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गीत

क़ीमत यहाँ इंसान की
गीत

क़ीमत यहाँ इंसान की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गिर रही है रोज़ ही, क़ीमत यहाँ इंसान की बढ़ रही है रोज़ ही, आफ़त यहाँ इंसान की न सत्य है, न नीति है, बस झूठ का बाज़ार है न रीति है, न प्रीति है, बस मौत का व्यापार है श्मशान में भी लूट है, दुर्गति यहाँ इंसान की। गिर रही है रोज़ ही, क़ीमत यहाँ इंसान की।। बिक रहीं नकली दवाएँ, ऑक्सीजन रो रही इंसानियत कलपे यहाँ, करुणा मनुज की सो रही ज़िन्दगी दुख-दर्द में, शामत यहाँ इंसान की। गिर रही है रोज़ ही, क़ीमत यहाँ इंसान की।। लाश के ठेके यहाँ हैं, मँहगा है अब तो कफ़न चार काँधे भी नहीं हैं, रिश्ते-नाते हैं दफ़न साँस है व्यापार में पीड़ित यहाँ इंसान की। गिर रही है रोज़ ही, क़ीमत यहाँ इंसान की।। एक इंसाँ दूसरे का, चूसता अब ख़ून है भावनाएँ बिक रही हैं, हर तरफ तो सून है बच सकेगी कैसे अब, इज्जत यहाँ इ...
प्रति गीत (पैरोडी)
गीत, हास्य

प्रति गीत (पैरोडी)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** क्या देश है देशी कुत्तों का? गलियों में गुत्थमगुत्थों का। इस देश का यारों क्या कहना, अब देश में कुत्ते ही रहना।। यहाँ चौड़ी छाती कुत्तों की, हर गली भौंकते धुत्तों की। यह डॉग लवर का है गहना, कुत्ते को कुत्ता मत कहना।। यहाँ होती भौं-भौं गलियों में, होती भिड़न्त रँगरलियों में। जो तुम्हें यहाँ पर रहना है, हर हरकत इनकी सहना है।। आ रहे विदेशी नित कुत्ते, रुक नहीं रहे ये भरभुत्ते। ढोंगिया रोंहगिया झबरीले, कुछ कबरीले कुछ गबरीले।। कहीं जर्मन है कहीं डाबर है, लगता कुत्तों का ही घर है। न्यायालय का यह आडर है, देखो इनमें क्या पॉवर है।। गलियों में नहीं मिलेंगे अब, एसी दिन-रात चलेंगे अब। भोजन पायेंगे सरकारी, बन गए अचानक अधिकारी। बन रहे शैल्टर होम यहांँ, कुत्तों की है हर कौम यहाँ। बेशक गउएंँ काटी ज...
बारूदी बस्ती
गीत

बारूदी बस्ती

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अरमानों की मौन अर्थियाँ, रोज निकलती हैं। इस बारूदी बस्ती में अब, श्वासें डरती हैं।। हिंसा ने खुशियों को खाई, जब त्योहारों की। अलगू जुम्मन बातें करते, बस हथियारों की।। समरसता से डरी पुस्तकें, आहें भरती हैं।। क्षुद्र स्वार्थ में इस माली ने, पूँजी कुछ जोड़ी। हरे-भरे सम्पन्न बाग की, मेड़ें सब तोड़ी।। कलियाँ बासंती मौसम को, देख सिहरती हैं।। डरी अल्पनाएँ आँगन से, अब मुँह मोड़ रही। हँसिया लेकर बगिया विष की, फसलें गोड़ रही।। गर्वित-गढ़ में न्याय-कुर्सियाँ, पल-पल मरती हैं।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
अनुपम आभा
गीत

अनुपम आभा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। पंच तत्त्व निर्मित काया पर, पहरे बहुत, गुमी आजादी। क्षणभंगुरता जीवन का सच, भूला मन लिप्सा का आदी।। मोह-लोभ की महाव्याधि में, अतिवादी मानव जकड़ा है। अहंकार के पिँजरे में मन, चेतन खो, बन सुआ खड़ा है।। काम पिपासा में है डूबे, आत्मबोध तज प्रभुतावादी। पंच तत्त्व निर्मित काया पर, पहरे बहुत, गुमी आजादी।। गठरी सिर पर रखे पाप की, जग में भटके नश्वर काया। मर्यादा की रेखा टूटी, छल जाती रावण-सी माया।। अमल दृष्टि छल भेद न पाती, याचक हैं या अवसरवादी। पंच तत्त्व निर्मित काया पर, पहरे बहुत, गुमी आजादी।। सत्यं-शिवम-सुंदरम भूला, परहित राह नहीं पहचानी। कर्म -फलन है सद्गति-दुर्गति, काल करे हरदम मनमानी।। यम का पाश सदा ह...
स्वर बेदम है
गीत

स्वर बेदम है

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** राही का टूटा संयम है। इस विकास का क्षितिज अगम है।। हाँक रहा है लोकतंत्र को, थामे वल्गाएँ सौदाई।। जहाँ अडिग सौहार्द खड़ा था, वहाँ घृणा ने खोदी खाई।। ऋतुपति के संपन्न सदन में, पत्र-पुष्प की आँखें नम है।। फसलों पर संक्रामक विष का, भ्रामक रुचिकर वरक चढ़ा है। कालचक्र ने श्वेत वसन पर, कलुष कुटिल आरोप मढ़ा है।। नोंच दिया हर तना वृक्ष का, नाखूनों में उसके दम है।। दीवारों की कानाफूसी, बदल रही है दावानल में। जलकुम्भी ने डेरा डाला, समरसता के शीतल जल में।। देख रही आँखें जो बेबस, रक्त सना पतझड़ मौसम है। पाँच पसेरी लालच ने बुन किए सघन आँखों के जाले।। लगा लिए हाथों से अपने, उजले कल के द्वारे ताले।। सिले हुए अधरों के भीतर, कैद विरोधी-स्वर बेदम है।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा प...
जय गंगान
आंचलिक बोली, गीत

जय गंगान

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी - बसदेवा गीत) मोर अन्नपूर्णा महतारी ये घर म नरवा घुरवा अऊ बारी हे ईहे हमर चिन्हारी हे जय गंगान... सेवा जेन तोर करें किसान अऊ तैय बनाय ओला सुजान छत्तीसगढ़ के मै करव बखान बिना गुरु नई पावय ज्ञान जय गंगान... भारत माता के गोड़ के पहिरे छाटी अव अऊ ईहे के धुर्रा माटी हव लईका मन के खेले गुल्ली-भंवरा बांटी अव जय गंगान... चंदखुरी छत्तीसगढ़ के बढाथे मान कौशल्या माता जनम भूमि ये हर आय प्रभु राम इहां के भांचा कहाय जय गंगान... धन्य हे राजिम दाई मोर 'भाट' हाथ जोड़ करें बिनय ये तोर माघ पुन्नी परब म मेला भराय साधु संत नहाय बर आय सब मनखे मन दुःख बिसराय छत्तीसगढ़ प्रयागराज तैय ह कहाय जय गंगान... छत्तीसगढ़ के मै करव बखान मिरजूर के रईथे लईका अऊ सियान मुड़ म पागा बांधे किसान अर्रे भटके ल पहुना ...
दीवाली
गीत

दीवाली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, नवल भोर पाएँगे।। लेंगे जब संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। सुखद शान्ति के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। भोजन वसन प्रचुर हो जनहित, मानव को दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी, आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। कर्मयोग संचालक कान्हा, राधा सम भव बाला।। रामराज्य संचारित जग में, समरसता की लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीपयुक्त शुभ थाली।। नेह-सिक्त शुभ संबंधों से, महकेगा जग सारा। कोण-कोण रसधार बहेगी, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका,...
दीपावली
गीत

