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पद्य

रचे रचनात्मक जिंदगी
कविता

रचे रचनात्मक जिंदगी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सोचना समझना फिर करना जिंदगी का सबसे अहम काम, फुर्सत कभी मिलती ही नहीं, मिलता नहीं पलभर आराम ।। जिंदगी पहिये सी, घूम रही है शिकायत कभी करती ही नहीं, मौन भी रहती है हरदम जिंदगी सीख भी बेजोड़ देती जिंदगी ।। कहती है खुद पे खुद ये जिंदगी करो रोज, रचो रचनात्मक काम, समाज जाति देशहित के काम मौन क्यों, रचो रचनात्मक काम ।। प्रगतिशील गतिविधियों से लड़े जिंदगी प्रगति पथ पर खुद बढ़े मुसीबतो का जंजाल सताएगा सोचना समझना, काम आएगा ।। जिंदगी की है भारी भागदौड़ चुनो समाधान के नए नए मोड़ समाधान की तलाशते रहे धैर्य संयम रखो हरदम सांस मिलेंगे सरल स्रोत, मिलेगी राहें ।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
राधा रानी मै बरसाने में …
भजन

राधा रानी मै बरसाने में …

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** राधा रानी मै बरसाने में आ गया, खुद बताओ कि कैसे मनाऊं तुम्हे। तेरे कान्हा के कुछ गीत मैने लिखे, आओ बैठो तो उनको सुनाऊं तुम्हे। राधा रानी... राधा रानी हो तुम, महारानी हो तुम, बृज की गलियों की रसमय कहानी हो तुम। ब्रज में सब हर समय नाम तेरा जपे, राधे राधे ही मै भी सुनाऊं तुम्हे। राधा रानी... जो भी बसते यहां, उनको तुम पालती, उनके नीरस हृदय में, तुम रस डालती। क्या से क्या बन गया हूं, शरण तेरी पा, जानती हो तो क्या मैं बताऊं तुम्हे। राधा रानी... सोते जगते जपो, हंस के गाके जपो, राधा रानी ये सुनने को आ जाएंगी। नाम पावन है, ये बस गया सांस में, रीझकर तुझपे करुणा बहा जाएंगी। तेरा वात्सल्य कितना है प्यारा, चीर अंतर को कैसे दिखाऊं तुम्हे। राधा रानी... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) ...
पुरुषों का सशक्तिकरण
कविता

पुरुषों का सशक्तिकरण

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** "अब पुरुषों का दर्द भी सुना जाएगा!" भारत की धरा पर घिरा अंधकार, पुरुषों पर टूटा अन्याय का भार। कभी झूठे इल्ज़ाम, कभी मौत का डर, दबा दिया जाता है हर एक स्वर रोज। "अब चुप्पी नहीं, अधिकार चाहिए!" महिलाओं को सम्मान जरूरी सही, पर पुरुषों की व्यथा भी सुननी चाहिए। झूठ के जाल में न फँसाओ उन्हें, हर बेकसूर को अब बचाना चाहिए। "पुरुष भी इंसान हैं, पत्थर नहीं!" दिल उनका भी धड़कता है यारों, दर्द उनके भी गहरे हैं प्यालों। डर-डर कर जीना कैसा इंसाफ? इंसानियत पर उठने लगे हैं सवाल। "झूठी चीखों का अंत करो!" गलत आरोपों का खेल बंद करो, नारी का सम्मान हैं अनमोल सही। पर सत्य और न्याय की भी अलख जलाओ, हर दिल को बराबरी का हक दिलाओ! "समाज जागे, बराबरी लाए!" अब वक्त है न्याय का बिगुल बजाने का, हर आहत मन को अपनाने ...
पिता दामाद से क्या कहता है…
कविता

