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पिता का मौन तप
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पिता का मौन तप

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** राजस्थान के मारवाड़ प्रदेश में बसा छोटा-सा गाँव था सुंदरसर। यहाँ की बलुई धरती सूर्य की तपिश सहती थी, रेतीले टीलों के बीच हरे-भरे खेत बाजरे की फसल से लहलहाते थे, और लोगों के चेहरों पर राजपूतानी सहनशीलता की छाप थी। इसी गाँव के एक छोर पर, खेजड़ी के पेड़ की छाया में, नारायण गर्ग का मिट्टी से लिपा-पुता कच्चा घर था। नारायण गर्ग- नाम में ही एक गरिमा और दायित्वबोध था। पचपन वर्ष के इस किसान के चेहरे पर धूप और लू ने गहरी झुर्रियाँ खोद दी थीं, लेकिन आँखों में अपने परिवार के प्रति अटूट प्रेम और जिजीविषा चमकती थी। उनकी धर्मपत्नी, संतोष देवी, गृहणी थीं- घर की छोटी-सी दुनिया को संचालित करने वाली अविचल स्तंभ। उनका सारा जीवन चूल्हा-चौका, बच्चों की देखभाल और पति के साथ खेत के कामों में बीता था। चेहरे पर सदा एक शांत संतोष, किन्तु आँखों के को...
बदलते मूल्य
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बदलते मूल्य

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** १३ जनवरी की कड़कती सर्दी में रजाई पर कंबल डाल लिया, फिर भी पैर गर्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। ‘सारा दिन मौजे में बंद रहने पर भी न जाने कैसे इतने ठंडे हो जाते हैं !’ अपनी गर्माहट समेटते-समेटते अचानक गुमटी की छत पर गोबर के उपले बनाती चमेली का ख्याल आ गया। दोपहर धूप की तलाश में मैं ऊपर छत पर गई तो सामने बैठी शांता उपले बना बनाकर यत्न से रख रही थी। उसकी साड़ी हवा में बुरी तरह उड़ रही थी। वह सिर ढकने का असफल प्रयास बार-बार कर रही थी। लेकिन ठंडी हवा उससे जिद्दी बच्चों जैसी ठिठौली कर उसकी साड़ी को पतंग बना लेना चाहती थी। बेचारी बेबस सी शांता ठंडी हवा के सामने खिसियानी सी बैठी, उपले बनाने में व्यस्त थी। मैंने उसे टोका- ‘कहो शांता ठंडी हवा का आनंद ले रही हो…?’ वह हल्के से हंसी, फिर उड़ती साड़ी का कौना मुंह में दबाकर उपले बनाने लगी। पिछले ...
गंगा-तट का अमर विरह
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गंगा-तट का अमर विरह

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** गंगा की अगाध धारा पर सांझ की लालसा छा गई। घंटियों की मंद्रित ध्वनि और भक्तों के जप-तप से आकाश गुंजायमान हो उठा। पंडित विश्वंभरनाथ, जिनकी तपस्या से गंगा-तट की बालू भी तप्त हो उठती थी, स्नानोपरांत समाधि में लीन थे। तभी उनकी दृष्टि महादेवी अमृतांशी पर ठहर गई, जो कमल-दल सी कोमलता लिए जल से प्रकट हुईं। उनके आभूषणों की आभा से गंगा की लहरें चमक उठीं। यह पल था जब दो आत्माओं का स्पर्श बिना किसी शब्द के ही अनंत युगों के विरह का सूत्रपात कर गया। महादेवी की सखी मनस्विनी, जिसका हृदय विरह की ज्वाला से धधक रहा था, ने पंडित की ओर संकेत किया। तभी नित्यानंद शुक्ल, चटख रंगों से सजे मुखौटे लिए मुस्कुराते हुए आ धमके। "अहो! यह तो मन्मथ की प्रेम-लीला है!" उनकी हास्य-विनोद भरी वाणी से भक्तजन ठहाकों में भर उठे। इतने में ही राम मनोहर पांड्या, शस...
वसंत कब आएगा
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वसंत कब आएगा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बहुत दिन क्या बरसों हो गए। कोंपल न फूटनी थी न फूटी। कितने ही बसंत आए और चले गए पर काकी आशा का दामन थामे उस ठूंठे नीम के वृक्ष को देखती रहती, इसी आशा में कि कभी तो कोंपल फूटेंगी, कभी तो बहार आएगी। पत्तियां आंगन में झड़ झड़ कर कूड़े का ढेर बना देंगी। पक्षी गुटर गूं करेंगे। अकेले एकांतवासी काकी का आंगन चहक उठेगा। मन बहलाने को दो-चार साथी मिल जाएंगे। पर कहां होता था काकी का सोचा हुआ पूरा। बसंत आता व चला जाता। सारे पेड़ हरे हो जाते पर काकी का पेड़ काकी की तरह ही तपस्वी सा अविचल खड़ा रहता। सोचते-सोचते काकी की आंखें भर आतीं। वह अपनी पीड़ा में पेड़ को भी शामिल कर लेतीं। जितनी अकेली वे थीं उतना ही अकेला उनका लाड़ला पेड़ था जिसे कभी अपने हाथों से उन्होंने आंगन में रोपा था। इस आंगन में उन्होंने बहुत कुछ रोपा था। बहुत से सपने देखे थे, पर समय...
सात फेरों वाला आदमी
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सात फेरों वाला आदमी

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** मेरा बॉस के साथ जाने का टूर बन गया तो मैंने ध्रुव को बताया कि मैं पंकज कपूर के साथ सात दिनों के लिए शिमला जा रही हूं। सुनकर वह चौके और बोले- "वह तो बहुत बदनाम आदमी है, ना जाने कब से इस मौके की तलाश में होगा?" -"फिर बताओ मैं क्या करूं? सात दिन रात मुझे उसके साथ रहना होगा, तुम यह कैसे बर्दाश्त करोगे.." -"मैं भी साथ चलूँ?" -"तुम्हारा साथ जाना वह बर्दाश्त नहीं करेगा।" -"फिर कोई और हल सोचो इस समस्या से निपटने का.." -"बस एक ही उपाय सूझता है कि मैं रिजाइन कर दूं तुम्हारा इतना तो वेतन है कि घर आराम से चलता रहे, फिर जब मैं घर पर रहूंगी तो अन्य बहुत से खर्च भी कम हो जाएंगें।" मेरे इस प्रस्ताव को सुनकर ध्रुव स्तब्ध रह गए, उन्हें सीधे-सीधे १७०००/ का नुकसान होता दिखाई दिया। वह चुप रहकर कुछ सोचते रहे फिर बोले- "यह कोई हल नहीं है सर्विस क्या ...
हथेली पर उगा चांद
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हथेली पर उगा चांद

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** अभी मुनीम जी आकर बता गए हैं मांजी, ८ लाख में बाग का सौदा हो गया है। मधु ने मुझे सूचना दी। बहू अभी पिछले दिनों जो बाग बिका था, वह कितने में गया था? मांजी वह तो सस्ता ही हाथ से निकल गया था, सिर्फ ३ लाख में सौदा हो गया था, लेकिन मांजी जो बाग अगले साल के लिए तैयार हो रहे हैं, वह १५-२० लाख से कम देकर नहीं जाएंगे। -हां मधु वह जो काला जामुनी वाला बाग है उसके आमों के तो क्या कहने… खाओ तो बस खाते ही जाओ, भगवान की बड़ी मेहरबानी है कि सारे पेड़ एकदम मीठे हैं। मां बोलती चली जा रही थी, उन्हें यह भी ख्याल नहीं रहा कि अब वह अकेली बैठी हैं मधु जा चुकी है। नन्ही रमिया से बड़ी मांजी का सफर जैसे तैर कर उनकी आंखों में आ गया। जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े डग रखती रमिया उड़कर कर अपने रघुआ के पास पहुंच जाना चाहती थी जहां झोपड़ी के बाहर बैठा नन्हा रघुआ बेसब्री से ...
पांच पांडवनी
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पांच पांडवनी

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** मई, जून की गर्मी से कुछ दिन बचने के लिए नैनीताल का प्रोग्राम बना लिया। सारी तैयारी करके चल दिए। हल्द्वानी पहुंचते ही राहत सी महसूस होने लगी थी। पर काठगोदाम आते ही दिल्ली की गर्मी बिल्कुल धुल गई थी। ठंडी हवा के झोंके गालों को थपथपाने लगे थे और गर्मी की वजह से कसकर बँधे बाल खुलकर लहराने को मचलने लगे थे। जगह-जगह भुट्टों की सोंधी गंध रुकने का संकेत कर रही थी। प्रकृति का अनुपम सौंदर्य चारों तरफ बिखरा पड़ा था। जिसे कैमरे में कैद करने के लिए मैं और प्रभात जगह-जगह रुकते हुए आगे बढ़ रहे थे। नैनीताल पहुंचते ही स्वर्ग जैसी अनुभूति होने लगी। हम जाकर शांत, निश्चल, नौकाएं सजी झील के किनारे बैठ गए.. जहां चारों तरफ पर्वत सर उठाए खड़े थे। उन पर काले बादल अठखेलियाँ करते से प्रतीत हो रहे थे। चारों तरफ भव्य होटल अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। स्नो व्यू जाने ...
प्रतिशोध
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प्रतिशोध

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "तुमने कुछ सुना अम्बालिका"- हर्ष मिश्रित उत्साह के आवेग से अम्बिका का स्वर कांप रहा था। आज अम्बिका अपनी किसी दासी का सहारा बिना लिए ही धीरे-धीरे चलती हुई चुपचाप अम्बालिका के प्रकोष्ठ में आ गयी। सुखद आश्चर्य हुआ अम्बालिका को। जरुर कोई खास बात है तभी अम्बिका दौड़ी चली आई है। इस वृद्धावस्था में भी यौवन सा उत्साह भरा हुआ है। जैसे कोई चिरसंचित अभिलाषा पूरी हो गई है। ‌"आओ दीदी बैठो। ऐसा क्या सुन लिया आपने कि खुशी समाई नहीं पड़ रही। मुझे ही बुला लिया होता। "अम्बिका को पीठिका पर आदर से बैठाते हुए उसने एक नजर अपने कक्ष पर डाली। फिर स्वंय ही द्वार की अर्गलाएं चढ़ा दीं। "इन्हें यों ही रहने दें अम्बालिका। आज हमारी बात किसी को सुनने की फुर्सत नहीं है। सब शोक मना रहे हैं।" " हां,आज युद्ध का दसवां दिन है। यहां तो रोज ही शोक मनाये जाते हैं। इस ...
विदिशा डे
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विदिशा डे

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** आज विदिशा का छठा जन्मदिन था। हर साल विदिशा नानाजी के घर पर ही अपना जन्मदिन मनाती। जन्मदिन के दिन विदिशा सवेरे जल्दी उठकर माता-पिता के चरण स्पर्श कर सूर्यदेव को जल अर्पण करती। प्रणव और श्रेया के साथ गौमाता को घास खिलाती, और नानाजी से कहती आज मेरे जन्मदिन पर गायत्री शक्तिपीठ जाकर गायत्री हवन करेंगे और एक पौधा जरूर लगाएंगे। उसके बाद वह कहने लगी नानाजी आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर चलें, कड़कड़ाती ठंड का मौसम था विदिशा ने ठंड से ठिठुरते लोगों को देखा तो उसकी आँखें भर आई, उसने कहा नानाजी हम इन जरूरतमंद लोगों को गर्म कपड़े और कंबल दे, और कहती नानीजी ये तो मानव सेवा है और जो कोई भी यह सेवा करता है, उसे प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और फिर गंगा घाट पर पक्षियों को दाना डालने लगी। शाम को भजन संध्या और केक काटने का प्रोग्राम थ...
थोड़ा सा इंतजार …
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थोड़ा सा इंतजार …

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************                         "राम-राम रामधन काका"- दोंनो हाथ जोड़ दिए मेघा ने। काका को देखकर मेघा के चेहरे पर खुशी नाच उठी। "सुखी रहो बिटिया। कैसी हो?" अच्छी हूं काका, सामने तो खड़ी हूं"-हंस पड़ी मेघा "वही तो देख रहा हूं क्या बढ़िया कोठी है। देखकर आंखें जुड़ा गईं। अरे बिटिया बाहर जो चौकीदार खड़ा है अंदर ही ना आने दे रहा था। मैंने भी कड़क कर कहा कि तुम हमें जानत ना हो। हम साब की ससुराल से आए हैं। सो बिटिया वो हमें नीचे से ऊपर तक देखने लगा। हमें फिर जोश आ गया। अबे ऐसे क्या देखत हो कभी आदमी नहीं देखा। जा मेरी बिटिया को बुला ला और तभी आवाज सुनकर तू बाहर निकल आई। ससुरा अंदर भी आने देता या बाहर से ही लौट जाना पड़ता"- कहते-कहते काका ने अपने दोनों पर सोफे पर रख दिए। पर्दे के पीछे खड़े राही और गौरा ने देखा तो हंस पड़े और बोले -"स्टूपिड... पता न...
जामुन का पेड़
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जामुन का पेड़

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** उज्ज्वल अपनी मां से बोला, मां मैं कल शहर चला जाऊंगा तो फिर एक महिने बाद ही आना होगा। इसलिए में अपने दोस्त केशव से मिलकर आता हूं, वो भी परसों अपनी नौकरी पर चला जायगा। फिर ना जाने कब मिलना होगा। अभी आता हूं। हां, चला तो जा पर शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना, तेरी बुआ आयेगी तुझसे मिलने, हां ठीक है। उज्ज्वल अभी घर से निकला ही था कि बरसात होने लगी एक बार तो सोचा वापस घर जाकर छाता ले आता हूं। तभी विद्यालय की ओर से आती हुई घंटी की आवाज उज्ज्वल के कानों में पड़ी, उसने सोचा क्यों ना स्कूल की दीवार के पास खड़ा हो जाता हूं। जिससे बरसात में भीगने से बच जाऊंगा। बच्चों के शोरगुल की आवाज ने उसके मन में भी स्कूल के दिनों की याद ताजा कर दी थी। बरसात कुछ देर रुक गई। पर पेड़ो के पत्तो पर ठहरा पानी अभी भी धीरे-धीरे करके टपक रहा था। उज्ज्वल अब चल पड़ा...
हमसफर एक्सप्रेस
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हमसफर एक्सप्रेस

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कुछ कहानियां ऐसी होती है जिनको शब्दो में बयां नहीं किया जा सकता, एक कहानी ऐसी भी... तोड़कर खुद को वो किसी और को जोड़ रहा था हां, एक लड़का जो किसी से बहुत प्यार कर रहा था हमेशा खुद को वो उसके ही सपने में डुबोए रहता था एक साल हो गए और सब अच्छा चल रहा था पर अचानक से एक मनहूस दिन आया लड़की के घर में धीरे-धीरे सबको पता चल रहा था उस पर पाबंदियों के हजारों जंजीरे लगने लगी उसका अब घर से बाहर निकलना भी मुश्किल हो रहा था इधर लड़का बेचैन उसे कहां धैर्य हो रहा था। वो उसे देखने को कब से बेचैन बैठा था आदत थी उसे हर दिन उसे देखने की अब उससे इंतजार नहीं हो रहा था, कहीं से उसकी कोई खबर आए काश उसे कोई बाहर ले आए एक बार देख ले उसे तो उसे चैन आए पर कहां कोई उसकी दिल की बातों को सुन रहा था दो दिल रो रहे थे, थे वो परेशान बात इतनी सी थी अलग थी उ...
गणपति बप्पा
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गणपति बप्पा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मम्मा बहुत रो रही थी। उसकी आंखें रोते हुए सूज गई थी। लाल आंखों से सूना पूजा घर देखते ही फफक पड़ती थी। पापा ने सभी मूर्तियां फोटो एक बेग में भरकर रख दिए थे। उन्हें नदी में विसर्जित करने के लिए गाड़ी बाहर निकालने के लिए चले गये। मम्मा रोते हुए बोल रही थी, इसमें इन देवी देवताओं का क्या दोष है। भले घर में रहने दो पूजा अर्चना नहीं करेंगे। ऐसा सूना पूजा घर अच्छा नहीं लगता है। पलट कर पापा ने कहा, सारा दिन देवताओं की कृपा कहना और सही पुरुषार्थ को राम राम कहना। करतबगार बनना, देवो जैसा बनना ये भावनाएं तो बाजू में रह गई, बस सब कुछ भगवान की कृपा कहते इतीश्री करना, ऐसा धंधा किसने कहा। सुनकर भी मैं थक गया हूं। क्रोध से भरें पापा ने पीछे देखा ही नहीं और गेट की ओर चल पड़े हाथ में झोला था। उसे गाड़ी में रख दिया। गणेश चतुर्थी के लिए भी चार दिन ही ...
दीपक की रोशनी
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दीपक की रोशनी

नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी महराजगंज, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** चार दिन गुजर चुके थे, टूटी-फूटी मढ़इय्या में सन्नाटे का बोलबाला था। वेदना पांव पसार रही थी, दहलीज से गलियारे पर कुछ हलचल देखी जा सकती थी, लेकिन जर्जर कोठरी की मायूसी को नहीं। कुछ घरेलू सामान अस्त व्यस्त पड़ा था, बर्तनों में जूठन तक नहीं थी, चूल्हे की आग उदर में जल रही थी। झूला बनी खटिया पर रह-रह कर ननकू के कराहने की आवाज मानो उसके जीवित होने का प्रमाण दे रही थी। बेबसी, लाचारी और बीमारी उपहासिक संयोग कर रही थी, सहसा अति कोमल लेकिन रूदित आवाज में रोशनी ने कहा "मां बर्तन भी भेज दोगी तो जब कभी रोटी बनेगी तो? मां कुछ बोल पाती तब तक दीपक ने धीरे से आंचल खींचते हुए कहा "मां अनाज के पैसे से दुकानदार ने पूरी दवा नहीं दी" मां मुझे भूख नहीं लगी, कुल दीपक के चेहरे पर रोशनी की चिंता दिख रही है, रोजदिन की तरह पड़ोसियों का...
कहानी नदियों की
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कहानी नदियों की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवेश के साथ प्रकृति की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन सम्भव है। होली हो गई रेन डांस व बसन्त पंचमी अब है वेलेंटाइन डे तो नदियाँ अपनी जीवन शैली क्यूँ न बदले भला। डिजिटल दुनिया तो नदियाँ भला कैसे पीछे रहती। वर्तमान आभासी संसार की देखा-देखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक कॉन्फ्रेंस काल मीट में आदेश निकाल दिया, "सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। जब तक समस्याएँ पता नही होगी, समाधान कैसे ढूंढेंगे ?" माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा चट्टानों में विचरती ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं, "बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को। उन विकराल लहरों को याद कर मेरी रूह काँप जाती है। होशंगाबाद जैसे कई इलाकों में घरों की छतों तक पानी पहु...
‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी
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‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** यू हेव अराइव्ड। योर डेस्टीनेशन इस ओन राइट। गाड़ी पार्क की और इधर-उधर देखा। सुभम मन-ही- मन बहुत खुश था कि जहाँ पर वह जगह खरीदने जा रहा है, यहाँ की लोकेशन तो अच्छी है। पार्क है, मंदिर है। चौड़ी सड़कें हैं और मुख्य मार्ग के पास में ही है। अभी तो पाँच बजे हैं। छह बजे के लिए बोला था। प्रोपर्टी वाला या उसका कोई दलाल आएगा। कोई बात नहीं जगह अच्छी है। आज मंगलवार भी है तो क्यों न मंदिर में जाकर हनुमान जी के दर्श्न कर लिए जाएँ और मन्नत भी माँग ली जाए कि सौदा ठीक-ठीक पट जाए क्योंकि आजकल जमीन के मामलों में बड़ी धोखेवाजी चल रही है। सुभम ने मंदिर में प्रवेश किया, हाथ जोड़े प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए। लेकिन अचानक किसी आवाज ने उसकी धड़कनें बढ़ा दीं। कुछ भ्रमित-सा हुआ लेकिन जल्दी ही वो आवाज मंदिर के प्रांगण से बाहर निकल गई लेकिन सुभम...
भगोड़ा
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भगोड़ा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चन्दन सेठजी व माधुरी जी की सर्वगुण सम्पन्न बेटी सुष्मिता की अपने घर में खूब चलती है। चले भी क्यूँ ना, छोटा भाई श्रवण ठहरा सीधा सा व शांत प्रकृति वाला। कोई भी उसे बुद्धू बना सकता है। लोगों ने दबी ज़ुबान में उसे गोबर गणेश ही नाम दे दिया। सेठ जी अक्सर सेठानी को ताना मारते, "यह तुम्हारे कारण ही ऐसा हुआ। जब वो गर्भ में था तो सेठानी जी को पूजा पाठ व दान धरम से फुर्सत नहीं थी। महापुरुषों व वीरों की कहानियाँ पढने में तुम्हारा क्या जा रहा था। इससे तो अच्छा होता भगवान उसे हमारी बेटी बना देता और सुष्मिता को बेटा।" सरलमना सेठानी बेचारी क्या बोले, "अरे, मेरा बेटा सीधा सच्चा इंसान निकलेगा, देखना आप। आपको तो व्यापार के लिए चाहिए चालबाज चालाक बेटा। ईमानदारी के किस्से आपने पढ़े ही नहीं। राजा हरिश्चंद्र, गांधी जी, शास्त्री जी जैसे लोग अपने सुकर्म...
प्रणय दान … भाग- २
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प्रणय दान … भाग- २

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** द्वितीय भाग बेटा पयपान करते-करते सो गया मा अपने काम मे लग गयी। संयुक्त परिवार में घर के बहुत काम हो जाते है पति चार भाई थे समय के साथ परिवार में हिस्सा बाट हुआ पुराने घर से कुछ दूरी पर अपना मकान बना कर रहने लगे पर भाइयों का आपसी लगाव कम नही हुआ अब उर्मिला चार बेटे और एक बेटी की माँ बन चुकी थी पति चन्दर किसान थे अच्छी खेती थी गुजारा आराम से चल रहा था बड़ा बेटा पिता के कामो में हाथ बंटाने लगा, उसने अपनी पढ़ाई मिडिल से ही छोड़ दी थी, दूसरा बेटा प्रकाश पढ़ने में बहुत अच्छा था दोनों छोटे बेटे और बेटी भी स्कूल जाने लगे थे। प्रकाश जब मिडिल में गया तब दोनों पति पत्नी उसके आगे की पढ़ाई के लिए चिंतित रहने लगे कारण इसके बाद स्कूल ८ किमी दूर था शहर में जाना पड़ता था l माता पिता हमेसा अपने बच्चों के लिये अच्छा ही सोचते है...
प्रणय दान … भाग- १
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प्रणय दान … भाग- १

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** प्रथम भाग जेठ बैसाख के दिन गर्मी अपने चरम परम पर थी। घर के काम करते-करते उर्मिला बाहर किसी की आवाज सुन किवाड़े की दराज से झांका, देखा एक साधु महाराज गली में 'भगवान के नाम पर कुछ देने का आग्रह करते हुए चले जा रहे थे। प्रायः फसल काटने के बाद गांवों में साधु संत, नट मदारी आदि का आना नदी में बाढ़ की तरह हो जाता है, पेट के लिए तरह-तरह के चेतक दिखाते है वैसे तो बहुत साधु आते है इस गांव में पर इस साधु की बात कुछ अलग थी। किसी के दरवाजे के पास नही रुक रहे थे। रुकिए महाराज अरे सुनिए न, कहते हुए उर्मिला एक टोकरी में कुछ अनाज लेकर बाहर निकली पीछे से आवाज सुन साधु महाराज ठहर गए। ला माई इस झोली में डाल दो हमेशा खुश रहो तेरे बल बच्चे बने रहे बाबा ने आशीषों की झड़ी लगा दी, अरे माई तुम रो रही हो। उस स्त्री ने कोई जवाब नही...
ऐसा क्यों है?
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ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की बज रही लगातार घंटी ने मुझे जगा दिया। मैंने रिसीव किया और उनींदी आवाज़ में पूछा -कौन? उधर से आवाज आई- अबे! अब तू भी परेशान करेगा क्या? कर ले बेटा ओह! मधुर, क्या हुआ यार? कुछ नहीं यार! बस थोड़ा ज्यादा ही उलझ गया हूँ, सोचा तुझसे बात कर शायद कुछ हल्का हो जाऊं। बोल न ऐसी क्या बात हो गई? मैं तेरे पास थोड़ी देर में आता हूं, फिर बताता हूं। मधुर ने जवाब देते हुए फोन काट दिया। मैं भी जल्दी से उठा और दैनिक क्रिया कलापों से निपट मधुर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद मधुर महोदय नुमाया हुए। मां दोनों को नाश्ता देकर चली गई। नाश्ते के दौरान ही मधुर ने बात शुरू की। यार मेरी एक मित्र (गिरीशा) है। जिससे थोड़े दिन पहले ही आमने सामने भेंट भी हुई थी। वैसे त...
अनूठा प्रेम
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अनूठा प्रेम

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी। रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका मन बार बार...
मुझे भी जीना है!
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मुझे भी जीना है!

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी, कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी पर वो खुद को रोके हुए थी! वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था! नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी! बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी! कही कुछ कमी नहीं अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले, इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही, चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली " कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे! कला भाभी, बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी! अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया, माँ "कला ने बाहे फैला दी" पर अंश उसके पैरों में झुक गया "जुग-जुग जिऐ" उसने अंश को गले लगा लिया कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी " बहू को ...
कुछ तो है उसमें
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कुछ तो है उसमें

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी। "मैं बहुत थक गई हूं।" सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी। सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर "माँ'" है ना! सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था। भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी। सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था। बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह...
शालू
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शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...
काली चामुण्डा और पॉंच भूत
कहानी

काली चामुण्डा और पॉंच भूत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पिछले दिनों की बात है। जब चाचा का धौलाने से फोन आया कि तुम्हारी चाची पिछले कुछ दिनों से बीमार है। मैंने यहां और आस पास के सभी डॉक्टरों को दिखा लिया परन्तु कोई आराम नहीं हो रहा है। मैंने पूछा, "डॉक्टरों ने क्या तकलीफ़ बताई है?" वह बोलें डॉक्टरों के कोई बिमारी समझ ही नहीं आ रही है। वो तो केवल दवा देकर ये कह देते हैं कि शायद इस दवा से आराम हो जाए। कल गाजियाबाद एक बडे अस्पताल में दिखा कर लगाऊंगा। मैंने कहा कि डॉक्टर को सारी तकलीफ अच्छे से बता देना ताकि वो अच्छी दवा दे सके। चाचा बोले कि बता तो दूंगा परन्तु कुछ बातें तो ऐसी है, जिन्हें बताने में ऐसा लगता है कि कहीं डॉक्टर सुनकर हंसी ना बनाएं। मैंने कहा, "हंसी क्यू बनाएंगे?" चाचा बोले कि रात के समय इसे सांस लेने में परेशानी होती है। यहां तक तो ठीक है परन्तु इसी के साथ ही ये अपने ही गले...