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पद्य

खुद से एक मुलाकात  करो
कविता

खुद से एक मुलाकात करो

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सफर तो बस ऐसे ही चलते रहता है हवाओं का रुख भी बदलते रहता है कभी अपनों की अपनों से बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो खुद को भूले है केवल जगत के लिए जी रहे हैं केवल अब अपनों के लिए कभी खुद की भी बयाने हालत करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो वक्त कट न जाए केवल लाचारी में जैसे कट ही रहा है दुनियादारी में कभी खुद की बयाने जज्बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो ख्वाब तोड़े हैं हमने स्वयं के कितने जुल्म सहे है जहां के हमने कितने टूटे ख्वाबों की भी तो ख्यालात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो आज मे ही जीवन को खुशहाल करो भविष्य खातिर,आज ना बदहाल करो बदलते वक्त से वक्त की भी बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचा...
सब शौक हुए पूरे
भजन

सब शौक हुए पूरे

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** , अब सांसों को जीना है। अमृत ज्ञान दे रहा ईश्वर, अब बस उसको ही पीना है। सब शौक........ दी हमको श्रेष्ठ योनि, उपकार है प्रभु का। परिवार दिया उत्तम, ये प्यार है प्रभु का। दायित्व जो भी देता, पूरे वही कराता। जैसे भी प्रभु रक्खे, वैसे हमें जीना है। सब शौक........ सृष्टि का वो सृजन कर रहा, ये है कार्य प्रभु का। सृष्टि को पोषण भी, एक कार्य है प्रभु का। गिनती की मिली सांसे, निश्चित है ये रुकेंगी। जो भी बची हैं उनको, सुमिरन में लगाना है। सब शौक............ मानव की योनि ईश्वर, मुक्ति के हेतु देता। बुद्धि विवेक देकर, वो श्रेष्ठ बना देता। प्रभु नाम में ही रमकर, मुक्ति हमें पाना है। सब शौक.......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...
मैं और मेरा “मैं”
कविता

मैं और मेरा “मैं”

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं और सामने अडिग खड़ी सुदृढ़ लाल किले की सी तनी प्राचीर मेरी "मैं" की बैठे हैं इस पर अनेकों उल्लू भांति भांति के रूप धरे क्रोध... मान... माया... लोभ... विकसित हैं गहरे काम तंतु सोने पे सुहागा पालती है इन सब को शक्तिमान ये "मैं".... अनचाहे इन उल्लूओं की जमी है गिद्ध दृष्टि मेरी इस " मैं " पर उलझ कर भ्रमित करती हवाओं से मन उड़ने लगता है पवन वेग से चढ कर लिप्सा के हवाई घोड़े पर बढती जाती है असीमित कामनाएँ उद्वेग उठता महत्वाकांक्षाओं का मन गिरने लगता है वासना के अंधकूप में और सच्चाई घुल बह गई नयनों के काजल में अच्छाई दब गई दर्प की झीनी चादर में मति भ्रष्ट हो गई विषय विकार के दलदल में गुम गया मन भौतिकता की चकाचौंध में फिर हो गया लौटना नामुमकिन वापस मन का कल्याण कहाँ पथभ्...
किसने कब सोचा था
कविता

किसने कब सोचा था

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। कितनी शिद्दत चाहत से नव-पीढ़ी आती है सड़कों पर। करते अरमान सुरक्षित भविष्य भी अति सुंदर चलकर। घर शाला से सत्ता शासन सब नियम से लेता लोहा था। सुनने सीखने मिली उमर में जीवन से मानो सौदा था। फजीहत राह घटित आंसू हरेक छोटे बड़े ने पोंछा था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। ये भारत देश यहां बाएं से ही चलना प्रथम जरूरी हो। उल्टे चलते बूढों बच्चों बड़ों की लत क्यों मजबूरी हो। खुद की जान मिटेगी और बेकसूर अकारण खोना था। राष्ट्र विकास की राह चले मगर गलतियों का रोना था। वाहन चालन वक्त भटके प्रसंग में दिमाग ही ढोना था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाल...
दर्द दिल का
ग़ज़ल

दर्द दिल का

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द दिल का तेरी आँखों से बयाँ हो जाए। तू भी ख़ामोश रहे शोर-ए-फ़ुग़ाँ हो जाए। तू मेरे दिल में बसा है मेरी धड़कन की तरह, तेरा एहसास न गर हो तो मकाँ हो जाए। मेरे दिल को भी मिले कोई मरासिम ऐसा, जिसकी चाहत में रहूँ मस्त-समाँ हो जाए। कोई शबनम सा ठहरता है अगर दिल में तो, ख़ूबसूरत ये मुहब्बत का जहाँ हो जाए। चाहतों की मैं हसीं कुछ तो तरफ़दारी में, 'रागिनी' गर ये ग़ज़ल हो तो गुमाँ हो जाए। परिचय :- डॉ. रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०१८" से सम्मानित शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, ए...
चिड़िया
कविता

चिड़िया

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उड़ती चिड़िया आसमान में दोनों पंख फैलाए। छोटी सी अपनी चोंच से दाना-दाना चुग खाएं। अपने पंख फैलाए उड़ती पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण हर कोने पर अपना हक़ जमाती। डाल-डाल पर पात-पात पर बैठ अपना मधुर गीत सबको सुनाती। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
आंख मूंद न अपना कहो
कविता

आंख मूंद न अपना कहो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कौन हितैषी, दुश्मन कौन ये हम को पहचानना होगा, किसी की झूठी बातों को आंख मूंद नहीं मानना होगा, बनके आएंगे बहुत हितैषी, मंशा पाले वो कैसी कैसी, हो सकता है वो बड़ा दलाल, कहेंगे खुद को बहुजन लाल, चढ़ा लोगे जब उसे नजर में, निकल पड़ेगा सौदे की सफर में, अच्छे से पहचानो उसको, मान रहे हो अपना जिसको, जो करता है संग रह अय्यारी, पड़ेगा समाज पर वो तो भारी, सरल राह यूं ही न मिलेंगे, छुप रिपुओं से गले मिलेंगे, बढ़ जाता जब प्रभाव व दौलत, फिर दुश्मन से मिलेगा उसी बदौलत, महापुरुषों का पहले लेगा नाम, गड्ढे खोदने खातिर समाज में करेगा वो हर काम तमाम, एन वक्त पर धोखा देकर बन सकता है वो दरीबाज, बहुतों में हम देख चुके हैं दलाली वाला ये अंदाज, तर्क करो व सतर्क रहो, बारीकी से पहचानो सबको आंख मूंद न अपना कहो। ...
मैं जब भी जाऊंगी
कविता

मैं जब भी जाऊंगी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब भी जाऊंगी, कोई प्रश्न अधूरा नहीं छोड़ूगीं, पूर्ण विराम लगा कर जाऊँगी! अर्धविराम रिश्तों को जीवित नहीं रहने देता है, जीवन मे समर्पण होना चाहिए! प्रेम जीवन का आदि और अंत दोनों होता है! प्रेम में अधूरेपन की कोई जगह नहीं होती उसमे पूर्ण समर्पण होना चाहिए, अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण! दिल मे कोई दुविधा नहीं, मन मे कोई प्रश्न नहीं, प्रेम स्पष्ट निर्णय होना चाहिए! शांत भाव से भीतर ही मिट जाना, फिर शब्दों मे कोई ठहराव नहीं होता! कोई अपूर्णता नहीं छोड़कर जाऊँगी, प्रेम की परिभाषा पूर्ण करके विदा होऊँगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवा...
कलियुग में बिकती सच्चाई
गीत

कलियुग में बिकती सच्चाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कलियुग में बिकती सच्चाई, झूठ कपट भी भारी है। तृष्णा के गहरे सागर में, जाने की तैयारी है।। खेले खेल सियासत भी अब, कालेधन की है माया। खींचें टाँग एक दूजे की, सत्ता लोलुप है काया।। बस विपक्ष की पोल खोलना, नई नीति सरकारी है। दौड़ सीट हथियाने की है, देते पद की सौगातें। भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा भी, राम राज्य की हैं बातें। रंग बदलते गिरगिट जैसा, नेता खद्दरधारी है। गागर रीती है खुशियों की, भीगी अँखियाँ रमिया की। तोता मैना करते क्रंदन, रहती चिंता बगिया की।। करें देश को नित्य खोखला, जनता भी दुखियारी है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट...
तर्पण की हकीकत
कविता

तर्पण की हकीकत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण। यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।। जब जीवित थे मात-पिता तब ही सब ज़रूरत थी। आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।। जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है। बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।। अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो। अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोचो।। अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है। यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।। सेवा, सु‌श्रूषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है। नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।। जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान। इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।। मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण। ज़रा देखो संतानो तुम आज तो सच का दर्पण।। परिचय :- प्...
देवों के महादेव
भजन

देवों के महादेव

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** शिव की भक्ति शिव की शक्ति, सावन का मास जो आया.....। देवों के महादेव को भक्तों ने बुलाया ...।। प्रथम वंदना गौरी नंदन, त्रिविध ताप हर पुष्प चढ़ाया....। देवों के महादेव को भक्तो ने बुलाया ...।। शिश जटा प्रभु चंद्र विराजे, हे भोलेनाथ भंडारी..... । देवों के महादेव को भक्तो ने बुलाया ...।। त्रिपुंड़ धारी गले शेष विराजे, त्रिशूल बाघांबर सोहै..... । देवों के महादेव को भक्तों ने बुलाया ...।। भक्तों पर सहज कृपा जो करते, आशुतोष कहलता .....। देवों के महादेव को भक्तों ने बुलाया ...।। "राधे" की विनती सुन लो हर, भक्तों की कष्ट मिटाओ हर हर.... । देवों के महादेव को भक्तों ने बुलाया ...।। ┈┉═❀❀═┉┈ परिचय :-  डॉ. राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत...
चन्द्रमौलेश्वर मनमहेश
स्तुति

चन्द्रमौलेश्वर मनमहेश

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चन्द्रमौलेश्वर मनमहेश, शिव ताडवं करते महेश। उमा महेश वन करते विहार, घटा टोप बादल अपार, सप्तधान शिव स्वरूप अनाज, सुन्दर मुख होल्कर महान, शेषनाग शिव मस्तक धारे, गले भुजगं अति शोभित साजे, महाकाल विकराल काल शिव, रजत पालकी बैठै मौलेश्वर, दर्शन कर भक्त हुये निहाल, जयकारा गूँजे महाकाल। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना रूचि : कविता...
सवाल
कविता

सवाल

माधवी तारे लंदन ******************** आज जागृत मंच ने किया खड़ा एक सत् सवाल साहित्य जगत में क्या जल सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मशाल स्मरण रहे इसे मत भूलना जहां सच्चाई ही खपाना नहीं होता इतना आसान वहां कैसे चमक सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शान भूल गए क्या गीत पुराना खुशबू आ नहीं सकती है कागज के फूलों से सिखा गए हैं राजेश खन्ना अद्भुतता से भरा रहता है विज्ञान क्षेत्र का सदा खजाना फिर भी असंभव सा होता है दैवी आपदाएं रोकना साहित्य जगत के प्रांगण में अनिवार्य है मानव संवेदना कैसे बाधित कर सकती उसे फिर कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भावना परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (लन्दन शाखा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मिथ्या गर्व
कविता

मिथ्या गर्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सरिता के सगंमो से सिखो मिलजुल कर आगे बढना सागर की उतुग उठती लहरो से सिखो उचे उठना। निर्झर के जल से सिखो नम्रता से नीचे झुकना आमर् वृक्ष से सिखो कोई प्रहार करे, पत्थर मारे फिर भी फल देना, फल गिराना। झुक कर पथिक को छाया देती वृक्ष की टहनी से कुछ सिखो गुनगुनाते भवंरे, पाखी से सिखो धैर्य धारण करना ह। पर्वत पर खडे वृक्षो से सिखो जल मे अपने प्रतिबिम्ब का निरन्तर अन्वेषण करना प्रकृति यह सब मौन मे करती है मानव के लिये और मानव हाँ मानव ऊंची आवाज कर कहता है मैने दान दिया, मैने दान किया यह मिथ्या गर्व है मानव का मिथ्या गर्व है मानव का। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ वि...
शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द
छंद

शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान से चिन्तन करें फिर पन्थ का निर्णय करें।।१।। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें।। भाग्य का निर्माण करता कर्म है निश्चय करें। धर्म की हर धारणा में कर्म है सविनय करें।।२।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ छोड़ें दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।।३।। ज्ञान को उपसर्ग कर लें मान को प्रत्यय करें। स्वयं को जीतें स्वयं से दुष्ट पर फिर जय करें।। बाहुबल रण-योजना कौशल-कला लयमय करें। बुद्धि-बल तन-शक्ति मन-संकल्प का अन...
मेरे अनकहे अल्फ़ाज़
कविता

मेरे अनकहे अल्फ़ाज़

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक ख़त जो मैंने कभी नहीं लिखा, पर दिल ने उसे हर रोज़ पढ़ा। हर पन्ना मेरे दिल की धड़कनों का आईना था, हर लफ़्ज़ मेरी अधूरी चाहत की गूँज। कितनी बार मैंने उसे अपने दिल में संभाला, कितनी बार अपनी साँसों में छुपा लिया। हर मुस्कान तुम्हारे लिए थी, हर आँसू मेरे भीतर दबा रहा। कभी सपनों में तुम्हें पाया, कभी यादों में तुम्हें खोया। मेरे शब्द अधूरे, मेरे ख्वाब अधूरे, पर इन खामोशियों में मेरा प्यार पूरा था। गुज़रती हवाओं में तुम्हारी खुशबू थी, गुज़रते पलों में तुम्हारी मुस्कान थी। फिर भी मैं लिख न पाया, क्योंकि डर था- शायद तुम नहीं समझ पाओ। कितनी रातें जागकर तुम्हें सोचता रहा, कितनी सुबहें तुम्हारे बिना टूटी। मेरे हाथों में अधूरे खत, मेरे दिल में अधूरी बातें, मेरी आत्मा में अधूरा प्यार। कितन...
तामस की कारा
गीतिका

तामस की कारा

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** खपी पीढ़ियाँ सपनों में ही, हुआ न उजियारा। कब तक हो भिनसारा भाई, कब तक भिनसारा।। तेल चुका ढिबरी का सारा, बाती राख हुई। आसमान तक अँधियारे की, हँसमुख साख हुई।। सधन हुई है दिन-प्रतिदिन ही, तामस की कारा।। नकबज़नी में रोटी के, नख, घिस-घिस टूट गए। पुस्तक का घर मावस के कुछ, गुंडे लूट गए।। चौराहों पर बेकारी का, चीख रहा नारा।। श्वास-श्वास पर पूरब के हैं, प्रतिबंधित पहरे। जब-जब सोचे निकले बाहर, पाँव धसे गहरे।। खर्च हो गया भूख-प्यास पर, दम-खम था सारा।। स्वर्ण-श्रंखला में बँध घंटे, भूल गए बजना। आठ पहर विरुदावलियाँ ही, उनको जो भजना।। रुद्ध हुई गंगा यमुना की, समरस जलधारा।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आयीं माँ दुर्गे हमारे द्वार
भजन

आयीं माँ दुर्गे हमारे द्वार

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** डोली पे होके माँ सवार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार धूप दीप और नैवेद्य चढाऊँ पावन पूत कलश बिठाऊँ आरती उतारूँ मैं बारम्बार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार स्वागत में माँ के गीत गाऊँ धुन पे गरबा नाच नचाऊँ झमक झूमूँ होके मैं तैयार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार दु:ख हरण हित तू माँ आयीं दुष्ट दलन हित पाँव बढ़ायी पहनाऊँ तुझे मैं विजयी हार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा ...
हिंदी से लगाव
कविता

हिंदी से लगाव

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मैं रोज हिंदी में बोलता हूँ रोज हिंदी के नए शब्द ही लिखता हूँ रोज में हिंदी ही रुचि से पढ़ता हूँ अनुवाद सिर्फ हिंदी में करता हूँ गद्य पद्य हिंदी में रोज लिखता हूँ हिंदी भाषा का ज्ञान लिखने पढ़ने में रोज व्यवहारित करता हूँ लेखकों कवियों रचनाकारो की रोज नवीन पुरानी अनमोल पुस्तकें सुबह से शाम फुर्सत में रोज संग्रह करता हूँ फुर्सत में रुचिकर रचित ज्ञान अन्तर्मन से पढ़ लेता हूँ रोज नए नए रोचक ज्ञान की खुराक पढ़कर लिखकर अनमोल ज्ञान से तृप्त हो लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों का भरपूर खजाना उनका एक-एक पन्ना मन मस्तिष्क में भर लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों से रोज असीमित ज्ञान के भंडार को रोज प्रेम से भर लेता हूँ यही है पूंजी सँजोकर रोज सुरक्षित रखता हूँ हिंदी की गहराई में खुशियों को ही नहीं सबके बीच हिंदी ज...
नवरात्रि कलश स्थापना
कविता

नवरात्रि कलश स्थापना

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सबसे पहले साफ स्थान से मिट्टी लायें, अब गंगाजल छिड़कर उसे पवित्र बनायें। मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें, तत्पश्चात उसमें जौ या सप्तधान्य बोएं। उसके ऊपर कलश में जल भरकर रखें, कलश के ऊपरी भाग में कलावा बांधें। कलश जल में लौंग, हल्दी व सुपारी डालें, दूर्वा और रुपए का सिक्का डालना न भूलें। कलश के ऊपर आम या अशोक के पल्लव को रखें, अब एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें। नारियल को कलश के ऊपर श्रद्धाभाव से रखें, इस पर माता की चुन्नी और कलावा जरूर बांधे। मातारानी की कृपा से कलश स्थापना सफलतापूर्वक हो गई, फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पूजा की बारी आ गई। नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप करना है, श्रध्दा-भक्ति के साथ उनकी विधि-विधान से पूजा करना है।...
पथ सभी अवरुद्ध हैं
गीत

पथ सभी अवरुद्ध हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पथ सभी अवरुद्ध हैं अब, नेत्र भी देते छलावे। कुंडली भी मौन बैठी, झूठ निकले आज दावे।। रक्त भी पानी हुआ है, अस्थि पंजर आज तन भी। पाश यम का बाँधता है, रूह काँपे और मन भी।। प्राण-पंछी उड़ गए हैं, कर चुके देखो दिखावे। मौसमी बदलाव लाया, साथ जहरीली हवाएँ। घोंसले सब लुट गए अब, आसुरी ये आपदाएँ।। सिर शनीचर है चढ़ा भी, कौन अब आकर बचावे। मौत से परिणय हुआ है, नृत्य तांडव हो रहा है। ढेर लाशों के लगे हैं, श्वान बैठा रो रहा है।। सिर झुका झींगुर चले अब, दादुरों के हैं बुलावे।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति...
विजयादशमी
कविता

विजयादशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अन्तर्मन में दीप जला, सत्य विजयभव कहने को। आना सद् चरित्र करने, मैं आहुत करूं दशहरे को। असुरों सा संहार करें, काम,क्रोध,मद, लोभ को। वंचक कपटी मन से, प्रभु दूर करें मनोरोग को। धर्म पथिक रहूं सदा, नमन सीता के सम्मान को। कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, दोहराना इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता को, अवध मेरे हिंदुस्तान को। हर घर याद दिला दो, इंसा भूल गए भगवान को। मन मंदिर में मानव देखो, क्यूं पूजता लंकेश को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक
कविता

ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो सर्वज्ञ सर्वव्यापी है, स्वयं सृष्टि निर्माता। पालक संहारक दुनिया का, ईश्वर है कहलाता। दिव्य अलौकिक शक्तिपुंज जो, जग का पालन करता। ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक, सुख करता दुख हरता। करते हैं उद्धार आप ही, आप कर्म फल दाता। खेबनहार आप भक्तों के, सब जग शीश झुकाता। तारक ज्ञान प्रदाता ईश्वर, सबका दुख हैं हरते। सकल जगत के दुख विदीर्ण कर, सुखमय जीवन करते। ईश्वर अंश जीव अविनाशी, तुलसीदास बताते। सभी जीव निज देह त्याग कर, धाम उन्हीं के जाते। अपनी सृष्टि देखकर ईश्वर, मन ही मन मुस्काते। कर्मों में रत देख मनुज पर, कृपा दृष्टि बरसाते। निर्मल मन वाले मानव से, प्रभु प्रसीद रहते हैं। स्वयं जगत के ईश्वर ऐसा, श्री मुख से कहते हैं। विनती परमपिता ईश्वर से, चरण शरण पा जाऊँ। शुभाशीष पाकर ईश्वर ...
किस कीमत पर
कविता

किस कीमत पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उसने कहा कि देखो अवाम को उनसे कितना प्यार है, जरा उनकी कड़ी मेहनत तो देखो चारों तरफ बहार ही बहार है, दरअसल ठाठ था राजसी राजाओं का, जबकि जोर था हर ओर फिजाओं का, खाने को तरसते लोग, औरों पर बरसते लोग, गुजर रही थी जिंदगी दान के दाने पर, पहुंच जा रहे कई लोग मौत के मुहाने पर, छा गई है भुखमरी की घटा घनघोर, बढ़ गए हैं गरीब कई कई करोड़, बाहर ढिंढोरची पीट रहा था ढिंढोरा कर दी है हमने गरीबी दूर, नहीं नजर आएगा कोई भूखा मजबूर, कोई पास आने को तैयार नहीं, परिस्थितियां उन्हें स्वीकार नहीं, पर है हल्ला सब तरफ कि जोर शोर से बज रहा है डंका, मत रखो मन में कोई सुबहा शंका, धड़ल्ले से चल रहा रोज स्तुति गान, बांट रहे देशभक्ति पर रोज रोज ज्ञान, नजरों को बांध दिखा रहा जादू जादूगर, बो रहे हो जहर बताओ क...
पितृ नमः
गीत

पितृ नमः

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आशीषें देने धरती पर, पितर पहुँच ही जाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते। पितर देव रूपों में होते, सदा भला ही करते। आशीषों से सदा हमारा, पल में घर वो भरते।। साथ सदा ही देखो अपने, शुभ-मंगल ले आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। क्वार मास का पखवाड़ा तो, पितरों को है लाता। श्रद्धा और नेह के सँग में, पितरों से मिलवाता।। पितर हमारे कोमल दिल के, बस मंगल बरसाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। रीति-नीति कहती है हमसे, हम चोखे हो जाएँ। भाव सँजो लें उर में अपने, श्रद्धा के गुण गाएँ।। जीवन का हर क्षण महकेगा, शुभ के पल हैं आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। तर्पण-अर्पण,पूजा-वंदन, अभिनंदन की बेला। देवलोक के पितर धरा पर, आकर भरते मेला।। ख़...