रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय
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रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित
सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है।
बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है।
बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं।
दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं।
रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको।
ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को।
है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ।
पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ।
तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है।
नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है।
भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे।
हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे।
भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है।
बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है।
हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो।
जो आँख दिखाये शत्रु ...