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पद्य

बंधन
कविता

बंधन

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बंधन तो बंधन होते है। संबंधों का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। संस्कारों कि पहनकर माला, जोड़ा दो परिवारों को। अपने स्नेह से सिंचित कर, सुरभित किया घर आँगन को। मेहंदी हाथों में सजी है, नयन स्वप्न लीन है। स्वयं को श्रंगारित करती, वीर की प्रतीक्षारत रहती। वीर वधू का वंदन है। उस वीर वधू का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्री अरविन्द सोसायटी कि सदस्य व श्री अरविन्द समग्र शिक्षा अनुसन्धान केंद्र के अन्तर्गत नव विहान शिक्षा अकादमी कि पूर्व संचालिका। रूचि : अध्ययन, सृजन, श्री अरविन्द शिक्षा क...
रजनी के दोहे
दोहा

रजनी के दोहे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १ तुमसे है माँ शारदे, बस इतना- सा काम। रचना मैं करती रहूँ, लेकर तेरा नाम।। २ रचना के भीतर बसें, सदा हमारे इष्ट। चले तीव्र जब लेखनी, कटें हमेशा क्लिष्ट।। ३ रचना के भीतर बसे, ऐसा सदा विचार। जनमंगल की भावना, उर में करे विहार।। ४ रचना रसना एक- सा, करतीं सदा प्रहार। इनसे बचना है कठिन, ऐसा इनका वार।। ५ रचना रसना बन कभी, करती जब ललकार। बड़े- बड़े जो सूरमा, गिरें पछाड़ी मार।। ६ रचना की माया महा, गाते सूर कबीर। इसमें मीरा की व्यथा, झाँके बनकर पीर।। ७ रचना के हित कर दिया, रत्ना ने दुत्कार। तुलसी से हमको मिला, मानस का उपहार।। ८ रचना रचना से जले, यही आज की रीति। रचना रचना से करे, कहाँ यहाँ पर प्रीति।। ९ बैठी रचना की सभा, कविवर हाँकें डींग। घूमें सब पण्डाल में, यथा गधे बिन सींग।। १० रचना तेरी चाकरी, करते सब विद्वान। तेरी महिमा से बनें, जग ...
सोच बदलो
कविता

सोच बदलो

सपना दिल्ली ******************** आगे निकलने की होड़ छोड़ मिलकर कदम बढ़ाओ बदलो न रास्ता मुश्किल में देख बन दुख में साथी दूसरों की हिम्मत बँधाओ घर, बाहर बहू -बेटी, महसूस सुरक्षित करें हो न शोषण मिले सम्मान ऐसा तुम संसार बसाओ। हो न कन्या भ्रूण हत्या केवल पढ़ाओ नहीं उसे सपनों की उड़ान की आज़ादी दिलवाओ भ्रष्टाचार, अत्याचार का मिटे निशान भाईचारे की रीति हो ऐसा प्रेम का तुम संसार रचाओ। सबको मिले न्याय ठोकर न खाए आम जन दर दर की ऐसा न्यायतंत्र बनाओ। सबको  मिले रोज़गार भूखा न सोए कोई मजबूर सिर पर सबके हो छ्त बेसहारा को सहारा मिले सम्मान बड़ों का हो दुश्मन भी बढ़ाए दोस्ती का हाथ... ऐसी दुनिया का निर्माण कराओ! परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अध...
नया साल नया दौर
कविता