दीपावली

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** मन का उपवन खिला खिला खुशियों के हैं दीप जलाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं घर घर में है जग मग, खुशियों के हैं दीप जलाए दीपों का उत्सव ये सबके मन में अनुपम प्रीत जगाए। मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं अंगना में लक्ष्मी स्वागत को, रंगोली की शोभा न्यारी द्वारे बंदनवार सजाए, तेरी कृपा की आस लगाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं प्रभु जी तुम नित खेल करो दीन दुखी के कष्ट हरो तेरी करुणा पाने को आशा के हैं दीप जलाए मेरे राम प्रभु हैं घर आए, हम दीपावली मनाये हैं परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) व्यवसाय : नेत्र विशेषज्ञ सेवा निवृत, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष नेत्र विभाग, के.जी.एम.यू. लखनऊ अन्य गतिविधिया...
शुभम् दीपावली
गीत

शुभम् दीपावली

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दीपावली हम मनाएँ। घर आँगन में दीपक जलाएँ। युग युगान्तर से है मान्यताएं। राम वन गमन से लौट आए। आओ ….. ऐश्वर्य, वैभव की माता लक्ष्मी जी। संग गणपति, सरस्वती भी पुजाये। उतारें आरती और करें प्रार्थनाएँ। सब भक्तों की पूरण हो कामनाएँ। आओ…… पूर्वजों ने जो रीति रिवाज बनाए। करके सम्मान रस्मों को निभाये। देवी देवताओं के गुणगान गाए। करें आराधना और आशीष पाए। आओ …… परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल.बी. निवासी : उज्जैन (मध्य प्रदेश) रुचि : आपकी बचपन में व्यायाम शाला में व्यायाम, क्षिप्रा नदी में तैराकी और शिक्षा अध्ययन के साथ कविता, गीत, नाटक लेखन मंचन आदि में गहन रूचि रही है। व्यवसाय सेवा : आप सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग. सन् १९६४ से सन् १९७० तक एवं स...
सपन सलोने
गीत

सपन सलोने

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सपन सलोने मेरे हिय। में सदा पलते रहे, कुछ उजाले कम भले हों, दीप तो जलते रहे। सपन सलोने मेरे हिय, में सदा पलते रहे।। मृण्मयी गगन तके धरा, प्रणय घट अब तो भरा। मदन रुत चंचल है भ्रमर, कण कण देख है हरा।। प्रेम गीत गाते हम तो, चाल सब चलते रहे। सपन सलोने मेरे हिय, में सदा पलते रहे।। मर्मस्पर्शी घटा आई, नैन से बर्षा हुई। नागिन सी डसती रातें, होती थी छुईमुई।। साथ तेरा जब से मिला, फूल से खिलते रहे। सपन सलोने मेरे हिय, में सदा पलते रहे।। शूल भरी थीं जब राहें, प्रतिबिंब हृदय बसता। खूशबू प्रेम की बिखरी हिय सितार है बजता।। संग रहे जब हमदम फिर, हाथ सब मलते रहे। सपन सलोने मेरे हिय, में सदा पलते रहे।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्...
कलियुग में बिकती सच्चाई
गीत

कलियुग में बिकती सच्चाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कलियुग में बिकती सच्चाई, झूठ कपट भी भारी है। तृष्णा के गहरे सागर में, जाने की तैयारी है।। खेले खेल सियासत भी अब, कालेधन की है माया। खींचें टाँग एक दूजे की, सत्ता लोलुप है काया।। बस विपक्ष की पोल खोलना, नई नीति सरकारी है। दौड़ सीट हथियाने की है, देते पद की सौगातें। भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा भी, राम राज्य की हैं बातें। रंग बदलते गिरगिट जैसा, नेता खद्दरधारी है। गागर रीती है खुशियों की, भीगी अँखियाँ रमिया की। तोता मैना करते क्रंदन, रहती चिंता बगिया की।। करें देश को नित्य खोखला, जनता भी दुखियारी है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट...
पथ सभी अवरुद्ध हैं
गीत

