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पद्य

जयकरी छंद
छंद

जयकरी छंद

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत चरणान्त गुरु लघु (२१) से अनिवार्य मानव जीवन बहुत महान, समझो प्रभु का यह वरदान, इसे व्यर्थ मत करिये आप, वरना झेलेंगें संताप। मचा हुआ चहुदिश आतंक, धनी धनी, निर्धन अति रंक, बीच पिस रहा मध्यम वर्ग, नहीं मिला मनचाहा स्वर्ग। राजनीति है अब अनमोल, सभी दल नित्य बजाते ढ़ोल, खोजें डफली छेड़े राग, ओ! सोई जनता अब जाग। जाति धर्म अब है व्यापार। हुआ देश का बंटाधार। नित्य नवेले होते क्लेश। बदला समजिक परिवेश। हे मानव! तू रह मत मौन। बागडोर थामेगा कौन। सुप्त अवस्था त्यागो आज। जागृत कर दो सर्व समाज। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
याज्ञसेनी २
कविता

याज्ञसेनी २

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** देख कृष्ण को बोली कृष्णा, आओ भइया, आओ। धर्मराज को मार्ग धर्म का तुम भी जरा दिखाओ। भइया, युद्ध को होने दो, तुम नहीं युद्ध को रोको। मैं तो कहती धर्मराज की कायरता को टोको। किया समर्थन धृष्टद्युम्न ने तत्क्षण महासमर का। किया निवारण भीमसेन ने किसी हार के डर का। बोला पबितन अटल प्रतिज्ञा याज्ञसेनी है मेरी। विश्वास रखो तुम, तेरी इच्छा होगी निश्चित पूरी। कहा पार्थ ने दंड कर्ण को मुझको भी देना है। कृष्णा के अपमान का बदला मुझको भी लेना है। 'युद्ध को तो होना ही है, पर पहल उन्हें करने दो।' कहा कृष्ण ने, 'कृष्णे ! जबतक टले युद्ध टलने दो।' हुआ सर्वसम्मति से निर्णय, 'शांतिदूत जाएगा।' बोली कृष्णा,'रिक्तहस्त ही वह वापस आएगा..... . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास...
नारी
कविता

नारी

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** नारी से सारा विश्व जगत, नारी से नर नारायण है, नारी है जग का गौरव, नारी गंगा सी पावन है। नारी ममता का वह सागर, जिसमें संपूर्ण समर्पण है, नारी का पद नर से ऊपर, नारी समाज का दर्पण है। नारी कुदरत का ऐसा तोहफा, जो प्रगति का संबल है, मृदुवाणी और परोपकारीवह, उसमें स्वयं का आत्म बल है, नारी कल्पतरु की छाया, जिसके नीचे सुख ही सुख है, नारी का जीवन वह मीठा फल, जिसके बिना अधूरा नर है। कुल की मर्यादा की खातिर, विष का प्याला पी जाती है, सुख-दुख में परछाई बन चलती, अर्धांगिनी वह कहलाती है। जिन पुरुषों को जन्म दिया उन्हीं के हाथों चली जाती है, कभी त्याग की बलि चढ़ी तो, कभी जलाई जाती है। किसी ने वजूद को उसके, दांव पर लगा ललकारा है, किसी ने भोग्या समझा उसकी इच्छाओं को मारा है। कर्ज चुकाया नारी होने का, सीता भी कलंक से बची नहीं अग्नि परीक्षा द...
ऋषिकेश
कविता

ऋषिकेश

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** चली सखियों सॉन्ग गंगा, हिमालय की चोटी से, खल खल बहती, बहती सीधी, ऋषिकेश की गोद में। जहां रहेंगे नीलकंठ जी वही रहेगी शिवाया, कभी ना छोड़ो साथ में उनका, जहां रहेंगे मेरे महादेवा। बहुत से आश्रम बसे हैं ऋषिकेश की पर्वतमाला मैं, श्रद्धालु मोहित होते हैं प्रकृति की मधुशाला में, पी जाएं अमृत ध्यान और ज्ञान का। इतना सुंदर यह तीर्थ हमारा बहुत से मंदिर बसे हैं, पर लक्ष्मण झूला सबसे खास यहीं से निहारने सुंदरता, सुंदर पर्वतमाला कितना प्यारा लगता है कितना प्यारा न्यारा लगता है। अंत पद छोटा सा चार धाम ऋषिकेश के द्वार से, यमुनोत्री को सरल पड़ा, खल-खल बहती गंगोत्री, कैलाश में विराजे केदारेश्वर, अंत में जाएं बैकुंठ धाम। . परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
स्वप्न
कविता

स्वप्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जल उठे दो दीप सहसा, तम को मिटाने के लिए चल पड़ी आंधी भयावह, वह दीप बुझाने के लिए। क्या खता इस दीप की, बाध्य तो तुमने किया। बन्द कर रखा था इनको अरमां न कोई आने दिया। छेड़ कर मन तन्त्र मेरा तुमने सुनाया मृदु राग कोई। फिर तोड़ दी वीणा तुम्हीं ने बजने न दी ध्वनि कोई। छेड़ कर वंशी की ध्वनि को, जो गाये हर पल राग मिलन के, पर स्वप्न, स्वप्न ही बने रहे, बने न राग वह बन्धन के। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
बदनाम शायर
कविता

बदनाम शायर

अनुपम अनूप "भारत" रीवा मध्यप्रदेश ******************** एक वकत ऐसा भी आएगा, मेरा नाम बदनाम शायरो मे लिया जाएगा। महफिले होगीं टूटे दिलो की, वहा पर मेरा लिखा नगमा सुनाया जाएगा। आखों से नीर मुँह मे वाह होगी, तेरे शहर से जब कभी मेरा जनाज़ा जाएगा। मुझे भूलना इतना भी नही आसां, तुम्हे यह बात तेरा आने वाला वक्त बताएगा। तुम मेरी तस्वीर तो जला सकते हो, क्या करोगे जब आईने मे चेहरा नज़र आएगा। मेरी छोड़ो तुम तुम्हारी तुम बताओ, ये मुमकिन हैं मेरे रहते तुम्हे कोई याद आएगा। ये मोहब्बत नही हैं आसां अनुपम, ये किस्सा किसी रोज कही कोई और बताएगा। ये जख़्म हैं दिखता न, ही छुपता हैं, मोहब्बत की हकीकत को मेरे यारों, किसी मोड़ पे बैठा कोई गालिब बताएगा। परिचय :-  अनुपम अनूप "भारत" रीवा मध्यप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
संग लिखा काँटों में पलना
कविता

संग लिखा काँटों में पलना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** फूल तेरी तक़दीर भी क्या है, संग लिखा काँटों में पलना। चढ़ते हो देवों के सर पर, पड़ता शव के साथ भी चलना। हँसी खुशी के मेलों से भी, गले मिला करती तनहाई। तुम बनने जाते वरमाला, जहाँ कहीं बजती शहनाई। सजते हो सेहरे में लेकिन सेज पे तो पड़ता है कुचलना। फूल तेरी तक़दीर भी क्या है, संग लिखा काँटों में पलना। बिखराते हो रंग खुशी के, हाथ तुम्हारे क्या रह जाता। बासंती फागुन जाते ही, पतझड़ सा जीवन ढह जाता। महकाते तुम भी हो चाहते, काँटों वाली डगर बदलना। पर फूल तेरी तक़दीर यही, संग लिखा काँटों में पलना। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ ह...
एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक और एक ग्यारह होते ये है गणित का मामला दो और दो चार होते ये है प्यार का मामला नौ और दो ग्यारह होते ये है भागने का मामला एक और दो बारह होते ये हे बजने का मामला एक और एक ग्यारह होते ये है एक पर एक का मामला तीन और पांच आठ होते ये है बड़बोलेपन का मामला दो और पांच साथ होते ये है साथ फेरों का मामला प्यार करने वाले साथ होते ये है दिलों का मामला ऊपर वाला के संग होते ये है भक्ति भाव का मामला सांसों के साथ जब होते ये है जिन्दा रहने का मामला . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्त...
नीर
कविता

नीर

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** नयनों में नीर तो प्रायश्चित जलाशयों में नीर तो पिपासा तृप्त नीर अम्बर में तो है वर्षण प्रसूनों पर नीर तो ओस है नीर शक्कर में तो चाश्नी है नीर सहसा आए तो आत्मशुद्धि है नीर बिनु जीवन तो निष्प्राण है . परिचय :- भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम एक देश है प्यारा अपना रंग रुप और जाति धरम प्रांत जैसे अलग-अलग है तिरंगा अपना एक है त्योहार भिन्न-भिन्न होते यहाँ और भारत अपना एक है नष्ट कर देंगे भारतीय सेना दुश्मन के फेंके बम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम भाषा बोली अलग-अलग है राष्ट्रगान अपना एक है पकवान भिन्न-भिन्न मिलतें यहाँ और भारत अपना एक है यही कहती है सेना हिन्दुस्तानी हँसते हुये हम सब करें करम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
चंद्रशेखर आज़ाद
कविता

चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ....... आजाद। पिता का नाम ........ स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्............ भारत मां की जय....... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली.....आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा .......उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो.....तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर .......आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद.... आज़ा...
मेरे ज़रूरी काम
कविता

मेरे ज़रूरी काम

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** जिस रास्ते जाना नहीं हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है वही कोई और करे-मूर्ख है-कह देता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मेरे कदमों के निशां पे है जो चलता उसे अपने हाथ पकड कर चलाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। और मेरे कदमों के निशां पे जो ना चलता उसकी मंज़िलों कभी खामोश, कभी चिल्लाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मैं कौन हूँ? मैं मैं ही हूँ। लेकिन मैं-मैं न करो ऐसा दुनिया को बताता हूँ। मैं अपनी अहमियत ...
लगाई तुमसे प्रीत तो
गीत

लगाई तुमसे प्रीत तो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगाई तुमसे प्रीत तो बदनाम हो गया। माना जो तुमको राधा तो मैं श्याम हो गया। हुई सुबह शुरू तो आफताब हो गया। जैसे ही दिखे तुम ये दिल गुलाब हो गया। २ करने लगा हूँ अबतो मैं बातें अजीब सी, लगता मेरा ये दिल तेरा गुलाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... सुबह से शाम तेरा इंतज़ार हो गया। तुझको ही चाहूँ तेरा तलबगार हो गया। मेरा महक गया चमन आ जाने से तेरे, फूलों की तरह खिलके मैं गुलफाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... आने लगा हूँ आजकल लोगो की नज़र में। मैं आधा हुआ जा रहा हूँ तेरी फिकर में। तूने तो कैद कर लिया मुझको तेरे दिल में, मेरे दिल मे यार तेरा भी मकाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... चारो तरफ है चर्चा तेरे मेरे नाम का। था पहले अब नही रहा मैं कोई काम का। पहले जो मिला करते थे चुपके तो ठीक था, मगर ये किस्सा अबतो सरेआम हो गया। लगाई तुमस...
कोहरे की धुँध
कविता

कोहरे की धुँध

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** कोहरे की धुँध में तुम्हारे अहसास नज़र आते हैं बदलते मौसम के खूबसूरत अंदाज़ नज़र आते हैं जरूरी नहीं हर बात होंठों से कही जाए झुकी पलकों में भी तो जज़बात नज़र आते हैं सांझ के सुनहरे रंग गुलाबों पर बिखरे नज़र आते हैं किनारे लहरों को ढूंढते नज़र आते हैं ज़रूरी नहीं रोज़ रोज़ आकर हमसे मिलो हम तो खुश हो लेते हैं जब आप हमारे ख्वाबों में नज़र आते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कलश, इंदौर  पूर्व उपाध्यक्ष वामा साहित्य...
कैसी ये होली
कविता

कैसी ये होली

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अब कहां मिलते कोकिल स्वर है। कौओ की हमजोली अब कहां राग कहा फाग कैसी ये होली ऐसा लगा जैसे आसमान से प्रीत की बूंद-बूंद बरसी हो तेरे छूने के संग। और मैं भीगी की धरती सी रंग गई तेरे रंग। जहां-जहां तू छुए ना जाए तेरा रंग ना सुगंध। आज मैंने भी भांग पी रखी है तेरे दो नैनो के प्यालो से। आज तेरा नशा सर चढ बोल रहा है। आज सारी दुनिया डोल रहा है। अपने जी का पोल खोल रहा है आज मैं झगड़ना चाहूं जी खोल के तुमसे भी बुलवाना चाहू तुम्हारे एहसास अपना बोल के तुम्हारे नजरों के नटखट से आजाद होने आई हूं। तुम्हें छूने की इजाजत आज मैं घर से लेकर आई हूं कहीं हो ना जाऊ बदनाम भी फिकराना छोड़ कर आई हूं। आज तेरे संग मे तेरे रंग में रंगनेआई हूँ । . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
शिव आराधना
कविता

शिव आराधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शिव शंकर के श्री चरणों में, अपनी जगह बनाता चल। भाँग धतूरा बिल्वपत्र सँग, दधि घृत शहद चढ़ाता चल। पंचाक्षर को नित्य जाप ले, सुधरे यह जीवन सबका। नित्य आरती महादेव की, नित उनके गुण गाता चल। भक्ति भाव से नित शंकर का, सुबह शाम गुणगान करो। भजन हृदय से खुद भी भज कर, जग को संग सुनाता चल। भक्तों का कल्याण सदा शिव, दुष्टों का संहार करें। श्रद्धानत होकर मन ही मन में, धूनी नित्य रमाता चल। कैलाशी का ध्यान धरो नित, त्याग मोह-माया सारी। सांसारिक सुख डिगा न पायें, दिल से शपथ उठाता चल। दानी भोले शंकर जैसा, सकल सृष्टि में मिले नहीं। निर्मल छवि को हृदय बसा कर, शिव की अलख जगाता चल। आशुतोष सच्चे भक्तों को, देते हैं वरदान सदा। उपकारी बन सदा भक्ति से, सही राह अपनाता चल। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
सब छोड़ दिया
कविता

सब छोड़ दिया

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** एक नाम से नाता तोड़ लिया जो खास था उसको छोड़ दिया मै रहा अब अपने अपने में वो हमको कब का छोड़ दिया कुछ रात सुबह गुजरी ऐसे फिर एक सुबह सब छोड़ दिया अब जोश जुनून नया कुछ था चल नाम नया करते फिर से वो समझ रहा है सब मुझसे एक राह भी ना निकले जिससे है दर्द बहुत इस सागर में लहरों से मचलना छोड़ दिया जाना था सागर की गहराई में नदियों में भी जाना छोड़ दिया चिल्लाकर मै भी कहता था आवाज़ न अब निकली मुझसे . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
बिरह की पीड़ा
कविता

बिरह की पीड़ा

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** किसी की नफरत ने शायर बना दिया किसी की चाहत ने शायर बना दिया किसी के शब्दों ने शायर बना दिया किसी के लफ़्ज़ों ने शायर बना दिया किसी की नज़रों ने शायर बना दिया किसी के अधरों ने शायर बना दिया किसी के मिलन ने शायर बना दिया सिसक और बिछुड़न ने शायर बना दिल की धड़कन में जिसको बसा लिया उसी की तड़प ने शायर बना दिया दिल जीतने की लगन ने शायर बना दिया दिल में बसने की ज़िद ने शायर बना दिया फेर के नज़रों से जो जख़्म बढ़ा दिया उसके इंतज़ार ने सरिता को शायर बना दिया . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
संगीत व सरगम
मुक्तक

संगीत व सरगम

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हर दिशा मेंं राग है संगीत का। सृष्टि में अनुराग है संगीत का। हैं सभी क्रम-कार्यक्रम सरगम सहित, असंभव परित्याग है संगीत का। सुनें यदि ध्यान से हर ओर सुर की प्रीत गुंजित है! कहीं है पाठ कविता का, कहीं पर गीत गुंजित है! सकल संसार ही सरगम की सत्ता का समर्थक है अवनि से गगन तक संगीत ही संगीत गुंजित है! अज़ां हो, शंख हो, कोई इबादत या भजन-पूजन! निनादित घंटियाँ हों धर्मस्थल की कोई पावन! मुझे हर शब्द से संगीत की सौग़ात मिलती है, ॠचाओं का पठन हो या कहीं क़ुरआन का वाचन! जब सजनी को याद सताती है प्रिय की! उर पर वह तस्वीर सजाती है प्रिय की।! सरगम के हर स्वर में होता है 'प्रिय-प्रिय', बुलबुल भी गीतिका सुनाती हैं प्रिय की! वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से। हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से। खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस, प्रकट हुई जब सरगम उसके...
तुम से सपूत के होने से
कविता

तुम से सपूत के होने से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - क्रांतिवीर श्री चंद्रशेखर आज़ाद जी के बलिदान दिवस पर विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली। रस - वीर, करुण, भाव - देश भक्ति इस माटी की खुशबु का दीवाना था एक शोला था। शत्रु भी था चकित, सिंह वो कर गर्जन जब बोला था ।। मैं पैदा आज़ाद हुआ आज़ाद धरा से जाऊंगा। तुझमें है ताकत जितनी कर ज़ुल्म मैं ना घबराउंगा।। हूँ स्वतंत्रा का राही इस वसुंधरा का लाल हूँ। तेरे जैसे निसाचारों का साक्षात् ही काल हूँ।। बांध कफ़न आया सर पर हूँ। मौत का डर तू ना दिखला।। है जननी अवनि मेरी यह। इसका आँचल जो कुचला।। इसकी ही रक्षा की ख़ातिर। शीश कटाने आया हूँ।। तुझको तेरे हर कर्मों का। दंड दिलाने आया हूँ।। शान से बोला जय भारत। यूँ फिरंगियों को डरा दिया। मिटा गया निज हिन्द पे यौवन । कर्ज धरा का अदा किया।। है अफ़सोस मुझे इतना। वो कैसा भाग्य का फेरा था? अल्फ्रेड पार्क में ...
होली
कविता

होली

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** होली है मस्त होली सब ने जो मिलकर खेली यारों की मस्त टोली खेली जो सबने होली। चढ़ा दो रंग तन पर सब झूम रहे संग में खाए जो भांग पकोड़े कहीं उड़ाई जा रही ठंडाई। होली मिलन है आया बढ़ गया भाईचारा मिटा कर द्वेष सारा खुमार चढ़ गया निराला। अबीर गुलाल लगाकर सब ने जो खेली होली यारों की मस्त टोली खेली जो सब ने होली।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेप...
लेखनी हाथों में लेकर
कविता

लेखनी हाथों में लेकर

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** लेखनी हाथों में लेकर, यूँ डगर में मत रुको। वरदान कवि का है मिला मत डरो मत तुम झुको।। भावनाओँ के भंवर में डूब शब्दों को चुनो। कवि हो तो कुछ शर्म से, कुछ धर्म से कुछ तो लिखो।। गद्य में या पद्य में, गीत में संगीत में तुम अंधेरे में रहो, और उजालों से कहो।। तम हटा ..प्रकाश भर, रवि जरा आकाश पर।। रश्मियाँ फिर झूमकर। लेखनी को चूमकर। स्वागत करें। तुझसे कहें। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। मावस गहन कालिख रहे, निशा कराहे और सहे। कवि उठाना कलम अपनी, चीरना अंधकार को, विभा पारावार को।। चांदनी बिखेर देना, लाना चंद्रक हार को। पूर्णिमा खिल उठे, नीर सागर हिल उठे।। पुरबा बहे। हंसकर कहे। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य...
माँ की महिमा
मुक्तक

माँ की महिमा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जगतजननि कहलाती माता! सबसे बढ़कर उसका नाता! कौन नहीं उसका ॠणदाता, कौन नहीं उसके गुण गाता! बन गया है माँ का आँचल सर पे साया धूप में! सुरक्षित शरणार्थी है सुत की काया धूप में! शीश लज्जावश झुकाया भास्कर ने शून्य में , देखता वह रह गया ममता की माया धूप में! कहीं भी देखिए माँ का दुलार है अनमोल! ममत्व क़ीमती है उसका प्यार है अनमोल! दुआएं उसकी हों कोई या हो कोई आशीष, हर एक भाव है शुभ हर विचार है अनमोल! दुखों की धूप में शीतल बयार मेरी माँ! विपत्तियों की उमसती में फुहार मेरी माँ! मैं जब कभी हताश या निराश होता हूँ, प्रदान करती है आशा अपार मेरी माँ! सुत न ममता से दूर होता है! माँ के नयनों का नूर होता है! सांवरा पुत्र भी जननी के लिए , क़ीमती कोहेनूर होता है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ ...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग्य

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** यह कैसी रीत चली है खून बहाना, भाईचारा भूलकर दुश्मनी निभाना। चहुं ओर अंधियारा फरेब की राह पर देश की गरिमा को रखकर ताक पर। जिस राधा का लहंगा सलमा ने सिला था चांद तारे भरे गोट चुनरी में जड़ा थी। बेरंग हो गया हलकी धूप की आंच पर प्रेम भावना सदाचार लगी सब दांव पर। त्रासदी और भयावह अमानवीय काम से राजनैतिक वैमनस्यता धर्म के नाम से। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...