यादों का सिलसिला
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मित्रा शर्मा
महू - इंदौर
यादों का सिलसिला ऐसा हो
विशवास की लौ जलती रहे
दर्द ऐसा हो कभी खत्म न हो
जिंदा होने की अहसास बना रहे।
जरा सब्र कर ए बुलन्दी वाले
आसमान पे पैर रखने की जगह नही होती
कायनात पे कोई ऐसा मुकम्मल मीले
यह जरूरी नही होता।
बेरुखी की आलम इस कदर हावी न हो
तुम अपने को संभालते रहो,
अपनी परछाई भी आखिर में
साथ नही देती यह जान लो।
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परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल)
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