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गद्य

पतंग
लघुकथा

पतंग

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझे आज भी याद है संक्रांति का वह दिन जब मैं और मां छत पर पतंग के देख रहे थे खुले आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों को देखकर मन आनंदित हो गया। मैंने मां से कहा काश मै भी एक पतंग होती नीले आसमान की सैर करती, रंग-बिरंगे चटक रंगों से अपने आप को सजाती संवारती। तब मां ने कहा गुड़िया औरत भी तो एक पतंग ही है जो सजती है, संवरती है और अपने अरमानों से उड़ान भरती है पर पतंग की डोर हमेशा किसी और के हाथ में होती है और डोर थामने वाला पिता, भाई, पति और पुत्र है जो हमेशा अपनी इच्छा से पतंग की उड़ान तय करता है और अपनी उंगलियों पर पतंग को नचाता है पर बिटिया अब जमाना बदल रहा है हर चीज ऑटोमेटिक हो रही है तो तुम भी स्वतंत्र पतंग बनना अपनी उड़ान अपनी शर्तों पर उड़ना। मां की वही बात आज भी जीवन में प्रेरणा देती है....। . परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म ...
कैंसर के कारक
आलेख

कैंसर के कारक

योगी मनोज गर्ग इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** साथियों, पिछले दो दिनों में लगातार भारतीय सिनेमा के दो सितारों का कैंसर से असमय ही देहांत हो गया है। बिगड़ी हुई जीवनशैली में पिछले वर्षों में कैंसर रोग बहुत तेज़ी से पूरे विश्व मे बढ़ते जा रहा है। भारत मे प्रतिवर्ष लगभग १०-१२ लाख लोग कैंसर से ग्रस्त हो जाते है। पंजाब में तो कैंसर के इतने पेशेंट है कि वहाँ से चलने वाली एक ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन रख दिया गया है। हर कुछ घर छोड़कर मिलते जाते कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या भयावह स्थिति की और इशारा करती है। क्या कारण है इस भयानक रोग के ....??? क्या सिर्फ तम्बाखू और शराब से ही कैंसर होता है? भारत मे तो बहुत कम महिलाएं इनका सेवन करती है फिर फीमेल कैंसर पेशेंट की संख्या पुरुषों के बराबर क्यों?? एग्रीकल्चर में घातक केमिकल्स का बढ़ता उपयोग बिना केमिकल के अब फल, सब्ज़ी, अनाज की खेती होती ही नह...
तुम कब जाओगे…! अतिथि…!
आलेख

तुम कब जाओगे…! अतिथि…!

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** अतिथि! तुम्हारा जब आगमन हुआ था, तो हम सबने यही सोचा था कि मेहमान हो कुछ दिन ठहर कर चले जाओगे। लेकिन अब तो बार-बार पूछना पड रहा है.... अतिथि तुम कब जाओगे? तारीख पर तारीख और फिर तारीख! लेकिन तुम तो बेशर्म की तरह यहाँ पैर पसारे जमने की कोशिश कर रहे हो। तुम अपने खौफनाक डरावने चेहरे की छाप मेरी जमीन पर डाल तो चुके हो पर तुम ये भी जान लो कि तुम मेरी जमी और मेरे अपनों को बहुत आहत कर चुके। क्या तुम नहीं जानते ये हौसलो की जमी है, तुम्हे मूँह की खानी ही होगी। जब तुमने अपने आने की आहट दी थी, तब मेरा मन अज्ञात आशंका से धडक उठा था। अंदर ही अंदर मै मेरे अपनो के लिए काँप गई थी। हम सतर्क भी थे, हमने वितृष्णा से तुम्हारा तिरस्कार भी कर दिया था। फिर भी तुम न जाने कैसे बेदर्दी से मेरे अपनो को लील गए। मेरी आशंका निर्मूल नही थी ! तुम नहीं गए ! तुम्हें भगाने के ...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०८
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०८

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** दोपहर एक बजे के लगभग उज्जैन से इस घर के दामाद और मेरे पिताजी पंढरीनाथ उनके घर छत्रीबाजार न जाते हुए सीधे इधर इस बाड़े में ही आ गए। पुत्र प्राप्ति का तार मिलने के बाद तुरंत यहां आते हुए रास्ते भर वे प्रसन्नचित्त ही होंगे। लेकिन यहां इस बाड़े में सर्वत्र ख़ामोशी का माहौल था। उन्हें विचित्र लगा। पर उन्हें अन्दर आंगन में आते देख एक बार फिर से औरतों का जोर से रोना शुरू हो गया। उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। पर अगले ही क्षण उनकी नजर मंदिर से सटे बरामदे में रखी मृत देह पर पड़ी। आशंकित मन से, हाथ की थैली एक ओर फेंक कर वें तुरंत उस ओर तेज कदमों से चल कर गए। देखा तो उनके होश उड़ गए। उनकी पत्नी की मृत देह जमीन पर रखी थी। 'शा ..लि...नी ...! 'उन्होंने जोर से चिल्लाने का प्रयास किया, परन्तु सदमे से उनके शब्द गले में ही अटक गए। वें नीचे जमीन पर बैठ गए। मृतद...
हक़ीक़त
लघुकथा

हक़ीक़त

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** गीजर खराब हो जाने से मधु ने रॉड लगाकर बाल्टी में पानी गरम करने रखा, कचरा गाड़ी आ जाने से फ्लेट की सीढ़ियों से उतरकर कचरा डालने नीचे सड़क तक गई। सीमित समय मे बहुत से काम निपटाने की हड़बड़ी से घबराई हुई मधु पुनः सीढ़िया चढ़कर ऊपर पहुँची तो देखती है सीढ़िया विभाजित है। नीचे उतरकर दूसरी तरफ से सीढ़ियां चढ़ती है फिर वही मंजर! तीसरे फ्लेट की तरफ भागती है फिर चौथे फ्लेट.....इसी तरह हर सीढ़ी गन्तव्य तक पहुँचने से पहले टूट चुकी हैं। जहाँ पहुँचना है वो जगह हर बार दिखाई दे रही है पर रास्ता नहीं सूझ रहा। याद आया उसे पानी गरम करने रखा था, बेटा उठकर वॉशरूम में कहीं अनजाने हाथ ना लगा ले! सोच कर रूह काँप गई। मधु पूरी तरह पसीने में लथपथ, ठंडी पड़ गई। धड़कन बढ़ी हुई, बोलने की कोशिश में जबान लड़खड़ाई। बेचैन, उद्विग्न, चीख कर लगभग रोती हुई उठ बैठी। ओ..ह!! ये सपना ...
आत्मविश्वास
लघुकथा

आत्मविश्वास

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** किसान दीनालाल के खेत में रबी की फसल पक गयी है। कोरोनावायरस के कारण पूरे राष्ट्र में लाकडाउन लगा है। एक सच्चे देशभक्त होने के कारण मजदूरों को फसल काटने के लिए नहीं कह रहे हैं। फसल कटाई के लिए बहुत चिंतित है। "दादाजी आप सवेरे-सवेरे क्यों चिंतित हैं? आपके चेहरे पर बारह बज रहे हैं।" उनका बारह वर्ष का पोता रोहन पूछा। "खेत में रबी की फसलें सूख गयी है। अगर इसको यूं ही कुछ दिन छोड़ देंगे तो सारी मेहनत पर पानी फेर जाएगी। क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मजदूरों से कटवा नहीं सकता। मैंनें कभी फसल काटी नहीं है। "दीनालाल उदासी स्वर में बोले। "ओहो दादा जी! रोहन के रहते हुए आप क्यों चिंतित हो जाते हैं। चलिए खेत, हमलोग स्वयं फसलें काटकर ले आएं। मैंनें मजदूर चाचा जी सबको फसल काटते ध्यान से देखता रहता। "राहुल आत्मविश्वास के साथ बोला। "पर रोहन त...
कुत्‍ते की पूँछ
कहानी

कुत्‍ते की पूँछ

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** ''मैंने क्‍या किया.....?'' सदा की तरह यह आश्‍चर्य मिश्रित प्रश्‍न दागकर इतराते हुये, शरीर को गठीली रस्‍सी की भाँति ऐंठते दूसरे रूम में बुदबुदाते चली गई वह। मैं विचारों के दलदल में सिर धुनता हुआ छटपटाता रह गया। अपनी औलाद की जि़न्‍दगी के महत्‍वपूर्ण फैसले में सहायता के वजाय अड़ंगा डालकर उसे तनिक भी अफसोस नहीं। मैं उस क्षण को कोस रहा हूँ, जब ऊपरवाले ने किसी प्रायश्चितके तहत हमारी जोडी़ मिलाई! लगभग पैंतीस सालों में फैले दाम्‍पत्‍य जीवन का सम्‍भवत: ऐसा कोई पल नहीं है, जब मन-माफिक पत्नि-पति का एहसास हुआ हो। ‘’तो फिर बच्‍चों का जन्‍म.......?’’ यह प्रश्‍न कोई भी पूछ सकता है। ‘’जोरजवरजस्‍ती में भी तो......।‘’ जब कभी रिश्‍तों में असन्‍तुलन आता है। कुछ परस्‍पर विरोधाभाषी स्थिति निर्मित होती है। तो उसके निराकरण के लिये, एक-दूसरे को सम...
कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार
आलेख

कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए लेखन भले ही सरल प्रक्रिया हो गई हो। कलम के माध्यम से जो विचार और अक्षर निखरते है उसकी बात ही कुछ और होती है। इस और ध्यान ना देने से हैंडराइटिंग ख़राब होने की वजह भी यही रही है। व्याकरण त्रुटि ना के बराबर रहती है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल के साथ -साथ हैंडराइटिंग को भी जारी रखें। क्योकि कलम से कागज पर लिखी जाने वाले लेखन विधा कम्प्यूटर युग में खो सी जाने लगी। सुन्दर अक्षरों की लिखावट के पहले अंक मिलते थे। साथ ही सुन्दर लेखन की तारीफे होती थी जो जीवन पर्यन्त तक साथ रहती थी, स्कूलों, विभिन्न संस्थाओं द्धारा सुन्दर लेखन प्रतियोगिता भी होती थी। अब ये विधा शायद विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची। लेखन विधा को विलुप्त होने से बचाने हेतु लेखन विधा के प्रति अनुराग को हमें जारी रखना होगा। ये लेखन एक सागर के सामान...
उपन्यास – मैं था मैं नहीं था भाग – ०७
उपन्यास

उपन्यास – मैं था मैं नहीं था भाग – ०७

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** जैसे तैसे पहाड़ सी लम्बी रात बीत गयी। कोई भी नहीं सोया था। दुसरे दिन की सुबह अपने समय से ही होना थी सो हुई। परन्तु ये सुबह इस घर के लिए रोज जैसे नहीं थी। मानो ये सुबह खामोशी से दस्तक देते हुए दु:खो का पहाड़ ही लेकर आयी थी। मेरे लिए तो अँधेरा ही लेकर आयी थी। मेरा आगे का प्रवास संकट भरे रास्तों पर अँधेरे में ही मुझे करना था। इस घर में मायके आयी हुई एक सुहागन पर दुर्दैवी काल ही चढ़ कर आया था। नियति के मन में आगे क्या है? यह सवाल यहाँ पर सभी के मन में था और अनेक आशंकाए और कई सारे उलझे प्रश्न लिए भी था। सभी आठ बजे कर्फ्यू ख़त्म होने का इन्तजार कर रहे थे। आठ बजते ही पंतजी ने माँ के मृत्यु की खबर सबको देने के लिए किरायेदार खोले को भेजा। पंतजी के आज्ञाकारी खोले तुरंत निकल पड़े। जन्म की वृद्धी और मृत्यु का सूतक इन दोनों की खबर एक साथ ही सब को मिल...
आत्म-मूल्याँकन
लघुकथा

आत्म-मूल्याँकन

डॉ. कुँवर दिनेश सिंह शिमला, हिमाचल प्रदेश ************************ प्रतिभा ने एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में भौतिकी विषय में प्रवक्ता पद के लिए आवेदन किया। उसने पीएच.डी. कर ली थी और कुछ संस्थानों में अतिथि संकाय में शिक्षण का अनुभव भी अर्जित किया था। साथ में कुछ शोधपत्र भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के चर्चित जर्नलों में प्रकाशित करा लिए थे। उक्त पद के लिए प्रतिभा को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। उसकी प्रस्तुति से प्रसन्न होकर इंटरव्यू बोर्ड की अध्यक्षता कर रहे कुलपति ने पूछा, "आप वेतन कितना चाहते हो?" "जी, आपने नियत किया ही होगा इस पद के लिए ..." "नहीं, हमारे वेतन सरकारी वेतनमान से अधिक भी होते हैं; यह व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है। हमें तो आउटपुट अच्छी चाहिए, बस... कहिए आप स्वयं को कितने वेतन के योग्य मानती हैं?" प्रतिभा ने थोड़ा झिझक कर, रुक-रुक कर कह दिया, "जी, स...
आश्चर्य
लघुकथा

आश्चर्य

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ आज सुबह जितेश का फ़ोन आया, हिमांशु ने फ़ोन रिसीव किया बोला: हेल्लो, क्या हालचाल जितेश, कैसे हो? जितेश बोला, क्या भाई तबियत खराब है? "भाई जितेश तुम अब बार-बार बिमार कैसे हो जाते हो?" हिमांशु ने पूछा ! "भाई याद है मुझे आज भी वह दिन जब मै बच्चा था, और गाँव में रहता था। कोई डर नही,कोई गम नही। जो मन में आया खाया, खेला! कभी बिमार नही होता था। पर आज शहर में रहता हूँ, हर पंद्रह दिन पर बिमार हो जाता हूँ। आज भी वही खाना खाता हूँ, जो गाँव में खाता था। गाँव में कुएँ और चापाकल का पानी पीता था आज मिनिरल वॉटर पीता हूँ। फिर भी मैं बिमार हो जाता हूँ। "एक बात समझ नही आता गाँव के मुकाबले शहर में सेहत का ध्यान अच्छे से रखता हूँ, फिर भी यार हर पंद्रह-बीस दिन पर बिमार हो जाता हूँ। जितेश बोला। "हिमांशु उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ा रह ग...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था  भाग – ०६
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग – ०६

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रात आठ बजे से कर्फ्यू फिर से लगने वाला था। सब अपने अपने घरों की ओर जल्दी ही निकले गए। सांझ की दिया बाती भी हो गयी। सब का खाना भी हो गया। माँ को होश आया ही नहीं था। सब काम निपटा कर नानी कमरे में आयी। काकी तो मुझे लेकर ही बैठी थी। उनका क्या, वह थी गंगाभागीरथी (विधवा-केश वपन किये हुई)। एक ही समय खाना खाती थी। रात को कुछ भी नहीं लेती थी। नानी आकर माँ के सिरहाने बैठ गयी। माँ की हालत देख रह रह कर नानी की आँखे भर आ रही थी। काकी नानी से बोली, 'आवडे, ऐसी खामोश क्यों है तू?' 'माँ मुझे खूब रोने की इच्छा हो रही है।' 'फिर जी भर के रो ले। आ, मेरे पास में आ कर बैठ। मुझे तेरे मन की हालत समझ रही है। तुझे तेरी बिटिया की चिंता है पर मुझसे भी तो अपनी बिटियाँ की हालत नहीं देखी जाती। तू बता मै क्या करू? और रो कर क्या होगा?' 'क्यों क्या हुआ?' नानी ने प...
एक टुकड़ा डबल रोटी का
लघुकथा

एक टुकड़ा डबल रोटी का

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उन मासूम सी आंखों में दर्द के कतरे स्पष्ट झलक रहे थे। हाथों की हथेलियों में नीली लाल लकीरों का जाल बना था। चाय के दुकान के मालिक के हाथ की लपलपाती छड़ी अभी भी उसकी हथेली चूमने को बेताब थी। किंतु लोगों के जमघट ने उसे रोक रखा था। उस मासूम की दस साल की तजुर्बेकार आंखों में एक संबाल तैर गया।क्या भूख से निढाल हुई बीमार कराहती मां के एक निवाले की खातिर, ग्राहक की प्लेट में बचा डबलरोटी का एक टुकड़ा उठाकर जेब में रख लेना जघन्य अपराध है....? शायद हां....। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्...
एक घूँट भंग
कहानी

एक घूँट भंग

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** जब कोई अपनी चाहत की वस्‍तु पा जाता है, तब वह उसके उपयोग में तन-मन से जुट जाता है। हेमन्‍त की निजी डायरी पाकर जैसे रेखा की दिली मुराद पूरी हो गई। यह अत्‍यन्‍त प्रफुल्‍लता व जिज्ञासा पूर्वक उसे पढ़ने में तल्‍लीन हो गई......। ........मैं वह दिन नहीं भूल सकता, जिस दिन मैंने गोरे-गोरे, सलोने हाथों की प्‍यारी-प्‍यारी, पतली-पतली नाजुक-नाजुक ऊॅंगलियों से प्‍याला लेकर नशीला घूँट कंठ से उतारा था। आँखें उस दिन का अनुपम द़ृश्‍य नहीं भूल सकती, जिस दिन उन्‍होंने, पानी की बूँदों के मोतियों से सुसज्जित तौलिये से झॉंकता हुआ सुन्‍दर सोने समान शरीर आँखों ने निहारा था। होली की खुमारी और मस्‍ती, अपने मदहोश रंगों की छटा लिये सम्‍पूर्ण वातावरण में मादकता घोल चुकी थी। मन में खुशियों की रंगीन तरंगें दौड् रही है। जब मेरी नज़रें तुम्‍हारे लावण्‍यमयी...
महामारी
लघुकथा

महामारी

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रमेश अपने परिवार के साथ गांव में रहता था, गांव के सभी लोग रमेश के घर जाने से ग्रहणा करते थे। कुछ लोगों का कहना था, घर से गोबर की बदबू आती है घास पूला भरा हुआ है। हमारे बच्चे या हम जाएंगे तो बीमार पड़ जाएंगे। एक दिन अचानक गांव में महामारी का पूरे गांव में प्रभाव पड़ा पर रमेश का घर सुरक्षित था। लोगों की जिज्ञासा हुई इतनी भयानक महामारी जिसने पूरे गांव को जकड़ा हुआ था। रामेश का घर सुरक्षित कैसे? रिसर्च टीम रमेश के घर आती है, खोज में जुट जाती है, रमेश के घर में ऐसा क्या है.......?? रिसर्च टीम की खोज कुछ समय में पूरी होती है। टीम गांव वालों को कहती है। इस महामारी का इलाज मिल गया है। गांव वाले उत्सुकता और ध्यान पूर्वक सुन रहे थे.... टीम ने कहा "हम लोग अपनी वैदिक पद्धति को भूल गए हैं। आज यदि चोट लगती है तो डॉक्टर के पास भागते हैं क्या हम ऐसा क...
सुख
लघुकथा

सुख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** भागमभाग की जिंदगी। कभी व्यापार के सिलसिले में दस दिन बाहर तो कभी-कभी शहर में रहकर भी रात, बारह बजे तक घर नहीं आना। जिंदगी बड़ी तेजी से भागी जा रही थी और मुकेश को पल भर भी फुरसत नही थी। मां कहती तो कह देते कि, यही समय है कमाने का। पत्नि कहती तो कभी-कभी गुस्से में पारा चढ़ जाता की,....कमाउंगा नहीं तो यह सब सुविधाएं कहां से मिलेगी। तुमको घर में बैठकर क्या पता चलता है। हर दिन व्यंग सुनकर वीणा ने बोलना ही बंद कर दिया। अचानक परिस्थितियों ने सबको घर में रहने को मजबूर कर दिया। मुकेश को इन दिनों में लगा की कितना भागा में। जरुरत तो परिवार के प्यार की थी, जरूरत तो स्नेह की थी। भौतिक सुखों में आज कुछ काम नहीं आ रहा था। बस एक साथ बैठकर बतियाता परिवार सब सुखों से उपर था। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमी...
जान है तो जहान है
व्यंग्य

जान है तो जहान है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०५
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग : ०५

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** एक दिन का मै... मुझे कहाँ से होगी रिश्तों की पहचान? वो तो धीरे-धीरे ही होगी। मुझे भी और आपको भी। रामाचार्य वैद्यजी कह रहे थे कि मेरा नसीब उन्हें नहीं मालूम। लेकिन रिश्ते जुड़ते है तो नसीब भी जुड़ ही जाते है न? अब ये बात मेरे जैसे एक दिन के बालक को आपको अलग से बताने की जरुरत है क्या? परन्तु फिर भी सब कहते है कि हर एक का नसीब अलग अलग होता है। यह कैसे हो सकता है। मै तो इतना ही जानता हूँ कि फिलहाल मेरी माँ के साथ मेरा नसीब जुडा हुआ है। एक दिन का मै, मेरी जन्मदात्री माँ ने तो अभी जी भर के मुझे देखा ही नहीं है। मुझे उसके आंचल की छाँव तक नहीं मिली, नाही माँ ने मुझे अपने सीने से लगाया। नाही मैंने माँ का दूध पिया है। सच तो यह है कि मेरा जन्म यह ख़ुशी की सौगात है। पर नसीब देखिये, सब माँ के स्वास्थ के कारण चिंतित है। सबकी ख़ुशी जाने कहाँ खो गयी है। क...
पिंजरा
लघुकथा

पिंजरा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लॉकडाउन के दौरान घर की बालकनी में खड़ी मीरा आम के पेड़ पर बैठी चिड़ियां की बाते सुन रही थी। एक गौरैया पास बैठी डॉक्टर चिड़िया से बोली-"क्यो बहन आजकल इतना सन्नाटा क्यों हैं? सारे इंसान कहाँ गायब हो गए? डॉक्टर चिड़िया बोली - "हाँ बहन सुना है कोई कोरेना वायरस आया है, पूरे विश्व मे इंसानों को मार रहा है। लोग एक दूसरे से दूर रहेंगे तो बचेंगे वरना मर जायेंगे।" गौरैया बड़ी दुखी हुई और कुछ सोचने लगी! फिर बोली - "एक बार मैं उड़ती हुई एक घर मे चली गई थी, बहुत बड़ा और सुंदर घर था। वहाँ एक बड़े पिंजरे में तरह-तरह के पंछी थे। खूब सारा दान रखा था पर पीने के पानी के कटोरे औंधे पड़े थे। शहरों में इंसानों के खुद के लिए पानी की किल्लत है तो पंछी भी प्यासे थे। मुझे देख सारे पंछी उड़ने को फड़फड़ाने लगे। आज इंसान भी वैसा ही अनुभव कर रहे होंगे ना!" डॉक्टर चिड़िया ...
लॉकडाउन
कहानी

लॉकडाउन

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** ४६ वर्षीय अविवाहिता शिला उत्तर गुजरात की आर्ट्स कॉलेज में हिन्दी विषय की अध्यापिका है। वह अपने परिवार से ४०० कि.मी. दूर नौकरी कर रही है। वहाँ वह अकेली रहती है। अध्यापकीय कार्य और साहित्य ही उसकी दुनिया है। लिखना-पढ़ना, लिखवाना और पढ़ाना ही उसका जीवन कर्म है। छात्रों में आदर्श जीवन मूल्यों का सींचन करना उसके जीवन का प्रमुख लक्ष्य है। वह सोच रही है की अंतिम एक सप्ताह से कोरोना वायरस धीरे-धीरे भारत में अपना पाँव फैला रहा है। कॉलेज में छात्रों को छुट्टियाँ हो गई है। स्टाफ के लिए रोटेशन हो गया है तो मैं २४ मार्च की कॉलेज भरके परिवार के पास कुछ दिनों के लिए चली जाऊंगी। वह अपने पापा से फोन करती है : पापा : “बोल बेटी, कुशल तो है न!” “जी पापा, मैं २४ मार्च को कॉलेज समय के बाद घर आने के लिए निकलूँगी। २४ मार्च से ३१ मार्च तक की मैंने छुट्टि...
चुनौती
लघुकथा

चुनौती

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** अच्छा बच्चों अब हम कल नया पाठ पढ़ेंगे...कहते हुए नीलिमा ने मोबाइल ऑफ कर दिया। नीलिमा हायर सेकेंडरी स्कूल में रसायन शास्त्र व्याख्याता के पद पर पदस्थ है और इस लॉक डाउन के समय में मोबाइल पर ज़ूम एप के माध्यम से बच्चों को विज्ञान, केमिस्ट्री,बायोलॉजी आदि विषयों के पाठ पढ़ा रही है। मम्मी-मम्मी आपका फ़ोन दो ना, मुझे गेम खेलना है कहते हुए मिनी ने नीलिमा के हाथ से मोबाइल ले लिया, मिनी नीलिमा की बिटिया है जिसे अभी नौंवी कक्षा में जनरल प्रमोशन मिला है। ठीक है थोड़ी देर गेम खेलकर कुछ देर साइंस भी पढ़ लेना बेटा, नीलिमा ने मिनी को समझाते हुए कहा। ओके मम्मा,कहते हुए मिनी फ़ोन पर गेम खेलने लगी, नीलिमा किचन में जाकर खाने की तैयारी करने लगी, थोड़ी ही देर में मिनी आकर नीलिमा से बोली मम्मा ये फेस बुक पर चारु आंटी का चैलेंज है आपके लिए साड़ी में फ़ोटो डा...
गौरी मौसी
लघुकथा

गौरी मौसी

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** लोकडाउन के तीसरे दिन पडोसन गौरी मौसी दीन भाव से अध्यापिका डॉ. अर्पिता से कहती हैं : "बहन जी पाँच सौ रूपये की मदद हो सके तो करो न ! तीन दिन से मेरी अगरबत्ती का ठेला बन्द है। जब लोकडाउन पूरा होगा तब आपको लौटा दूँगी।" डॉ. अर्पिता बिना कुछ कहे, पूछे मधुर स्मित के साथ एक हज़ार रूपये उनके हाथ में थमा देती है। "चिंता मत करो, जरुरत पड़े तो माँग लेना, पर अपने घर में ही रहना। "इसके बाद डॉ. अर्पिता रोज जान बूझकर ज्यादा रसोई बना के उसे देती है : मौसी आज मुझसे ज्यादा बन गया है, लीजिए। "गौरी मौसी का चेहरा अहोभाव से खिल उठा....।। . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच...
अफवाह
लघुकथा

अफवाह

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** वह बदहवास सी दौड़ती आई थी। अम्माजी मुझे काम से न हटाइये, अम्माजी मुझ गरीब पर दया कीजिए। क्या हुआ कमली..... अचानक ऐसे क्यों दौड़ी चली आई है। कहा था ना तुझे अभी काम पर नहीं आना है। नहीं-नहीं अम्माजी मुझे कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग बोल रहे थे .... अब काम बंद तो पैसा बंद। महिने की पगार नहीं मिलेगी। अम्माजी बच्चों को क्या खिलाऊंगी। काम पर आती हूं तो सब घर से मुझे थोड़ा बहुत बचा हुआ खाने को मिल जाता है, मुझे भी चाय मिल जाती है। पगार भी नही और बचा-खुचा भोजन भी नहीं? बच्चें बीमारी से नहीं भूख से ...? नही-नही कमली तू इन फालतू की अफवाह पर ध्यान न दे और घर जा। रूलाई आ गई कमली को... बेबस कमली बस आंखों में बोल पड़ी... महामारी का नाश हो। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद...
अलविदा
कहानी

अलविदा

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** आज उसके घर के बाहर भीड़ लगी थी, लोग तरह -तरह की बातें कर रहे थे। ७० साल के भगवानदास कह रहे थे, लालची है ये लोग, बेचारी को पति सुख की चाह थी पर इन लोगों के लिए तो वह सोने की मुर्गी थी, हर माह मोटी रकम उसे मिलती थी, बेचारी की इच्छाओं की किसी को भी परवाह नही थी। रोज-रोज फरमाइश, पर उसके विवाह की किसी को चिंता नही थी। पहले पति की प्रताड़ना का शिकार हो वह अपने वालों के बहकावे मे आकर तलाक ले चुकी थी। १० वर्ष हो चुके थे। दोबारा शादी के लिए इतने फजिते होंगे ये वो जानती तो शायद तलाक ही न लेती ! किराने वाली सुशीला मां कहने लगी, वो भी मुवा ठीक नही था री। किसी की बेटी को ले गया और छोड़ दी केवल काम करनेवाली व "सोने का अंडा देने वाली" बाई बनाकर। उसकी बचपन की सहेली जिसने ज्योत्स्ना के साथ अंतिम क्लास तक पढ़ाई की थी, बबली जो उसी की उम्र की थी कहने लगी, ...
देश राग
लघुकथा

देश राग

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां.. इतनी सी है दिल की आरज़ू.... .. दीदी आज तो आपने सबको भावुक कर दिया, आप कितना मीठा गाती हो, प्रीति का गाना पूरा होते ही पास में खड़े बिट्टू ने प्रीति से कहा और सभी ने अपने अपने घरों से तालियां बजायीं। प्रीति कॉलेज में प्रोफेसर है, गरीब बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर भी काम करती है साथ ही अच्छी गायिका भी है। लॉक डाउन के दौरान आसपास वालों की फरमाइश पर वो रोज शाम को अपने घर के सामने ट्रैक पर माइक और स्पीकर लगाकर सभी को गाने सुनाती है। आज जब उसने ये गीत गाया तो सभी लोग देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर भावुक हो गए। गाते गाते प्रीति की आंखें भी भीग गयीं, दीदी मुझे भी गाना सीखना है, आप मुझे सिखाओगी, बिट्टू ने माइक और स्पीकर उठाते हुए पूछा, हाँ हाँ बिट्टू क्यों नहीं? जरूर, प्रीति ने...