आहिस्ता-आहिस्ता
संजीव कुमार बंसल
पीलीभीत (उत्तर प्रदेश)
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आहिस्ता-आहिस्ता क्यों
बदल जाते हैं लोगों के चेहरे!
आहिस्ता-आहिस्ता लेकर
इम्तिहान- क्यों होते हैं सवेरे!
आहिस्ता- आहिस्ता ही
जिंदगी- क्यों आती है समझ!
जलते चिराग पड़ने पर
जरूरत- अक्सर क्यों जाते बुझ!
आहिस्ता-आहिस्ता मिल ही
जाता है-हर समस्या का हल,
तू मान मेरी बात, आहिस्ता-
आहिस्ता ही होगा तू सफल।
आहिस्ता-आहिस्ता बनता है
समुद्र में- जो तूफानी ज्वार,
भाटे के रूप में जाएगा आहिस्ता-
आहिस्ता, कर ऐतबार।
गंदे पानी में जो होती है
गंदगी अपार, उसे हिलाना नहीं,
गंदगी सब बैठेगी आहिस्ता-
आहिस्ता, बस करना इंतजार।
परिचय :- संजीव कुमार बंसल
निवासी : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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