पिता दामाद से क्या कहता है…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** पहला व्यक्ति जिसने इस लाडली को गोद में लिया वो मैं था, तुम नहीं , पहला अधिकार मेरा था जब पहली बार मैंने इसके माथे को चूमा तुम्हारा नहीं ! पहली मुस्कान उसकी, पहले आंसू, उसके मैंने देखे, उसे अपनी नन्ही राजकुमारी कहा, वो मैं ही था, तुम नहीं ! दुनिया की सबसे सुन्दर बेटी की निश्छलता, निर्मलता, कोमलता मैंने देखी, प्यार, नाज़, और दुलार से पाला, सम्मान और कर्तव्य सिखाये सबसे पहला पाठ पढ़ाया, वो मैं ही था! उसे साहस-ताकत का अध्याय सिखाया, पूरे दिल से प्यार देकर पाला !! आज मैं तुम्हें वहीं सम्मान देता हूँ , जिस सम्मान के अधिकारी बने तुम इसके कारण! इसी प्यार-सम्मान, से उसे सवांरना, जो आज तक उसे मैंने दिया है, उसकी रक्षा करना ! दर्द क्या होता है वो नहीं जानती, तुम अब वो पुरुष बनोगे, जि...
रणभेरी को सुनना होगा
कविता

रणभेरी को सुनना होगा

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** लोथ के ये दृश्य वीभत्स मानवता को दहलाते हैं काफ़िर हैं वो हत्यारे जो निर्दोष को मार गिराते हैं। धर्म की बंदिश रखकर ये क्या खेल लहू का खेलेंगे हम अमन पसंद इंसानों का क्या धैर्य खून से तौलेंगे? इतिहास गवाह जयचंदों ने हम पर सदा आघात किया हमने शांति चाही सदा दुष्टों ने नित वज्रपात किया। हम कफ़न बांध लड़ जाएंगे कब तक ही चुप बैठेंगे जब बांध सब्र का टूटेगा घाटी में समर भी खेलेंगे। पुलवामा या पहलगाम कब तक भारत ये झेलेगा ये दंश मौत का दिया तुमने प्रतिशोध हर कतरे का लेगा। भारत भूमि का स्वर्ग कहाँ ये दर्रा निर्दोष रुधिर का है शोणित का बदला शोणित हो मत ये हर सुधीर का है। चंद्र सुभाष सा सौदा फिर हम सबको ही बुनना होगा। अमन की बातें छोड़ अभी रणभेरी को सुनना होगा। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)...
मिथ्या आवरण
कविता

मिथ्या आवरण

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ईमान को बेचकर कभी ईमानदार नहीं बना जाता। दर्द देकर कभी किसी का हमदर्द नहीं बना जाता। इंसान को तोड़कर कभी इंसानियत का दावेदार नही बना जाता। बीच राहों में छोड़कर हमसफर को कभी हमराही नहीं बना जाता। कल-कल कर कभी पल-पल का जीवंत जीवन नहीं जिया जाता। देकर औरों को दुख कभी खुद के चेहरे पर खुशियों का झूठा मुखौटा नहीं पहना जाता। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
जन्नत में बहता लहू
कविता

जन्नत में बहता लहू

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ख़बर आई है- धरती के स्वर्ग में, शबनम की जगह बारूद बरस रहा है। गुलमोहर की टहनियों पर खून टपक रहा है। पहाड़ियों की गोद में सोए अट्ठाईस सपने सिर्फ़ इसलिये तोड़ दिए गए कि उन्होंने काफ़िर होना चुना था। आम आदमी- जिसकी पूरी दुनिया बीबी, बच्चे और रोटी की महक से महफूज़ होती है, उसे नहीं पता- ‘काफ़िर’ कौन होता है? उसे ये भी नहीं पता कि किसी और की जन्नत की लालसा में उसका जीवन नर्क बना दिया जाएगा। वो दरिंदा इंसान- जिसकी आँखों में ७२ हूरों की परछाइयाँ हैं, और शराब की नदी का बुलावा, वो भूल बैठा है- कि जन्नत किसी मासूम की लाश पर नहीं मिलती। किताबें भी कभी रोती होंगी शायद- जब उनके अक्षरों से हत्या के फतवे गढ़े जाते हैं। जब प्रेम की आयतें, नफरत की गोलियों में बदल जाती है...
माँ- एक सुखद अनुभूति
कविता

माँ- एक सुखद अनुभूति

नील मणि मवाना रोड, (मेरठ) ******************** चाँद तारों सा बचपन चाँद तारे हो गया मां जब से दूर हुई बचपन खो गया फ्रॉक से लेकर साड़ी तक खूब सजाया तुमने लाडली के हर आंसू पर स्नेहांचल फैलाया तुमने कुछ बन जाऊं मैं रोज सवेरे जगाया तुमने सफेद कोट बुन डॉ. ख्वाबों में बनाया तुमने कभी मलाई आम तो कभी मालपुए का स्वाद चखाया तुमने हर क्षेत्र में प्रवीण हो लाडली हर दांव चलाया तुमने जब भी उदास मन हुआ शोहदों की शरारतों से 'देखने की चीज हो तुम' कह विश्वास जगाया तुमने अंजाने में दिए मेरे दुख को, कण्ठ भी उतारा तुमने अपनी परी के हर एहसास को गले लगाया तुमने नाज है मां तुम पर.. तुम्हारी स्नेहाशीष सीखों पर आज आश्वस्त हूँ इसीलिए माँ, मैं अपने आप पर। परिचय :- नील मणि निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ) घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
कर्तव्य बोध
कविता

कर्तव्य बोध

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसने कभी किया ही नहीं जीवन की तमाम परिस्थितियों पर शोध, उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके अंदर होगा कर्तव्य बोध, इसके लिए दिमाग के साथ दिल भी चाहिए, सुस्पष्ट सोच और लक्षित मंजिल भी चाहिए, हमारे देश के कर्णधारों में, कुंठित सिपहलसारों में, यदि कर्तव्य बोध होता, तो देश की उन्नति की राह में कोई भी लोकसेवक कांटें क्यों बोता, इस देश में हुए हैं ऐसे भी लोग महान, जिनका दर्जा होना था भगवान, उन सबके योगदान और स्मृतियों को बहुतों ने मिटाना चाहा, कुढ़ता में आ उन सबको भुलाना चाहा, होता कर्म के प्रति लगाव तो भ्रष्टाचार मुंह बांये न खड़ा होता, धन कुबेर और अपराधी नेताओं के दांये बांये न खड़ा होता, कुछ लोगों के खून में बस चुका है देश के साथ भयंकर गद्दारी, प्रगति की राह में जो पड़ रहा भारी, पता ...
जय-जय हे बजरंगबली
भजन

जय-जय हे बजरंगबली

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सदा सहायक देव प्रबलतम, परमवीर हनुमाना। संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।। मातु अंजनालाल शौर्यमय, असुरों को संहारें। रामकाज करने को आतुर, पाप जगत के मारें।। सूर्य निगलकर बने अनूठे, वायुपुत्र देवंता। महावीर सुग्रीव सहायक, करें दुःखों का अंता।। भयसंहारक, मंगलकारी, पूजन बहुत सुहाना। संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।। दहन करी लंका हे ! देवा, तुम हो प्रलयंकारी। परम शक्तियाँ तुम में रहतीं, बनकर के साकारी।। हे हनुमंता, हे भगवंता, तेरा रूप निराला। हर दिन है उजला हो जाता, हो कितना भी काला।। जीवन सुमन खिलाते हरदम, जग ने तुमको माना। संकटमोचन, शत्रु विनाशक, जय-जय दयानिधाना।। रामदूत, अतुलित बलधामा, जीवन देने वाले। सब कुछ तुम गतिमय कर देते, काट व्यथा के जाले।। सीता की कर खोज बन गए, तुम तो एक कहानी। ...
निवेश के पहले सितारे
कविता

निवेश के पहले सितारे

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हम हैं निवेश के पहले सितारे, सपनों के पंखों पर उड़ने वाले नारे। नई राहों के पहले मुसाफिर, ज्ञान की लौ से रौशन ये सफ़र। हम हैं 'निवेश १.०' की पहचान, सपनों से भरी एक नई उड़ान। सतीश चंद्र कॉलेज की शान बनें, ज्ञान के पथ पर हम अभिमान बनें। प्रिंसिपल डॉ. बैकुंठ नाथ पांडेय सर का साथ मिला, हर सोच को उड़ान देने का जज़्बा मिला। हेड डॉ. ओम प्रकाश सर की सादगी में शक्ति है, हर विद्यार्थी की आँखों में उनकी भक्ति है। डॉ. राहुल माथुर सर की शैली है निराली, हर कांसेप्ट में छिपी एक रोशनी मतवाली। डॉ. ओमप्रकाश पाठक सर का मार्गदर्शन मिला, हर विषय जैसे खुद-ब-खुद समझ आ चला। डॉ. अतीफा फलक मैम की बातों में ज्ञान की रौशनी है, उनकी क्लासों में बसी उम्मीदों का बग़ीचा है। पहला सेमेस्टर, 0% अटेंडेंस का सीन, प्रोजेक्ट का डेडलाइन? ...
वट
धनाक्षरी

वट

देवकी दर्पण पाटन जिला बूंदी (राजस्थान) ******************** सदियों जीवित रहे, ऐसा मेरा लोक कहे, शीतल बयार बहे, वट तू लगा भाई। दीर्घायु अमरता का, है प्रतीक यह वट, गर्मी को उतारे झट, फट तू लगा भाई। ब्रह्मा विष्णु शिव जी का, मानते वट निवास, पूजा होती इसलिए, डट तू लगा भाई। साधक सौभाग्य पाता, समृद्धि आरोग्य लाता, सुख यहा मिलजाता, खट तू लगा भाई।।१।। मन चाही कामना में, महिला कलावां बांध, बरगद पूजती है, मन के विश्वास से। छाल फल दूध बीज, कीमती है हर चीज, रोगों का इलाज करे, पूरी मन आस से। कफ वात पित्त रोग, वट तरु कर सके, नाक कान बाल रोग, दूर वट खाश से। दांत रोग, टोंन्सिल व, खांसी जुकाम मिटते, बरगद दे दवाई, पूरी अपने पास से।।२।। खूनी बवासीर मिटे, अति प्यास रोग कटे, छींक जाए नहीं डटे, वट गुणवान है। गर्भ धारण में छाल, बीज मूत्र में कमाल, कटि दूध से निहाल, वट तरु शान है। ढ़ीला...
धर्म का युद्ध
कविता

धर्म का युद्ध

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** धरा पर स्वर्ग देखने चला था, तुने वो क्या दृश्य दिखा दिया, चंद पल खुशी के ढूंढने निकला था, तुने तो गमो का बोझ बांध दिया। तू भी इसी धरा का, मैं भी इसी धरा का, तुने धर्म के नाम पर, मुझे कुचल ही डाला। धर्म का युद्ध तुने रचा, अपनो को हमने खोया, हिन्दुस्तान के हिन्दु को, धर्म के नाम पर तुने ललकारा है। अब धर्म का युद्ध तु भी देखेगा, मैं भी देखूगां, तु भी इसी धरा का, मैं भी इसी धरा का। धरा पर स्वर्ग देखने चला था, तुने वो क्या दृश्य दिखा दिया। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
वस्त्र पराली के
गीत

वस्त्र पराली के

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** धूम-धाम से घर में आये, दिन खुशहाली के। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थिरक रही कोने-कोने में, खुशियाँ मणिकांचन। श्रम-जादूगर ने बरसाया, खेतों में शुभ धन।। तपते दिन पर विहँस रहे, गुलमोहर डाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। दूल्हा बनकर चैता आया, बैसाखी के घर। गूँज रहे मंगलाचरण अब, पाखी के दर-दर।। दमके मुखड़े लगते ज्यों हो, दीप दिवाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थर्मामीटर लेकर सूरज, नाप रहा पारा। फाँस रहा ले लू का फंदा, आतप हत्यारा।। गायब दरिया के अधरों से, लक्षण लाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। तकनीकों ने उत्पादन को, बुस्टर डोज दिया। मगर लोभ ने जड़ के ऊपर, घातक वार किया।। मँडराती अब मौत स्वयं घर, आ रखवाली के।। कृषक आग में झोंक ...
रंगमंच
कविता

रंगमंच

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** विश्व रंगमंच की दुनिया देखो कोई अमीर कोई गरीब देखो हंसता-रोता हुआ चेहरा देखो मदद करता लुटता हाथ देखो कोई फैल कोई हुआ पास देखो सूरज देखो चांद को साथ देखो बेवफाई संग प्यार का खेल देखो झूट को कभी सत्य के पास देखो फूलों की खुशबू का साथ देखो रंगमंच के अभिनय को हर बार देखो परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता सम्मान : राष्ट्रीय...
विज्योति
कविता

विज्योति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बहुत मुद्दत के बाद उकेरे है कुछ लफ्ज़ हृदय आघात से बचाकर किताब-ऐ- पन्नों पर। बहुत मुद्दत के बाद अंकित किए हैं कुछ किस्से हृदय स्थल से उतार धरातल की मन:स्थली पर। बहुत मुद्दत के बाद छाया है सहस्रार पर आत्मज्ञान का महाप्रकाश मोह की प्रकाष्ठा को लांघकर। बहुत मुद्दत के बाद अनाहत से आया है कोई स्वर विशुद्धा को लांघकर अंतर्दृष्टि को सचेत कर। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
थोड़ा सा प्यार बांटे
कविता

थोड़ा सा प्यार बांटे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते हैं बांटने से खुशी बढ़ती है और दर्द कम हो जाता है, तो चलो आज कुछ मुस्कराहटें बांटे, रिश्तों में थोड़ी सरसराहट बांटे! पसरा है जिनके जीवन मे सन्नाटा उनमे थोड़ी पवित्रता बातें, जीवों....में मुस्कान बांटे! जीवन जीने का खुशनुमा अंदाज ना जाने कहाँ खो गया द्वेष और दिखावा छोड़ थोड़ा सा प्यार बांटे! सब कुछ पाने की चाह में चैन-शांति कहीं गुम हो गई क्यों ना थोड़ा सा सुख बांटे! नीरस सी हो रही जिंदगी जिनकी उनमे थोड़ी शरारतें थोडा सी शुभकामनाएं बांटे!! प्रकृति ने उपहार दिए हमे, नभ-जल-थल, इन्द्रधनुषी रंगों से सजे पशु-पक्षी, इनमे थोड़ी करुणा-थोड़ी ममता इनको थोड़ा सम्मान बाटें!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्...
हमने ‌क्या सीखा
कविता

हमने ‌क्या सीखा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवि सिखाता ‌अनुशासन नदी सिखाती आगे बढ़ना पर्वत दे सीख‌ अडिगता की वृक्ष सिखाता है देना। सीख लता की, तन्वी कोमल सी ले संबल आगे बढ़ती कुछ देने को तना सहारे पत्ते हिलते प्राणवायु सबको देने को। मानव मानव को सभ्य बताते लड़ते झगड़ते बढ़ते जाते प्रकृति मां की गोद में पलते पर उससे कुछ सीख भी पाते? चींटी पक्षी कीट पतंगे न लड़ते न द्वेष वो करते न लूट न पत्थरबाजी अपने दल में घूमा करते। मानव सीखें इनसे अनुशासन क्यों इतना आतंक‌ मचा है क्यों धरती विव्हल है क्यों धरणी रोती पल पल है? कहां तहजीब और नफासत संस्कार वो लुप्त हुए हैं वो पौरुष के भाव कहां, किसी गुफा में सुप्त पड़ें हैं? प्रभु सृष्टि तुम्हारी है कुछ तो करना भयभीत हिरन सी व्याकुल है कुछ कोमल भाव स्नेह सने से यहां वहां बिखरा देना। परि...
शब्दों का मेला
दोहा

शब्दों का मेला

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द-शब्द है चेतना, शब्द-शब्द झंकार। मिले सृष्टि को जागरण, शब्द रचें आकार।। शब्द विश्व का रूप है, शब्द बने उजियार। शब्द उच्च उर्जा लिए, मेटे हर अँधियार।। शब्द ब्रम्ह हैं, ईश हैं, शब्द सकल ब्रम्हांड। शब्द रचें अध्याय नित, मानस के सब कांड।। शब्द तत्व हैं, सार हैं, शब्द सृजन अभिराम। शब्द सतत गतिशील हैं, सचमुच हैं अविराम।। शब्द नाद, सुर, ताल हैं, शब्द प्रीति, अनुराग। शब्द गान, पूजन-भजन, शब्द दाह हैं, आग।। शब्द नेह हैं, प्यार हैं, शब्द गहन अभिसार। शब्द युगों तक गूँजते, बनकर के आसार।। शब्द भाव, अभिव्यक्ति हैं, शब्द नवल आयाम। सरिता के आवेग हैं, शब्द देवता-धाम।। शब्द मनुजता, वंदना, शब्द गीत, नवगीत। शब्द वाक्य के संग में, बन जाते मनमीत।। शब्द खगों के स्वर बनें, हर अधरों के राग शब्दों में संवाद है,...
मै समझूँ
कविता

मै समझूँ

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आँखों से देखु रुप तुम्हारा पलके बंद हो तो सपन तुम्हारा हवाओं मे जब भी लताएं झूमें मै समझूँ कि आंचल तुम्हारा। गगन मे कोई विदुत चमके मैने जाना बिन्दिया चमकी गगन में जब घटा गहराई लगा यूँ तुमने अलको को बिखेरा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मं...
जय श्री महाप्रभु वल्लभ बोल
भजन

जय श्री महाप्रभु वल्लभ बोल

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** एक सितारा प्रकटा था जग में वाणी में अमृत घोल। श्रीकृष्ण: शरणम मम का मन्त्र दिया अनमोल। श्रीनाथ ज़ी आराध्य उनके रखें उनसे हमजोल। पद वन्दन कर मुख से जय श्री महाप्रभु वल्लभ बोल। श्रीकृष्ण: शरणम मम का मन्त्र दिया अनमोल। ज्ञान बुद्धि विवेक में उनसा था ना कोई मेल पंडित ज्ञानी वेद पुराणी शास्त्रार्थ में सब फेल। तत्व ज्ञान का बोध कराया भेद दिये सब खोल। श्री कृष्ण: शरणम मम का मन्त्र दिया अनमोल। बेठक चौरासी महाप्रभु की निधि बड़ी अनमोल पारायण कर भागवत उद्धृत किये सब बोल। आत्मसात् कर सद्‌गुरु वाणी अन्तर चक्षु खोल। पद वन्दन कर मुख से जय श्री महाप्रभु वल्लभ बोल। एक सितारा प्रकटा था वाणी में अमृत घोल। भक्ति पुष्टि का अलख जगाया सेवा विधि बोल। श्री कृष्ण की लीलाओं से परत पड़ी दी खोल। जनम सफल कर प्राणी अष्टाक्षर मन्त्र बोल। श्र...
क्या कसूर था मेरा
कविता

क्या कसूर था मेरा

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या कसूर था मेरा जो मेरे सिन्दुर को उजाडा़ गया, अभी तो मेंहदी भी नही धूली थी और सिंदुर मिटता माँगो का। क्या कसूर इतना था मेरा कि मै एक हिन्दु की कोख से पैदा है हुई। कितने निर्दय अत्याचारी है वो क्या बीबी बच्चे नही उनके? किसी ने माँ को खोया है किसी ने पिता को खोया है किसी की राँखी जो सुनी है किसी की कलाई जो सुनी है। किसीका घर जो उजडा है किसी की मांग जो उजडी है। किसी ने कृष्ण खोया है, कहीं राधा जो बिछुडी है। यदि थोडा भी प्रेम होता यदि थोडी भी दया का भाव भी होता, नही वो कृत्य ये करते। उठो अब देश के वासी नही छोडो इन दुष्टो को अब तो काट दो इनके होथो को की अब ये भीख भी ना ले सके, नही वो ये कुकृत्य ये करते बस इन्सान वो रहते, ये तो इंसान के वेश में नर पिशाचर से कर्म है उनके, जो मानव होकर के मानव...
ये कलम वाले
कविता

