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पद्य

एक एहसास ऐसा भी
कविता

एक एहसास ऐसा भी

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। आशा नही अब आश की, और कद्र नही विश्वास की, कीमत पानी की नही, बल्कि कीमत होती हैं प्यास की जीना मरना ये सब तो महफूज बाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। खुशियों की दामन छोड़कर, रिश्तों का बंधन तोड़कर, अब तो बताइये, क्या मिला अपनों की संगत छोड़कर जीने मरने की कसमें तो खूब खाते हैं। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं। क्या देंगे साथ जीवन भर, जो पल भर में उब जाते है। जनाब आप समंदर की बात करते है, यहाँ तो लोग आँखों मे डूब जाते हैं।   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
मैं इंसान होना चाहती हूँ
कविता

मैं इंसान होना चाहती हूँ

डाॅ. अहिल्या तिवारी रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इंसान होना चाहती हूँ न हिन्दू न मुसलमान, दुनिया के दिलों की मैं ईमान होना चाहती हूँ। दुनिया मेरी दौलत नहीं हक़ नहीं टुकड़ों पर, चार दिनों की दुनिया में मैं मेहमान होना चाहती हूँ। मिट गए जो अमन पर हो कर परे जग से, हर जन्म में दिल का मैं अरमान होना चाहती हूँ। दे सके जो दान जीवन को जीवन का, ऐसे धरा के लाल पर मैं कुर्बान होना चाहती हूँ। जाने कैसे सीख जाते कुछ लोग आग का खेल, जलाते घर भाई का, यहाँ मैं नादान होना चाहती हूँ। जगह नहीं फूलों के लिए दिलों में एकत्र हो गए पत्ते, स्वार्थ के सूखे पत्ते उड़ाने मैं तूफान होना चाहती हूँ। बिकती ज़िन्दगी पलों की मौत दुआएँ देता है, हर साँस होती दर्द भरी मैं बेजान होना चाहती हूँ। दे दस्तक धरती तले थाम सीने में गगन, प्यार बो कर यहाँ मैं आसमान होना चाहती हूँ। क्यों बने कहानी मेरी हँसने हँसाने के...
कहीं दूर चलें
कविता

कहीं दूर चलें

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** चलो कहीं चलें दूर सड़क के किनारे, किसी मोड़ पर, रौशनी के किसी खंभे के नीचे बैठकर मन की बातें करें। अपने अपने अतीत के, नुचे घुटे घरौदें से दूर, किसी सूखें हुऐ नाले की पुलिया, पर बैठकर बातें करें। चलो कहीँ दूर चलें। डरावने घने जंगलों की अंधेरी पगडंडियों पर रतजगा मनाएं जिन्दगी के हर मसलें पर बहस करें झगड़े, ढेर सारी सुख दुखः के अतीत को दोहराये और खो जायें । कुछ सुकून पायें, कहीं दूर। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्...
आक्रोश
कविता

आक्रोश

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अधिकांश युवा मानस की पटल से उभर रही है आक्रोश की गुबार। क्योकि आजकल की युवाओ को सही पहचान बनाए रखने के लिए। न तो कोई मार्गदर्शक हैं न कोई मानदंड सिर्फ भौतिकता की दौड़। उदंडता से पीड़ित सुकुमार सपने को साथ बिन्दीया सी चमकती। तुच्छ सफलताओ को चूमने पुचकारने में व्यस्त। खाशकर माध्य्म वर्गीय पिछड़े परिवार के किशोर और युवा अपनी मनोवृत्तियों में। छेड़ रखा है आक्रोश की धुंआ जो गुबार बनता जा रहा है। इस जीवन की निरस्त उत्कण्ड़ाओ को एक आकलन की सूत्र लिए। अपनी पहचान बनाए रखने की लिए भ्र्ष्टाचार की गर्माहट में भइए भतीजावाद में। जो नाजीवाद से छह गया है इस आजाद हिंदुस्तान में। अपने आपको चर्चित तस्वीरों में उवभारने के लिए आक्रोशो को साथ लिए। कानूनी अपराधों की संगीनों में बेध रहा है अपने आपको। अगर यह आक्रोश रोजगार की मरहम से बन्द न हुआ तो शांति का नब्ज डु...
पहुँचा देना मधुशाला
कविता

पहुँचा देना मधुशाला

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** घर घर गैस नही पहुँचाओ बस पहुँचा देना हाला जीतोगे झकझोर इलेक्शन देगा दुआ पीने वाला होश में आ जाता है पीकर एक पेग हर दीवाना मुझसे पूछो उसकी ताक़त क्या होती है मधुशाला बादल बरसें बिजली तड़के या आँधी तूफ़ाँ आए क्या मजाल की पीने वाला ख़ाली हाथ चला जाए पिया नहीं इसको जिसने वो क्या क़ीमत समझेगा तुम्हें पढ़ाएगा गुण इसका एक प्याला पीने वाला देखा होगा तुम लोगों ने मेरे जलवे का जलवा लम्बी लम्बी लगी क़तारें बटता ज्यों पूड़ी हलवा पी लो एक पेग फिर जन्नत का होगा दीदार तुम्हें दिखेगी प्यारे तुम्हें मसाना भी प्यारी सी मधुबाला चिंता औ अवसाद तुम्हारे सब के सब मिट जाएँगे जो भी ग़म होंगे जीवन में ख़ुशियों में ढल जाएँगे ग़म की ऐसी तैसी करती एक खुराक करो सेवन ऊँच नीच हिंदू मुस्लिम का भेद मिटाती मधुशाला जब तक सूरज चाँद रहेगा मधुबाला का ना...
विन्ध की पहाड़ी
कविता

विन्ध की पहाड़ी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** विन्ध की पहाड़ी फैली मेखलाकार केहेजुआ पर्वत के फैला विस्तार है ता समीप नद सोनभद्र भवरसेन नामक सुरम्य स्थान हैं वही बाण भट्ट तपोस्थली कादम्बरी ग्रंथ वाको साक्ष्य हैं केहेजुआ के सौंदर्य वर्णन करू जह विविध भांति के तरु वृक्ष हैं आमा अमरोला अमरबेली अमलतास शोभित अपार है उमरि करौंदा कहुआ कटैया कुल्लू कारी कैमा कठमहुआ भरमार हैं कैथा कोसम कुम्भी कया खैर घोटहर घुघुची खनकदार है गुरुचि ऑउ खरिहारी गुलमेंहदी फूलै छिऊला की कतार है जामुन कठ जामुन अमला ऑउ प्रसूतिहा मुरुलू सहिजन जरहा ऑउ बतिलहा बबूर सेम नीम बेल बेर बरारी सेमर गावड़ी पेड़ सुकुमार है बॉस बेर्री बनचूक बरसज बरगद तेंदू शाल सगमन गुर्जा की कतार हैं शीशम हेरुआ रोरी रेऊजा सरई धवा धवाई दे जंगल गुलजार हैं हर्रा ऑउ बहेरा औषधीय पेड़ चिरचिरी अमृत समान है पारिजात को कहत सेहरूआ यहाँ बन ...
बदली है सोच
कविता

बदली है सोच

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** कहां गये वो जंत्र-तंत्र ? कहां गए वो जादू मंत्र ? पाखंडों ने था डाला डेरा, अंधविश्वासों ने था घेरा...। भूत भगाओ ... चुड़ैल छुड़ाओ.... सौतन से निजात पाओ, व्यापार में वृद्धि लाओ। घर में सुख समृद्धि पाओ। बंद हुआ व्यपार ठगों का.... भ्रमित करके लूटा खूब। गई ...अब इनकी लुटिया डूब। बिरला ही कोई झांसे में आएगा जरूर करोना ने नुकसान पहुंचाया। पर सही मायनों में जीना सिखाया। तन -मन -आत्मा की शुद्धि, अब आई जीवन जीने की बुद्धि। आहार-विहार, आचार-विचार, वैदिकता से था जिन का प्रचार.... पुनःहुआ इनका प्रसार... जीवन सिद्धांत जो भुुलाएगा,, कोरोना जैसे राक्षस से मारा जाएगा।।   परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
मन के अँधेरे में
कविता

मन के अँधेरे में

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** छिपा पडा़ हैं अपार खजाना, मन के अँधेरे में। ढुंढ़ सको तो ढुंढ़ लेना, मन के अँधेरे में। वहीं मिलेंगे राम-रहीम, वहीं मिलेगा कान्हा कन्हैया। छिपे पडे़ हैं , मन के अँधैरे में। हे! बन्धे मन-मंदिर की बत्ती जला दे, तेरा मन अमृत का प्याला, यहीं काबा, यहीं शिवाला। न मिलेगा मंदिर-मस्जिद, न मिलेगा गिरजाघर में। सब कुछ तुझे मिल जाएगा, मन के अँधेरे में।। . परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने क...
माँ
कविता

माँ

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** ईश्वर का वरदान है माँ, धरती पर भगवान है माँ कोई उपमा न दे पांऊ मैं, ऐसी महान् आत्मा है माँ। माँ से पाया उजास सूरज ने, माँ से पाई उंचाई आकाश ने और गहराई प्रेम की सागर ने, पाया है उसने भी दुलार माँ से। बीजों में फूटते अंकुर में, अग्नि से उठती ज्वाला में पतझर में भी सावन का, सा एहसास करातीं है माँ। तुझे शब्दों में न बांध पाऊँ मैं, क्योंकि तू ही पूर्ण शब्द है माँ . परिचय :- अन्नपूर्णाजवाहर देवांगन जन्मतिथि : १७/८/१९७६ छुरा (गरियाबंद) पिता : श्री गजानंद प्रसाद देवांगन माता : श्रीमती सुशीला देवांगन पति : श्री जवाहर देवांगन शिक्षा : एम.ए हिंदी, बी.एड., पी.एच.डी सम्प्रति : शोधछात्रा निवासी : राजेन्द्र नगर, महासमुंद प्रकाशन : आंचलिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित सम्मान : श्रेष्ठ सृजक सम्मान, साहित्य साधना सम्मान अन्य : समाजसेव...
गुजरात गौरव और वॉरियर्स
कविता

गुजरात गौरव और वॉरियर्स

आकाश प्रजापति मोडासा, गुजरात ******************** गुजरातने तो बड़ी से बड़ी, मुसीबतों का सामना किया है। सब एकजुट होकर मुसीबतों को, दूर कर जीत को हासिल किया है।। आज एक बार फिर गुजरात पर, एक नई मुसीबत आई है। कोरॉना नामकी महामारी सब पे, डर बन के छाई हैं।। ये वाइरस ने गुजरात पर, ऐसा प्रभाव डाला है। खाना-पीना तो छोड़ो, जीना भी मुश्किल कर डाला हैं।। भैया ये चीन का वाइरस है वाईरस, इसे तो कुछ पता नहीं। इसका सामना गुजरातवालों से पड़ा हैं ये अभी जानता नहीं।। यहां के डॉक्टर्स, नर्स, पुलिस, सफाई कामदारों में वो ताकत है। इस वाईरस को जड़ से निकाल देने में, ये सब सक्षम है।। हम भी अपना पूरा, सहयोग इनको देंगे। इनकी हर बात मानकर, इनकी मदद करेंगे।। ये तो हमारे लिए, गुजरात के कॉरोना वॉरियर्स हैं। ऐसी मुश्किल समय में भी हमारे बारे में, सोचते ये ही हमारे रियल हिरोज हैं।। ग...
प्यार का सिलसिला
कविता

प्यार का सिलसिला

डॉ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) ********************** एक छोड़ता दूसरा पाता है प्यार सिलसिले बनाता है। अँधेरा छाता,उजाला आता है जीवन यही कहलाता है। जलजला जब आता है कश्ती से साहिल छूट जाता है। बहुत आसान है विखर जाना जुड़ने में जीवन निकल जाता है। टुकड़ों में भी मुस्कुराता है खिलौना फलसफे सिखाता है। अजब बस्ती है ये शायरों की जिसे देखो ग़ालिब कहलाता है। है सांस सांस मौली पली डोर से डोर का नाता है। . परिचय :-  डाँ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' जन्म : २० अप्रैल माता : श्रीमिती रामदुलारी विश्वकर्मा पिता : श्री रामकिशोर विश्वकर्मा निवासी : आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) शिक्षा : ऑनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा) बी. एड., एम. ए.(भूगोल), एम. फिल. (नगरीय भूगोल), पी-एच. डी.(कृषि भूगोल)। प्रकाशन : राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं ...
इतना मुश्किल भी नहीं है
कविता

इतना मुश्किल भी नहीं है

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्यों को पाना, उसी तरह जिस तरह चिड़िया अपना पेट भरती है चुग कर दाना दाना, पर कभी गलत राह पर मत जाना, वरना जिंदगी भर पड़ेगा तुम्हें पछताना। लेकर अपने गुरुओं का ज्ञान जिंदगी को अपनी कोहिनूर बनाना, इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्य को पाना। यह भी निश्चित है लक्ष्य को पाने की राह में कठिनाइयों का आना, परंतु तुम कभी मत घबराना, क्यों चुना था ये लक्ष्य अपने मन में एक बार जरूर दोहराना, फिर करना मजबूत अपनी कमजोरियां और सच्ची मेहनत को अपना मित्र बनाना। इतना मुश्किल भी नहीं है अपने लक्ष्य को पाना। . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
मुस्कुराती वो
कविता

मुस्कुराती वो

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** कुछ उदास सा मैं और मुस्कुराती वो ये वो, कोई वो (?) नहीं बल्कि मेरी ज़िन्दगी है। हाँ दोस्तों ! ये ज़िन्दगी, मुझसे ही जंग लड़ रही है। कभी कभार ही तो मैं हँस पाता हूँ खुलकर तब भी वो, मेरी ज़िन्दगी ग़मगीन गीत गाती है। मैं चलूँ जो पूरब, वह चल पड़ेगी पश्चिम । मुझको गहरी तान लुभाती, खो जाता हूँ आलापों में। वो जाने किसके विलाप में मद्धम सुर रखती थापों में। मैं प्रेम उससे करता हूँ वह भी तो मुझे चाहती है। फिर भी हैं दूर दूर हम नदी के दो किनार से। मैं आदर्शवादी हूँ तो वह मेरी अवहेलना है। जीवन भर ये आपाधापी, मुझे अकेले झेलना है। उसका रात का समझौता टूट जाता है उजाले में। वो तो जैसे सारा ही दिन, नाता तोड़ लेती है मुझसे। शाम ढले शरमाती आती रात मेरे पहलू में बिताती, नवजीवन की अलख जगा के हर रोज़ सुबह गुम जाती वो ! मेरी मुस्कुराती वो !! . परिचय ...
कान्हा
कविता

कान्हा

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** कान्हा-कान्हा बोला, सखे! पार्थ-पार्थ बोला सखे! नेहदेव की सघन छांव सा मन वृंदावन में डोला, सखे! राधे-राधे बोला सखे, मन तेरे बिन डोला सखे। प्रीत लगाकर तेरे संग, हृदय रास रचाया सखे। पीतांबर सा रास रचा कर, मुरली धुन पर नचाया सखे। प्रीत राधा कृष्ण सी, तेरी मेरी हो गई सखे। मिलन कभी ना हो पाएगा, ये हृदय से जाना सखे। कान्हा सा अपने हृदय में, प्रेम तेरा जगा रखा सखे। अमर प्रेम है तेरा मेरा, राधा कृष्णा सा होगा सखे। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindiraks...
लोकतंत्र का राजा “मतदाता”
कविता

लोकतंत्र का राजा “मतदाता”

धर्मेन्द्र शर्मा "धर्म" इन्दौर (म.प्र.) ******************** लोकतंत्र की अलख जगाने सब लोगो को यह बात बताने...! लोकतंत्र के हवन कुंड मे याचक नही, तुम दाता हो...! सरकार बनाने वाले सिर्फ तुम ही तो मत+दाता हो....! राजा को तुम रंक बना दो और रंक को तुम राजा.....! कमजोर ना समझो तुम अपने को....! तुम ही तो लोकतंत्र के सुंदर, सुघड़ भाग्य-विधाता ....! जनतंत्र मे जनता का राज, जिसकी चाहे बनाऐ सरकार...! मौका अब तुम चूक गए तो, फिर पांच साल पछताओगे...! कोसोगे तुम खुद अपने को मन ही मन पछताओगे...! लालच,लोभ मे तुम मत आना, झूठे वादो पर ना तुम भरमाना...! अपनी बुद्धि तुम काम मे लाना, निर्भय होकर तुम करना मतदान...! जागो,उठो, दौडो, भागो, बाकी काम सब इसके बाद...! सबसे पहले करो ये काम, करो मतदान, करो मतदान...! इसलिए सोचो समझो करो विचार फिर करो मतदान, करो मतदान....!! परिचय :- धर्मेन्द्र कला-नारा...
कलम, आज उनकी जय बोल
कविता

कलम, आज उनकी जय बोल

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** भारत है अपना बहुत महान, जन्में है यहाँ पे वीर, ये उन वीरों की कहानी है, जिन्होंने दी कुर्बानी है। जो चढ़ गए हँसकर फाँसी पर, बिना किये गर्दन का मोल कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल माँ के आँचल में रहने वाले, आँचल से ही दूर गए भारत की रक्षा करने में, माँ बहनों के सिंदूर गए बिना रुके करते है सेवा, जैसे रुके न कभी चक्र वो गोल कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल याद करो उन वीरों को जिन्होंने जान गावाई थी, देकर अपने प्राण, लहू की नदियां जब बहाई थी। दुश्मनों की छाती पर चढ़कर, जब वीरों ने बजाई ढोल, कलम, आज उनकी जय बोल कलम, आज उनकी जय बोल   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
स्वप्न नही
कविता

स्वप्न नही

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पलको के पीछे छुपा है एक और संसार सुनहरी धूप लिए गुनगुनाती हवा के साथ। करते ही बंद पलके होती है हर कामना पूरी जब चाहो आता है बसंत अल्हड़ पवन के साथ। शीतल दव बिंदु करते है स्वागत आदित्य रश्मि का पंकज नृत्य करता है सरोवर के साथ। कुहू कुहू गाती कोयल आम्रकुंज महकाती है नभ से उतर आता है अरुण संध्या के साथ। श्याम वर्ण घन अंबर में आवारा विचरते है पीयूष आता है चुपके से सावन के साथ। कुसुम करती प्रणय याचना मधुर मधु सुवाषित कब आएगा मधुप कामदेव के साथ। विरह वेदना का हुआ अंत श्रृंगार किया सौभाग्यवती ने तृप्ति आयी प्रियंकर के साथ। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ।...
अक्षय वट
कविता

अक्षय वट

डॉ. भवानी प्रधान रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** भारत भूमि त्यौहारों का देश विविधताओं का है समावेश प्रकृति संरक्षण का देता सन्देश वट मूल के नीचे बैठे महेश प्रकृति के सृजन का प्रतीक छाया लेते आते जाते पथिक जेठ मास अमावस तिथि मानते सब वट सावित्री सुहागिने रखती व्रत उपवास पति आरोग्यता का आश वट जैसी घनी प्रेम हो अटल सौभाग्य मेरा हो वट वृक्ष कराता धार्मिकता वैज्ञानिकता, अनश्वर का शोध कराता दीर्घायु, अमरत्व बोध दुनियां में वट वृक्ष अकेला दीर्घायु और अलबेला कल्पांत प्रलय काल में खड़ा मुस्कुराता अकेला यह त्रिमूर्ति का प्रतीक ब्रम्हा, विष्णु और शिव वसुंधरा हमारी माता है नदी, ताल तलैया वस्त्र आभूषण वृक्ष वनस्पतियाँ जीवन दायिनी उसकी घनी शीतल छांव में आते जाते पथिक सुस्ताते स्वच्छ वायु थके को डेरा इसकी डाली चिड़ियों का बसेरा जाने कितने युगों से बड़ा हरा-भरा शांत खड़ा . परिचय :- ड...
लॉकडाउन
कविता

लॉकडाउन

आकाश प्रजापति मोडासा, गुजरात ******************** आज सब की झूबा पे सिर्फ एक का ही इजहार हैं। चीन से आया मेहमान कब जाएगा बस इसका ही इंतजार हैं।। लॉकडाउन के आज ६० दिन हो गए। लोगो के आंख के आंसू भी सुख गया गऐ।। सबकी हालत आज बेहाल हैं। हम स्टूडेंट्स भी इस कॉरोना से बड़े परेशा हैं।। सोचा था कॉलेज से कुछ दिन ही दूर रहना है। कॉरोना चला जाएगा फिर कॉलेज से रोज मिलना है।। अब ना तो कॉरोना जा रहा है, ना ही लॉकडाउन खत्म हो रहा है। कॉलेज और दोस्तो को याद कर घर में ही कैद होकर रहना हैं।। जब कॉलेज के दिनों में कॉलेज जाने में पक जाते थे। अब लॉकडाउन समझा रहा हे की कॉलेज के दिन ही तुम्हारे अच्छे अफसाने थे।। १२ बजे की कॉलेज होती थी तो, दोहपर का नास्ता दोस्तो के संग होता था। शाम आते आते दिन मस्ती कब गुजर गया, पता ही नहीं चलता था।। अब बस बहुत ठहर लिया, इस बिन बुलाए चीनी मेहमान ...
विरहन की पीर
गीत, दोहा

विरहन की पीर

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर। साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। राधा सी बन बाँवरी, भटकूँ वन दिन-रैन। कहीं नहीं मन अब लगे, हृदय न पाये चैन। अपलक राह निहार कर, थकतीं आंखें रोज। मुख सीं कर बैठी रहूँ, नहीं निकलते बैन। चिट्ठी तक आती नहीं, ह्रदय न पावे धीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।1 जिन राहों से तुम गये, देखूँ नित उस ओर। भटकूँ बन पागल पथिक, चले न दिल पर जोर। अंतहीन विरहाग्नि में, झुलस रहीं हूँ नित्य।, हृदय दग्ध अब हो रहा, पीड़ा मन में घोर। लहरों को बस गिन रही, बैठी नदिया तीर। पिया बसे परदेश में, हिय में उपजी पीर।।2 साजन की नित याद में, नयनन बहता नीर। खटका हो जब द्वार पर, रुक जाती है साँस। द्वारे पर प्रियतम न हों, चुभती दिल में फाँस। साँसों की सरगम सधे, यदि लौटे निज गेह। दरवाजे यदि अन्य हो, लगती मन को डाँस। वापस अब आओ पिया, व्य...
मजदूर
कविता

मजदूर

डॉ. रिया तिवारी कबीर नगर (रायपुर) ******************** एक दिन आँखों में सपने लेकर निकल पड़ा था छोड़कर गाँव मजबूर उस वक्त भी था निकले थे जब घर से पाँव माँ की आँखे रोई थी घर का आँगन सुना था पर अभाव के कारण ही तो ये रास्ता मैंने चुना था अब भी मजबूरी है कठिन अभी भी है मेरा रास्ता माँ कहती तू लौट आ आ तुझे मेरी ममता का वास्ता निकल पड़ा हूँ फिर वीरान सड़कों पर ये राह कही तो जाएगी एक एक कदमो से ये मीलों की दुरी तय हो जाएगी मैंने तो दुनिया देखी है भरी गर्मी में खुद को तपाया है क्या करू अपने लाल का जिसने कुछ साल पहले ही जन्म पाया है उसके सूखे होंठ .. ठन्डे पानी को तरस गए उसके नन्हे पाँव .. अब गर्म सड़कों से झुलस गए कितनी दूर चल कर आ गए अभी और कितनी दूर जाना है संघर्षों का कैसा ये दौर ना छत .. ना ठिकाना है ना कोई मदद की आस है ना कोई मेरे साथ है ... पर मैं पहुच जाऊंगा मंजिल तक मेरे मन में विश्वास है ....
हल
कविता

हल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र को बढ़ता देख मन ठिठक कर हो जाता लाचार विचारों की लहरें लगने लगती सूनामी सी। चेहरा आईने में देख खामोश हो जाता मन ये सोचता संक्रमण की आपदा से कैसे बचा जाए कब तक लड़ा जाए। चिंता की लकीरों को अपने माथे पर उभारता मानो ये कुछ कह रही हो बता रही हो आने वाले समय का लेखा जिसे स्वयं को हल करना। शिक्षित बेरोजगार बेटे की नोकरी और जवान होती लड़की की शादी की चिंता देख वो खुद की बीमारियो पर ढाक देता - स्वस्थ्यता का पर्दा और बार -बार आईने में देखता है अपना चेहरा मन ही मन झूठ कहता मै ठीक हूँ। आखिर खामोश आईना बोलने लगता ये हर घर का मसला जहाँ हर एक के मन में आते इसतरह के छोटे- छोटे भूकम्प। ईश्वर और कर्म से कहे कि वो ऐसे इंसानो की मदद करें जो अपने भाग्य में खोजते रहते इन मसलो का हल। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
कैसे पढ़ेगा गरीब का बच्चा
कविता

कैसे पढ़ेगा गरीब का बच्चा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** अरे अब क्या अच्छा हो रहा है, जो इतनी बड़ाई हो रही हैं, अरे अब क्या अच्छा हो रहा है, जो इतनी बड़ाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही हैं। सुना है भारत देश को डीजिटल अब बनाया जा रहा है, शिक्षा पे हक समान है, सबको यह बताया जा रहा है। पढ़ेगा तो बढ़ेगा इंडिया सबको यह समझाया जा रहा है, गरीबी मिटाने के नाम पर गरीब को ही मिटाया जा रहा है। धर्म बना है संकट अब हर बात पर लड़ाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन पढ़ाई हो रही हैं। जरा देखलो उन गरीबों को सरकार पे विश्वास है, क्या पढ़ेगा उनका बच्चा साधन न जिनके पास है। जमाना डिजिटल टीवी का है और बात भी ये है सही, और उनका क्या होगा जिनके घर टीवी हैं ही नही। बात रखेंगे जब हम सामने बड़ी देर से अब सुनवाई हो रही हैं, और कैसे पढ़ेगा अब गरीब का बच्चा जब ऑनलाइन प...
मुश्किल में मुस्कान
कविता

मुश्किल में मुस्कान

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जिंदगी के सफर में मुश्किलें बढ़ती है आना जाना लगा है उसका जैसे उसके आने से लगे हैं सजा जीवन को सफल बनाने के लिए मुश्किलों का करना है सामना करते रहे निरंतर संघर्ष मुश्किलों और संघर्षों से बढे़ हम, गिरे हम, वक्त के पहले, ना मिले हैं सब कुछ, ना ज्यादा और ना कम यह सोचकर करे निरंतर संघर्ष सुदूर अंचल तक पहुंचना था इतना मुश्किल रास्ते को नापे बिना थम जाये हम यह ना था कर्म के पथ पर करे निरंतर संघर्ष करें निरंतर संघर्ष सफलता से है मिले हैं मुस्कान यही सोचकर मैं मजदूर, मैं विद्यार्थी, मैं डॉक्टर, मैं पुलिस, मैं प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति गांव से निकला शहर की ओर अब है ऐसी विपत्ति आई प्रत्येक वर्ग से आवाज आई मुझे पहुंचना है अपने घर चाहे पथ पर हो कितनी मुश्किलें न छोडू मैं अपनी मुस्कान ले चल पथ मुझे अपनी मंजिल एक मुस्कान लेकर मैं चला मुश...
इशक़्या
कविता

इशक़्या

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या सोचते हो मैं तुम्हे सब गम दिखाना जानती हूँ। अरे दिल हूँ आईने से भी खुद को छुपाना जानती हूँ। गर आ जाए आँखों मे नमी का सैलाब कभी तो फिर, मुस्कान से अपने चेहरे कि चमक बदलना जानती हूँ। तुम सोचते हो इजहार-ऐ-सूरत से भांप लेंगे दिल का हाल, गजब की अदाकारी से हाल-ऐ-दिल बदलना जानती हूँ। तुम घाव पर घाव दे सोचते हो मरहम लगाना तो, मैं आँसुओं से जखम पर लेप लगाना जानती हूँ। ये मान गई, गजब की ठंडक थी तुम्हारी फूंक में तो भी, मैं चोंट को छुपाने का हुनर, अब बख़ूबी जानती हूँ। दावा गर करता है वो, मुहब्बत का ऐ "नवपमा"तो, सुनले! मैं रूहें-इश्क़ से उसकी रग-रग जानती हूँ। . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य...