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पद्य

अपराजित
कविता

अपराजित

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुझे दीवाना न समझना मुझे इश्क का परवाना न समझना , मैं रहता हूं अक्सर ह्रदय में तुम्हारे मुझे आवारगी का किनारा न समझना। मुझे बेगाना मत समझना मुझे अपना भी मत समझना मैं रहता हूं अक्सर ख़ुदा की आवारगी में मुझे यूँ ही बेचारा मत समझना। मुझे हारा हुआ मत समझना मुझे पराजय का सितारा मत समझना मैं रहता हूं अक्सर बड़ी जीत की तलाश में मुझे यूँ दुनिया से हारा मानव न समझना। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
अपना घर का सपना
कविता

अपना घर का सपना

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मेरा अपना आलीशान बंगला है नहीं बड़ी आलीशान इमारत भी है नहीं कहीं कोई बड़ी कोठी भी नसीब है नहीं न कहीं कोई है बड़ी ऊंची हवेली है नहीं, मेरा कहने को है घर कहता हूँ चाव से गर्व से अपना घर घर मकान बस है कच्ची झोंपड़ी का है बना सबको गर्व से कहता हूँ अपना घर, टपकता है घर की चहारदीवारी छत में, बरसात का पानी बाढ़ में जलमग्न हो जाता हफ्तेभर जलमग्न की रहती कहानी, जीवनभर, आंधी बरसात में छत घर की उड़ा ले जाता हर बार कहना चाहता हूँ घर बना नहीं पाता, कहता हूँ फिर भी उसे ही अपना घर, आंनद में रम जाता, सपना मन में हर बार आता सच कभी सपना, कर नहीं पाता मेहमान का आवभगत घर की हालात से कभी कर नहीं पाता बारिश में टप-टप बून्द में भीग जाता तेज गर्मी घूप से बैचैन ओलावृष्टि में घर हर बार टूटकर बिखरकर धाराशायी हो जाता, उ...
नारी के दो मन
कविता

नारी के दो मन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक नारी के दो मन की कहीं व्याख्या नहीं मिलती !! एक मन जो सब कुछ चुपचाप सहन करता है, तो दूसरा विद्रोह करने को आतुर ! एक मन छोड देना चाहता है सबकुछ, क्योंकि वो जानता है सब निरर्थक है, दूसरा मन लालायित होता है सब सुविधाएं भोगने हेतु ! एक मन सदैव झुका रहता है, करुना, ममता और परवाह में, दूसरा मन निश्चिन्त-मस्तमौला बन चलना चाहता है ! कभी-कभी ये दोनों मन शांत हो जाते हैं, भीतर ही भीतर संवाद करते हैं ! एक मन दूसरे को मौन साधने को कहता है, बोलने से बिखराव का भय दिखाता है, दूसरा मन मंद मंद ध्वनि में अपनी व्यथा कहना चाहता है ! वो पूछना चाहता है, कितनी पीड़ाओं से और गुजरना होगा, सब कुछ सम्भालने के लिए?? स्वयं के अस्तित्व को खो जाने का डर भी बताना चाहता है ! वह शांति और प्रकृति ...
दिल की धरती
कविता

दिल की धरती

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** माटी बोले, सूरज हँसे, पवन सुने हर राग। इस धरती के आँचल में, छिपा है अनुपम भाग। हर बूँद यहाँ पर अमृत है, हर आँसू में एक गीत। जो झुका तिरंगे के आगे, वो अमर हुआ हर प्रीत। मंदिर बोले, मस्जिद गाए, गुरुद्वारा दे ज्ञान। यहाँ प्रेम ही पूजा है, यही देश की पहचान। कृषक का पसीना सोना, मजदूरों की शान। शब्द नहीं, ये कर्म हैं, जो लिखते इतिहास महान। नारी यहाँ ममता बनती, शक्ति का अवतार। उसके आँचल से ही बंधा, भारत का संसार। बच्चों की हँसी में गूँजे, भविष्य की परछाई। हर मासूम के स्वप्न में, भारत की झलक समाई। सैनिक जब सीमाओं पर, लेता ठंडी साँस। हर धड़कन कह उठती है, “जय हिंद” का एहसास। यौवन में जोश यहाँ का, रग-रग में अंगार। हर दिल बोले एक सुर में, “मेरा भारत अपार!” यहाँ दुख भी संकल्प बनें, सपने हों...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ।।अ।। किसे दोष दूँ किसे सराहूँ किसकी जय-जयकार करूँ। दुविधा नहीं मिटाए मिटती कितना ही उपचार करूंँ।। लो चुनाव आ गए कपट की किलकारी कोरों पर है। हर नेता कस उठा कमर फिर तैयारी जोरों पर है।।१।। सबके अपने-अपने मतलब सबके ठिए ठिकाने जी। सब ने अपनी सांँस रोक कर साधे नये निशाने जी।।२।। कोई जोड़-जुगाड़ों में है, कोई जल भुन उबल रहा। कोई तिकड़म भिड़ा रहा है, कोई दल बल बदल रहा।। इधर उधर से ईंटें लेकर रोड़ा रोड़ा जोड़ा है।। भानुमती ने अपने सुत के हित में कुनबा जोड़ा है।।३।। यै कहते हैं इस कुनबे ने चोरी कर अन्धेर किया। वे कहते हैं चण्ड-मुण्ड ने पूरा भारत घेर लिया।।४।। ये कहते कमजोर अकल से सत्ता क्या चल पाएगी ? सिर पर गुड़ की भेली धरकर क्या चींटी चल पायेगी ??५?? करना हो तो करो सामना गुर्दे में दम...
बेखबरी का आलम
कविता

बेखबरी का आलम

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये मेरी बेखबरी ही है कि लुटता जा रहा है मेरा सब कुछ, बढ़ता जा रहा मेरा दुख पर दुख, पर्दे डाले गए मेरे सुनहरे इतिहास पर, विरोधी इतना घातक है कि तुला हुआ है करने मेरे सत्यानाश पर, है उनके पास अजीब हथियार जो है रासायनिक अस्त्रों से भी घातक, जिससे हो जाते हैं मदहोश सब देख उनके निश दिन का नाटक, गिरवी पड़ा है मेरे अपनों का मष्तिष्क किसी नापाक इरादों वाले के चरणों में, हम पूरी तरह फंसे हुए हैं उन्हीं विरोधियों के विभिन्न धारणों में, ऊपर से हमारी पेट की आग, दिन भर इसी में उलझे रहते हैं और अपनों के प्रति कर्तव्य नहीं पाता जाग, अपने कर्तव्यों के प्रति मेरी सोच व समझ आखिर बेखबरी ही कहा जाएगा, मेरा यह रुख आगामी पीढ़ी से नहीं सहा जाएगा, मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग कब जाग पाएंगे, जोश, जुनून, जज्बे की कब आग जला...
बदलता परिवार
कविता

बदलता परिवार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** एक-एक सदस्य से कहलाता परिवार परिवार की सदस्यता बिना, सुना संसार कहीं भी रहे, कहीं भी बसे, भुलाये भूल नहीं सकते, परिवारजनों को, अक्सर उनके संग ही लगता है, अपना प्यारा कितना अनूठा है परिवार।।१।। कभी किसी जमाने में आन बान शान में संयुक्त परिवार एक जगह सोते रहते खाते पीते मिल-जुलकर हाथ बंटाते सारे काम कर लेते आसान दुःख सुख की नैया चलाने लेते सबजन आपस में हाथ थाम।।२।। संयुक परिवार की असली शक्ति लुटाते उस परिवार पर अपनी जान बदलती दुनिया में बदलते गए है विचार कहीं भी देखो, दिखलाई नहीं देता खुशहाल संयुक्त परिवार, युगपरिवर्तन में सब, अब दीखता एकल परिवार।।३।। परिवार से मिलती खुशियां परिवार से मिलता प्यार एकता का सूत्र बंधा रखता भरापूरा स्नेहभरा परिवार।।४।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खल...
ऐसी हवा चली कि …
कविता

