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सर्दी आई
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सर्दी आई

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** सर्दी आई, सर्दी आई ठिठुरन भी संग ले आई अम्मा ने टोपा जर्सी खूब पहनाई, फिर भी नहीं आई गरमाई सर्दी आई, सर्दी आई। आसमान में घटा छाई सूरज दादू से गुहार लगाई, वह भी खेल रहे लुका-छुपाई सांझ हुई शीत लहर दौड़ी आई, सर्दी आई, सर्दी आई । तन बदन में कंपकंपी आई अम्मा दे दो मुझको मोटी सी एक रजाई तब आएगी खूब गरमाई। खाएंगे मूंगफली गजक मिठाई। सर्दी आई, सर्दी आई। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
नई मिसाल
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नई मिसाल

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** गगनचुंबी इमारतों की भीड़ में, आक्सीजन के अभाव में, लम्बे-लम्बे कतारबद्ध पेड़-पौधों से युक्त हरियाली वाला शहर विकास की राह में जाने कहाँ खो गया? भरी दोपहरी में एक ठंडी छाँह ढूंढ़ रहा युवक आज साँसे मांग रहा हैं, नन्ही चिरैया, तोता,कबूतर अपना ठिकाना ढूँढ़ रहे है, हे ! अट्टालिका वीरों दो इंसानियत की नई मिसाल, झगझोरों अपने नवस्वप्न को करो नवसंकल्प पहले हरे वृक्ष, खुली हवा, शुद्ध आक्सीजन मिले सभी को फिर हो शहर का विकास। परिचय :- डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय शिक्षा : पीएच.डी, एम.ए हिन्दी साहित्य, बी.जे.एम.सी, आयुर्वेद रत्न। निवासी : इंदौर, (मध्यप्रदेश) रुचि : लेखन,पठन,पर्यटन प्रकाशन : विभिन्न पत्र, पत्रिकाओं में नियमित बाल कहानी, लघुकथा, कविता का प्रकाशन। सम्प्रति : निजी महाविद्य...
बचपन की शरारतें
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बचपन की शरारतें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** अल्हड़ बचपन याद आता, जब करते थे कुछ शरारतें। भूल नहीं पाते उनको अब, वो बन चुकी हैं वो इबारतें।२। नंगे पैर, अर्ध नग्र बदन था, पतंग की पकड़ते थे डोर। देख देखके मात पिता का, मच जाता था जमकर शोर।४। कंचे खेलते, ताश खेलते, कभी भागते चिडिय़ा पीछे। कभी किसी से झगड़ा करे, गुरुजन पकड़ कान खींचे।६। झीरनी, खुलिया, टेम था, शरारत भरे सारे थे काम। उलहाना आता गन्ने तोड़े, कभी होता नाम बदनाम।८। खिलौने से खेला करते थे, दिनभर हंसते थे गली गली। क्या मनमोहक, बचपन था, लगती थी ज्यों फूल कली।१०। किसी की चोटी पकड़ते, कभी बहुत अकड़ते थे। कभी किसी बात लेकर, आपस में ही झगड़ते थे।१२। कभी घूसंड मारते देखे, कभी झूठ बोलते आगे। कभी किसी चीज उठा, कभी शरारत कर भागे।१४। नहीं डर था मारपीट में, झगड़ा करते पल में हम। कभी बेर तोड़ लाते थे, बातों में होता एक दम।१६...
ये प्यार भी ना क्या-क्या करवा लेता है
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ये प्यार भी ना क्या-क्या करवा लेता है

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ********************                                         यदि औरत कुछ ठान ले तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। यूं ही उसे शक्ति नहीं कहा जाता। कावेरी उक्त लाइन की जीवंत मिसाल लग रही थी। अब आप सोचेंगे-कावेरी....! कौन कावेरी..... ? जी हां वही कावेरी है जिसने अपने दोनों भाइयों द्वारा माता-पिता को अनाथ छोड़ दिए जाने के बाद अपनी सारी उम्र उनकी देखभाल में निकाल दी। माता-पिता की दवाई और घर की व्यस्था चलाने के लिए प्राइवेट ऑफिस में कार्य करते हुए किसी पारखी की नजर उस पर पड़ी और उसने उसे कानून की पढ़ाई करने की सलाह दी। चालीस की उम्र छूते सभी जिम्मेदारियों को संभालते अच्छी एडवोकेट बन गई। पर आपको पता है-वकालत एक ऐसा पैशा है जहां कई सालों तक आपको जूनियर की नजर से ही देखा जाता है। शुरुआत के कुछ वर्ष वक्त का इन्वेस्टमेंट होता है, सरकारी ब्याज जितना कम पैसा, और अनुभव...
वो ख्यालो में मिले
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वो ख्यालो में मिले

संजय जैन मुंबई ******************** सवाल का जबाव सवाल में ही मिला मुझे ..। वो शख्स मेरा ख़्याल था, ख़्याल में ही मिला मुझे। फिर भी न जाने ये दिल, क्यों यहाँ वहां पर भटकता है। जबकि मुझे पता है। मेरे ख्यालो का राजा मुझे, ख्यालो में ही मिलता है।। गमे ख्यालो को हम, वरदास कर नहीं पाते। फिर भी अपने प्यार का, इजहार कर नहीं पाते। डूब जाते है ऐसे, सपनो की दुनियां में। जहाँ से हम तैरकर भी, वापिस नहीं आ पाते।। जब जब खुदा ने, मुझसे ख्यालो में पूछा। क्या चाहते हो, तमन्नाये कहने लगी। की बस मेरे ही ख्यालो में, उनके दीदार हो जाये। और जब मुझे सही में, उन से प्यार हो जाये। तो मेरा हम सफर बनकर, मेरे साथ हो जाये।। ख्यालो की बनाई दुनियां। अब हकीकत में बदल गई। जो ख्यालो में आता था, अब वो मेरा हमसफ़र बन गया। मानो मेरी जिंदगी का, वो आधार बन गया। अब तो साथ साथ जिंदगी को, हंसते खिल खिलाते जी रहे है। और ख्यालो...
ऐ पाक जरा
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ऐ पाक जरा

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** ऐ पाक जरा सुन लो तुम तेरा रूप बदलने वाला है भूतकाल से ही तेरा भविष्य बहुत ही काला है । किस बात का तुझे अभिमान है शान तुझे किस बात की जबकि चीन अमेरिका ने तुझको बहुत सम्भाला है भूतकाल से ही तेरा भविष्य बहुत काला है। तु युद्घ चाहे तो युद्ध होगा पर कश्मीर कभी ना तेरा होगा अन्तिम साँस तक युद्ध करेंगें हर हिन्दुस्तानी हिम्मतवाला है भूतकाल से ही तेरा भविष्य बहुत काला है। कौन है तु आया कहाँ से १९७१ को क्या तु भूल गया छक्के छुड़ाए जब भारतीयों ने अंग्रजों को भी घर से निकाल है भूतकाल से ही तेरा भविष्य बहुत काला है। पीछे से क्यों बार करे हिम्मत है तो आँख मिला कारगिल क्यों तु भूल गया भारत की सेना हर बार तुझे खँगाला है भूतकाल से ही तेरा भविष्य बहुत काला है। आतंकी तेरे गोद में सोते आई एस आई का तु रिश्तेदार है क्या कहूँ मैं विसात तेरी मुजाहिद्द...
शूरवीर अहीर
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शूरवीर अहीर

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** वीर अहीरों बढ़े चलो, मत पीछे कदम हटाणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। भारत मां की सरहद पर, हंस-हंसकर प्राण खपा देंगे। भारत मां के चरणों में, दुश्मन की लाशें बिछा देंगे। उल्टा कदम हटाएंगे ना, खून की नदी बहा देंगे। दुश्मन को सबक सिखा देंगे, मत उल्टा मुड़के आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा। बणा खून की मेहंदी भारत, मां के हाथ सजा देंगे। दुश्मन की गोली के आगे, सीना ताण लगा देंगे। इन वीर अहीरों की ताकत का, हम एहसास करा देंगे। गर्दन उतार दिखा देंगे, ऐसा मौका फेर नहीं आणा। जिसने मां का आंचल छुआ, उसको सबक सिखाणा।। म्हारे खातिर देश की सिमा, मां, बाप, बहन और भाई है। पूर्वजों ने इसके ऊपर, अपणी जान गवाई है। इसकी रक्षा करने खातिर, हम सब ने कसम उठाई है। ना गर्दन कभी झुकाई है, चाहे बेशक कट जाणा। जिसने मां का आं...
सहरा में चलते चलते
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सहरा में चलते चलते

********** कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) सहरा में चलते चलते तन्हा जब थक गये हम जहनो दिल पर कोई तिशनगी गुजरने लगी बारहा ऐसा होने लगा और एक अजाब सा आया सहरा के इस धुँध में उनकी सूरत दिखी तो चाँद वहाँ रौशन हुआ वह दास्ताँ बन गया याद नहीं कब उनके ख्वाब मेरी आँखो में मुनब्बर हो गये और बरस पड़े दो बूंद सुखे सहरा की गलियों में पता नही फिर कब सहर हुई कब रात हो गई चलते चलते सहरा में . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करे...
दीप बनकर
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दीप बनकर

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर दीप बनकर दिवाली मनायें सभी। छोड़ खामोशी बाहर आयें कभी। है सफाई ज़रूरी ,,,,मग़र ध्यान दो। खाली हाथों को भी कोई काम दो। दौर मंदी का है,तेज ना हम चलें। साथ लेकर सभी को मिलकर बढ़ें। छोड़ दें हम पतली प्लास्टिक पन्नियाँ। इस बार बाटें,,,,,,,, धान गुड़ धनियाँ। मिलावट नहीं,,,,,,,,, शुद्ध आहार हो। पुरातन भारत का,,,,,,,,,,, बाज़ार हो। रूप चौदस पर मिट्टी और उबटन रहे। चौथ करबे की चमके,न विघटन रहे। नृत्य घर घर में हों और भजन श्याम के। मोहब्बत बिना,,,,,,,दीप किस काम के।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष...
दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे
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दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे

********** दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे, यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे। खुदसे ज्यादा था भरोसा तुमपर, लगा तुम प्यार से गले लगा लोगे।। दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे यहां अपनो का क्या.... ना जगह अपनी, ना दुनिया अपनी, ना अपना गम है ना खुशियां अपनी। यही करता रहा में सोचकर गलती, मेरी वफ़ा का तुम सिला दोगे। दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे, यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे। मेरी यादों का क्या.... तुम किसी राह से गुज़रती थी, बनके खुशबू बड़ी महकती थी। मेरी नज़रो को क्या तुम भूल गई, क्या फिर कोई आरज़ू जगा दोगे। दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे, यकीं नही था कि तुम मुझे दगा दोगे। मेरी बातों का क्या.... मेरे उन दोस्तो को याद सब है, तुमको हमने यूं भुलाया कब है। मुझे अब दोस्तो ने भी छोड़ दिया, क्या अब इस बात का भी बयां लोगे। दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे, यकीं नही था कि तुम मुझे...
आग लगादो इस जहां को
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आग लगादो इस जहां को

********** दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ आग लगादो इस जहां को जिसने यह गम दिया, देकर सभी को ज्यादा मुझको ही कम दिया ! जो करता हे ईमानदारी उसे बेईमानी खा जाती है ! कलयुग की शर्मशार हरकतों को देख हमे शर्म आ जाती है !! वो तारीफ़-ए-काबिल होगा जिसने यह किस्सा ख़तम किया- आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..! जो प्यार देता सभी को उसे खुद प्यार नहीं मिलता! जो हंसाता रहे सभी को उसे हंसने का अधिकार नहीं मिलता !! खुश रहता हे वही जिसने यह सब हजम किया- आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!! हमारे देश के नागरिको का हम एक ऐसा उदहारण बताएँगे! जो टी.वी. के रिमोट को जोर से दबाएँगे,ठोकेंगे, पर उसमे नए सेल नहीं डलवाएंगे !! मेरा नमन हे उन माताओं को जिन्होंने ने ऐसों को जनम दिया- आग लगादो इस जहाँ को जिसने यह गम दिया……..!!! अनुभव वो कंघी है जो ज़िन्दगी आपको तब देती है जब आप गंजे हो जाते है? पर अनुभव ...
मैं मंजिल हूँ तुम्हारी
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मैं मंजिल हूँ तुम्हारी

========================== रचयिता : दीपक्रांति पांडेय मैं मंजिल हूँ तुम्हारी, ये सच है, इसे तुम मान लो, मैं पहली और आखरी ख्वाइश हूँ, तुम्हारी, जान लो, मैं तुम्हारी ताकत हूँ, ताकत और हौंसला भी, किसी भी कसौटी में परख कर, इसे मान लो, नाराजगी, झगड़े, और दूरियाँ ना टिकेंगी हमारे बीच, अधूरे हो मेरे बिन तुम, हकीकत है इसे पहचान लो, सच्चे प्यार की ताकत को वक्त रहते पहचान लो, दुनियाँ ने जो तुम्हें बताया, वो तुमने मान लिया, दूसरों ने जो मंजर दिखाया उसे सच जान लिया, खुद की आंखें खोलो और सच को खुद जान लो, फ़र्क होता है बहुत, सच और झूठ के बीच, बस इसी सूक्ष्म फ़र्क को देखो, पहचान लो, नमी मेरे निगाहों से, छलकती है अगर हरपल, हो खुश कैसे, दिले हालत से पूँछो, और जान लो, मैं हूँ अकेली और तन्हा, ज़िन्दगी के सफर में तो, हो भीड़ में तन्हा तुम भी, खुद से पूछो ये जान लो, मैं मंजिल हूँ तुम्हारी, ये सच है, इस...
आज का पंचांग २७ अगस्त सन २०१९ ईस्वी
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आज का पंचांग २७ अगस्त सन २०१९ ईस्वी

📜««« आज का पंचांग »»»📜 कलियुगाब्द.......................५१२१ विक्रम संवत्......................२०७६ शक संवत्.........................१९४१ रवि............................दक्षिणायन मास...............................भाद्रपद पक्ष..................................कृष्ण तिथी...............................द्वादशी रात्रि ०२ .३३ पर्यंत पश्चात त्रयोदशी सूर्योदय...........प्रातः ०६ .०७ .३६ पर सूर्यास्त...........संध्या ०६ .४९ .५१ पर सूर्य राशि..............................सिंह चन्द्र राशि...........................मिथुन नक्षत्र................................पुनर्वसु रात्रि ०१ .०६ पर्यंत पश्चात पुष्य योग...................................सिद्धि प्रातः ०९ .१८ पर्यंत पश्चात वरिघ करण................................कौलव दोप ०३ .५२ पर्यंत पश्चात तैतिल ऋतु.....................................वर्षा दिन.......
मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि एवम सामाजिक परिस्थिति
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मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि एवम सामाजिक परिस्थिति

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" लोकगीत मानव ह्रदय की सरल, सहज एवम नैसर्गिक अभिव्यक्ति है। जिसमे भाव, भाषा और छंद की नियमितता से मुक्त रहकर स्वच्छंद रूप से निःसृत होने लगते है। इन सहज-स्वाभाविक गीतों के मूल में सम्पूर्ण विश्व की प्रतिपल घटित एवम परिवर्तित परिस्थितियां ही प्रेरणा रूप में विद्यमान है। लोकगीत भावों की अभिव्यक्ति की एक विधि है। लोकगीतों की मूल प्रेरणा वही है जो अभिव्यक्ति की अन्य विधाओं की है। मालवी लोकगीतों की पृष्ठभूमि के रूप में भी अभिव्यक्ति की इन मूल प्रेरणाओं को स्वीकार किया जा सकता है। ये है- सामाजिक,धार्मिक आर्थिक, राजनैतिक, पारिवारिक आदि परिस्थितियां। इसमे हम केवल सामाजिक परिस्थितियों पर ही हम मंथन करेंगे.............. समाज, मानव द्वारा निर्धारित व स्वीकृत वह जीवन पद्धति है जिसके द्वारा प्रत्येक मनुष्य जीवन पर्यंत संचालित ह...
मेरे शैक्षिक नवाचार एवं उनके प्रभाव
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मेरे शैक्षिक नवाचार एवं उनके प्रभाव

=========================================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" हमारे राज्य की मानक भाषा हिंदी है। यद्धपि प्रदेश में मालवी, निमाड़ी, बघेली, बुंदेली भीली आदि कई क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाएं व बोलियां है।जो समूचे प्रदेश में बोली जाती है और वो समाज की संपर्क भाषा बन गई है। ये सभी स्थानीय भाषाएं जहाँ हिंदी से प्रभावित है वही हिंदी भाषा भी इन भाषाओं, बोलियों के रस-रूप और उसकी सुगंध ग्रहण करके अपने को समृध्द बनाती है। ठीक इन बोलियों के अनुसार ही हम शैक्षिक नवाचार को ले सकते है। नवाचार भी ऐसा हो जो अनुकरणीय हो। सम्पूर्ण प्रदेश ही नही देश में भी खेलकूद गतिविधियां एक जैसी होने लगी है। यथा-कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट, दौड़, स्लो सायकल रेस, लम्बी कूद......आदि। ये खेल सम्पूर्ण राष्ट्र में एक साथ प्रारम्भ नही हुए, बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में काफी समय लगा, देशी खेल के साथ विदेशी खेल ...
रंक से बना दिया राजा
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रंक से बना दिया राजा

रंक से बना दिया राजा =========================================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" ये बात बरसो पुरानी है एक नन्हा बालक 6 माह का था और काल के क्रूर हाथों ने उसकी मां का साया सिर पर से उठा लिया। बड़ी भाभी ने देवर से पूछा- "भइजी अब इना बच्चा को कय होयगो ? (बड़ी मां बच्चे की परवरिश करना चाहती थी) तो उनका कहना था मेरी सास इस बच्चे को रख लेगी। लेकिन सास यानी बच्चे की नानी ने साफ मना कर दिया कि मेरा छोटा सा घर और बच्चा है तो मैं इसको नही रख पाऊंगी। फिर अपनी बड़ सास यानी पत्नी की बड़ी बहन के बारे में कहा, तो उन्होने भी मना कर दिया। तब अपनी भाभी को बच्चा सुपुर्द करने की बजाय कहा 'जी' यानी उनकी मां और राजन यानी भतीजा को ले जाऊंगा। कुछ समय उपरांत दादी और बड़े भैया ने प्रारम्भ में उन बच्चों की देखभाल की। पिता ने गन्धर्व विवाह कर लिया। उनसे एक बेटे और बेटी ने जन्म लिया। फिर जैसा कि होता है सौते...
कहानी
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कहानी

रचयिता : मित्रा शर्मा =========================================================================================================== कहानी लवों से बात क्या करना जब धड़कन बोलती हो गुफ्तगू सारी क्या करना जब खामोशियाँ शोर करते हो। लफ्जों से दिल दुखना यह यह भी एक बहाना है खामोशियाँ के प्रहार से भी आंसू झरते है दर्द की धुंवा ऐसा उठा कि नजर से दूर हो गए जलकर राख हो गए सपने निशान छोडकर चलेगए। गमों की दुनिया मे अपने को अकेले तन्हा छोड़ दिए दुश्वार जिंदगी की यही कहानी तोहफा खामोशियाँ दे गए तुम्हारी नजर अंदाजी से हमने भी यह सिख लिया तुम्हे यही लौटा दूँ यह सौक रख लिया   परिचय :- मित्रा शर्मा महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में ट...
घर पर योग करने के 10 आसान टिप्स
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घर पर योग करने के 10 आसान टिप्स

1. सुविधाजनक समय चुनें पतानाजली योग सूत्र में योग के लिए सबसे बढ़िया समय जो बताया गया है वो है- ब्रह्ममुहूर्त यानि की सुबह का समय जब सूर्य उदय हनी का समय होता है. परन्तु येह कोई नियम नहीं है की आप सिर्फ सुबह ही योग कर सकते है. आप दिन के समय जब भी समय मिले जैसे शाम को दोपहर को भी योग कर सकते है. बस एक चीज का ध्यान रखे, खाना खाने के तुरंत बाद योग ना करें. 2. सुविधाजनक जगह चुनें योग करते वक्त आपको विभिन्न आसन करने पढ सकते है जिसके लिए थोड़ी खाली जगह चाहिए, ज्यादा नहीं आप अपने हॉल या किसी खाली कमरे में भी योग कर सकते है. आप चाहें तो टेरेस पर या बरामदे में भी योग कर सकते है परन्तु मौसम का ध्यान रखें. 3. योग खाली पेट करें योग का नियम है की इसे खली पेट करना है. इसका यह मतलब नहीं है की आपको उपवास रखना है या भूखे रहना है अपितु आपको खाना खाने के तुरंत बाद योग नहीं करना है. De...