जिसे चांद कहते रहे
विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)
********************
साल भर हम जिसे चांद कहते रहे,
आज उसने हकीकत में झुटला दिया।
मैं तो हूं रोशनी आंखों की पिया,
चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।
इन सांसों में खुशबू महकती तेरी,
तेरी यादों में खुशियां चहकती मेरी।
जिस दिन मुलाकात होती नहीं,
रूह तड़फे और काया दहकती मेरी।।
सात जन्मों का बंधन नाता किया।।..
चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।..
मैं दूर होकर भी कब दूर हूँ,
इस जमाने के हाथों मजबूर हूँ।
धड़कन हो मेरे दिल की प्यारे सनम,
तू मेरा नूर है मैं तेरी नूर हूँ।।
मेरी पूजा का रोशन, तुम्हीं से दिया।..
चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।..
.
परिचय :- विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, क...























