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पद्य

अनगिनत यात्राएं
कविता

अनगिनत यात्राएं

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** पिता ने की अनगिनत यात्राएं पर जा नहीं पाए दूरस्थ जगहों पर इस डर से कि हमें कहीं कुछ कम न पड़ जाए साधन की बहुत कमी के बगैर भी मुल्तवी करते गये घूमने का शौक देखते रहे सपनों में हरियाली भरे पर्यटन स्थल चीड़ के वन बर्फाच्छादित उपत्यकाएं बताते रहे प्रसंगों से जोड़कर माँ के साथ संपन्न चुनिंदा यात्राओं का रससिक्त वर्णन उनकी यात्राओं में अक्सर  आड़े आता रहा हमारा बचपन या हमारी पढ़ाई और एक दिन जब हम सब बड़े हो गये  नहीं रहा  हमारी कमी का डर और रह गया उनके पास समय ही समय हमने देखा पिता के शौक को भी अंतिम सांसे लेते हुए एक दिन पिता की तरह   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठ...
करवा चौथ और मृत्यु की जंग
कविता

करवा चौथ और मृत्यु की जंग

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** उसकी जीवन मृत्यु की जंग चल रही थी, मेरी अर्धांगिनी मेरी जिंदगी मांग रही थी, केंसर की काली घटाएँ उसे रंग रही थी ऐसे में भी भारतीय संस्कृति टँग रही थी। करवा चौथ का पवित्र पर्व था, उसके लिए पति व्रत धर्म था, थका शरीर जर्जर हो तप रहा था, फिर भी उसका हौसला बढ़ रहा था। मुझे तिलक लगा टक-टक एक टक देख रही थी, चेहरे की बनावट गड़बड़, आंखों में सैलाब भर रही थी, जल पिला पूछ ही रहा था कि चक्कर से आंखे चक्रा रही थी, चलनी में चेहरा देख बून्द-बून्द अश्क बरसा रही थी। वह मेरी लम्बी उम्र की कामना कर व्रत-उपवास रख भूख सह रही थी, खुद के प्राण अटक-अटक कर रहे वह मुझे देख रही थी, मजबूर पति था,अपने आंसु ओं का घूंट गटकते वह देख रही थी, मेरे बच्चों के साथ मेरे पति का क्या होगा शायद वह सोच रही थी ? रो-रही थी जिंदगी,रो-रहा था प्यार विमर्श को, वह झुकी परम्परा...
हे मिसाइल मानव
कविता

हे मिसाइल मानव

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** हर्षित है आज यह नभतल। याद कर वो सुनहरा कल।।अग्निमानव का कर रहा सहर्ष स्वागत। मानो कहता हो यह सकल जीव-जगत।। अर्पित कर दिया जिसने अपना जीवन। आओ मिल हम उन्हें करें नमन।। कर अर्पित हृदयतल से उनको श्रद्धार्पण। हे अग्निमानव मेरा भी नमन करें स्वीकार। हे माँ भारती के आदरणीय सजग पहरेदार।। . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
जीवन का कड़वा घूंट
कविता

जीवन का कड़वा घूंट

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** जीवन का घूंट है कड़वा शिकवा न कीजिए, मौन से स्वीकारें या समझौता कीजिए। गर्दिशों में तबाही का मंजर देखा, मुकद्दर के खेल में भी दुआओं का असर देखा। मेरे शब्दों से आप का दिल छू जाएं , इत्तफाक ही है सोचती हूँ लिखा जाए। दर्द बयां करने को हम बेताब थे, पर किसी ने पूछा ही नही हम खामोश क्यों थे। दूर रहने पर भी यह खबर दिलको सुकून देता है, तुम्हारी खैरियत जानने के बाद रूह को ठंडक दे जाता है . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हम...
मधुवर्षण
कविता

मधुवर्षण

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** अंबर में मेघों को देखो लिए हाथ में प्याले हैं। रवि,शशि दोनों दिखते छिपते सब पी कर मतवाले हैं। सभी देव पीकर लड़खाते देखो कैसी गर्जन हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। अंबर में ज्यों लुढ़का प्याला तरु पतिका से मदिरा टपके। वर्षों से आश लगाऐ बैठा प्यासा चातक रस को झपके। उसी रसो में डूबी लतिका हरी भरी आकर्षक हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रवि के ताप से तपती वसुधा हिमरस पाते प्रमुदित हो गई। तिमिर गेह में पडीं जो बीजें मधुरस पाते हर्षित हो गई। पी कर खड़े हुए नवतरु नशे में डाली चरमर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। हुआ आगमन निज प्रियतम का एक बूंद अधरों में पड़ गई। कौन प्रियतमा किसकी प्रियतम नशे में जाने क्या-क्या कह गई। नशे में नैन हुए अंगूरी काम दहन वो शंकर हो रही। देखो सखी मधुवर्षण हो रही। रूप अप्सरा चली गई फिर पू...
मां
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मां

महक देवलिया सागर मध्य प्रदेश ******************** कैसे बताऊं थाह मैं उस त्याग मई व्यक्तित्व की, जिसने सर्वस्व त्याग दिया, है समर्पण ही छवि जिसकी। है रागिनी वह चांद की, और ताप है वह सूर्य का, कैसे बताऊं शौर्य में, संसार के अस्तित्व का। सार है जो श्वास का, परिभाषा है जो प्रेम की, कैसे बताऊं भावना, ममता के उस जल धाम की। संसार है संतति की जो, जो प्राण है परिवार की, कैसे बताऊं अनिवार्यता, परमात्मा के रूप की। नीरब है जग, बिन ममता के, कैसे बताऊं मां तुझे, अमृत है बिष बिन आपके। . लेखक परिचय :-  सागर मध्य प्रदेश की निवासी महक देवलिया कक्षा 11वीं में पढ़ती हैं, हिंदीसहित्य पढ़ने व कविताएं लिखने में आपकी रूचि हैं ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
तन्हाई बेबस
कविता

तन्हाई बेबस

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** ख्वाबों की दुनियाँ भरी है जिन्दगी गम से भरी है गम भरे हालात में जीकर गुज़ारा कर रहे... जीतना ही जीत जिसको लग रही... क्या बताएं ख्वाब दिल में दिन ब दिन नए उग रहे... हर तरफ़ तन्हाई बेबस लोग चलते जा रहे मैं अधूरा था अभी तक पूरा खुद को कर रहे... देख जालिम ये जमाना बेरहम हर ओर है क्या से क्या सपने गढ़े थे दिख रहे कुछ और हैं... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
वो याद आते हैं
कविता

वो याद आते हैं

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं अपने दिल की धड़कन में उसी का नाम लिखती हूँ उसी का नाम लिख लिख कर उसी को याद करती हूँ। उसे क्या फर्क पड़ता है मेरे होने न होने से, मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने में। मेरे ही साथ रहने का जो वादा कल किये थे तुम, मुझे वो याद है अब भी.... सदैव तुम दिल में रहते हो। मुझे बस फर्क पड़ता है उसी की रात होने मे.... परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
कृत्रिम संकल्प
कविता

कृत्रिम संकल्प

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll फोटो खिंचवा के दिखाने का l एक दिन सुर्खियां में आने का ll सेल्फी खिच, इंसान मुस्कुराए l धरा चिंतित, पौधे मुरझाए ll कब बड़े होंगे छोटे पौधे l बूढ़े पेड़ चिंतित खड़े ll सोचने को मजबूर हुए पेड़ l सब एक दिन के माली खड़े ll कौन पानी - कौन खाद देंगा l ये कैसा संकल्प लिया इंसान ll कृत्रिम संकल्प, कृत्रिम इंसान l लिया संकल्प पेड़ लगाने का ll परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास :-  सिवाना, जिला - बाड़मेर (राजस्थान) सम्प्रति :- वरिष्ठ अध्यापक सम्म...
लोरी माँ की थी
कविता

लोरी माँ की थी

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** जिसे पकड़कर चला मैं वो उंगली मां की थी जिससे चिपका रहा हरदम गोदी मां की थी आज क्या है विराने मे अकेला हूं तड़पता मै मै रोके आंसू था पोछता वो चुनरी माँ की थी मुझे इस हाल में अब कौन समझाने को बैठा है दूध पीते निकाला करता नथुनी मां की थी मैं तड़पा हूं तड़पता हूं मेरी मां तेरे लिए पड़ी थी कोने मे शायद कपड़ों की गठरी माँ की थी वक्त बदला और मैं भूल बैठा उस जमाने को रात को नींद ना आती तो वो लोरी माँ की थी जहां हमारे सारे खर्चे पुरे होते तिजोरी मां की थी कभी खूट में बांध के रखती वह चोरी मां की थी जाना होता मेला या कोई सैर शहर की हो कोमल हाथों से पकी हुई कचोरी मां की थी छोटे थे तो खो जाने का डर था अक्सर खड़ी भीड़ तक दरवाजे से आयी वो टेरी मां की थी आजा आ जा मत जा लल्ला हट करता है प्यार भरे शब्दों की सुंदर जोड़ी मां की थी. परिचय :...
पूरी बस्ती में अँधेरा है
कविता

पूरी बस्ती में अँधेरा है

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** पूरी बस्ती में अँधेरा है, ना जाने कहाँ घर मेरा है चलो मन्दिर चलते है, पर वहा भी चोरों का बसेरा है रातों के जुगनु किधर जा रहे हैं, पीछा करो शायद वहीं पर आगे सवेरा है बस्ती में सभी घरों में छिपे बैठे हैं घरों के बाहर चोरो का पहरा है सारे चोर बस्ती में सूरज बाटते फ़िरते है जिनके अपने खुदके घरों में, अंधेरा है सभी रांझे को पत्थर मार रहे थे उनमें भी जो सबसे बड़ा पत्थर है वो मेरा है अब किनारे पर है तो उतर भी जाएंगे अंदर तुम पता तो करो कि पानी कितना गहरा है अँधेरे में न जाने किसका हाथ पकड़े हो मरीजों पर वेद, हाकिमों का चेहरा है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय ...
बारिश के बाद
कविता

बारिश के बाद

प्रेक्षा दुबे उज्जैन ( म. प्र.) ******************** जब कई दिनों की बारिश के बाद वो प्यारी सुनहरी सी धूप खिली मन किया गले लगा लू इसे बताऊँ की कितना याद किया तुम्हें .. हालाँकि मैं जानती हूँ कि नाराज़ हो, पिछली गर्मियों में तुमपर गुस्सा करती थी तुमने भी तो कम परेशान नहीं किया पर अब छोड़ो ना सब जाने भी दो दुनिया में सभी ऐसा ही तो करते हैं अपनी तकलीफ़ मे ही किसी को याद हाँ.... बस उतनी ही देर... क्यूंकि उसके बाद तुम बोझ सी ही लगोंगी फ़िर तुमसे बचने की कोशिश के आलम मेरी गलती नहीं हैं... दस्तूर ही यही है.. ज़रूरत के हिसाब की मोहब्बत लेखिका का परिचय :- प्रेक्षा दुबे निवासी - उज्जैन ( म. प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
वो लड़की
कविता

वो लड़की

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये कविता मैंने झाबुआ के राजनैतिक, सामाजिक, पृष्ठभूमि को केंद्र में रख लिखी है, वनवासी जनो के दोहन, शोषण, सरलता, सपने, कुरीतियों को शब्दों में पिरोया गया है, कृपया ध्यान से पढ़ कविता के मर्म महसूस करे, कविता की नायिका १६,१७ साल की नवोढ़ा है ... टूटी हुई खपरैल की छत से आती सूरज की रोशनी देख पट रहित दरवाज़े से बाहर आकर ,चारो तरफ देख धूप अभी गर्म नही हुई सोचती है, वो लड़की। बदरंग होते मटके के पेंदे में कपड़े की चिन्धी को ठूस छिद्र बंद कर, हैंड पम्प के नीचे रख बारम्बार हत्थे को चलाने पर पानी की एक बूंद नही निकली वोट मांगने वाले बाबा जैसे हो गया है हैंड पंम्प जो बरसात में ही पानी देता है। सोचती है वो लड़की। तीन हफ्ते पश्चयात स्कूल में मास्टरनी बाई आई थी दलिया अच्छा बना था उसमे तेल और गुड़ मिला होता तो और मजा आता सोचती है, वो लड़की। कल गाँव मे ...
एक भी लम्हा नहीं …
कविता

एक भी लम्हा नहीं …

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इन्दौर मध्य प्रदेश ******************** बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर पकड़ में किसी के एक भी लम्हा नहीं ... तन्हा सभी है दुनिया में पर कोई तन्हा नहीं ... दिखाते तो हैं हम की खुश हैं पर हुआ कभी मन का नहीं ... हुस्न देखे जमाने में कई तारीफे काबिल जिसकी थी चाह उसका कंगन कभी खनका नहीं ... इशारे तो मिले बहुत जिंदगी से हमे पर ये सर है की हमारा कभी ठनका नहीं ... फूल पर आता है भंवर पराग रस पीता है प्रेमरस अर्पण पर भी हुआ भंवर कभी उपवन का नहीं ... अपने दिल की आप सुध लो कही जो शूल मन मै उठी क्या भला और क्या बुरा है ये दोष पवन का नहीं ... बंधी है हाथ पर सबके घड़ियाँ मगर .....!! . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक- hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक- divyotthan.Com (DNN) सचिव- दिव्य...
श्रम जल से उपजा कण हूँ
कविता

श्रम जल से उपजा कण हूँ

लोकेश अथक बदायूँ (उत्तर प्रदेेेश) ******************** संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर कण कण का संयोजन कर संरक्षण कर संवर्धन कर धरती को जीवित रखने का कोई तो कर प्रबंधन कर ढेरों में भी परिवर्तित हो अन्न कण कण संवर्धित हो जीवन का अटल सूत्र है ये जीवन हित इसका अर्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर ग्रह वातावरण मधुरतम हो मन से मन का अनुबंध रहे श्रम जल को करता नमन कोटि मेहनतकस का आबंध रहे वसुधा के आंचल से उपजे कण का संचित आवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर दिनकर की तीव्र तपन सहकर हठकर बाकी है कहता अल्पित मन भावों में वहकर नीचे संघर्षों में रहता है अंतस में है जो कृषक हेतु उन त्रुटियों का परिमार्जन कर संरक्षण कर संवर्धन कर संरक्षण कर संवर्धन कर सिरमौर रहे हर ठौर रहे धन धान्य धन्य तो मान्य रहे जीवन यापन में लिप्त रहे अल्पित धन जन सामान्य रहे प...
नूर का दरिया
कविता

नूर का दरिया

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** नज़रों ने तेरा चेहरा देखा, नूर का दरिया गहरा देखा। चलते फिरते एक चांद पे, घनी घटा का पहरा देखा। कारवां मासूम दिलों का, तेरी बस्ती में ठहरा देखा। तेरी गलियों में आते जाते, होता दिल आवारा देखा। झील सी नीली आंखों में, घुलता एक इशारा देखा। सुर्ख लाल गुलाब खिलाते, गुलशन का नजारा देखा। . लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अ...
आचार्यश्री से प्रार्थना
गीत

आचार्यश्री से प्रार्थना

संजय जैन मुंबई ******************** गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l सच की डगर दिखा, गुरुदेव प्रार्थना है l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणमl ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll हम है तुम्हारे बालक, कोई नहीं हमारा l मुश्किल पड़ी है जब भी, तुमने दिया सहारा l चरणों में अपने रख लो, चन्दन हमें बना दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l१l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll पूजन तेरा गुरवर, अधिकार मांगते है l थोड़ा सा हम भी तेरा, बस प्यार मंगाते है l मन में हमारे अपनी सच्ची लगन जगा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l२l ॐ विद्यागुरु शरणम, ॐ जैन धर्म शरणम l ॐ अपने अपने गुरु शरणम ll अच्छे है या बुरे है, जैसे भी है तुम्हारे l मुंकिन नहीं है अब हम, किसी और को पुकारे l अपना बन लो हमको, अपना वचन निभा दो l गुरुदेव प्रार्थना है, अज्ञानता मिटा दो l३l ॐ ...
किसी को ज़ख्म दूँ
ग़ज़ल

किसी को ज़ख्म दूँ

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** किसी को ज़ख्म दूँ ऐसा हुनर आता नहीं मुझे पहले की तरहा अब वो बुलाता नहीं मुझे दिल खोलकर बातें तमाम करते थे रातभर अब पुछता हूँ फिर भी बताता नहीं मुझे इतना चढा हूँ बार बार दारो रसन पर हादसा कोई भी रूलाता नहीं मुझे आजमाया है बहुत भरी बरसात का मौसम अश्कों के जैसा वो भी भिगाता नहीं मुझे इल्ज़ाम से मैनें यूँ बरी सबको कर दिया पीता हूँ ख़ुद ही कोई पिलाता नहीं मुझे कडवा है सच बहुत मुझे होनें लगा यकीन क्योंकि वो अपनें मुहँ अब लगता नहीं मुझे मैं जाग जाता हूँ ख़ुद ही "शाफिर" सुबह लेकिन माँ की तरहा अब कोई जगाता नहीं मुझे . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित...
चाँदनी
कविता

चाँदनी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** शरद चाँदनी के जैंसी तुम हर रोज चमकती हो पगली उसकी किरणों की आभा सी तुम रोज दमकती हो पगली तुम हर रोज चाँद सी लगती हो अनुपम अपनी काया ले करवा चौथ का चाँद देख तुम जो मेरी उम्र बढ़ाती हो राज की बात बताऊं तुमको सच तो यह हैं! साथ तुम्हारा पाकर पगली मेरी उम्र हर रोज हैं बढ़ती चाँद रश्मि के जैंसी तुम खीर की जैंसी मीठी तुम शरद चाँदनी के जैंसी जो हर रोज चमकती हो पगली जो हर रोज चमकती हो पगली ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मे...
क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को
कविता

क्यों भूल जाते हो, “पालनहार” को

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** जिनके नाम का इस जगत में देख हुवा उजाला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। भले ही आगे बढ़ जायेगा दुनिया के व्यापार में , नहीं मिलेगी वो खुशी जो मिलती इनके प्यार में । कुछ नही मिलने वाला इस कलयुग के बाजार में , आज़ा फिर से लौटकर उन खुशियों के संसार में । छोड़ दिया वो दामन कैसे जो जनन्त से निराला है , क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। जैसे जैसे तू बड़ा हुवा, उनका भी सपना खड़ा, लेकिन वो सपना टूट गया , जब साथ तुम्हरा छूट गया ढूढं रहे हो जो तुम वो अब आएगा ना हाथ मे , भूल गये वो दिन कैसे जो गुजरे उनके साथ में दर दर ठोकर खाओगे वो दिन अब आने वाला है । क्यो उनकों भूल जाते हो जिन्होंने तुमको पाला है । जिन्होंने तुमको पाला है।। तेरी खुशी देखकर जिन्होंने दुःख झे...
सुप्रभात
कविता

सुप्रभात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** ”निशा के गर्भ से हो गया है, आज़ सुप्रभात का श्रीगणेश, भास्कर की किरणोँ से, नहीँ अब, अँधकार का अवशेष, पँछीयोँ के मधुर गान से, गुँजायमान है, सारा परिवेश, प्राणियोँ मेँ स्फूर्त हुआ, ऊर्जा का नवीनतम, समावेश, भजन गातीँ प्रभात फेरीयाँ, देती ह्मेँ यह सुखद सँदेश, जागो ऊठो, दूर करो, तनमन से आलस का, शेष, बागोँ, खेतोँ मेँ बिखरी है, बसँत की नव बहार, नये कार्योँ का श्री गणेश करो, नव शक्ती की है, यही पुकार, देवी सरस्वती का ध्यान करेँ, पायेँ उनसे सदबुद्धी का उपहार." . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोह...
घर की शान बेटियां
कविता

