हे कान्हा
========================
रचयिता : रुचिता नीमा
हे कान्हा!!!!!!
कैसे परिभाषित करु मैं अपने प्रेम को,,,,,,
तेरा प्रेम मेरे लिये जैसे,
बारिश की वो पहली बूंद,,
जिससे महक उठे माटी।।।।
वो रेत की तपिश में मिला
एक बर्फ का टुकड़ा,,,,
जो दे असीम सी ठंडक।।।।।
तेरे प्रेम का अहसास है इतना शीतल
की कड़ी धूप में मिल गया कोई शीतल झरना।।।।
ऐसा लगा ही नही की हम एक नहीं,
तू साथ नहीं, पर तू मुझसे जुदा भी नहीं,,,।।।
हे राधिके!!!!
मत दो हमारे प्रेम को कोई भी आकार,,
और न ही यह है किसी रिश्ते का मोहताज
एक रूह के दो रूप है हम,,,
एक दूजे के बिन अपूर्ण है हम।।।।।
निःशब्द, निर्विकार, निराकार
सब सीमाओं से परे
असीमित, अनन्त, अव्यक्त से हम.......
राधे कृष्ण राधे कृष्ण राधे कृष्ण
लेखिका परिचय :- रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम....