आधुनिकता
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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चकाचौंध की दुनिया में बस
भागम भाग है जीवन में,
नहीं आत्मीयता नहीं है प्रेम,
बस दिखावे है इस दुनिया में
जंगल हो या हो बस्ती,
नहीं पहचानते औरों को हम,
हम और हमारे दो बस
यही सिमटती दुनिया है।
रिश्ते नाते सब दूर हुए,
अब दोस्त यार है जीवन में,
पैसे की अहमियत रह गयी अब,
छलावा रह गया इस दुनिया में है।
औरों के लिए जीते हैं ये,
नहीं बहन भाई मौसी क्या है,
त्योहारों पर घूमने जाना,
रिश्ते नाते दबे मिट्टी में है।
मर्यादा लाज धूमिल है हुई,
शर्माते बूढ़े ठाड़े हैं,
लज्जा से आंखें नम है हुई,
आधुनिकता की इस दौड़ में है।
"क्यों कृष्ण आए अब तो है यहां?
किसकी साड़ी है बढ़ाने को,
सब जींस पैंट में द्रोपती है,
किसका यहां चीर बढ़ाने को"
लूट रही रोज पैसों पर ये,
नहीं कुल वंश का ख्याल रहा,
मर्यादा पाली जिसने ...