ऐसी हवा चली कि …

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** ऐसी हवा चली कि रिश्ते बिगड़ गाये जो कुछ बचा था दुनिया की आँखों में गाड़ गाये हमने तो उनको अपना बनाया था जिगर से वो देखते ही देखते पत्ते से झड़ गाये माँ बाप किसके साथ रहेंगे सवाल पर दो भाई इस विरोध में आपस में लड़ गाये क्या दोष अहिल्या का था जो शपित हुई भला गौतम ने उसको नारी से पत्थर में जड़ गए द्रोपदी की एक गलती से क्या क्या न झेली वो सारे ही कौरव पाण्डेवों के पीछे ही पड़ गए परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
कृष्ण-कर्ण संवाद
कविता

कृष्ण-कर्ण संवाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहे तुम, केशव कवच कुण्डल उतार लो। कर्ण को मंजूर नहीं, कि प्राण उधार दो।। देकर वचन विचलित नहीं होते सुरमा... चलो कुरुक्षेत्र में, और सुन मेरी हुंकार लो। मित्रता निभाना सीखा है तुमसे माधव। अश्रु से पग धो तीन लोक वारे तुमने माधव।। धर्म क्या?? अधर्म क्या?? नर्क ही भला.... जाओ नहीं मानता कर्ण तुम्हारी सलाह।। रहेंगें माँ कुन्ती के, पुत्र पांच ही जीवित। कि शीश उसका रहेगा, सदा ही गर्वित।। पाषाण हुआ हृदय, उपहार में मिले आघातों से, प्रेम है अस्त्र-शस्त्रों से, रहा मोह नहीं श्वासों से।। तुम रचयिता जग के बड़े ही छलिया हो। देखो, जन्म से छला है अब न छलो....। जाओ पार्थ, तुम अर्जुन का रथ हांको, और निश्चिंत रहो, मुझ शुद्र पुत्र से न डरो।। कि हाहाकार तो होगा रण भूमि में। भस्म होगा इक निरपराध धुनि में।। वीर बलिदान...
अनुभव
कविता

अनुभव

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कहा गया है चलती का नाम है जिंदगी इंसान चलता है ता-उम्र पर... क्या सब को मिलती है मंजिल.... इंसान चलता है कदम दर कदम पर... मंज़िल दूर रहती है खिसकती रहती है राहें सिसकती रहती है डगर न जाने कितने चाहे-अनचाहे आते हैं उतार-चढाव जिंदगी की दुर्गम राहों में..... कहीं उपस्थित है उन्नत श्रृंग शिखर सी विकट समस्यायें कहीं उछल रहे हैं दंश मारने को आतुर फुँफकारते विपदा नाग कभी रजनी का स्याह तमस कभी आंनद ओतप्रोत उर्जावान दीप्त दिवाकर कहीं खुशियों के लहराते सागर..... समेटे है अपने आप में ये सर्पीली राहें पग पग कटींली राहें कभी मिलते हैं सुरभित उपवन तो कहीं उगे हैं सरल,गरल, तरल सलिल सींचित कैक्टस मिश्रित अहसास लिए साथ साथ दौड़ती राहें मगर... मंजिल से पहले बहुत कुछ समझाती है ये...
जय गंगान
आंचलिक बोली, गीत

जय गंगान

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी - बसदेवा गीत) मोर अन्नपूर्णा महतारी ये घर म नरवा घुरवा अऊ बारी हे ईहे हमर चिन्हारी हे जय गंगान... सेवा जेन तोर करें किसान अऊ तैय बनाय ओला सुजान छत्तीसगढ़ के मै करव बखान बिना गुरु नई पावय ज्ञान जय गंगान... भारत माता के गोड़ के पहिरे छाटी अव अऊ ईहे के धुर्रा माटी हव लईका मन के खेले गुल्ली-भंवरा बांटी अव जय गंगान... चंदखुरी छत्तीसगढ़ के बढाथे मान कौशल्या माता जनम भूमि ये हर आय प्रभु राम इहां के भांचा कहाय जय गंगान... धन्य हे राजिम दाई मोर 'भाट' हाथ जोड़ करें बिनय ये तोर माघ पुन्नी परब म मेला भराय साधु संत नहाय बर आय सब मनखे मन दुःख बिसराय छत्तीसगढ़ प्रयागराज तैय ह कहाय जय गंगान... छत्तीसगढ़ के मै करव बखान मिरजूर के रईथे लईका अऊ सियान मुड़ म पागा बांधे किसान अर्रे भटके ल पहुना ...
नगर-नगर में धूम मची है
भजन

नगर-नगर में धूम मची है

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नगर-नगर में धूम मची है राम जी के नाम की। प्राण प्रतिष्ठा हो गई है पुरुषोत्तम श्रीराम की। नगर-नगर में ... मंगलाचरण से पावन हो गई धरती अयोध्या धाम की। घर आँगन में दीप जले हैं स्वागत में श्रीराम की। नगर-नगर में ... चारों ओर चर्चा है अब दीपोत्सव कीर्तिमान की। देख रहीं है दुनिया शक्ति अब भारत माता के नाम की। नगर-नगर में ... पूरी हो गई अभिलाषा अब भक्तों के बलिदान की। लहर चली है देखो अब सनातन के सम्मान की। नगर-नगर में ... अजर अमर गाथा है ये श्रीराम के नाम की। जय हो राम लक्षमण जानकी जय हो महावीर हनुमान की। नगर-नगर में ... परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल.बी. निवासी : उज्जैन (मध्य प्रदेश) रुचि : आपकी बचपन में व्यायाम शाला में व्यायाम,...
विकसित भारत की दिवाली
कविता

विकसित भारत की दिवाली

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** न मैं दिवाली मनाता, न ये धूम धड़ाम मुझे भाता है, मेरा मन तो उस कर्ज़ को गिनता, जो गरीब चुकाता है। न ये मेरा उत्सव है, न आतिशबाजी का शृंगार, मैं तो देखता हूँ, धन की चिता पर, चढ़ता बाज़ार। जिस लक्ष्मी को घर बुलाने, लाखों का व्यापार हुआ, चंद मिनटों की आतिशबाजी में, उसका सर्वनाश हुआ। जिस पूँजी से संवर सकता, किसी का पूरा संसार, तुम उसी को धूल बनाते, ये कैसा अंध-अधिकार? पूंजी का यह प्रदर्शन, यह कैसा व्यंग्य रचता है? जब फुटपाथ पर बैठा मानव, आज भी अन्न को तरसता है। दीवारों के भीतर दीप जले, पर द्वार अँधेरा बोल रहा, पत्थर की मूरत के लिए, तू लक्ष्मी को ही तोल रहा। लाखों के रॉकेट से ऊँचा, वह गरीब का घर भी हो, जो इस आस में बैठा है, कि 'आज वह भी ख़ुश हो।' हज़ार जलाओ तुम दीप भवन में, पर एक दीया क्यों नहीं? जहाँ भूख से सूख गए ह...
स्नेहपाश
कविता

स्नेहपाश

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ तुमको अपनी कहानी का पात्र बनाऊ करे लोग सजदा तुमको भी मेरे नाम से ऐसा मुकाम बनाऊ। कहते हैं लोग कि मोहब्बत में बड़ी गहराई होती है आओ तुम्हें दोस्ती के समुद्र में डूबाकर भी तैरना सिखाऊ। सुना है तुमको लोगों पर ऐतबार नहीं है आओ तुमको स्नेहपाश में बांधकर अपनेपान का ज़रा एहसास करवाऊ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
छठ मैया
मुक्तक

छठ मैया

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** ( मुक्तक ) छठ पूजा के पल पुष्पित हैं, रवि को नमन् करें। हर विकार जो अंतर में है, उसका दहन करें। मैया छठ की करुणा लेकर, निज जीवन महकाएँ, दुख,पीड़ा और शोक हरण कर, ग़म का शमन करें।। फूल और फल, सजा मिठाई, मंगल गान करें। रीति, नीति, अच्छाई लेकर, सबका मान करें। हर्ष मिलेगा, प्रमुदित हो मन, छठ माता की महिमा, नदिया के तट पर जाकर हम, प्रभु का ध्यान करें।। सच्ची श्रद्धा, भक्ति सजा लें, पायें फल चोखा। रहे निष्कलुष सबका जीवन, किंचित नहिं धोखा। रहे समर्पण छठ मैया प्रति, तो आनंदित पल, सुखमय जीवन होवे, नहीं कोय रोका।। सूरज की पूजा होती है, अर्घ्य दे रहे लोग। पूजन के कारण ही देखो, परे हटें सब रोग। आओ! पूजन सभी सँभालें, लेकर शुभ-मंगल, छठ मैया का हो जयकारा, और लगाएँ भोग।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५...
दिप जलाएं
कविता

दिप जलाएं

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** राम घर आये हैं, सब मिलकर दिप जलाएं। सज गई पुरी नगरी, आओ मिलकर खुशियाँ मनाएं।। राम है मर्यादा पुरुषोत्तम, वचन के लिए वन को चुना। हसते- हसते महलों को छोड़ा, अयोध्या का हो गया हर कोना सुना।। सीता भी पतिव्रता नारी, महल सुख छोड़, हरी संग चली। फूलों पर चलने वाली, अब पानी भी पिये भर-भर अंजलि।। लक्ष्मण जैसा जग में भाई नहीं, राज छोड़ भाई के चरण शरण ली। कहीं नहीं लक्ष्मण जैसा और भाई, चौदह वर्ष में नींद की झपकी न ली।। ऐसे युगों-युगों के पैहरी, आज घर आये है। रौशन करें अपना घर, और मंगल गीत गाये हैं।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
पति परमेश्वर
कविता

पति परमेश्वर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सात फेरों के सातों वचन निभाऊँगी। माथे पर तेरे नाम की सिंदूर लगाऊँगी।। पति तुम मेरे लिए देवता, परमेश्वर हो, हाथों पर तेरे नाम की मेहंदी रचाऊँगी।। माँगी थी तुझे वरदान में भोलेनाथ से। मुझको अच्छा पति मिले विश्वास से।। सोलह सोमवार करके जल अभिषेक, अखंड सौभाग्यवती रहूँ यही आश से।। मैं सोलह सिंगार करके रहूँगी उपवास। छूटे न दोनों का जन्मो जनम तक साथ।। मिले हो तुम मुझको पुण्य फल समान, पतिव्रता बनके हमेशा संग रहूँगी नाथ।। चंद्रदेव से माँग लूँगी तुम्हारी लंबी उमर। घर की लक्ष्मी बन सेवा करूँगी जीवन भर।। खिला देना मुझको प्रेम की मीठी-मिठाई, पिला देना जल अमृत मेरे पिया हमसफर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., संस्थापक एवं अध्यक्ष यादव समाज सेवा, कला, संस्कृति एवं साहित्य ...
जिंदगी के दिये
कविता

जिंदगी के दिये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** लंबा होता जा रहा है सफर, काम का भी और जिंदगी का भी, आकलन करने पर परिणाम दिखता है सिफर, जब जब जिस-जिस जगह से हुआ लगाव, जल्द ही मिला बिछड़ाव, क्या करे बंधे हुए हैं कुछ नियम तो कुछ परिपाटी से, दूर हो गए बचपन में खेली सोंधी माटी से, जनाब ये जीवन की गाड़ी है, चलना-चलाना नहीं आता अनाड़ी हैं, बस छोड़ दिए हैं खुद को प्रकृति और कुदरत के हाथों, हर आदेश को लगाए सर माथों, पर मैं इन स्थितियों से उदास नहीं हूं, उमंगों से भरा हूं हताश नहीं हूं, हां कर नहीं पाया अपने मन की, कभी परवाह नहीं कर पाया धन की, अपनी आवश्यकताओं को रखा हूं सीमित, पर अपनों की चाहत है असीमित, अपनी पहुंच तक हाथ-पांव मार रहा हूं, मगर अभी भी चादर जितनी पांव पसार रहा हूं, भले आशाएं आकांक्षाएं नहीं मारता उछाल, जिसके लिए रखा हूं ...
करवा चौथ
कविता

करवा चौथ

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सजकर सौलह श्रृंगार प्रियतम के नाम का, प्रीत की डोर सदा बँधी रहे तेरे मेरे प्यार की। प्रकृति सी हरियाली रहे मेरे घर अँगना, चंदा सा चादोल्यो रहे मेरे सिर पर धरा। लाल पीली चुदड़ मै बूटा लाल गुलाब, अमर चाँद का दीदार करू मै सौ-सौ बार, अमर रहे सुहाग मेरा चन्दा से प्यार का। सुन्दर रूप चन्दा मै देखु मै मेरे प्रीतम का, नजर ना लग जाये सुन्दर जोडी पे काला दाग है चन्दा में। सदा सुहाग का वर मांगू मै, अमर शिवत्व सी जोडी़ रहे, ये शिव बन जाये, मै गवरा बनी रहू चरणन मै। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्री...
घनाक्षरी
धनाक्षरी

घनाक्षरी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** १ - परतन्त्रता की बेड़ियों को काटने के लिए, ध्येय गीत था यही स्वतन्त्र वन्दे मातरम्। षडयन्त्र के विरुद्ध कई घोष हुए किन्तु, क्रान्तिकारियों का रहा मन्त्र वन्दे मातरम्। मात्र इसी मन्त्र के सहारे जीत सके जंग, गोरों के विरुद्ध बना तन्त्र वन्दे मातरम्। चूम गए फांँसियों के फन्दे झूम-झूम "प्राण", गाते हुए बलिदानी मन्त्र वन्दे मातरम्।। २ - सीधी-सादी बातचीत में भी लोकगीत जैसा, युद्ध का सघोष भूतभीत वन्दे मातरम्। स्याह रजनी में आशातीत चन्द्रमा सी आभ, दिन में दिनेश तमजीत वन्दे मातरम्। शत्रु भयभीत मानों पड़ा हो परीत पीछे, रूह काँप उठती अधीत वन्दे मातरम्। विपरीत राजनीति के विरुद्ध बनी नीति, पी गया अतीत प्राण जीत वन्दे मातरम्। ३ - गाँव नगरों की गलियों मे ले सुहाना राग, गूँजा ऊँची तान क...
भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत
आंचलिक बोली

भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ( भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत ) (एक भाभी अपने देवर के साथ अपनी छोटी बहन की शादी कराना चाहती है। वह अपनी दीदी की ससुराल में आई हुई है। उसका सौन्दर्य और अदाएँ देखकर बूढ़े लोग भी विचलित हो उठे हैं। उसकी बहन को भी अपनी दीदी का देवर अच्छा लगता है और देवर को भी भाभी की बहन बहुत अच्छी लग रही है। भाभी अपनी बहन को सीधी गाय और देवर को मजाक में लपका कहती है। देवर भाभी का चुटकी भरा काव्य संवाद भदावरी बोली में पढ़िए।) भइया की सारी का आई सूखी नस हरियाई। फटि सी परी उजिरिया मानो अँधियारे में भाई।। बिना चोंच मारी तोतन की सपड़ी सी पकि आई। बूढ़न तक के होश मचलि गए , देखि अदा अँगड़ाई।। देउर के लखि हाल लालसौं पूछि उठी भौजाई। खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।। तुम मेरे इकलौते देउर, चिन्ता हमें तुमाई।। तुम तै...
दीप से दीप जलाऐ
कविता

दीप से दीप जलाऐ

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** दीप से दीप जलाऐ, मन से हर भेद मिटाएं। प्रेम के दीप हर मन में जलाकर, राग द्वेष का भेद मिटाएं। प्रेम का दीपक ज्ञान की बाती, हर मन मे यह भाव जगाऐ। मन कंचन सा दीप ह्रदय में, रजत सा उज्जवल प्रेम बढ़ाएं। एक दूसरे का मान रखे हम, जैसे दीप से दीप जलाएं। द्वेष का दीप ना जले इस मन में, हर मन में यह भाव जगाऐ। छोटा दीप उज्ज्वल है प्रकाश, जैसे सूर्य उदय अंधकार का नाश। तेज पुन्ज दीपक का प्रकाश, राग द्वेष का कर दे नाश। दीपों का यह उत्सव प्यारा, हर मन में आशा के भाव। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्र...
काज़िब
कविता

काज़िब

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने मंत्रमुग्ध हो औरों के लिए अपने लिए थोड़ा होते तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो झूठ अहम के लिए किसी पर रहम के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो मतलबी हंसी के लिए मासूम मुस्कराहट के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो दूसरों को नीचा दिखाने के लिए खुद के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के लिए होते तो क्या बात थी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छ...
आने वाली पीढ़ी के नाम
कविता

आने वाली पीढ़ी के नाम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमारी सन्तानों! याद रखना अपने बेहतर दिनों में और अचानक टूट पड़ने वाली विपत्तियों के समयों में भी कि बीसवीं सदी के अन्त में जब लगभग सारा कुछ नष्ट हो गया था एक ज़लज़ले में, हमने तम्बू गाड़े थे दिन को आग उगलते, रात को हड्डी कँपाते निचाट रेगिस्तानों में। हम बहुत थोड़े ही बचे थे और जो भी थे, बिखरे हुए थे। हाँ, लगभग सब कुछ खो दिया था हमने। बस, अपने साथ बचाकर ले आ पाये थे जीने की ज़रूरत और कुछ उम्मीदें, थोड़ी आग और रोशनी। ख़ून और पसीना अपना था ही, बची हुई उम्र थी, विचार और अनुभव थे अपनी पिछली पीढ़ियों से और अपने ख़ुद के प्रयोगों से अर्जित। याद रखना कि इतनी सी, बस इतनी ही सी चीजों से हमने एक नयी शुरुआत की थी एक बेहद कठिन समय और बेहद ख़राब मौसम में तमाम-तमाम विभ्रमों, तटस्थताओं और रहस...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** संघर्ष उसी को चुनता है, जो लायक इसके होता है। जो चलना भी ना शुरू करे, वो अनंत आकाश को खोता है।। राज-पुत्र होकर भी, संघर्ष राम ने चुना था। चौदह वर्ष वनवास काटकर, राज-पाठ का मौका भुना था।। संघर्ष राजा हरिश्चंद्र ने किया जीवन भर, तब संघर्षों के आदि कहलाए। राज खोया, पुत्र खोया, तब हरिश्चंद्र सत्यवादी कहलाए।। संघर्षों को बिना चुने, ना कोई मंजिल को पाता है। बिना संघर्ष जीवन क्षण भंगुर, केवल आता और जाता है।। संघर्ष के ही कारण गोताखोर, नदी पार कर जाता है। सौरभ केवल किताबों को पढ़कर, कोई तैरना नहीं सीख पाता है।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...