यादों की गठरी
राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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मां, बेटे को मिल रही सफलता पर फूली नही समा रही थी। उसका मन बेटे को दुआएँ दे रहा था। वह बेटे को चूम लेना चाहती थी। पर सम्भव नही था। वह माँ से कोसो दूर बैठा था। कितने साल हो गए थे। उसे गाँव से गए। माँ के चेहरे की झुर्रियाँ लगातार बढ़ती ही जा रही थीं। आँखों की ज्योति भी धीमी पड़ रही थी। पर माँ का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। वह जब भी उदास होती। अतीत की यादों में खो जाती।उसे आज भी याद हैं जब गाँव के स्कूल मास्टर ने साफ कह दिया था। तेरा लला पढ़ नही सकता, इसका दिमाग बहुत कम है। क्यों अपने पैसे खराब कर रही हो? तुमने क्या सोच कर इसका नाम ज्ञान रखा है। ये तो पूरी तरह अज्ञानी है। कितना मन दुःखा था उस दिन। उसने बहुत मिन्नतें की थी, मास्टर सहाब से। आपका ही बच्चा है, दया कीजिए। शुरू-शुरू में तो वह बिल्कुल नहीं माने थे। ज्ञान स...