कान्हा की कृपादृष्टि
हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)
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जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है
तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है,
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है
जब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार
अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार
उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है
धृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है
गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है
उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है
भूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है
सहज मिलन मन ...