किसी का बसेरा होगा
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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चहकने दो मुझे
आंगन में झुलती
बेलो के साथ
बहने दो मुझे
निर्बाध गति के साथ
मत बांधो हमें
बन्धनों में घेर कर
चहकने दो दौड़ने दो
आंगन सजेंगे
कल, कल करता जल
पृथ्वी को सिंचता हरित
करेगा श्यामल थरा को
हरियाली नाचेगी
टेसू फुलेगे रवितामृ वर्ण में
बिखरेंगे बसन्त बयार में
फूलों से आंगन सजेंगे
काटो मत शाखाओं को
कहीं पन्छी का ठौर होगा
कपिल, किल का कलरव होगा
चुग्गा चुगने मुंह खुलता होगा
चहक कर चिड़िया गाती होगी
कोयल कूक सुनाती होगी
काटो मत उसे
वह किसी का बसेरा होगा।
परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जु...

