पथ सभी अवरुद्ध हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पथ सभी अवरुद्ध हैं अब, नेत्र भी देते छलावे। कुंडली भी मौन बैठी, झूठ निकले आज दावे।। रक्त भी पानी हुआ है, अस्थि पंजर आज तन भी। पाश यम का बाँधता है, रूह काँपे और मन भी।। प्राण-पंछी उड़ गए हैं, कर चुके देखो दिखावे। मौसमी बदलाव लाया, साथ जहरीली हवाएँ। घोंसले सब लुट गए अब, आसुरी ये आपदाएँ।। सिर शनीचर है चढ़ा भी, कौन अब आकर बचावे। मौत से परिणय हुआ है, नृत्य तांडव हो रहा है। ढेर लाशों के लगे हैं, श्वान बैठा रो रहा है।। सिर झुका झींगुर चले अब, दादुरों के हैं बुलावे।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति...
पितृ नमः
गीत

पितृ नमः

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आशीषें देने धरती पर, पितर पहुँच ही जाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते। पितर देव रूपों में होते, सदा भला ही करते। आशीषों से सदा हमारा, पल में घर वो भरते।। साथ सदा ही देखो अपने, शुभ-मंगल ले आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। क्वार मास का पखवाड़ा तो, पितरों को है लाता। श्रद्धा और नेह के सँग में, पितरों से मिलवाता।। पितर हमारे कोमल दिल के, बस मंगल बरसाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। रीति-नीति कहती है हमसे, हम चोखे हो जाएँ। भाव सँजो लें उर में अपने, श्रद्धा के गुण गाएँ।। जीवन का हर क्षण महकेगा, शुभ के पल हैं आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। तर्पण-अर्पण,पूजा-वंदन, अभिनंदन की बेला। देवलोक के पितर धरा पर, आकर भरते मेला।। ख़...
हिन्दी मस्तक की बिंदी
गीत

हिन्दी मस्तक की बिंदी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी हितकर है सदा, हिन्दी तो अभियान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में तो आन है, हिन्दी में तो शान है। हिन्दी नित उत्कृष्ट है, हिन्दी सदा महान है।। हिन्दी अपनायें सभी, यही आज अरमान है। कला और साहित्य है, भरा हुआ यशगान है।। हिन्दी गीत, कुंडलिया, कविता, चौपाई की शान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में है उच्चता, मनुज सभी इसको मानें। हिन्दी का उत्थान सदा हो, हिन्दी को सब ही जानें।। हिन्दी पर अभिमान हमें हो, हिन्दी अपनायें सब। हिंदी से हम प्रीति लगा लें, मंगलगीत सुनायें सब।। वह हर हिंदी के पथ में जो सचमुच चतुर सुजान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में सामर्थ्य भरा है, हिन्दी में है वेग भरा। हिन्दी में ...
आसमान खाली है
गीत

आसमान खाली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले-हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। मुँह छिपाकर रोती चाँदनी, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर-मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिव...
वोट बैंक के खाते से
गीत

वोट बैंक के खाते से

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वोट बैंक के खाते से बस, खेलें नेता होली है। अवसरवादी राजनीति में, रोज़ पदों की डोली है।। धुत्त नशे में अब नेता हैं, कालिख मुख गद्दारी की। हुड़दंगी दल बदलू नाचें, हद होती मक्कारी की।। ढोल -मजीरे स्वयं बजाती, बड़ी प्रजा यह भोली है। घर-घर राजदुलारे जाते, भूल गये सब मर्यादा। दीप-तले ख़ुद अँधियारा है, कुचल गया चलता प्यादा।। फिरती झाड़ू उम्मीदों पर, लगे जिगर में गोली है। दल्लों की भरमार हुई है, आप जान लो सच्चाई । पिचकारी ई डी की चलती, रँगें जेल की अँगनाई।। मुखिया आँख बँधीं पट्टी है, शैतानों की टोली है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति...
ऐसा बाग लगाओ माली
गीत

ऐसा बाग लगाओ माली

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऐसा बाग लगाओ माली, खुशबू बहे जमाने में। लूट सके सो जी भर लूटे कमी न पड़े खजाने में।। उड़ें तितलियाँ रंग बिरंगी, चिड़े चिड़ी डालों पर खेलें। मदमाते मधुकर कुछ गायें, पेड़ों से लिपटीं हों बेलें।। मद्धिम-मद्धिम चलें बयारें, मस्ती की झर उठें फुहारें, कोई कसर न रहे प्रेम की, परिभाषा बतलाने में।। ऐसा बाग .... ।।१।। थके पखेरू भली नींद लें, सुबह मिले कलरव सुनने को। थिरक उठे संगीत प्रीति का, गीत चलें सपने चुनने को।। महक उठे धरती का कण-कण, बीते मदिर राग में क्षण-क्षण, पत्ती-पत्ती खुली हवा में, लग जाए इतराने में।। ऐसा बाग .... ।।२।। कलियों को खिल जाने देना, फूलों को मुस्काने देना। जो भी आना चाहे साथी, खोलो फाटक आने देना।। चौकीदारों से कह देना, सबके कोप तलक सह लेना, कोई रोक-टोक मत...
संकल्प
गीत

संकल्प

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** संकल्पों को शीश झुकाकर, संस्कार को ग्रहण करो। सद्गुण की माला फेरो तुम, सत्कर्मों को वरण करो।। मर्दन करके सदा दंभ का, एक नया इतिहास गढ़ो। पौरुष से जीतो इस जग को, सत्य राह पर सदा बढ़ो।। कुंठित मन के भाव त्याग कर, नित उत्तम आचरण करो। अंतर्मन विश्वास जगा कर, साहस संयम धैर्य रहे। शोषित जन के दग्ध हृदय में, शीतल जल भी स्निग्ध बहे।। दीनों के तुम बनो मसीहा, तन की पीड़ा हरण करो। स्वारथ के बादल उमड़े हैं, मानवता की ज्योति जगा। चीर-हरण रोको धरती का, चंदन माटी माथ लगा।। दुष्ट दानवों का वध करके, वीरों का अनुसरण करो। मायावी आँधी को रोको, छल- प्रपंच से सदा बचो। निष्ठाओं की डोर पकड़कर, कोमल सुर संगीत रचो।। सद्भावों की बाजे सरगम, यह प्रण तुम आमरण करो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवास...
श्याम पधारो
गीत

श्याम पधारो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रक्षक बनकर श्याम पधारो, ले लो फिर अवतार। पावन भारत की धरती पर, अब जन्मो करतार।। घोर निराशा मन में छाई, मानव है कमजोर। काम क्रोध मद मोह हृदय में, थामो जीवन डोर।। शरण तुम्हारी कान्हा आए, तिमिर बढ़ा घनघोर। अब भी चीर दुशासन हरते, दुष्टों का है जोर।। सतपथ में बाधक बनते हैं, बढ़ते अत्याचार। गीता का भी पाठ पढ़ा दो, व्याकुल होते लाल। नैतिकता की दे दो शिक्षा, बन कर सबकी ढाल।। आनंदित इस जग को कर दो, चमकें सबके भाल। धर्म सनातन हो आभूषण, बदले टेढ़ी चाल।। राग छोड़कर पश्चिम का हम, रखें पूर्व संस्कार। त्याग समर्पण पाथ चलें नित, हमको दो वरदान। शील सादगी को अपनाकर, नित्य करें उत्थान। सत्य निष्ठ गंम्भीर बनें हम, दे दो जीवन दान। जीवन सार्थक कर लें अपना, कृपा करो भगवान।। मर्यादा के रक्षक प्रभु तुम, ...
भारत माता का वंदन
गीत

भारत माता का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है।। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। अपना सब कुछ दाँव लगाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। आगे बढकर, निर्भय होकर, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से टकराकर, प्राण गँवाते हैं। ...
भोले पंछी
गीत

भोले पंछी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** भोले पंछी क़ैद किए सब, निर्मम हुआ शिकारी। पश्चिम की चलती आँधी में, पूनम रातें कारी।। गईं काल के मुँह निष्ठाएँ, चुप दर्शक भी सारे। अंतहीन पीड़ा मानव की, घूम रही मन मारे। प्रजातंत्र की बलिहारी है, सोते खद्दरधारी। रोज़ समस्या नई खड़ी है, करता हृदय क्रंदन। उल्टी चली हवाएं सारी, मरता प्यासा मधुवन। पत्थर ही पत्थर राहों में, तपती सड़कें सारी। रही बदलती नित्य नीतियाँ, लुटती है रजधानी। नारों का हर तरफ़ शोर है, करते सब मनमानी।। चौसर के खेलों पर अब भी, लगे दाँव पर नारी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्र...
रिमझिम बारिश
गीत

रिमझिम बारिश

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम बारिश अच्छी लगती, छप-छप बोल कहानी सी। कागज की नावें चलती थ़ी, यादें गाँव सुहानी सी।। बचपन खेले गिल्ली डंडा, साथी संग निराले थे। पनघट बरगद अमराई थी, स्वप्न सभी मतवाले थे।। शंखनाद मंदिर में होते, थी मीरा दीवानी सी।। गूँजें घर-घर वेद ऋचाएँ, निष्ठा के उजियारे थे। पार लगाते जो सबको, ऐसे कूल किनारे थे।। शीतल छैंया पीपल की भी, देती सुखद निशानी सी। बातों में मिश्री घुलती थी, साथी गौरैया प्यारी थी। सजती थीं चौपालें निशदिन, पंचायत भी न्यारी थी।। स्वच्छंद हवा में उड़ने की, बातें हुईं पुरानी सी। कंचन बरसाते बादल थे, फसलें भी कुंदन थी। सौंधी सुगंध थी खेतों में, माटी भी चंदन थी।। मुस्काते थे हलधर मुखड़े, अधरों प्रेम निशानी सी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (...
प्रेरणा
गीत

प्रेरणा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेरणा माता पिता हैं, प्रेरणा गुरुवर हमारे। प्रेरणा माँ शारदे हैं, प्रेरणा बनते दुलारे।। प्रेरणा अनुराग देते, पेड़ पौधे ये निराले। पुष्प मोहक रँग बिरंगे, नित्य मन भरते उजाले।। झूमते मधुकर चमन में, यह प्रभाती खूब भाती। स्वप्न देखें हम मनोहर, साँझ सिंदूरी सजाती।। चाँद सूरज रोशनी दें, प्रेरणा देते सितारे। प्रेरणा संगीत बनती, ताल सरगम की कहानी। कोकिला की तान मीठी, मूक पीड़ा की निशानी। बह रही निस्वार्थ कल-कल, प्रेरणा देती ‌नदी है। मर्म जानो मित्र ज्ञानी, प्रेरणा देती सदी है।। प्रेरणा चहुँओर बसती, यह धरा कण -कण पुकारे। थरथराते होंठ प्रियतम, सावनी मनुहार करते। फिर सृजन विस्तार होता, तूलिका में रंग भरते।। घट विचारों से भरा है, लेखनी कविवर उठाओ। श्वेत पृष्ठों पर लिखो तुम, प्रीति उर मे...
अंबुज के मंजुल नैना
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अंबुज के मंजुल नैना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंबुज के मंजुल नैना रहते क्यों डरे-डरे। लोभी भौरें घूम रहे ताल शतदल से भरे। हृदय मेरा क्रंदन करे विटप -विटपी रो रहे। कंटक भरा प्रेम पथ है, बोझ जीवन ढो रहे।। नित होती पलकें गीली, विपद किससे हम कहे। मृदु कलियाँ कहतीं नभ से, क्यों जगत में विष बहे।। पीर कानन क्या बताएं, वृक्ष सूखे हैं हरे। कंचन हिरण ढूँढते हैं, मनुज है बौरा गया। रुदन धरती कर रही अब, क्यों नंद छौरा गया।। फीकी सब चमक-दमक है, लाश नित हम हो रहे। कलकंठी भी मौन हुई, पंछी सभी सो रहे।। मुखौटे ओढ़े सब खड़े आदमी चारा चरे। चली विरह की आँधी है, तड़पती भी मीन है। अपंग जीवन कहता है, फिर बजे क्यों बीन हैं।। घोर छाया है तिमिर की, शाम सुख की है ढली। उजाले चालें चल रहे, पथिक भी भूले गली।। आशा की कटती पतंग, शांत स्वर कहते खरे। ...
कौन बुझाये प्यास
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कौन बुझाये प्यास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...