अनगिनत यात्राएं
विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)
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पिता ने की अनगिनत यात्राएं
पर जा नहीं पाए
दूरस्थ जगहों पर
इस डर से कि हमें कहीं कुछ कम न पड़ जाए
साधन की बहुत कमी के बगैर भी
मुल्तवी करते गये घूमने का शौक
देखते रहे सपनों में
हरियाली भरे पर्यटन स्थल
चीड़ के वन
बर्फाच्छादित उपत्यकाएं
बताते रहे प्रसंगों से जोड़कर
माँ के साथ संपन्न चुनिंदा यात्राओं का
रससिक्त वर्णन
उनकी यात्राओं में अक्सर
आड़े आता रहा हमारा बचपन
या हमारी पढ़ाई
और एक दिन जब हम सब बड़े हो गये
नहीं रहा हमारी कमी का डर
और रह गया उनके पास
समय ही समय
हमने देखा पिता के शौक को
भी अंतिम सांसे लेते हुए
एक दिन पिता की तरह
लेखक परिचय :- विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठ...