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लघुकथा

ममता
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ममता

रचयिता : सत्य प्रकाश भारद्वाज ============================ ममता महिला कल्याण समिति की सभा में श्रीमती जॉर्ज ने अध्यक्षीय भाषण में विशेष जोर देते हुए कहा--- "बच्चों को पाउडर वाला दूध पिलाना चाहिए अपना' गाय या भैंस का दूध नहीं पिलाया जाए। इससे अनेक शारीरिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं। विदेशों में महिलाओं ने इस ओर विशेष ध्यान देकर अपनी जवानी तथा सुंदरता को बनाए रखा है।" इसके प्रभाव से उन धनाढ्य कालोनी में महिलाओं ने बच्चों को अपना दूध पिलाना बंद कर दिया। श्रीमती कपूर ने अपनी आया को कहा, 'देखो!.. मुन्ने को आज से यह पाउडर का दूध पिलाना है। मैं इसे अपना दूध नहीं पिलाउंगी ।' 'यह आप क्या कह रही हैं?.... ''बीबीजी मां का दूध तो बच्चे के लिए बहुत फायदेमंद होता है। 'मैं तो अपने लल्ला को अपना ही दूध पिलाती हूं।' 'बहस ना करो! जैसा मैं कहती हूं वैसा ही करो।' बच्चा डिब्बाबंद पाउडर का दूध पीने लगा। दूध...
क्षमा
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क्षमा

क्षमा रचयिता : विजयसिंह चौहान ===================================================================================================================== दो ढाई साल की उम्र, मगर बेहद समझदार जैसे परिपक्वता लेकर जन्म लिया हो ! प्यार से सभी उसे डिस्को कह कर बुलाते थे। समय पर खाना-पीना और अपने नित्य कर्म करना, डिस्को की समय पाबंदी को दर्शाता है। शाम को 6:00 बजे तक यदि वर्मा जी घर ना आए तो पूरा घर सिर पर उठा लेता। इतनी कम उम्र में सबका ध्यान रखना बार-बार घड़ी  देखना,  गुस्सा करना, सबको प्यार करना और इधर-उधर डोलते रहने के कारण ही घर के सब लोग उसे डिस्को कहकर पुकारते हैं। कल शाम की ही बात है, वर्मा जी के साथ डिस्को घूमने निकला चूंकि डिस्को कद काठी से मजबूत होने के कारण गली के कुत्तों से कहीं ज्यादा तगड़ा है। चहल कदमी के दौरान एक मरियल सा कुत्ता उसे देख-देख घूरने लगा। डिस्को चूकी वर्मा जी के ह...
पेट का सवाल
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पेट का सवाल

पेट का सवाल रचयिता : सतीश राठी ===================================================================================================================== ‘’क्यों बे ! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या ?‘’ गिट्टी में  डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा| ‘’कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी ! सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी|’’ मिमियाते हुए लड़का बोला| ‘’मेरे काम में बेटा तू नया आया है| इतना डामर डालकर तूने तो मेरी  ठेकेदारी बन्द करवा देनी है|‘’ फिर समझाते हुए बोला – ‘’ये जो डामर है, इसमें से बाबू, इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा ! ख़राब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं|.. ..चल इसमें गिट्टी का  चूरा और डाल|” मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला| लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा| उसका उतरा हुआ चेहरा ...
एक फूल दो माली
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एक फूल दो माली

एक फूल दो माली अविनाश अग्निहोत्री ===================================================================================================================== रॉय साहब व उनकी पत्नी, एक सड़क दुर्घटना में अपने इकलौते बेटे व बहु को खो देने के बाद। उनकी आख़री निशानी अपने आठ वर्षीय पोते की परवरिश उसी लाड़ प्यार से कर रहे थे। जैसी कभी उन्होने अपने बेटे मधुर की करी थी। यह देख रॉय साहब के एक पुराने मित्र उन दोनों से बोले, आपके बेटे मधुर ने शादी के बाद आप दोनों से जैसा व्यवहार किया। ऐसा तो कोई सौतेला भी न करे। और उसकी पत्नी ने तो आप जैसे देवपुरुष व सीधी साधी भाभी को। दहेज प्रताड़ना का झूठा आरोप लगा। इस बुढ़ापे में,जेल तक के दर्शन करवा दिये। तब भला आप उनकी ही इस संतान को किस उम्मीद से इतने लाड़ प्यार से पाल रहे है। अपने मित्र की बात सुन, रॉय साहब गोद मे बैठे अपने पोते के सर पर हाँथ फेरते हुए। गम्भीर स्व...
मातृत्व
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मातृत्व

मातृत्व रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== अपनी बेच में टॉप करने के कारण आज काॅलेज के दिक्षांत समारोह में शिवांश का विशेष सम्मान होने वाला  था। परिवार  के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में आमन्त्रित किया गया था। शिवांश जब पाँच वर्ष का था तब मां ललिता का देहांत हो गया था। पिता संदीप ने रिश्तेदारों के दबाव में आकर अनमने मन से दूसरी शादी ‘सुजाता’ से कर ली थी। सुजाता भले ही सौतेली मां थी, लेकिन उसकी बदोलत ही आज शिवांश डाॅक्टर बन पाया था। संदीप को पी एम टी की परीक्षा की फीस भरने के लिये सुजाता ने ही मनाया था। शिवांश के माता पिता को भी आज के समारोह में सम्मान मिलना था। सुजाता सोच रही थी कि स्टेज पर बेटे शिवांश के साथ संदीप और स्वर्गीय ललिता का ही नाम पुकारा जायेगा। एकाएक उसके कानों में आ...
मां
लघुकथा

मां

मां रचयिता : लज्जा राम राघव "तरुण" ===================================================================================================================== जंगल में अपनी मां के साथ किलोल करते हुए हिरण शावक बहुत दूर चला गया था। हिरणी जितना उसका पीछा करती, वह उतना ही आगे बढ़ता जाता। अंत में वह एक ऐसे स्थान पर पहुंच गया जहां एक शेरनी आंखें बंद कर लेटी हुई थी तथा अपने शावकों को दूध पिला रही थी तथा ममता वश उन्हें चाटे भी जा रही थी। अबोध हिरण शावक को क्या पता था कि "शेर और हिरण का कोई मिल नहीं होता,..... यदि होता भी है तो...... "बस भूख और भोजन का!" जब हर ने उसका पीछा करते-करते वहां पहुंची तो यह दृश्य देख वह आतंकित हो उठी। हिरणी को समझते देर न लगी कि "अब तो उसके बच्चे की जीवन लीला कुछ ही क्षणों में समाप्त होने वाली है!" यह सोच कर वह अंदर तक हिल गई थी। ..... "परंतु.. कर भी क्या सकती थी?" अब वह...
फर्क
लघुकथा

फर्क

फर्क रचयिता : सुषमा दुबे ===================================================================================================================== बेटी के साथ हुई ज्यादती कि रिपोर्ट लिखवाने पहुचे पिता -पुत्री से थानेदार ने उल जुलूल प्रश्न करना शुरू कर दिए। लड़की का पिता ने कई सवालों के जवाब में सर झुका लिया। फिर शुरू हुआ प्रवचन का सिलसिला, अरे आजकल कि लड़कियां मौज मस्ती के लिए लड़को से दोस्ती करती है, जब बात नहीं बनती इल्जाम लगा देती है............ कहकर एक लम्बा चौड़ा लेक्चर दे दिया। दोनों बाप-बेटी सर झुकाये उसकी बाते सुनते रहे। तभी थानेदार लड़की के पिता की और मुखातिब होकर बोला -"धिक्कार है तुम्हे जो ऐसी बेटी को जन्म दिया, इसकी जगह यदि मेरी बेटी होती तो तो मैं पुलिस थाने में आने कि जगह उसे आग लगा कर ख़त्म कर देता। अब तक चुपचाप सुनती रही लड़की ने मुहं खोला वह थानेदार से बोली -"सर एक बात पूछू...
निश्चिंतता
लघुकथा

निश्चिंतता

निश्चिंतता रचयिता :  कुमुद के.सी.दुबे ===================================================================================================================== मनन शादी के बाद पहली बार पत्नी माला को लेकर लखनऊ से भोपाल आ रहा था। उसने पहले से किराये का घर लेकर गृहस्थी की आवश्यक सामग्री जुटा रखी थी। मकान के ऊपरी तल पर मकान मालिक सिंह दम्पती रहते थे। उनकी एक ही बेटी थी जो शादी के बाद दिल्ली में सेटल थी। मनन ने माला को शादी के पहले बता रखा था कि पापा के बिजनेस के कारण माँ और पापा भोपाल में हमारे साथ नहीं रह पायेंगे। मेरा ऑफिस रहेगा, तुम्हें दिनभर घर में अकेले ही रहना होगा। माला समझदार थी, उसने सहजता से आने वाली परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। फ्लाईट में बैठे मनन सोच रहा था कि संयुक्त परिवार में पली-बडी माला, दिनभर अकेले कैसे रहेगी ? वह सोच में डूबा हुआ था कि फ्लाईट भोपाल पहुँच गई। मनन ने ...
वक्त
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वक्त

वक्त रचयिता : माधुरी शुक्ला दसवीं कक्षा में पहुंचे पोते मनु के बदले रंग ढंग को दादा ब्रजकिशोर की बूढ़ी और अनुभवी आंखों ने मानो पढ़ और समझ लिया है। फिर कल उसे मोहल्ले के बिगड़ैल लड़कों के साथ घूमते  देख उनकी फिक्र बढ़ गई है। ब्रजकिशोर बेटे दिनेश से कह रहे हैं सिर्फ कमाने में ही मत लगा रहा कर घर की तरफ भी थोड़ा ध्यान दे। मनु की फिक्र भी किया कर वह बड़ा हो रहा है और गलत संगत में भी पड़ता दिखाई देने लगा है। उनका इतना कहना था कि बहू सरिता बरस पड़ती है बाबूजी की तो पता नहीं क्यों मनु से आजकल कुछ दुश्मनी हो गई है। वह कुछ भी करे इन्हें गलत ही लगता है। यह सुन ब्रजकिशोर खामोश हो जाते हैं। जानते हैं अब कुछ बोले तो बहस हो जाएगी। इस बीच दिनेश ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगता है खूंटी पर टंगा मनु की पैंट गलती से उससे नीचे गिर जाती है। जब पैंट  टांगने लगता है तो जेब से सिगरेट का पैकेट बाहर झांकता ह...
प्रहार कर
लघुकथा

प्रहार कर

प्रहार कर रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' ===================================================================================================================== कुनाल अपनी जिंदगी से इतना नाखुश था कि उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था, उसकी जिंदगी मानों थमती और चलती जा रही थी, कुनाल की जिंदगी में सबने ही दखल डाला था यहाँ तक की उसकी खुद भी जिंदगी ने उसपर दखल ऐसे दी थी कि उसने हार मानते मानते भी हार नहीं मानी थी, कुनाल के परिवार में छः सदस्य थे जिसमें कुनाल सबसे छोटा है उसके ऊपर लेकिन बोझ इस प्रकार है मानों वो परिवार में सबसे बङा हो, घर का सारा काम देखना अपने पिता की खेती का सारा काम देखता और स्वयं खेती में काम भी मेहनत से करता फसल आती बेची जाती और सारा धन घर के कामों व भाई बहन की पढ़ाई में खर्च होता है जिसपर कुनाल ने कभी भी जरा सा सोच भी नहीं किया कि आखिर मुझे भी पढ़ना है और क्या करना है सिवाय क...
मेरा राम मेरे साथ है
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मेरा राम मेरे साथ है

मेरा राम मेरे साथ है रचयिता : डॉ सुरेखा भारती शाम हो गई थी राधिका ने अपने को, थोड़ा संवारा और वह तुलसी क्यारी में दीपक लगाकर अपने पूजा घर में रामायण पढ़ने बैठ गई। यह उसका रोज का नियम जो था। अंकुर की शादी हुए दो महिने बीत गए थे। अंकुर की पसंद-नापंसद, उसके लिए क्या बनाना है, क्या नहीं, पहले उसकी चिंता रहती थी, पर यह सब तो अब बहु ही देखने लगी थी। बहु तो अच्छी है पर राधिका और अधिक अकेला पन महसूस करने लगी थी। अंकुर भी अब आते से ही पूछने लगा है, सीमा ऽ सीमा तुम कहां हो .......?, लगता था अब माँ को वह भूल गया है। पहले जरूर उसके इस बदलाव से मन में अजीब सी चुभन होती थी। पर अब अपना मन भगवान के स्मरण में लगाना सीख लिया था। रामायण पढ़ते हुए, वह श्री रामचरित्र में खो गई थी, की सहसा फूलों की सुगंध वातावरण में घूमने लगी, उसने सोचा अंकुर बहु के लिए फूल ले कर आया होगा, आज उसका जन्मदिन जो है। पर अचानक उस...
धुरी
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धुरी

रचयिता : माधुरी शुक्ला अरे, पूजा जल्दी करो, देर हो रही है डॉक्टर साहब निकल जायेंगे। अजय का यह स्वर कई बार गूंज चुका है। आई बस, कुछ देर और यह कहती पूजा बेटे चिंटू और सास के लिए खानपान का पूरा इंतजाम करने में जुटी है। उसे लग रहा है कि बुखार तो उतरने का नाम ही नहीं ले रहा ऐसा ना हो डाॅक्टर अस्पताल में एडमिट होने को कह दे। ऐसा सोचती है तभी इस बार अजय कड़क आवाज़ में पुकारता है कितनी देर, छोड़ो यह सब बाद में देख लेना। पसीना पोंछती वह किचन से निकलती है और अजय के साथ डाॅक्टर के पास जाती है। डाॅक्टर उसकी हालत देख तुरंत एडमिट होने को कह देता है। अब अजय का चेहरा देखने लायक हो जाता है। वह डाॅक्टर से पूछता है शाम तक छुट्टी हो जाएगी ना। वह हंसते हुए कहते हैं इलाज तो शुरू होने दो पहले। अजय के सामने बूढ़ी मां और चार साल के बेटे का चेहरा घूमने लगता है। सोचता है अगर  यह एक-दो दिन अस्पताल में रह गयी तो घर ...
लड़की
लघुकथा

लड़की

लड़की रचयिता : अविनाश अग्निहोत्री ===================================================================================================================== अपने पिता के माथे पर चिंता की गम्भीर लकीरे देख। गरिमा उससे बोली, पिताजी हमे पहले तत्काल दादी का मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा लेना चाहिये। उसकी बात सुन उसके पिता ने कहा, बेटा अगले महीने तेरी शादी है। अभी उसकी सारी तैयारी बाकी है। अब इतनी छोटी सी जमापूंजी में ये दोनों काम एक साथ भला कैसे हो पाएंगे। तब वह बोली तो मैं अभी कहाँ बूढ़ी हुए जा रही हूँ। शादी हम कुछ माह बाद कर लेंगे। पर क्या तेरे ससुराल वाले इस बात पर राजी होंगे, पिता ने आशंकित हो पूछा। गरिमा बोली पिताजी मैं अनिमेष से बात करके देखती हूँ, वह सुलझे विचारों वाले व्यक्ति है। वे जरूर अपने परिवार को इसके लिये मना लेंगे। गरिमा की बात सुन उसके पिता सहित सारे परिवार का उदास चहरा खिल ...
पॉकेट मनी 
लघुकथा

पॉकेट मनी 

पॉकेट मनी  रचयिता : विजयसिंह चौहान मृद्धि कॉलेज क्या गई उसकी पॉकेटमनी दिन-ब- दिन छोटी पड़ने लगी, अत्यधिक  खर्च को लेकर मिथिलेश अक्सर टोकती रहती है । आज फिर समृद्धि ने उसके पापा से पॉकेट मनी बढ़ाने को लेकर 'दुलार' किया।  इस बार उसका तर्क था ....ग्रीष्म ऋतु है इसलिए कुछ ज्यादा पैसे दे देना। पिताजी ने भीआंखों ही आँखों मे नजरें घुमाई और सोचा की गाड़ी का पेट्रोल फुल टैंक है, मोबाइल का रिचार्ज भी है, ड्रेसेस तो कल परसों ही खरीद लाई थी । खैर.... बिटिया ने कहा है, तो पिताजी ने भी हा कर दी। पॉकेट मनी पाकर समृद्धि चहक रही थी, वही मिथिलेश बड़बड़ा रही थी ....बेटी को ज्यादा पैसे मत दिया करो, कुछ कंट्रोल रखो, नहीं तो नाम  निकालेगी। शाम को जब पिताजी घर लौटे तो घर के कोने में कुछ मिट्टी के सकोरे और अनाज का थैला देख उत्सुकतावश पूछा कि यह क्या है ? ...तभी मिथिलेश ने मुस्कुरा कर कहा बेटी आज अपनी पॉके...