बेटियां
बेटियां
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रचयिता : माया मालवेन्द्र बदेका
दरिंदों से अगर बचा सको तो, बचा लो बेटियां।
बाहर नहीं है, घर में भी कहां सुरक्षित बेटियां।
करते हैं बातें बड़ी बड़ी, जमाने के लोग भली।
इनकी ही छाया में देखो, कैसे झुलसती है बेटियां।
मां के लिए फूल गुलाब है, पिता के लिए नन्ही कली।
दहेज की बली चढ़ गई, उनकी प्यारी प्यारी बेटियां।
बाप दादा की दौलत पर, शाही जिनकी जिंदगी चली।
ऐसे दहेजी लालचीयों के, हाथों रोज मरती है बेटियां।
माता पिता के घर आंगन में, जो बड़े नाजों से पली।
लोभियों के घर दहेज का तांडव, त्रास झेलती बेटियां।
नारी शक्ति है, साहस, है देवी है, गुड़ की मीठी डली।
फिर क्यों कड़वे नीम सी, यहां थूक दी जाती बेटियां।
भ्रुण हत्या, बलात्कार, दरिंदगी की शिकार गली गली।
कैसे महिषासुरों से जग मे, अब बच पायेगी बेटियां।
कोई दिन बाकी न बचे हैं अब ऐसे...