ये कलम वाले

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये कलम वाले दो धारी तलवार लिए फिरते हैं, शरीर तो शरीर अंतस पर वार किये फिरते हैं, इनका नजरिया नजरानों के अनुसार होता है, पराए दुखी तो खुश और अपने दुखी तो जार जार रोता है, समाज से प्रताड़ित को प्रताड़ित करना अपना धर्म समझते हैं, समाज के प्रतिष्ठित की चापलूसी करना परम कर्म समझते हैं, कोई वंचित गुनाह करे तो उनकी जाति बता हर पल चिल्लायेंगे, कोई इनके लोग गुनाह करे तो उन्हें दबंग या बाहुबली बताएंगे, किसी अन्य धर्म वाले की गलती पर आतंकवाद वाला एंगल निकालेंगे, अपनों के देशद्रोह पर भी सामान्य घटना बता पर्दा डालेंगे, किसी गैर जरूरी बातों पर दिन भर ध्यान भटका भौंकते जाएंगे, जनता जो जानने चाहिए उन मुद्दों को बिल्कुल ही नहीं बताएंगे, कुछ खतरनाक किस्म के बढ़िया पत्तलकार दिखे हैं, आम चूसते हैं ...
चलो ‘नार्को टेस्ट’ करवाते है…
कविता

चलो ‘नार्को टेस्ट’ करवाते है…

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** वो सब लोग गौर से सुन ले जरा जो अक्सर बौखलाते हैं, सोने से पहले रोज जरा खुद का 'नार्को टेस्ट' करवाते है! छुपाए हुए किरदारों से खुद ही को जरा रुबरू करवाते है, खुद के देह से तो यहाँ सब अच्छे से वाकिफ़ हो चुके हैं, उसमें छुपे देव-दानवों से भी खुद की पहचान करा लेते है। इंसानी लिबासों में न जाने भेड़ियों ने कितने घर बनाए है? औरों पे उंगली उठाने में खुद के जाने कितने ऐब छुपाये है! चलो 'नार्को टेस्ट' करवाते है इसमें सब राज बयां होते हैं। असली चेहरे उसकी हर रेखा के साथ उजागर हो जाते है! जब औरों के दर्द नाटक एवं खुद के बेशकीमती लगते हैं, चलो 'नार्को टेस्ट' में रोज एक बार खुद से मिल ही लेते है। अब शिकायतों के ये दौर हमेशा के लिए खत्म कर देते है, क्या कहाँ, " आप 'नार्को टेस्ट' करने से बहुत घबराते है?" क्यों...
बाय यूज़र
कविता

बाय यूज़र

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ब्रह्मा और मनु की धरती हम उनकी संतान हैं मनु से ही मानव और मनुष्य हम कहलाए मनु के आगे राजर्षि इक्ष्वाकु उनके पुत्र भरत कहलाए चक्रवर्ती राजा, यह धरा उन्हीं की हम भारतवंशी कहलाए। राजा दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कृष्ण की हम संतानें हैं वही हमारे पूर्वज कहलाए। देवी प्रकृति सनातन है प्रकृति के हम उपासक‌हैं सदियों से हम इस पर खेती करते वेदों की ऋचाएं, ऋषिकुल चलते। शृंगी ऋषि और भरद्वाज ने बौधायन और कश्यप ऋषि ने और अगणित ऋषि मुनियों ने यह धरा हमें दान कर दी शिक्षा‌ सहित हमें दे दी। सहस्त्रों वर्ष का इतिहास हमारा यहां सनातन राज हमारा हमने ब्रह्मा और मनु से पाई इतनी प्राचीन लिखा पढ़ी नहीं कोई हो पाई यहां आर्य सभ्यता कहलाई। हम है यूज़र इसके हम इसके स्वामी ‌हैं राम कृष्ण के अनुगामी हैं। आए विदेशी आक्रांता ...