नया साल नया दौर

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन के रंग मे खुशियों के संग मे, सुबह की लाली, घटा शाम की तन्हाई मे, हरे-भरे पेड़ों पर, चिड़िया चहकती रहें, खेत-खलिहानों में, फसल लहलहाती रहे, नयी रोशनी में, नये जीवन की शुरुआत हो, सबको जीने की नई दिशा, नयी राह मिले। गाँव मे खुशियों की, नयी सौगात हो , सबको अपनी अभिव्यक्तियों का नया संसार मिले। मन मस्तिक मे नव दुनिया की स्वागत की आशायें हो, जीवन मे नये उद्देश्यों की लौ जले, प्रेम की ज्योति जले खुशबुओं की महक उठे, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य की ज्वाला और जले, दुनिया में कला, नृत्य, लोक नृत्य का विकास हो, सभ्यता और संस्कृति का नया आयाम मिले, दुनियाँ में सभी का सभी से भाईचारे का संबंध हो, ना झगड़ा ना झंझट, न हाथापाई का वास हो, राहों-राहों मे दिल और प्यार का मिलन हो, जाति धर्म को मिटाकर सबकी धड़कनो की आवाज़ बनों, ऐसी हो नये साल की शुरुआत ...
रस्मो रिवाज
कविता

रस्मो रिवाज

श्रीमती आभा चौहान अहमदाबाद (गुजरात) ******************** यह रस्मो के बंधन है प्यार के धागे न जाने क्यों लोग इससे है दूर भागे ये रस्में कोई बेड़िया नहीं यह तो अपनी संस्कृति अपनी पहचान है पाश्चात्य संस्कृति को छोड़ो अपने देश का यह अभिमान है प्रेम से अपनाओगे गर इन्हें तो अपनों का मिलेगा प्यार रस्में निभा लोगे हंसते हुए तो खुश होगा सारा परिवार हां कभी-कभी इन को निभाने में शायद होता है थोड़ा मुश्किल पर है तो यह संस्कार हमारे हम सबकी रगो में हैं शामिल यह एक रस्म ही तो है , भाई के सर पर बंधा हुआ सेहरा कलाई पर बंधी राखी भाई के प्यार हो जाता है इससे और गहरा कितनी सुंदर है यह रस्मे दिल से इन्हें अपना लो दूर मत भागो इनसे गले से अपने लगा लो। परिचय :- श्रीमती आभा चौहान निवासी :- अहमदाबाद गुजरात घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
याद है
कविता

याद है

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** सिहर उठता बदन खिल उठती सांसे कि उनका आगोश में आना याद है। सर्द हवाओं का धुंध सा पर्द मौसम मानो छिपा रहा हो फिजा के रुखसार छिपते सूरज सी तेरी; मुस्कान याद है... गुनगुनी धूप, मद्दम पैरों के थाप सरीखे दबे पाँव बिखेरने आती हो खुशरंग, गुलों का मुड़कर उस ओर तेरी तरह इतराना; याद है। होले से रेशमी दुपट्टे का; नाजुक डालियों की तरह लहराना पंखुडियों जैंसे गुलाब की अधरों का खिल जाना फिर कहीं छिप जाती रश्मि; जाने कहाँ? कलियों की धीमी ढ़िढ़ुरन जैसा; तेरा वो शर्माना, याद है। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. प...
नायाब दिसम्बर
गीतिका

नायाब दिसम्बर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** नायाब जिन्दगी का, सुर ताल है दिसम्बर। इसको न मौन कहना, वाचाल है दिसम्बर।।१ भाने लगी रजाई, मन प्रीत सज रही है। रंगीन टोप स्वेटर, नव शाल है दिसम्बर।।२ है वक्त नापने का, अपना प्रतीक सुन्दर। अब साल पूर्ण होगा, ये काल है दिसम्बर।।३ प्रतिघात शीत का अब, होने लगा हृदय पर। बेडौल से बदन को, जंजाल है दिसम्बर।।४ काजू खजूर पिस्ता, बादाम नारियल घी। पकवान खूब खाओ, प्रतिपाल है दिसम्बर।।५ अब जन्मदिन सभी का, होगा नया नवेला। जो साल को बदलता, वो चाल है दिसम्बर।।६ जीवन बढ़ो निरंतर, संकेत मिल रहा है। भरपेट दाल रोटी, का थाल है दिसम्बर।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
मासूम चेहरे का राज
कविता

