मिलना बहुत जरूरी है
नफे सिंह योगी
मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि)
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मिलने की बेचैनी को वो, समझ रहे मजबूरी है।
माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।।
येआलम बेताबी का हम बिल्कुल भी ना सह सकते।
कौन बताएगा उनको कि हम उन बिन ना रह सकते।।
तड़प रहे हैं ऐसे जैसे, मृग चाहत कस्तूरी है।
माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।।
जब तक उनको देख न लें, आँखें मुरझायी रहती हैं।
बिन मुस्कां के छींटों के, सूरत झुलसाई रहती हैं।।
जख्म जिगर अब सह ना पाए, चोट बनी नासूरी है।
माना मोहब्बत इक तरफी, मिलना बहुत जरूरी है।।
रस्सी के प्रयासों से, इक दिन पत्थर घिस जाता है।
चसक चने के चक्कर में चक्की में घुन पीस जाता है।।
पिसकर घुन की तरह चने संग, मुझे मरना मंजूरी है।
माना मोहब्बत इक तरफी मिलना बहुत जरूरी है।।
पास हमेशा देख हमें वो, इतना क्यों घबराते हैं?
दुनिया क्या सोचेगी शायद, सोच ये ही शरमाते हैं।।
हमने भी है...



















