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लघुकथा

नई पहल
लघुकथा

नई पहल

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** आशा : माँ जी- आपको और पिताजी को तो मेरे काम में कोई ना कोई कमी हमेशा नजर आती है। आखिर क्या गलती है मेरी, जो आप हमेशा नाराज रहते हो? कभी तो मेरा उत्साह बढ़ाया करो। आपसे तो किसी तरह की उम्मीद रखना अपने आप को धोखा देने जैसा है।रोज-रोज की कहासुनी से, राजेश भी बहुत परेशान था। पत्नी की सुनता तो, जोरू का गुलाम कहलाता और माँ की सुनता तो, पत्नी कहती माँ के पल्लू से बंधे रहना जीवन भर। कभी मन में आता छोड़कर भाग जाऊं सब कुछ। ये खुद ही काम-धाम संभाल लेंगे। शादी से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था। माँ कहती थी मेरी बहूँ आएगी तो मैं उसे बहूँ नहीं बेटी की तरह रखूंगी। सास को बहूँ को बेटी ही मानना चाहिए। उस समय मैं सोचा करता था, मेरे घर में आने वाली लड़की बड़ी ही भाग्यवान होगी। जो उसे ऐसा परिवार मिलेंगा।आशा का स्वभाव थोड़ा सा तुनक-मिजाज था। वह छोटी-छोटी बातों प...
हिंदी है हम
लघुकथा

हिंदी है हम

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रानी किसी काम के लिए पोस्ट ऑफ़िस गई। उसने देखा एक महिला वहां की कर्मचारी से इंग्लिश में बात कर रही थी। दूसरी तरफ रानी सोच रही थी। अपने ही देश भारत में रहकर भी कुछ लोगों को हिंदी बोलने में शर्म आती है। उस महिला को कोई फॉर्म भरना था लेकिन वह भर नहीं पा रही थी। वह रानी के पास आई और इंग्लिश में बोली, कैन यू फील माय फॉर्म...? रानी को भी अच्छी इंग्लिश आती थी लेकिन वह विनम्रता से बोली, जी जरूर भर दूंगी लेकिन मैं हिंदी में भरना पसंद करूंगी। वह महिला बोली जैसा आप चाहें। रानी ने लोग क्या कहेंगे इस बात की परवाह नहीं करते हुए गर्व से अपनी मातृभाषा में फार्म भरकर उस महिला को थमा दिया। परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
गणित मां पापा का
लघुकथा

गणित मां पापा का

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (रात दस बजे का वक्त सोने की तैयारी) नवल अपनी पत्नी सोनिया का हाथ पकड़कर.. नवल : सोनू तुम बहुत अच्छी हो, तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गया। आज तुम ना होती, तो ना मैं बीमार मां को गांव से ला पाता ना वो इतनी जल्दी स्वस्थ हो पाती। घर, नौकरी, मां, सब कुछ कितनी अच्छी तरह संभालती हो तुम। सोनिया : वह मेरी भी तो मां है नवल, क्यों ऐसा बोल रहे हो? नवल : थैंक यू सोनिया!! सोनिया : सुनो एक बात कहनी थी, नवल : बोलो ना प्लीज.. सोनिया : तुम तो जानते हो, मैं अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान हूं, पापा के जाने के बाद मम्मी बहुत अकेली हो गई है। फिर उम्र का भी तकाजा है। क्यों ना हम उन्हें यहां ले आए, उनका भी मन लग जाएगा। नवल : सोनू यार! कैसी बात कर रही हो? दामाद के घर जाकर भी कोई रहता है क्या? फिर हमारा रूटीन भी डिस्टर्ब होगा... उन्हें कहना कभी-कभी यहां आ जाया ...
गूढ़ रहस्य
लघुकथा

गूढ़ रहस्य

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** पापा आप हर बात में अपनी सलाह क्यों देते रहते हैं? आपका अपना ही अलाप बजता रहता है। तभी दूसरा बेटा भी आ गया। पापा हर मामले में अपनी टाँग अड़ाना जरूरी है। शर्मा जी, चुपचाप दोनों बेटों की बातें सुन रहे थे, जो उन्हें किसी शूल की भाँति चुभ गई थी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा था। अब तो हर रोज का यही काम था। सुबह से ही घर में कलह शुरू हो जाता था। शर्मा जी ने बड़े जतन से घर की एक-एक चीज जोड़ी थी। वह किस तरह उन्हें बर्बाद होते देख सकते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी थी। पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह समय पर पूरा किया था। पर उनसे कहीं ना कहीं भारी चूक हो गई थी। जो आज अपने ही परिवार में उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ रही थी। रोज की तरह, वह सुबह पार्क की तरफ चल पड़े। गेट पर ह...
अनमोल तोहफा
लघुकथा

अनमोल तोहफा

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ५ सितंबर यानि शिक्षक दिवस आज पूरा दिन स्कूल में बच्चों की शुभकामनाएं और ढेर सारी टाफीया उपहार गुल्दस्ते ग्रिटींग कार्ड। इसके अलावा शाला प्रबंधन की ओर से विषेश कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें उत्कृष्ट शिक्षा नवाचार के लिए सुषमा को विषेश पुरस्कार प्रदान किया गया। सुषमा जब घर लौटी तो उसके बैग बच्चों द्वारा दिये गये उपहार से भरे हुए थे और हाथ में शाला प्रबंधन की ओर से दिया गया स्मृति चिन्ह ।घर पहुँच कर सुषमा पूरी तरह थक कर चूर हो चुकी थी। पीछे से आवाज आई मैडम जी...मैडम जी... सुषमा निन्नी को देख कर अतीत में खो गयी। उसके लिए ये जगह नयी थी अभी अभी उसने शिक्षाकर्मी वर्ग एक के लिए पोस्टिंग कोंडागाँव में हुआ था । घर के सामने सड़क के उस पार झोंपड़ी नजर आती थी। स्कूल जाते समय रास्ते में निन्नी दिख जाया करती थी उसकी उम्र कोई आठ ...
श्राद्ध या दिखावा
लघुकथा

श्राद्ध या दिखावा

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मीनू ने रानू से कहा, रानू चलो बाजार चलते हैं। "क्यों? अरे! तुम्हें नहीं मालूम क्या? श्राद्ध पक्ष चल रहा है। ढेर सारी सब्जियां, मिठाइयां, फल, सूखे मेवे लाना है। और उपहार में देने के लिये कपड़ें बर्तन तथा सोने व चांदी के आभूषण भी तो लेना हो। भाई हम तो अपने सास-ससुर का श्राद्ध उत्सव के जैसा मनाते हैं। दो ढाई सौ लोगों को खाना खिलाते हैं, गरीबों को दान करते हैं। मंदिर में चढ़ावा देते हैं, तभी तो हमारे पूर्वज खुश होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। क्यों रानू हमने तो तुम्हें कभी सास-ससुर का श्राद्ध करते नहीं देखा? अरे भाई इतनी भी क्या कंजूसी है? अरे भाई इतना जो कुछ है आखिर उन्हीं का तो दिया हुआ है। रानू के मुंह से तपाक से निकल गया। भाभी मैंने अपने सास- ससुर को जीवित में ही तृप्त कर दिया था। इसलिए उनका आशीष तो सदा मेरे साथ है। रानू ने मन म...
यादों की गठरी
लघुकथा

यादों की गठरी

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ********************                मां, बेटे को मिल रही सफलता पर फूली नही समा रही थी। उसका मन बेटे को दुआएँ दे रहा था। वह बेटे को चूम लेना चाहती थी। पर सम्भव नही था। वह माँ से कोसो दूर बैठा था। कितने साल हो गए थे। उसे गाँव से गए। माँ के चेहरे की झुर्रियाँ लगातार बढ़ती ही जा रही थीं। आँखों की ज्योति भी धीमी पड़ रही थी। पर माँ का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था। वह जब भी उदास होती। अतीत की यादों में खो जाती।उसे आज भी याद हैं जब गाँव के स्कूल मास्टर ने साफ कह दिया था। तेरा लला पढ़ नही सकता, इसका दिमाग बहुत कम है। क्यों अपने पैसे खराब कर रही हो? तुमने क्या सोच कर इसका नाम ज्ञान रखा है। ये तो पूरी तरह अज्ञानी है। कितना मन दुःखा था उस दिन। उसने बहुत मिन्नतें की थी, मास्टर सहाब से। आपका ही बच्चा है, दया कीजिए। शुरू-शुरू में तो वह बिल्कुल नहीं माने थे। ज्ञान स...
रिश्ते का लिहाज़
लघुकथा

रिश्ते का लिहाज़

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                   लंबे समयांतराल बाद जिला कलेक्टर के आदेशानुसार लाकडाउन में थोड़ी छूट दी गई। ज्यादातर लोग घरों से निकल कर बाजार की तरफ चल पड़े थे, दैनिक जीवन से जुड़ी आवश्यक सामग्री की खरीदी करने के लिए। बालकनी में बैठे-बैठे मैं लोगों को बाजार आते-जाते देख रहा था, इच्छा हुई कि बाजार घूम आता हूँ। मैं भी घर से निकल पड़ा बाजार की तरफ। बाजार पहुंचकर मैं समैय्या के होटल में एक कप चाय बोलकर चाय आने का इंतजार कर रहा था, तभी मेरी नज़र पड़ी होटल में एक कोने में बैठे तीन लोगों पर, जो कि एक ही स्टूल पर बैठे थे, जिनमें एक व्यक्ति ठीक बीच में बैठे थे, और शराब की बोतल से शराब गिलास में डालकर क्रमश: पहले और फिर दूसरे व्यक्ति को बारी-बारी से दे रहे थे।जब पहले व्यक्ति शराब पी रहे होते तो दूसरे सज्जन दूसरी तरफ नज़र घुमा लेते थे और जब दूसरे सज्जन शर...
सास का स्नेह
लघुकथा

सास का स्नेह

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' इन्दौर (मध्यप्रदेश) ********************                      डाक्टर श्वेता जच्चा वार्ड में राउण्ड पर थी। वहाँ पर एक ऐसी ग्रामीण महिला को बच्ची हुई थी, जिसे बच्चे नहीं होने के कारण उसके पति ने दूसरी शादी कर ली थी। पति की दूसरी शादी के नौ महिने के अन्दर ही उस महिला को बच्ची हो गई। डाक्टर श्वेता जब वहाँ पहुँची तब दादी बच्ची को गोद में लेकर कह रही थी "पगली पहले ही आ जाती तो तेरी दूसरी माँ न आती"। परिचय :- सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' जन्म तिथि : ०३/०४/१९६४ शिक्षा : बी. एस. सी; एम.ए.(अँग्रेजी साहित्य), बी. एड. सम्प्रति : शास. शाला में शिक्षिका ! साहित्यिक गतिविधि : गद्य एवं पद्म लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में १०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न मंचो से २० से अधिक सम्मान, १२ से अधिक आनलाइन काव्य पाठ घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
पगली
लघुकथा

पगली

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** मैने उसे स्कूटर पर बैठाया और मुर्गीफार्म का पता पूछते परसुराम मन्दिर पहुच गयी। ये वही जगह थी जहाँ से मै उसे लेकर घर गयी थी। वापस लाते हुए उसकी मूक व्यथा का अनुमान लगाना एक भयावह कल्पना सी लगी वह नही जाना चाह्ती थी मेरा घर छोड़ किन्तु एक क्रूर निर्मम सामाजिक संरचना की अंग होने के कारण मुझे ये अपराध करना ही पडा। कुछ देर तक तो मुझे स्वयं पर ग्लानि की अनुभूति होती रही। सोचती रही की मै उसे ले ही क्यो गयी जब रख पाना कठिन था किन्तु ऐसा नहीं जब मैं अकेले इतने बड़े-बड़े निर्णय लेती हूँ तो ये निर्णय भी किसी के आदेश से थोड़े ही लेना था अतह ले गयी। एक गरीब दुखी भूखी प्यासी माँ के अंदर की चीत्कार ने मुझे हिला के रख दिया था। मैं सोचती गयी, सोचती गयी, पण्डित जी से मैने मन्दिर पर दुर्गा नवमी का हवन कराने के बाद किसी घरेलू नौकरानी दिलाए जाने की बात को कहा...
आखिर क्यों…
लघुकथा

आखिर क्यों…

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उड़ चली दूर बहुत दूर सपनो के झूले मे, बैठी सूरज की किरनो पर सैर करती, मंद हवा के झोको सी बहती, तितली सी मडराती, ऑखो मे हजारो बसे सपनो को साकार करती, किसी के कोमल स्पर्श को महसूस करती, अपने हर सबाल का सकारात्मक उत्तर पाती, अपने नसीब पर इतराती लहराती बलखाती चलती चली गई, चलती चली गई वह मोहक अहसास एक चुम्बक सा कदमो को जबरन खीचता चला गया, बढ़ते गये कदम। कि अचानक कदम ठिठक गये टकरा गये किसी पत्थर से ..... कहां? कहां है वह स्वप्न संसार? मै तो वही की वही थी, टूटी बिखरी हताश, ओह! तो यह स्वप्न था? पर क्यो? मैने अपने हाथो की लकीरों को ध्यान से देखा वह बदली नहीं थी, फिर यह स्वप्न कैसा?.. फिर? फिर भ्रम, भ्रम था यह सब? ओह रब! क्यो तोड़ता है इतना, क्यो देता है इतनी चुभन? क्या इतना तोड़कर भी तेरा मन नही भरता? या मुझ जैसा कोई और नही मिलता जो बार-बार बहारो का...
लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार
लघुकथा

लाॅकडाउन का संयुक्त परिवार

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ********************                   सुनैना अभी-अभी छाछ की हाण्डी रखने आयी थी। तीनों भाभीयां ने सुनैना को देख लिया। उसे रोककर वे तीनों उससे बातें करने लगी। तीनों भाभीयां चूपके से अनिल को शरारात भरी आंखों से देख रही थी। अनिल शरमा के यहाँ-वहां हो जाता। सौमती का पुरा परिवार आज उसके साथ था। लाॅकडाउन चल रहा था। दोनों बेटे अपने परिवार सहित विधवा मां सौमती के यहां पैतृक गांव आये थे। उन दोनों बेटों के चार बेटे और तीन बेटों की पत्नीयां तथा इन तीन जोड़ों के कुल पांच बच्चों से सौमती का सुना घर खुशियों से भर उठा था। सौमती का छोटा बेटा रामचंद्र अपनी मां के साथ ही था। उसकी पांच बेटीयां थी। सौमती के मंझले बेटे दयाराम का पुत्र अनिल विवाह योग्य हो चला था। सौमती ने उसी गांव की सुनैना की बात अनिल के लिए चलाई थी। मगर दयाराम अपने पढ़े-लिखे अनिल के लिए वैसी ही बहु चाहते थे ताकी सम...
गरीब की बेटी
लघुकथा

गरीब की बेटी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** मालूम है!", रामदीन कास्टेबल को एस. पी साहब ने पाँच सौ रुपए का नगद ईनाम दिया"। क्यों भला? रातों रात नेताजी की भैंस ढ़ूँढ दी।" "ये तो भैय्या सच में बड़ी बात हुई। पर उसने उनकी भैंस पहचानी कैसे? सभी तो एक समान दिखती हैं, कोई निशान विशान था क्या? "चुप कर,! खबर, बताकर गलती की, कोई सुन लेगा तो नौकरी गई पक्की" ननकू बड़ा हैरान परेशान है, कभी किसी साहब का कुत्ते खो गया, तो किसी की गाय, सब ढूँढ़ निकालते हैं पुलिस वाले, गरीब की बेटी तो जानवरों से भी बदतर है, तभी तो, मेरी बिटिया गायब हो गई, पर रिपोर्ट भी लिखने को तैयार नहीं हुई पुलिस....। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : यह...
चमकदार
लघुकथा

चमकदार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** घर का माहौल काफी गमगीन था। सभी नीमी को बार-बार समझा रहे थे कि वो अपना निर्णय बदल दे। पर वह मानने को तैयार नहीं थी।परिवार के सभी लोग हार चुके थे। वह अपने फैसले पर अडिग थी। माँ कह रही थी, पता नहीं सोनू ने मेरी बेटी को क्या घोल कर पिला दिया है? अब सिर्फ पापा ही कुछ कर सकते हैं, यह उनकी बात कभी नहीं टाल सकती। पापा इसे सबसे ज्यादा लाड़ करते हैं। अगर इसने सोनू से शादी कर ली तो पूरे परिवार की नाक कट जाएगी। पापा सारी घटना को जान कर भी कैसे अनजान रह सकते हैं, भाई चिल्ला उठा? मम्मी मैं पापा से खुलकर बात करूँगा, आखिर उनके मन में क्या चल रहा है? उन्हें पूरा हक है कि वह नीमी को रोक दे। वरना अनर्थ हो जाएगा। क्या हमारी बिरादरी में अच्छे लड़के खत्म हो गए हैं? क्या सोनू ही अकेला कामयाब लड़का रह गया है? मुझें समझ नहीं आता, यह लड़की मान क्यों नहीं रही है? न...
कुलक्षणी औरत
लघुकथा

कुलक्षणी औरत

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** मैं जब भी गाँव जाता तो देखता कि रामदास की घरवाली गृहस्थी के काम में हर पल उलझी ही रहती! बेचारी को पल भर की फुर्सत नहीं थी घर के काम से, शान-शौक तो जैसे सब कब के छूट चुके थे! सिर पर जिम्मेदारी का बोझ था, देखने में लगता जैसे बीमार हो बेचारी! वहीं दूसरी ओर उसका पति रामदास निहायत निठल्ला, कामचोर, पत्तियाँ खेलते हुए समय बेकार करता रहता था! घर की स्थिति बेहद नाजुक थी!गरीबी तो मानो छप्पर पर चढ़कर चिल्ला रही थी कि उसका हमेशा से शुभ स्थान रामदास का घर ही रहा है! इस बार मैं चार महीने से गाँव नही जा पाया था, लेकिन चार महीने बाद में जब गाँव गया तो देखा कि रामदास का तीन कमरे का पक्का मकान बना हुआ था! रामदास ने एक आटो भी खरीद ली थी! सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था! मैं ने रामदास से पूछा कि इतना परिवर्तन अचानक कैसे हुआ? और तुम्हारी घर वाली नही दिख र...
महान कौन?
लघुकथा

महान कौन?

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दोनों हाथों में कत्थाई रंग की तलवारनुमा आकृति वाली दो सूखी बड़ी फल्लियाँ लिये ग्यारह वर्षीय साकेत मित्र सहित शाम ढले घर आया अतिउत्साह में! "मम्मा! देखो मैं क्या लाया?" मां- "अरे सक्कू! बेटा क्या लाये ये? गुलमोहर की सूखी फल्ली?" (आश्चर्य पूर्वक) साकेत- "नहीं मम्मा ये तो तलवारें हैं, तलवारें, दो मेरी दो मेरे दोस्त शिवु की।" मां- "पर तुम ये क्यों लाये?" साकेत- "महान बनने।" मां- "महान बनने!" (अत्यंत विस्मय से) विभु- "हां आंटी जी, महान बनने, अब हम दोनों मुकाबला करेंगे फिर, जो जीता वो बाकियों से लडे़गा ऐंसे ही तो महान बनते हैं ना?" मां- "तुमदोनों से किसने कहा ऐंसे कामों से कोई महान बनता है?" (क्रोधपूर्वक) साकेत- "वैभव एक साथ-आपने! और हमारी इतिहास विषय की शिक्षिका जी ने।" (सहज भाव से) मां- "क्या; मैने कब कहा? और शिक्षिका से अभी पूंछती हूँ।" सा...
सहारा
लघुकथा

सहारा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** माँ, आज पंचतन्त्र में विलीन हो गई थी। वह एक नई यात्रा पर निकल चुकी थी। उस यात्रा पर हर व्यक्ति अकेले ही तो जाता हैं। माँ भी चली गई थी। हमारा सम्बन्ध तो इस लोक तक ही रहता हैं। जब माँ थी, तो मैं हर छोटो-बड़ी बात के लिए उनके पास बैठ जाता था। उनका स्नेह भरा स्पर्श मेरी हर समस्या का हल तुरन्त कर देता था। उनका स्पर्श किसी आशीर्वाद से कम नहीं था मेरे लिए। पर अब मेरा क्या होगा, सोचने मात्र से ही मेरे पूरे शरीर में सिरहन सी दौड़ पड़ती है? मैं निराशा के समुन्द्र में गोते खानें लग जाता हूँ। माँ के आशीर्वाद से मेरे पास सबकुछ है। अच्छा कारोबार, बंगला, बैंक-बैलेंस और नौकर-चक्कर। पर माँ का सहारा नहीं हैं। जब भी मुझें अपने कारोबार में किसी तरह की दिक्कत आती थी। तब माँ का सकारात्मक रवैया मुझमें नई ऊर्जा भर देता था। बस एक ही शिक्षा देती थी। बेटा कभी किसी ...
बिंदी
लघुकथा

बिंदी

डॉ. पायल त्रिवेदी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** "माँ, हम बिंदी क्यों लगाते हैं?" जब पांच साल की छोटी बिंदी ने माँ से यह सवाल किया तो माँ ने उसे हंसकर टाल दिया, तुम अभी छोटी हो, यह बात नहीं समझ पाओगीपर बिंदी जब ज़िद पर उतर आयी तो माँ ने इतना कहकर उसे समझा दिया, बिंदी हम सुहागिनों की निशानी है। सभी औरतें इसे लगाती है और इसे अच्छा शगुन भी माना जाता है इस वजह से सभी लड़कियों के लिए भी बिंदी बहुत ही शुभ मानी जाती है। तभी तो माता रानी को भी यह लगायी जाती है। बिंदी तुरंत उठकर अपनी काकी के पास चली गयी, काकी, तुम क्यों नहीं लगाती बिंदी जब यह तो शुभ मानी जाती है? बिंदी के मुँह से यह प्रश्न सुनकर दादी तुनककर बोली, अचला, इसे समझाओ की बड़ों की सभी बातों में इसे नहीं पड़ना चाहिए। जी माजी कहकर अचला ने बिंदी को अपने पास बुला लिया, बिंदी चलो, तुम अपनी गुड़ियाकी शादी में मुझे नहीं बुलाओगी? तब बिंदी समझ ...
रेशम के धागे
लघुकथा

रेशम के धागे

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** वरुण की एक ही बहन है रीमा। उसके विवाह को पांच वर्ष हो गये। ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह रक्षाबंधन पर नहीं आई परन्तु इस वर्ष का रक्षाबंधन कोरोना काल में आया। वरुण का मन यह माननें को तैयार नहीं था कि इस वर्ष उसकी कलाई पर बहना की राखी नहीं सजेगी। रीमा भी बहुत लालायित थी मायके जाने को पर दोनों ने अपनी भावनाओं के प्रवाह को काबू में करके तय किया कि हम कोरोना काल में स्वास्थ्य मंत्रालय के नियमों का पालन करेंगे और सामाजिक दूरी बनाए रखेंगे। यही सोंचकर रीमा बाजार भी नहीं गई और घर में रखे कुछ रेशम के धागे एक लिफाफे में रखे, साथ में एक चिट्ठी में लिख दिया भाई इन धागों को मेरी राखी समझ अपनी बिटिया चीनू से बंधवा लेना। रीमा ने नम आँखों से वह लिफाफा पोस्ट कर दिया। परिचय :- सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' जन्म तिथि : ०३/०४/१९६४ शिक्षा : बी. एस. सी; एम.ए.(अ...
खाली स्थान
लघुकथा

खाली स्थान

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गंगा की याद आते ही मन पूरी तरह उचट जाता था। सभी कुछ था मेरे पास। आज तक मैं जीवन में दौड़ ही रहा था। कभी डिग्री पाने के लिए, कभी नौकरी पाने के लिए। मैं तो अपने घर में ही खुश था। अपने गाँव में, अपने खेतों में, बाप-दादा की तरह। मैं भी खेती करना चाहता था। मुझें बचपन से ही खेत-खलिहान अपनी तरफ खीचते थे, लहलहाती फसलें, माटी की भीनी-भीनी सुगंध। ऐसा सादा जीवन ही मुझें पसन्द था। पर उसकी जिद के आगे मै नतमस्तक हो गया था। वही चाहती थी कि मै पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बनू। जब भी पीछे मुड़कर उसका बलिदान देखता हूँ, परेशान हो उठता हूँ। हमेशा मेरे पीछे लगी रहती थीं। जब भी मै विदेश जाने की बात पर टाल मटोल करता। उसका प्यार भरा स्पर्श, अपनेपन का अहसास मुझें अन्दर तक सहला जाता। उसके इस प्यार भरे अहसास ने ही मुझें विदेश जाकर डॉक्टरी करने को मजबूर कर दिया था। उसी का प...
मास्टर जी की धोती
लघुकथा

मास्टर जी की धोती

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ******************** माँ रोज़ सुबह सवेरे ही रतन को नहला-धुला कर तैयार करके बिठा देती। एक स्टील की डिबिया में चूरमा भरकर ओर साथ में घी में डूबी दो रोटी भी बाँधकर बस्ते में रख देती। साथ ही रतन के गले में बस्ता लटका कर स्कूल के लिए चलता कर देतीं। बार-त्योहार के अलावा कभी-कभार माँ जब ज़्यादा प्यार दिखातीं तो छींकें पर लटके कटोरीदान में से इक्कनी निकाल कर रतन के हाथ में रख देती। कहती “ बेटा, भूखा मत रहना, बाग से अमरूद लेकर खा लेना”। गाँव से ही, रतन के दो और साथी उसी की कक्षा में पढ़ते थे। तीनों मिलकर स्कूल भी साथ आया-ज़ाया करते। राह में धूलियाँ उड़ाते दो कोस का स्कूल का रास्ता झट से पार हो जाता। कभी-कभी रास्ते में ये तीनों साथी ज़ोर ज़ोर से पहाड़े गा-गाकर याद करते जाते। इस बार छुट्टियों में मॉं के साथ जब रतन नाना-नानी के घर गया, तो नानाजी ने अ...
शक का इलाज
लघुकथा

शक का इलाज

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** नीरू अपनी स्कूटी पेप से जा रही थी। नीरू गाड़ी धीमे ही चलाती है। अचानक एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति उसके साथ चलने लगे। उनके पास भी स्कूटी पेप थी। वो व्यक्ति झुककर मेरी स्कूटी में नीचे की ओर देखने लगे। वहाँ मेरा पर्स रखा था पैरों के बीच। मेरे पर्स में मेरा मंगलसूत्र रखा था जो आफिस से लौटते वक्त सुधरवाना था। मैं कुछ बुरा सोंचती उसके पहले ही बो बोल पड़े बेटा रिजर्व में पेट्रोल की नाब किधर होती है? मैंने मुस्कुरा कर उन्हें रिजर्व में पेट्रोल की नाब की स्थिति समझाई। वे व्यक्ति आगे बढ़ गये और मैं सोचने लगी की शक का कोई इलाज नहीं होता। परिचय :- सुभाषिनी जोशी 'सुलभ' जन्म तिथि : ०३/०४/१९६४ शिक्षा : बी. एस. सी; एम.ए.(अँग्रेजी साहित्य), बी. एड. सम्प्रति : शास. शाला में शिक्षिका ! साहित्यिक गतिविधि : गद्य एवं पद्म लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रि...
जलदेवियाँ
लघुकथा

जलदेवियाँ

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ********************  नारी उस वृक्ष की भाँति है जो विषम परिस्थिति में तटस्त रहते हुए परिवार के सदस्यों को छाया देती है। नारी अबला नहीं सबला है। पुरुष वर्ग शायद नहीं जानते कि नारी कोमलता एवं सहनशीलता के साथ यदि वह दृढ निश्चय करे तो वह कुछ भी सम्भव कर सकती है। इस बात के असंख्य उदाहरण हैं जिसमें से एक कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत है। गंगाबाई और रामकली ये दोनों आदिवासी खालवा विकास खंड लंगोटी की रहने वाली थीं। इस आदिवासी विकास खंड की पहचान सुदूर आदिवासी अंचल के नाम से थी क्यूंकि ये दुनिया से एक सदी पीछे था। इस विकास खंड के पंद्रह गाँव आज भी पहुँच विहीन हैं। पानी के अभाव से जीवन अत्यंत जटिल था। गंगाबाई और रामकली के साथ पार्वती, लछमी, ललिता, मीरा, चमेली, टोला और चम्पा ये सारी स्त्रियाँ हर रोज सुबह शाम तीन किलोमीटर तापती नदी पर जाकर झिरी खोद कर पानी भर कर लातीं थ...
रिश्तो की डोर
लघुकथा

रिश्तो की डोर

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मां के ना रहने के बाद रक्षाबंधन में पहली बार सुनीता ४ वर्ष के बेटे देवांश के साथ अपने मायके जा रही थी। अंदर ही अंदर एक अजीब सा डर और घबराहट हो रही थी, कि पता नहीं भैया और भाभी मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे। मेरा वैसा सम्मान होगा भी या नहीं, जैसे मां के रहने पर होता था। इसी सोच में डूबी थी, कि स्टेशन आ गया। जैसे हीइधर उधर नजर दौड़ाई वैसे ही कुछ परिचित आवाज कानों में सुनाई दी।सुनीता लाओ सामान मुझे दे दो। जैसे ही आगे बढ़ी तो सामने भैया को देखकर अच्छा लगा। घर पहुंचते ही भाभी ने बहुत अच्छा व्यवहार किया। राखी के दिन सुनीता मां की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी, तभी भैया ने आवाज लगाई और उस उसकी आंखों से अश्रु धारा बहने लगी। भैया ने दुलारते हुए कहा, बहना हमारे रहते हुए तुम अपने को अकेला मत समझना। उसने भैया को राखी बांधी। भैया, भाभी के ...
गरमकोट
लघुकथा

गरमकोट

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ ने दिवंगत पिता के गरम कोट को सहलाकर भारी मन से अलमारी बंद करते हुए पूछा- बेटा सब तैयारी हो गई क्या? सुलभा इंतजार कर रही होगी। हाँ माँ..उसने मामेरा मे देने के सामान पर एक नजर डालते हुए कहा..तभी फोन की घंटी बज उठी...सुलभा का फोन था....कब पहूँचोगे भैया...उधर से सुलभा व्यग्रता से कह रही थी!.... बस निकल ही रहे है.... चलो बेटा आज तुम्हें पिता और भाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी है....माँ की डबडबाई आँखे उससे छुपी न रह सकी। नए कोट को सुटकेस में तह कर रखते हुए...वह उठा और अलमारी से निकाल पिता का कोट पहन लिया। देखते ही माँ बोली..ये क्या? इतना पुराना कोट....शादी में ... हाँ माँ बहन को पापा की कमी महसूस न हो इसलिए मैने आज ये कोट पहन लिया है... शहनाईयाँ बज उठी थी....माँ भावविभोर थी। और आरती की थाली लिए बहन पिता के रूप मे भाई को देखकर फूली नही समा रही थी...