मासूम चेहरे का राज

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ा कातिल चेहरा है, होता है जन को नाज, लो तुम्हें मैं बतलाता, मासूम चेहरे का राज। प्यारी सी सूरत लगती, सिर पर रखा है ताज, बहुत छुपा रखा जन, मासूम चेहरे का राज। धर्म कर्म की बात पर, हो जिस पर हमें नाज, कृति के पन्नों में छुपा, मासूम चेहरे का राज। देेश सीमा पर जा रहे, सुरक्षा उनके सरताज, कहीं पैर न डगमगाएं, मासूम चेहरे का राज। हसरतें छुपा प्यार की, दफन हैं दिल में राज, भेद अब न खुल जाये, मासूम चेहरे का राज। मां का साया उठ गया, पिता नहीं रहे हैं आज, दर्द भरा दिल पुकारता, मासूम चेहरे का राज। राज्य भर में टाप रहा, हर मानव को है नाज, मन ही मन छुपा रहा, मासूम चेहरे का राज। गणेश जी ध्यान धरा, संपूर्ण हुये सब काज, सारी खुशियां छुपाई, मासूम चेहरे का राज। सूदखोर लो खा रहा, गरीब जन का ब्याज, आगे की सोच बताए, मासूम चेहरे का राज। चरव...
मेरी आधुनिकता
कविता

मेरी आधुनिकता

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मेरे पास मोबाइल फोन है और रंगीन टीवी भी है। आधुनिक ज़माने को परिभाषित करती एक सुशिक्षित बीवी भी है। ज़रूरी नहीं है आधुनिकता के लिए बंगले और बड़ी कार का होना, दुमंज़िला मकान और एक अच्छी-सी नौकरी भी है। सोफे पर बैठकर बड़ा इतरा के दबाता हूँ रिमोट टी.वी का, और ए.एक्स.एन चैनल की गौरांगनाएँ घेर लेती हैं मुझे। उनके सफेद बालों को देखकर पिता जी के सन जैसे सफेद बाल तैर जाते हैं मेरी आँखों में। धरी रह जाती है मेरी आधुनिकता। कुछ लिपटने के अंदाज में पत्नी कहती है:- जानू, तुम फिर क्यों उदास हो गए? ले आइए ना पिता जी को यहाँ, रख लेंगे किसी वृद्धाश्रम में! तुम्हारी चिंता भी जाती रहेगी और मिल भी लिया करना एक-दो महीने में। मुझसे तुम्हारी ये उदासी देखी नहीं जाती, कम-से-कम अपना नहीं तो मेरा तो खयाल किया करो! और मनान...
मां और सर्दी का मौसम
कविता

मां और सर्दी का मौसम

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** मां और सर्दी का मौसम सर्दी का मौसम मां तुम्हारी बड़ी याद दिलाता है। बचपन की वादियों में ले जाकर, अक्सर घुमा लाता है। छुटपन में जब गठरी बन कर रजाई में तुम्हारे छिपकर हम सो जाते थे, तुम धीरे- से थोड़ा खिसककर, रजाई से हमें अच्छे से ढंककर, अपने थोड़ा बाहर होकर सोती और प्यार से हमें ढंकती थी, वो स्पर्श याद दिला जाता है। चाहे कितनी भी ठंड हो, अंगीठी की सुर्ख आंच पर, हमारे लिए रोज चाव से कुछ न कुछ बनाना और हमें खाते देख निहाल हो जाना, सच कहूं मां तुम्हारे प्यार से पगा वो स्वाद बार-बार याद दिला जाता है। गरम कपड़ों से पूरा लदे होने पर भी तुम्हारी आंखों की वो चिंता कहीं ठंडी न लग जाए। स्कूल निकलने के समय काफ़ी दूर तक हमें जाते देखते खड़े रहना और तुम्हारी आंखों का भर जाना, आज भी याद दिलाता है। ये कमबख्त सर्दी का मौसम तुम्हारे न होने की स...
दिल धड़कता रह गया
कविता

दिल धड़कता रह गया

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** यूं अचानक से कोई कुछ पास आकर कह गया, बस उन्हें फिर याद कर ये दिल धड़कता रह गया। जज़्बातों की बात क्या सब ख्वाब जलकर खाक हैं, अरमानों की बुझी राख में शोला भड़कता रह गया। शोर सहता है बहुत मन पर भीड़ में रहता अकेला, अपने तो दिल का मंजर सूनी सड़क सा रह गया। कनखियों से वार कर खामोशियां रुखसत हुईं, मुट्ठियों में उसके बस वह खत फड़कता रह गया। खुशी ओढ़ ली चेहरे पर पत्थरदिल बनकर विवेक वह उन्मन है यही सोच तन मन तड़पता रह गया। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। ...
मानव से मानव को जोड़े
गीत

मानव से मानव को जोड़े

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नफरत की दीवारें तोड़ें। मानव से मानव को जोड़ें।। यकसांखून बनाया सबका, यकसां जान बनाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हमको जन्म मिला यूं प्यारा, जन-जन को दें सदा सहारा। जितने भी प्राणी हैं जग में, दर्जा सबसे अलग हमारा।। कोई भी हम मजहब माने। मानवता के सभी खजाने।। कभी किसी में वैर भाव की, दिखी नहीं परछाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। प्यार सिखाते हैं सब मजहब, नफरत किसने सिखलाई कब। किसने दर्द नहीं समझा है, पैरोंकार दया के हैं सब।। पर पीडा को कौन बढ़ाता। हिंसा से किसका है नाता।। धरती पे दुख कैसे कम हों, सबने अलख जगाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हम मजहब के लिए नहीं हैं, कहो नही क्या बात सही है। हमें जरूरत मजहब की तो , अपने हित के लिए रही है।। कैसे जीवन अपना तारें। दीनो दुनिया यहां...
मैं तो चला सफर पर
गीत

मैं तो चला सफर पर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अनदेखी, अनजान डगर पर, तुमसे बिना बताये, बोले, मैं तो चला सफर पर अपने मेरे यार! सदा खुश रहना... ध्यान रहे कितनी सर्दी, गर्मी झेली गुलशन लहकाया, खून-पसीने से, मिलजुलकर कलियों का आँचल महकाया; कभी न मेरी याद, उदासी का साया इनको छू पाये, इन पर इतना प्यार लुटाना, मेरे प्यार! सदा खुश रहना... एक दूसरे में घुलमिलकर कितने सपन सलोने सींचे, आसमान के तारे तोड़े, कितने चाँद उतारे नीचे; इन्हें कभी एहसास न होने पाये कोई चाँद सपन है, अब सब भार तुम्हारे काँधे, मेरे यार! सदा खुश रहना.... कितनी मुसकानें मुसकाईं, कितना हँसे हँसी के मेले, इतराते, इठलाते गुजरे कितनी मनुहारों के रेले; अब मुझको भी खुद में पाना, खुद से ही हँसना, बतियाना, पूरनकाम समझना खुद को, मेरे यार! सदा खुश रहना.... यद्यपि अपने वादे थे हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, सदा सामना हर मुश्कि...
ठंढी की कहानी
कविता

ठंढी की कहानी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** बेजुबान कढ़ाके ठंढी की कहानी, कई हजारों साल की है ये पुरानी। ठंढी के दिन की शुरुआत जब होये, सभी ढूढे अपने गर्म कपड़े जो खोये। किसान गेहूँ का बीज,खाद सब जोहे, कड़ाके की ठंढ़ में खेत में गेहूँ बोये। नंगे पाँव वह खेत में गेहूँ सिचने जाये, उसे ठंढ़ की चिंता बिल्कुल न सताये। ठंढ जनवरी में इतनी ज्याद बढ़ जाये, सूरज ठंढ में बर्फ का गोला बन जाये। पानी सब लोग पिये गरमाय-गरमाय, ठंढ में खीर-पूड़ी,पकवान सब खाय। गरम समोसा पैक करके घर ले आय, कई गरम जिलेबी दुकान पर ले खाय। कोई स्वैटर व जाकिट पहिन ठिथुराय, कोई उलेन का पैंट-शर्त रहा बनवाय। फिर भी सबको ठंढ रहा बहुत सताय, गर्मकर रहा हाथ कोई लकड़ी जलाय। फिर भी ठंढ नहीं रही किसी की जाय, पीये काफी कोई पीये चाय पर चाय। फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय, फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय। परिचय ...
जय जवान, जय किसान, जय स्वच्छकार
कविता

जय जवान, जय किसान, जय स्वच्छकार

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** देश, जवान, किसान की जय, जय स्वच्छकार की करते हैं। आप सभी गौरव भारत के, गर्व आप पर करते हैं। भारत देश हमारा है, बहुत प्यार हम करते हैं। जन्म लिए हम भारत में, जय भारत, भीम की करते हैं। जवान देश के सैनिक हैं, ये देश की रक्षा करते हैैं। गर्मी, ठंडी में दिनों रात, सीमा पर ड्यूटी करते हैं। जय जवान, जय देश के सैनिक, नमन आपको करते हैं। देश में रहते अमन चैन से, याद आपको करते हैं। किसान हमारे शुद्ध रत्न, धूप में तपते रहते हैं। तन, मन, धन, श्रम अर्पित करके, अन्न उगाया करते हैं। अन्न उगाकर कृषक लोग, पेट देश का भरते हैं। जय जवान, जय धरती मां, हम नमन आपको करते हैं। जय जय जय जय स्वच्छकार, स्वच्छ देश को करते हैं। अपनी चिंता किए बगैर, दिन-रात सफाई करते हैं। आत्मसुरक्षा नहीं, उपकरण, स्वच्छकार ना पाते हैं, मेनहोल, सीवर में घुसकर, स्वास ब...
पछतावा
कविता

पछतावा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** किसी को सता कर जिये तो क्या जिये, किसी को रुला कर जिये तो क्या जिये। करता रहा तुम पर भरोसा अटूट हर पल, उसी को आजमां कर जिये तो क्या जिये। किया जिंदगी की जमा-पूंजी नाम तुम्हारे, उसे घटिया बता कर जिये तो क्या जिये। जिसके अश्रुधार बहे सिर्फ तुम्हारे ही लिए, उसे नजरों से गिरा कर जिये तो क्या जिये। किया जो कुछ, सब तुम्हारी खुशी के लिए, उसी का दिल दुखा कर जिये तो क्या जिये। लहू के रिश्ते जैसा ही रिश्ता था जब उससे रिश्ते में दाग़ लगा कर जिये तो क्या जिये। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक ...
कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का
कविता

कौड़ियों में बिकता श्रम किसान का

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में बिकता, मेरे हस्तांतरित भोजन से, हर एक जीव का पोषण होता, शाक, पात, आहार में फिर क्यों मेरा अर्पित समर्पण नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! मैं अन्न के हर एक कण को, सींचकर जीवित न सदा रखता, माटी से माटी के पुतलों का फिर कैसे जगत में जीवन अनवरत चलता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! अन्न से है दौड़ता खून नसों में, जीव की देह को जो ऊर्जा से भरता, धरा का प्रथम पुत्र बनकर फिर क्यों फल में लाल रंग मेरा रुधिर नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! लेह, चौष्य, भक्ष्य हो या भोज्य, हर पदार्थ मेरे उद्यम से ही बनता, साधुओं-सा जीवन जीता फिर क्यों सबमें आहुति-सा तुम्हे नहीं दिखता। क्यों श्रम मेरा, कौड़ियों में ही बिकता! चाहता हूँ, बस अब इतना ही, चाहे अन्नदाता तू मुझे ना कहता, निज स्व...
चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक
ग़ज़ल

चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक। न पहुँचे आज तक हम आसमाँ तक। पता हम पूछकर निकले थे लेक़िन, हुए गुमराह ही उनके मकाँ तक। कि थोड़ी देर सुस्ताने के बदले, उठाया फासला फिर कारवाँ तक। वो दिल के हाल से गुजरा हुआ था, जो रिश्ता था किसी के दरमियाँ तक। निगाहें दूर तक पहुँची तो लेक़िन, वहाँ भी था वही जो था यहाँ तक। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
भूख
कविता

भूख

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कभी मन्दिर की सीढ़ियों पर... तो कभी मज्जिद के बाहर... कभी गुरुद्वारे के लंगर में... तो कभी चर्च के गलियारों में... कुछ चेहरे हर जगह नजर आ जाते है जिनके पेट की भूख, उन्हें हर जगह ले आती है... ये वो लोग होते है, जिनका कोई धर्म नही, कोई मज़हब नही होता।। जो उन्हें कुछ दे दे, बस वही इनका भगवान होता है इनके लिये हर धर्म का भी बस 'रोटी' नाम होता है। दुनिया इन्हें भिखारी कहे, या कहे बेचारे लेकिन ये है सब किस्मत के मारे।। मज़हब के लिये लड़ना सिर्फ हम जानते है, जो भूख से तरसते है, वो सबको मानते है।। हम इंसान तो भगवान से भी महान हो गए जब मज़हब के नाम पर लाखों कुर्बान हो गए।। कभी भेद न किया उसने किसी पीर में फकीर में, और हम खींचते चले गए धर्म पर धर्म की लकीरें।। इस दुनिया में भूख का कोई मजहब नही होता और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता।। परिचय :-  रु...
भारत की कुर्बानी को
गीत

भारत की कुर्बानी को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के महायज्ञ से, उपजी अमिट निशानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। करी तेरहवी, तेरह दिन में, बंगलादेश बनाया है। हमने पाकिस्तानी सेना, को घुटनों पर लाया है।। 'विजय दिवस' सोलह दिसंबर, को यूँ देश मनाता है। भारत की सेना के आगे, कौन भला टिक पाया है।। सजा मिली है इस दुनिया में, हर हरकत शैतानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भारत की कुर्बानी को।। इंदिरा की आँधी ने उसको, दो टुकड़ों में बांट दिया। बंगलादेश अलग करके धड़, पाकिस्तानी काट दिया।। दुनिया ने इंदिरा को समझा, था नाजुक अबला नारी। उसने ही दुनिया को अपना, दिखला रूप विराट दिया।। हमने लोगों बेमतलब की, कुचल दिया मनमानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। सैनिक तानाशाह याहिया, खां का सपना तोड़ दिया। दुनिया के नक्शे में बंगला, देश नया एक जोड़ दिया।। तिराणवे...
ज़मी पर लाया उसने
कविता

ज़मी पर लाया उसने

रवि चौहान आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज़मी पर लाया उसने, पकड़ ऊँगली चलना सिखाया उसने! कंधे पर बिठा, सारा जहाँ दिखाया उसने! चलता रहा कांटो भरी राह पर, फुलो की राह पर चलाया उसने! चुभे कांटे पैरो मे जब, रोया मगर आंसू नहीं बहाया उसने! देख दर्द उसका रो न दू मै, अपने दर्द को छुपाए उसने! लड़ता रहा सारे जहाँ से, मेरी खुशियों की खातिर, खुद रो कर भी मुझे हसाया उसने! छोड़ अपने सपनो को, मेरे सपनो को अपनाया उसने! गवा दिया जीवन अपना मेरी खातिर, मेरी कामयाबी में खुद को कामयाब पाया उसने! परिचय :- रवि चौहान निवासी : आजमगढ़ (शेखपूरा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
बेटे
कविता

बेटे

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** आन, बान और शान हैं बेटे। हिम्मत और अभिमान है बेटे। दादा दादी के हैं प्यारे, मां बापू के राजदुलारे। खुशियों भरी उड़ान हैं बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। कविता दोहे छंद सरीखे, खुशबू और मकरंद सरीखे। फूलों के उद्यान हैं बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। हैं खुशियों के रेले जैसे घर के अंदर मेले जैसे। आशा और अरमान है बेटे। आन, बान और शान हैं बेटे। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें h...
भाव-सागर को मथाती लेखनी
गीतिका

भाव-सागर को मथाती लेखनी

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' कोलार रोड, भोपाल (म.प्र.) ******************** भाव-सागर को ~ मथाती लेखन। काव्य का अमृत ~ पिलाती लेखन। शारदे माँ की अगर कवि पर कृपा, ज्ञान-रस-आनंद ~ लाती लेखन। रोज दुनिया में ~ घटित जो हो रहा, पूर्ण जस का तस दिखाती लेखन। जानते हैं सब कलम की शक्ति को, राज सिंहासन ~ डिगाती लेखन। सत्य हो या झूठ ~ छिप सकता नहीं, छद्म के परदे ~ हटाती लेखन। देश सर्वोपरि ~ जिएँ हम देशहित, बोध समता का ~ कराती लेखन। गीत-कविता-लेख ~ सुख आनंद दें, 'रवि' तभी जग को ~ सुहाती लेखन। परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' निवासी : कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) * २००५ से सक्रिय लेखन। * २०१० से फेसबुक पर विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रतिदिन लेखन। * विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। * लगभग १० साझा संकलनों में सहभागिता। सम्प्रति : पुस्तक प्रकाशन की तैयारी, छंदबद्ध रचनाओं में विशेष रुचि, गीत, ग...
उदासी से… परे
कविता

उदासी से… परे

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चाहे!!! जिंदगी उदास हो.... उदासी भरा दिन, उदासी भरी एक लंबी रात हो... वही जिंदगी की, चक्की पर चलती। दिन और रात के कामों की, हर दिन की तरह वही लिस्ट हो। चाहे!!!जिंदगी उदास हो..... गलियों से गांव... गांव से शहर.... फिर चाहे!!!! शहर से जंगल तक उदास हो। एक धुंध में पसरी हुई, जिंदगी की हर आस उदास हो। सुनना खामोशियों के शोर, और खुद से बात करना। भीड़ का तो..... हर इंसान अकेला है। फिर किस साथ के लिए उदास हो। मिलोगे ना जब तुम खुद से, हर तरफ उदासी दिखेगी। प्यास.... बाहर नहीं। तुझे तेरे भीतर ही मिलेगी। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
भैया बोल कर चली गई
कविता, हास्य

भैया बोल कर चली गई

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कविता की प्रेरणा- बात उन दिनों की है, जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ता था। परीक्षा के दिन चल रहे थे, रात में महत्वपूर्ण प्रश्न मॉडल पेपर बांटे जाते थे। जब लड़कियों को पेपर की जरूरत होती थी, तो वह लड़कों से हंसकर बात करती थी, उन्हें बुलाती थी। लड़के समझते थे, हंसी मतलब........! बेचारे लड़कियों के पेपर के इंतजाम के चक्कर में रात भर जागते थे, पेपर पहुंचाते थे और खुद का पेपर बिगाड़ते थे। लड़कियों को प्रथम लाने में वे नींव का पत्थर बनते थे। यह क्रम आखरी पेपर तक चलता था। परीक्षा पूर्ण होने के पश्चात लड़की उन्हें घर बुलाती, नाश्ता करवाती, चाय पिलवाती और विदाई समारोह स्वरूप (फेयरवेल) अंत में धन्यवाद भैया कह कर विदा कर देती। बेचारा लड़का शब्द-विहीन, अपनी सी सूरत लेकर विदा हो जाता। उसी घटना को स्मरण कर आज यह कविता लिखने की प्रेरणा हुई। अचानक व...