घर की शान बेटियां

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** निकालिये अपने मन से हर एक बुराई को, आजसे ही बनिये एक जासूस बिना तन्खा के, नौकरी करिए साहब इन बेटीयो को बचाने की। नौबत ना आये इनको भूखा सुलाने की, नौबत ना आये इनको ज़िंदा जलाने की।। ये बेटियां बुढ़ापे तक साथ देती है। मांगती केवल लाड़ प्यार आपका, इसके सिवा भला और क्या लेती है? ये बेटियां आपके घर से निकलकर, दुसरो के घर को खुशहाल बनाती है। खुद तकलीफ सहकर सबको हंसाती है, मगर अपना दर्द किसी को नही बताती है।। कभी कूड़े के ढेर में मिलती है, तो कभी दहेज की पीड़ा सहती है। मां, बहन, बेटियां, बहु ही है जो देश मे, आपके नाम को बढ़ाने में सबसे आगे रहती है।। घर की शौभा, घर का रूतबा घर की शान होती है बेटियां। मजबूर पिता गरीब परिवार का, एक अभिमान होती है बेटियां। बहु-रूपी बेटियों से चलता है वंश आपका, गांव नही, कस्बा नही, नगर नही, शहर नही। अरे ...
शरद पूनम का चाँद हो
कविता

शरद पूनम का चाँद हो

********** रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. शरद पूनम का चाँद हो नदी का किनारा हो हाथों में हाथ सिर्फ तुम्हारा हो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो न गम का कहीं भी इशारा हो चाँदनी से महक रहा जहान सारा हो शीतल किरणों सा जगमगा रहा प्यार हमारा हो तो कितना मधुर वो साथ प्यारा हो कि खो जाए हम एक दूसरे में ही कही इस दुनिया से बेखबर संसार हमारा हो... जहाँ सिर्फ मुहब्बत ही मुहब्बत हो, और गम का न कहीं सहारा हो तो कितना मधुर वो संसार प्यारा हो आओ बसाए वो सपनों का जहान... जहाँ हर पल शरद पूनम का उजास हो उस शीतल चाँदनी में फिर राधा कृष्ण का रास हो,, गोपियों का विश्वास हो, और मधुर मिलन की आस हो... और ऐसा प्यारा वो संसार हमारा हो... . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्न...
मेरी राह देखना तुम
कविता

मेरी राह देखना तुम

********** रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम तुमको ही पूरा माना है, तुम ही मेरे मन में हो तुम मेरे हर क्षण में हो ,तुम मेरी सांसों में हो तुम ही प्राणप्रिया हो मेरी, यही याद कर राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। तुम्हीं भाग्य गए हो, तुम्हीं कर्म हो तुम्हीं बुद्धि हो, तुम्हीं सिद्धि हो तुम्हीं हो मेरे, सुख-दुख की रानी तुम्हीं मेरे सपनों की, शहजादी यादों में भी गर्व कर, मेरी राह देखना तुम जाते जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम। जानती हूॅ॑ न लौटेंगे कभी, हृदय उनका निष्ठुर हुआ हैं त्याग कर मेरा समर्पंण तो, मातृभूमि को किया हैं प्रेम में त्याग एक का, दूसरे पर स्वयं बलिदान हो गए रोता हुआ छोड़ कर मुझे, स्वयं जाते-जाते कह गए आएंगे हर रोज सपनों में तेरे, मेरी राह देखना तुम जाते-जाते कह गए, मेरी राह देखना तुम।। . परिचय :- नाम : रेशमा ...
माँ है जो मकान को घर करती है
कविता

माँ है जो मकान को घर करती है

********** जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) मुझसे ज्यादा मेरी फिकर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है धूप मे जब जब में निकलता हु पलकों की छाव मेरे सर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है कभी गिरने नही देती मुझे कहीं उसकी दुआ इतना लंबा तय, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है जब जब भी कभी बिमार होता हूं उसकी यादों की दवा हि बस मुझ पर असर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है लोग चेहरों पर नक़ाब लिए रखते हैं सभी के सारे हिसाब लिए रखते हैं में मेरी तकदीर लिए चलता हूं ज्यादा कुछ नहीं, माँ कि तसवीर लिए चलता हूं उसकी दुआ मेरे साथ साथ सारे, सफर करती है वो माँ है जो उस मकान को घर करती है . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनि...