पहले, एक बार फिर फिर जिन्दगी को जिया जाये। चलो गाँव की तरफ सौरभ, मोहल्ले में फिर से बचपन वाली मस्तियाँ की जाये।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
स्वयं से स्वयं की पहचान
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स्वयं से स्वयं की पहचान

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हो तिमिर घना, अधीरता नही स्वयं पर विश्वास हो, क्योंकि अमावस की रात मे भी निर्वाण घटित होता है कीचड़ कितना भी हो, कमल भी वहीं खिलता है दिया मिट्टी का ही हो रोशनी भरपूर देता है वो धरती का हिस्सा होता है! ईश्वर की कोई भाषा नहीं होती उस तक पहुचने का एक ही सेतु होता है , मौन का, मौन रह साधना का मौन रह कर्म करने का ! बुद्ध, महावीर या कोई संत नहीं बनना है स्वयं को अंगीकार कर स्वयं से स्वयं की पहचान कराना है ! इस राह में कुछ भी प्राप्त नहीं होता जो मिलेगा वही "स्वयं" को सार्थक करेगा, बहुत कुछ खो जाएगा, चिंता, महत्वाकांक्षा, भय, लालच, इर्ष्या, द्वेष, बेचैनी, साथ-साथ, अमूर्त दुनिया का फैलाव भी जो इंसान स्वयं बनाता है जिसमें सारा जीवन व्यतीत होता है! जिस दिन स्वयं को जानकर ...
मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम
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मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम

बाल कृष्ण मिश्रा रोहिणी (दिल्ली) ******************** मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम उगता सूरज तिलक लगाता उज्जवल चंद्र किरण की वर्षा, नतमस्तक हूँ तेरे चरणों में तेरे चरणों में चारों धाम। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। तेरी माटी शीतल चंदन, जिसमें खेले खुद रघुनन्दन। जिसमें कान्हा ने जन्म लिया, कभी खाई, कभी लेप किया। सीता की मर्यादा यहाँ, यहाँ मीरा का प्रेम। मन के दर्पण का तू दर्शन तेरे आँचल में संस्कृति का मान। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। कल-कल करती नदियां अपनी संगीत सुनाए। चूं-चूं करती चिड़िया अपनी गीत सुनाए। मातृभूमि की पावन धरा, हर हृदय में प्रेम संजोए काशी विश्वनाथ की आरती, हर मन में दीप जलाए। आध्यात्म की गहराई यहाँ और विज्ञान की उड़ान। मातृभूमि (माँ) तुझे प्रणाम।। दिव्य अलौकिक अजर-अमर कंकर भी बन जाता यहाँ शंकर। बलिदानों की गाथा तू , तू वीरो...
दर्द बहुत हैं जिंदगी की राह में
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दर्द बहुत हैं जिंदगी की राह में

सुशी सक्सेना इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** साहिब, दर्द बहुत हैं, जिंदगी की राह में। हंस के सह लूं मगर, जीने की चाह में। उम्मीदों पर क़ायम है, अरमानों की नांव, खौफ नहीं तुफानों का, अब मेरी निगाह में। जिंदगी का सच तो बहुत खूबसूरत है, मगर कांटे समेट लिए हमने, फूलों की परवाह में। परिचय :- सुशी सक्सेना निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) इंदौर (मध्यप्रदेश) निवासी सुशी सक्सेना वर्तमान में, वेबसाइट द इंडियन आयरस और पोगोसो ऐप के लिए कंटेंट राइटर और ब्लॉग राइटर के रूप में काम करती हैं। आपकी कविताएं और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। आपने कई संकलनों में भी योगदान दिया है एवं कई प्रशंसा पत्र और पुरस्कार प्राप्त किए हैं। विशेष रूप से, आपको अनुराग्यम द्वारा गोल्ड मेडल एवं वंदे मातरम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आपकी कई पुस्तकें प्रक...
प्रकृति
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प्रकृति

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** प्रकृति में बनकर वर्षा, हरी भरी लाली चमत्कारी प्रकृति में, बरसाती हरियाली अमृत बनकर प्रकृति को कर तृप्त सूखे से प्रकृति की प्यास, बुझाती बचाती ।।१।। प्रकृति स्वयं प्रक्रिया में करतीऋतु में वर्षा प्रकृति में कीमती उपहार लगती,अमृत वर्षा मौसम में बिन कहे आसमान से जमीन पर आंनद में प्रकृति को खूब, भिगोती है वर्षा ।।२।। प्रकृति की एक मूल आधार, मनमोहक वर्षा घनघोर घटा में उमड़ती है आसमान से वर्षा टपकती जल की असनान से बूंदे बनती वर्षा प्रकृति करती इंतजार अब आओ बरसो वर्षा ।।३।। प्रचंड, तपती, चिलचिलाती, भीषण गर्मी में असहनीय प्रकृति में मानव पशुपक्षी जीवजंतु खेत खलिहान होती जमीन वीरान सुनसान में प्रकृति से जोरशोर प्रार्थनाएं की जाती वर्षा की, ।।४।। झुलसाये, मुर्झाये प्रकृति के पेड़ पौधे की पुकार जीव जंतुओं प्राण...
अलबेला मौसम आया
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अलबेला मौसम आया

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मौसम को मैने इस समय बदलते पाया । वास्तव में अब अलबेला मौसम है आया। ******* न पंखे की जरूरत है न हीटर की जरूरत है। देखिए मौसम कितना खूब सूरत है। ******** ऐसे अलबेले मौसम का अलग ही मजा है। मौसम खराब हो तो लगता सजा है। ******** मौसम बदल रहा है तुम मत बदल जाना। सात जन्म तक मेरा ही साथ निभाना। ******** ये मौसम प्यार का है आओ एक दूसरे में समा जायें । और दोनों मिलकर एक हो जाय। ******* चारों तरफ शांति है न कही शोर है। खुशहाली फैली चारों ओर है। ******** वे बदल गये मौसम की तरह हम इंतजार करते रहे। वे हो गये किसी और के हम सपने देखते रहे। ******** सबसे अच्छा है ये मौसम सबसे प्यारा है ये मौसम। जो करना है कर लो दोबारा नहीं आयेगा ये मौसम। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : च...
सर्वदर्शी
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सर्वदर्शी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** किताबों के बाद इंसानों को पढ़ने का शौक पैदा हुआ, इतना पढ़ा कि वो भी पढ़ लिया जो कभी नहीं पढ़ना चाहिए था उनके अंतर्मन का। तुमको देखने के बाद इंसानों को देखने का शौक पैदा हुआ, इतना देखा कि वो भी देख लिया जो वो छुपाना चाहते थे सदा दुनिया से। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
यूँ कागज पर लिखने से क्या फ़ायदा
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यूँ कागज पर लिखने से क्या फ़ायदा

इंद्रजीत सिहाग "नोहरी" गोरखाना, नोहर (राजस्थान) ******************** यूँ कागज पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं, तुमने पत्थर सा दिल कह तो दिया, पत्थर पर लिखोगे तो मिटेगा नहीं। मैं तो दसतपा था फिर क्यों बुलाया, तन पर मधुमास लपेटे हुए, शरद की शीत में कमल मुरझाया, प्यास तन में लिए हुए। तुमने मुँह छिपाया तो ऐसा लगा, अब सूरज उगेगा नहीं.... यूँ कागज पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं। मैं बसंत की तीज मना लुँगा, तुम्हें कौन ऋतु बसंती बताएगा। तुम अपनी धरोहर तो दिखा, तुम्हारी धरोहर दिल में बसा लुँगा, यूँ नयनों में नयन मत डालना, फिर ये दिल किसी की मानेगा नहीं। यूं कागज़ पर लिखने से क्या फायदा, बरसात में भीग जाएगा बचेगा नहीं, तुमने पत्थर सा दिल कह तो दिया, पत्थर पर लिखोगे तो मिटेगा नहीं। आँख बंद की तो तुम लैला सी ...
बचपन की सुनहरी यादें
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बचपन की सुनहरी यादें

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** बाल दिवस आया है, फिर से शोर मचाने को, इस उम्र ने झकझोरा है, कुछ पीछे लौट जाने को। वो दिन जब हम छोटे थे, ख़्वाब बड़े सजाते थे, हर पल में था हँसी भरा, जो अब बस यादें लाते है। वो मिट्टी की गुल्लक, जिसमें सपने झनकते थे, वो कागज़ की नावें, जो बारिश में तैरते थे। वो टूटा हुआ बल्ला, जिससे क्रिकेट खेलते थे, और अम्मा की डाँट में भी, हम हँसकर मिलते थे। न फोन था, न इंटरनेट, न कोई अजब कहानी थी, बस दोस्तों की टोली, और मासूम सी जवानी थी। वो स्कूल का बस्ता, जो कंधों को झुकाता था, पर टीचर के आते ही, हर शोर रुक जाता था। आज सोचा तो याद आया, वो आमों का बाग़ कहाँ, वो गेंद जो छत पर थी, अब तक लौटी या नहीं भला। वो दादी की कहानियाँ, वो गर्मी की रातें, जहाँ परियाँ मुस्कुरातीं, और चाँद सुनाता बातें। सच कहूँ, वो दिन रेशम से भी म...
स्लोगन
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स्लोगन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** शिक्षा का ना कोई मोल। जीवन बन जाये अनमोल।। बाँटो सदा ज्ञान का प्रकाश। मिलेगा मन को संतोषाकाश।। बाँटो जितना बढ़ेगा उतनासंग मिले सम्मान भी उतना।। शिक्षक हमको शिक्षा देते। जीवन की खुशियां भी देते।। हर जन-मन एक वृक्ष लगाए। हरी-भरी धरती मुस्काए।। प्रदूषण को दूर भगाओ। जन-जीवन को स्वस्थ बनाओ।। ध्वनि प्रदूषण मत फैलाओ। बीमारी को दूर भगाओ।। जल जंगल जमीन बचाओ। जिम्मेदारी आप निभाओ।। कंक्रीट के जंगल बढ़ते। कैसा मानव जीवन गढ़ते।। ताल तलैया कुँए खो रहे। खुशहाली के दौर रो रहे।। बाग-बगीचे कहाँ बचे हैं। केवल अब इनके चर्चे हैं।। अब परिवार नहीं मिलते हैं। बच्चे बालकपना खोते हैं।। दादा-दादी, नाना-नानी। इनकी केवल बची कहानी।। पति पत्नी भी नये दौर में। रहना चाहें अलग ठौर में।। दौर हाइवे आ...
अपना कहो ना कहो गम नहीं
कविता

अपना कहो ना कहो गम नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अपना कहो ना कहो गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं तुम मेरे रहो ना रहो कोई गम नहीं हम तेरे हैं तेरे ही रहेंगे सदा के लिए तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं अकेले चलोगी राह मुश्किल होगी सफर साथ चलोगी आसनी होगी तुम साथ चलो ना चलो गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं साथ तेरा मिले मंजिल मिल जायेगी उजड़े बागो में भी फूल खिल जायेगी बाद मिले ना मिले हम कोई गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं संग तेरे ये जीवन अब सुहाना लगे मन तो सुखो का अब खजाना लगे हम रहे ना रहें, फिर उसका गम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं मन समंदर में मौज अब उठने लगे अरमान के दिये जलने-बुझने लगे इसको बुझाये, ये हवा में दम नहीं तुम अपना कहो ना कहो गम नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निव...
बंधे हुए शब्द
कविता

बंधे हुए शब्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छोड़ दो शब्दों को स्वतंत्र, बिना दुराव छिपाव बिना घुमाव, कहने दो अपनी बात सरल और सीधी शब्दों में, ताकि न पड़े लोगों को खोजना कुछ कठिन शब्दों के अर्थ, ताकि संभावना ही न रहे कि निकल पाये अर्थ के अनर्थ, साफ शब्दों को जानने में सब है समर्थ, कवि के दिली अहसास यदि न पहुंच पाए जन मन के दिलों तक, तब उनके लिए हो जाते हैं वे तमाम शब्द बेमतलब, हां होते हैं कवियों की तलब कि वह भी शामिल हो जाये उन तमाम लोगों की फेहरिस्त में, जिन्हें लोग कहते हैं शब्दों के जादूगर, बेजोड़, बेहिसाब, बेझिझक, निडर, असल मुद्दा होता है अपनी रूह को पाठकों की रूह से जोड़ना, उड़ेलना जरूरी है उन तमाम शब्दों को जो बंध कर नहीं रहते किसी भाषाई लोगों के बंधन में, जो स्वतंत्र है अपनत्व में, खंडन में, जिस तरह नदी की बहाव को बांधकर...
तुम भी ठाकुर बन सकते हो
कविता

तुम भी ठाकुर बन सकते हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बेशक तुम को क्षत्राणी की, कोख नहीं मिल पाई होगी। हर ठाकुर की शान देखकर, तन में जलन समाई होगी।। दुख भी दुखी हुआ करता है, तुम जिसको सुख समझ रहे हो। क्षत्रिय धर्म यही है जिसको, अपना सपना समझ रहे हो।। इनके दुख लेकर जीवन में, क्या तुम सुख से सो सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर हो सकते हो।।१।। कद-काठी रँग-रूप एक सा, एक धरा का अन्न पचाते। पानी-हवा धूप-छाया में, एक सरीखा स्वाँग रचाते।। बहस किया करते हो अक्सर, इनसे हम कैसे कमतर हैं? खून एक रँग का हम सब में, फिर कैसे इतने अन्तर हैं?? चलो आज इस पर क्या मेरी, कुछ बातें तुम सुन सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।२।। तो मैं इतना बतलाता हूँ, ऐसी सीखें नहीं मिलेंगी। किसी पेड़ की दो पत्ती भी, एक सरीखी नहीं मिलेंगी।।...
लालच सिंहासन का
कविता

लालच सिंहासन का

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कहे द्रोपती ! दुर्योधन से- पतियों ने दावँ पर लगाया है, उनकी तो मति मारी है गई, तू क्यों दुष्टता लाया है। भाई भाई के बंटवारे में क्या दोष मेरा है, हे पांडव! क्यो? दुशासन के निर्लज हाथों मेरा क्यों चीर फडवाया है, अपमानित मुझे कराया है। क्यों आँख बचाते हो अर्जुन क्यों गांडीव गिर रहा हाथो से। क्यों भीम की गदा देखो छूट रही, युधिष्टिर ने मौन को साध लिया? हे गंगा पुत्र भीष्म पिता क्यों कर्मों का तुम नाश करो। दुशासन खींचो साड़ी को इसे नग्न बिठाओ जंगा पर, आज शर्त मेरी पूरी करना कोई बीच ना आए नर नारी। द्रोपती ने वस्त्र को पकड़ा है पांवो से दबा यू जकड़ा है, दोनों होंठ से दबा-दबा उस शर्म को दांतों से पकडा है, मन ही मन कान्हा को पुकारती है, तुम आ जाओ हे बनवार यदि लाज बहन की है प्यारी, तुम आ जाओ हे...
आत्म हत्या निवारण
कविता

आत्म हत्या निवारण

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुजरात) ******************** पारस्परिक संबंध की भूमिका होती है सम्बंध सुधार उसे रोका भी जा सकता है मानसिक तनाव विकारों को दोष देते हैं मानसिक बीमारी दबाई से रोक सकते हैं नशीली दवा दोषी ठहराया जाता है नशीली दवाओं का सेवन रोक सकते हैं हर साल दश लाख लोग इससे मरते हैं कीट नाशक जहर बंदूक से लोग मरते हैं आत्म हत्या धर्म में पाप माना जाता है बीस मिलियन गैर घातक प्रयास होते हैं आत्म हत्या दण्डनीय माना जाता है मुस्लिम देशों में आज भी प्रथा अमली है गरुड़ पुराण में वर्णन किया गया है आत्म हत्या को अपराध माना गया है आत्म हत्या से आत्मा भटकती होती है न स्वर्ग या नर्क में जाने प्रवेश मिलता है आत्म हत्या से खुद को बचाया जाता है यदि मित्र को दुख की बात बताई जाती है परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प...
गर्व
कविता

गर्व

नील मणि मवाना रोड (मेरठ) ******************** धरा आज गर्व से इठलाई बेटियां विश्व कप ले आईं भारत ने फिर दिवाली मनाई हमनप्रीत ने की टीम अगुआई शिकस्त दे दक्षिण अफ्रीका को विश्व विजेता टीम कहलाई। शेफाली की धुआंधार बल्लेबाजी दीप्ति शर्मा की तूफानी गेंदबाजी देख कप्तान वाल्वर्ट टीम लड़खड़ाई देख कप्तान वाल्वर्ट टीम लड़खड़ाई दीप्ति ने पांच विकेट चटकाई २४६ रन पर हुए सब धराशाई सात बार विजयी ऑस्ट्रेलिया टीम बुलंद हौसले से हराई गूंज रही आज हर दिल शहनाई। परिचय :- नील मणि निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ) घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
भटकते युवक
कविता

भटकते युवक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** भटक रहे हैं युवक राह से, करें शत्रु का वरण। अंधा युग रखता है जैसे, दलदल में नवचरण।। भूले रीति संस्कार को सब, भूले प्रणाम नमन। ज्ञान ध्यान की बात नहीं, उजड़ा आस का चमन।। मात-पिता का आदर नहीं, कहाँ मिलेगी शरण। अंधा युग रखता है जैसे, दलदल में नवचरण।। भूले सभ्यता संस्कृति भी, करते बैठे नकल। राग आलापें सब विदेशी, नाम न लेते असल।। आचरण में खोट भी उनके, करते नारी हरण। अंधा युग रखता है जैसे, दलदल में नवचरण।। नशे में डूबे नवयुवक अब, मूल्यों का बस पतन। मोल लेते कई बीमारी, करें होम यह बदन।। जिंदा जलते होश नहीं कुछ, दुखद सब समीकरण। अंधा युग रखता है जैसे, दलदल में नवचरण।। तेज़ाबी माहौल हुआ सब, होती रहती जलन। नित दुर्घटना करें शहजादे, देखो बिगड़े चलन।। घिसटे पहियों में भविष्य फिर, हुआ मान...
लफ़्ज़ों के पत्थर
कविता

लफ़्ज़ों के पत्थर

सुशी सक्सेना इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लफ़्ज़ों के पत्थर फेंकना बड़ा आसान होता है। इंसान को दर्द देने वाला भी, इक इंसान होता है। लाख बरसती हों, रहमत धन दौलत की मगर, जहां खुशियां नहीं, वो घर भी शमशान होता है। परिचय :- सुशी सक्सेना निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) इंदौर (मध्यप्रदेश) निवासी सुशी सक्सेना वर्तमान में, वेबसाइट द इंडियन आयरस और पोगोसो ऐप के लिए कंटेंट राइटर और ब्लॉग राइटर के रूप में काम करती हैं। आपकी कविताएं और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। आपने कई संकलनों में भी योगदान दिया है एवं कई प्रशंसा पत्र और पुरस्कार प्राप्त किए हैं। विशेष रूप से, आपको अनुराग्यम द्वारा गोल्ड मेडल एवं वंदे मातरम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधि...