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तुम कब जाओगे…! अतिथि…!
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तुम कब जाओगे…! अतिथि…!

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** अतिथि! तुम्हारा जब आगमन हुआ था, तो हम सबने यही सोचा था कि मेहमान हो कुछ दिन ठहर कर चले जाओगे। लेकिन अब तो बार-बार पूछना पड रहा है.... अतिथि तुम कब जाओगे? तारीख पर तारीख और फिर तारीख! लेकिन तुम तो बेशर्म की तरह यहाँ पैर पसारे जमने की कोशिश कर रहे हो। तुम अपने खौफनाक डरावने चेहरे की छाप मेरी जमीन पर डाल तो चुके हो पर तुम ये भी जान लो कि तुम मेरी जमी और मेरे अपनों को बहुत आहत कर चुके। क्या तुम नहीं जानते ये हौसलो की जमी है, तुम्हे मूँह की खानी ही होगी। जब तुमने अपने आने की आहट दी थी, तब मेरा मन अज्ञात आशंका से धडक उठा था। अंदर ही अंदर मै मेरे अपनो के लिए काँप गई थी। हम सतर्क भी थे, हमने वितृष्णा से तुम्हारा तिरस्कार भी कर दिया था। फिर भी तुम न जाने कैसे बेदर्दी से मेरे अपनो को लील गए। मेरी आशंका निर्मूल नही थी ! तुम नहीं गए ! तुम्हें भगाने के ...
कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार
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कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए लेखन भले ही सरल प्रक्रिया हो गई हो। कलम के माध्यम से जो विचार और अक्षर निखरते है उसकी बात ही कुछ और होती है। इस और ध्यान ना देने से हैंडराइटिंग ख़राब होने की वजह भी यही रही है। व्याकरण त्रुटि ना के बराबर रहती है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल के साथ -साथ हैंडराइटिंग को भी जारी रखें। क्योकि कलम से कागज पर लिखी जाने वाले लेखन विधा कम्प्यूटर युग में खो सी जाने लगी। सुन्दर अक्षरों की लिखावट के पहले अंक मिलते थे। साथ ही सुन्दर लेखन की तारीफे होती थी जो जीवन पर्यन्त तक साथ रहती थी, स्कूलों, विभिन्न संस्थाओं द्धारा सुन्दर लेखन प्रतियोगिता भी होती थी। अब ये विधा शायद विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची। लेखन विधा को विलुप्त होने से बचाने हेतु लेखन विधा के प्रति अनुराग को हमें जारी रखना होगा। ये लेखन एक सागर के सामान...
होमियोपैथी….  प्रयोग नहीं विज्ञान
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होमियोपैथी…. प्रयोग नहीं विज्ञान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व होमियोपैथी दिवस’ प्रत्येक वर्ष १० अप्रैल को सम्पूर्ण विश्व में मनाया जाता है। होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन की जयंती १० अप्रैल को विश्व होमियोपैथी दिवस के रूप में मनायी जाती है। होम्योपैथी के संस्थापक जर्मन चिकित्सक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन महान विद्वान, भाषाविद् और प्रशंसित वैज्ञानिक थे। होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति दुनिया के १०० से अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व में अग्रणी देश है कई महामारियो का उपचार होम्योपैथी से संभव है। लेकिन अभी तक इसका पर्याप्त इस्तेमाल नहीं हो सका है। होमियोपैथी को लोकप्रिय बनाने का आयोजन किया जाता है। होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर पुराने तथा असाध्यय कहे जाने वाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणो को प्राथमिकता...
कोरोना वायरस का प्रभाव
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कोरोना वायरस का प्रभाव

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** सारे विश्व में कोरोना के कहर ने हंगामा मचा दिया है। अंबर और अवनि पर सन्नाटा छाया हुआ है। प्रदूषण फूँकते वाहन के पहिए थम गये हैं। सड़कों, दुकानों, मोल, शाला-कॉलेजों, ऑफिसों, कंपनियों, उद्योगों, मण्डी-बाजारों, आदि भीड़ वाले स्थान एक ही रात के आह्वान से कुछ ही घंटों में शून्य सा नजर आ गया है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक वातावरण के साथ ही प्राकृतिक वातावरण भी शांत हो गया है। लोग अपनी, परिवार की और देश की जान बचाने के लिए अपने घरों में बैठकर देश को सहयोग दे रहे हैं। लोगों में निरंतर सावधानी जागृत करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया के माध्यम से मीडिया कर्मी सतत सूचना देते रहते हैं। लोगों को मुश्किलें कम हो इसके लिए जितना हो सके उतना समाज सेवकों और सरकार द्वारा खयाल रखा जाता है। लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान, ...
अदृश्य शत्रु बनाम साहस
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अदृश्य शत्रु बनाम साहस

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आज सोशल मीडिया के माध्यम से घर बैठे स्क्रीन पर दृश्य देख देखकर ऐसा लग रहा है कि मानो पूरा विश्व थम गया है, संसार का कारवां रुक गया है। प्रकृति का सबसे ताकतवर जीव इंसान..... आज बेबस है, असहाय है, मजबूर है, स्तब्ध है, डरा हुआ है , रुका हुआ है सहमा हुआ है, अपनों के पास होकर भी अपनों से दूर है, अपने ही घर मे,अपनी ही मर्ज़ी से, कैद है , किसके कारण ? एक ऐसे "अदृश्य शत्रु "के कारण जिसे सीधे आंखों से देखा भी नहीं जा सकता, जिसका कोई अस्तित्व नही, जिसके पास मस्तिष्क नही, जिसके पास बाहुबल नही, जिसके पास शस्त्र नही, जिसकी कोई जात नही, जिसका कोई धर्म नही, जो किसी देश का नागरिक नही, जिसका कोई मित्र या शत्रु नहीं। आज एक अदने से अदृश्य शत्रु ने इंसान की दुनिया में तबाही मचा दी है, तूफान ला दिया है। इंसान -इंसान के बीच और उसके चारों ओर पहरा लग...
मीडिया कितना कारगर
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मीडिया कितना कारगर

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** कोलाहल भरे वातावरण में जहां दूरदर्शन और मोबाइल की वजह से परिवार में वार्ता लाप, दादा-दादी के किस्से और कहानियों के साथ अच्छे-बुरे की सीख और समझ से परे आज की नई पीढ़ी होती जा रही है। बच्चों के लिए तो विभिन्न प्रकार के खेल मोबाइल पर चल रहे है उसमे बच्चे रम रहे है। मोबा इल पर जानलेवा खेल खेलकर पूरे विश्व मे कई बच्चे आत्महत्या कर चुके है या अपराध की ओर उन्मुख हो गए। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के बावजूद मोबाइल के लिए लड़के-लड़कियां लालायित रहते है। छोटे से लेकर बड़े बच्चों का मोबाइल आप बन्द नही करवा सकते, मोबाइल की मांग पूरी करना ही पड़ेगी ! आपका मोबाइल बच्चों को देना ही पड़ेगा ! नही तो बच्चे चिढ़-चिढ़े होकर अत्यधिक आक्रोश व्यक्त करने लगते है, खाना नही खाएंगे, आपका कोई काम नही करेंगे, समान उठा-उठाकर फेंकेंगे, यहां तक कि वे गुस्से ...
कोरोना
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कोरोना

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** कोरोना रो_कोना। आने दो स्वागत करो। जी भर भर स्वागत करो। जनता मेरे देश की जनता। स्वदेश का नारा लगा लगा कर स्वदेश को नहीं पहचान पा रही जनता। कितना अपने आप को धोखा देना है। क्या इस शिक्षित युग में अब भी हमारी जनता को अंगुली पकड़कर चलना सिखाना होगा। आजादी के बाद इतने वर्षो में कम से कम हर नागरिक इतना तो शिक्षित हो ही गया होगा की उसे स्वयं के भले बुरे का ज्ञान होने लगा होगा। घर परिवार की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता यदि है तो कुछ देश के लिए योगदान भी समझ में आता होगा। हम हर पहलू से सोचे तो सोच यहीं निकल रही है कि हम सब ठीकरे दूसरे के माथे ही फोड़ेंगे। किसी भी दल की सरकार हो। उसमें कितने भी कपट छल वाले लोग भरे हो, हमारी समझ कहां जाती है। यदि हम प्रधानमंत्री के पद तक के दावेदार चुन सकते हैं तो हम इतनी बुद्धि तो रखते ही है कि हम...
स्वर-संगीत
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स्वर-संगीत

अभिषेक श्रीवास्तव जबलपुर म.प्र. ******************** संगीत संगीत है शक्ति ईश्वर की, हर स्वर में बसे हैं राम। रागी जो सुनाये रागनी, रोगी को मिले आराम।। संगीत एक ऐसी शक्ति है जो कि हर किसी के मन को हरने में सक्षम है, हां सभी की पसंद अलग अलग हो सकती है। संगीत प्रकृति के कण कण में बसा हुआ है, चलती हुई मंद पवन, कल कल करके गिरते हुए झरने , बरसात में पानी की बूंदों के गिरने की आवाज, बादलों की गड़गड़ाहट एक तरह से सभी संगीत के अलग-अलग स्वर हैं जो कि प्रकृति के संगीत का परिचय देते हैं। सांसारिक संगीत को भी कई भागों में बांटा गया है, शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, प्रांतीय संगीत, भक्ति संगीत इत्यादि। संगीत को जानने वाले संगीतज्ञों ने तो संगीत का आनंद लिया ही है किन्तु इसके अलावा वे वर्ग जो कि संगीत को नहीं जानते हैं वे भी संगीत सुनकर उसमें खो जाते हैं। वैसे संगीत को जानना या ना जानना मायने नहीं रखता ...
बसंत पंचमी
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बसंत पंचमी

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** बसंत पंचमी, माघी पंचमी, श्री पंचमी..... मां वागेश्वरी, सरस्वती अवतरण दिवस। बसंत पंचमी का पर्व अपने आप में एक सुखद अनुभूति है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती अवतरित हुई, इसलिए यह बहुत पावन दिन माना जाता है, क्योकि ज्ञान की देवी शारदे को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन पर प्रसन्न होकर वरदान दिया था की, बसंती पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा की जायेगी। श्रीहरि की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीव-जंतु, मनुष्य योनि की रचना की पर उन्हें पूर्णतः संतुष्टि नहीं थी। फिर से श्रीहरि की अनुमति से ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल की बूंद धरती में समाहित होते ही कम्पन हुआ और वृक्षो के बीच से एक स्त्री शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह मां वीणा पाणी थी और दिन माघ शुक्ल पंचमी थी, जो हम बसंत पंचमी के रुप में मनाते है। भारत वर्ष के अलावा नेपाल औ...
बाल श्रम
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बाल श्रम

अक्षुण्ण बोहरे ग्वालियर, मध्यप्रदेश ******************** वर्तमान में हमारे देश में बाल श्रम जैसी कुप्रथा, सामाजिक कुरीति एवं बुराई विकराल मुँह लेकर खड़ी है। बाल अवस्था में गरीबी एवं शिक्षा के अभाव में लाखों बच्चे इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। आज हमारे देश के कई पिछड़े राज्यों में बाल श्रम से प्रभावित बच्चों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, और यह ज्वलंत एवं गंभीर समस्या दिनोंदिन उग्र होती जा रही है। भारत के संविधान १९५० के २४वें अनुच्छेद के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों का कारखानों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों, होटलों, फैक्ट्रियों, ढाबों, दिहाड़ी मजदूर एवं घरेलू नौकरों के रूप में कार्य करना बाल श्रम के अन्तर्गत आता है। चाइल्ड लेबर (निषेध एवं विनियमन) एक्ट १९८६ के अनुसार १४ वर्ष से कम आयु के बच्चों से मजदूरी का कार्य कराना गैर कानूनी होकर दण्डनीय माना गया है। किशोर न्याय (देखभाल एवं संरक्षण) बा...
लोहड़ी मकर संक्रांति  का सामाजिक पहलू
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लोहड़ी मकर संक्रांति का सामाजिक पहलू

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** भारतीय संस्कृति में त्योहारों का अपना एक विशेष महत्व है। जिनको धार्मिक नजर से देखा जाता है परंतु हर त्यौहार को मनाने का सबसे बड़ा सामाजिक कारण समाज को बांधना और जोड़ना है।  यदि हम किसी भी त्योहार को सामाजिक दृष्टि से देखें तो एक दूसरे से गले मिलना ,साथ बैठना ,मिलकर उत्साह से खुशी मनाना तथा नाचना गाना ,खाना-पीना यह सभी हर त्यौहार का हिस्सा होते हैं। भारत जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है इसमें भिन्न-भिन्न तरह के त्योहार मनाए जाते हैं। लोहड़ी का त्यौहार  देशभर में  मनाया जाता है। लोहड़ी  मकर संक्रांति पोंगल इत्यादि अलग-अलग नामों से यह त्यौहार भिन्न-भिन्न राज्य और धर्म के हिसाब से  मनाया जाता है। यूं तो  लोहड़ी मकर संक्रांत का महत्व सर्दी के खत्म होने और सूर्य के स्थान बदलने  का  सूचक माना जाता है। संक्रांति के दिन बहुत से लोग सूर्य की पूजा कर पवित्र न...
शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह
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शिक्षक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** अनूठा, अकल्पनीय, अनुकरणीय, असीम सम्भावनाओं को जन्म देने वाला अनन्त विचारों को प्रकाश पुंज की तरह समेटने वाला आयोजन दिनांक २० दिसम्बर २०१९ को संध्या समय धनौरा जिला सिवनी के लिए इंदौर से मैं डॉ. विनोद वर्मा अपने ६ साथियों संजीव खत्री, तोलाराम तंवर, पवनसिंह नकुम, कैलाश परमार, माखनलाल परमार, अशोक राठौर के साथ कार से रवाना हुआ। दि.२१ को प्रातः काल पहुंचे। जहाँ विद्यालक्ष्य फाउंडेशन धनौरा के तत्वावधान में राष्ट्रस्तरीय शिक्षक संगोष्ठी और शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन होने जा रहा था। इस आयोजन में जिला कलेक्टर, अपर कलेक्टर, सीईओ जिला पंचायत सिवनी के साथ शिक्षा विभाग का महकमा संयुक्त संचालक श्री तिवारी जी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री बघेल जी,जिले के सभी विकास खण्ड शिक्षाधिकारी,सभी खण्ड स्रोत समन्वयक ने अधिकांश समय अपनी उपस्थिति देकर इस आयो...
इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि
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इतिहास नगरी गढ़ सिवाणा : संत-शूरमाओं की मातृभूमि

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** एक हजारवें स्थापना दिवस पर विशेष संतो और शूरमाओं की मातृभूमि राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले में स्थित गढ़ सिवाणा शहर की स्थापना विक्रमी संवत १०७७ में पौष महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिधि को वीर नारायण परमार ने की थी! आगामी 1 जनवरी २०२० को इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना के एक हजार वर्ष पूर्ण हो रहे है! इस अवसर पर जानते है सिवाना शहर के इतिहास और विशिष्टता को! गढ़ सिवाणा का ऐतिहासिक दुर्ग राजपुताना के प्राचीन दुर्गो में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। ये दुर्ग राजस्थान के उस चुनिन्दा दुर्गों में शुमार है जहाँ दो बार जौहर हुए है! वहीं यह शहर प्राचीन काल से ही कई महान तपस्वी विभूतियों की तपोभूमि रही हैं। कस्बे के मध्यभाग में स्थित गुरू समाधी मंदिर हजारों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का केंद्र हैं। राजस्थान का मिनी माउंट हल्देश्वर तीर्थ अत्यंत रमणीय स...
संचार क्रांति
आलेख, नैतिक शिक्षा

संचार क्रांति

मंजर आलम रामपुर डेहरू, मधेपुरा ******************** संचार क्रांति के इस दौर में शायद ही कुछ लोग ऐसे हों जिनके पास सेलफोन न हो। निश्चय ही मोबाइल बहुत उपयोगी है और हर किसी की जरूरत भी। कहाँ गए वह दिन जब परदेश गए किसी अपनों की खबर पाने को डाकिए का इंतज़ार करना पड़ता था ताकि वह आए तो उनका पत्र साथ लाए। उस पत्र में लिखे संदेश की इतनी महत्ता होती कि एक ही खत को बार बार पढ़ा जाता मानो वह अब भी नया ही हो। अब तो पल पल की खबरें घर बैठे बिठाए मिल रही हैं। “कर लो दुनिया मुट्ठी में" अब स्लोगन नहीं, हकीकत है। एनड्रॉयड मोबाइल ने तो लोगों के जीवन में इतना बदलाव ला दिया है कि समय बिताने के लिए अब किसी की कमी नहीं खलती। टेलीविजन, अखबार सब कुछ एक ही क्लिक पर मिल जाता है मानो दुनिया अंगुलियों के ईशारे पर हों। अब तो घर परिवार के लोगों के बीच मिल बैठकर बातचीत करने के लिए भी समय कम ही निकलता है। सहपाठियों...
गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?
आलेख, बाल साहित्य

गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बुद्धी और ज्ञान दुनियां में बहुत महत्वपूर्ण हैं, फिर वह किसीसे भी प्राप्त हो, उसे अनुभव से प्राप्त कर आत्मसात करना होता हैं। ज्ञान एवं अनुभव ग्रहण करने वाला शिष्य और ज्ञान देने वाला या प्राप्त करवाने वाला गुरु होता हैं। ऐसा यह गुरु और शिष्य का बुद्धी, ज्ञान और अनुभव का रिश्ता होता हैं। ज्ञान तथा अनुभव लेनेवाले एवं देनेवाले की उम्र का इससे कोई संबंध नहीं होता, सिर्फ ज्ञान देनेवाला अपने विषय में निष्णात होना चाहिए, और ज्ञान लेनेवाले का देनेवाले पर विश्वास होना चाहिए। यहीं इस रिश्ते की पहली शर्त होती हैं। बच्चें की पहली गुरु का मान यह उसकी माँ का होता हैं। इसके बाद जीवन के हर मोड़ पर ज्ञान और अनुभव देनेवाले गुरु की आवश्यकता महसूस होती रहती हैं। ‘गुरुपूर्णिमा‘ यह सभी गुरुओं को आदर और श्रद्धापूर्वक स्मरण करने का दिन हैं। गुरुपूर्णिमा को ‘व...
सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध
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सोशल मीडिया और बढ़ते अपराध

मो. जमील अंधराठाढी (मधुबनी) ******************** सोशल मीडिया वर्तमान में अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। यह एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां लोग अपनी रचनात्मकता और कलात्मकता का प्रयोग कर अपनी प्रतिभा को सभी के सामने रख सकते है। शायद यही कारण है कि कम समय में यह प्लेटफार्म युवाओं के दिल और दिमाग पर राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर सक्रिय होना बुरा नहीं है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी इस प्लेटफार्म का प्रयोग अपने अनुसारकर रहे है। जिसके अच्छे और बुरे परिणाम हमारे सामने वीडियो वायरल होने से लेकर दरिंदगी की खौफनाक घटनाओं के रूप में सामने आ रहे हैं। खुद को जनता के बीच चर्चित करने या फिर अपने टैलेंट को दिखाने के लिए भी इसका इस्तेमाल बखूबी हो रहा है। अच्छे और बुरे परिणामों की बात करने वाद अहम सवाल यह उठता है कि क्या सोशल मीडिया बुरा है या फिर उसके उपयोग कसे का तरीका? आपका भी जवाव शायद तरीका ...
क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?
आलेख

क्या महिलाएं सशक्त हो गयी है?

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** स्त्री और पुरुष उस सर्वशक्तिमान की अमूल्य भेंट है। आजतक के विकास में स्त्री और पुरुष की समान हिस्सेदारी भी है। इतना होते हुए भी हर समय यश, प्रसिद्धी, मानसन्मान, निर्णय लेने का अधिकार हमें हरस्तर पर आज पुरूषों के लिए ही दिखाई देता है। देश में हर स्तर पर महिलाओं के लिए ५० प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए परन्तु ३३ प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव भी पुरूषों के अड़ियल और महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक द्रष्टिकोण के कारण अनेक वर्षों से लोकसभा में लंबित था। वैसे भी वर्तमान में महिला सशक्तिकरण की अनेक योजनाये कार्यरत है, परन्तु लचर मानसिकता और भ्रष्टाचार के कारण वांछित परिमाण देश में दिखाई नहीं दे रहे है। पुरुष सत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरूषों के बाद का ही दर्जा दिया जाता है। समानता को स्वीकार करने की मानसिकता ही दिखाई नहीं देती। मजे की बात ...
बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज
आलेख

बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है। समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने...
मित्रता : बच्चों के साथ
आलेख, नैतिक शिक्षा

मित्रता : बच्चों के साथ

अंजू खरबंदा दिल्ली ******************** हम पति पत्नी ने शुरू से ही आदत बनाई हुई है कि बच्चों को महीने मे दो बार बाहर डिनर के लिये लेकर जाते है। एक पंथ दो काज। इससे दो बाते होती है - पहली साथ बिताने के लिये समय मिलता है और दूसरा बच्चे बाहर घूमने के लिये यारों दोस्तों का साथ नही ढूंढते। आर्डर देते समय ये निर्णय करने मे अक्सर समय लगता कि - "आज क्या मंगाया जाये!" "इस भोजनालय की सूचि मे स्पेशल क्या है !" पर बच्चे तो बच्चे है - "आज ये नही खाना, पिछली बार भी तो यही खाया था! आज कुछ और मंगाते हैं !" कभी-कभी कोफ्त सी होने लगती व इंतजार भारी सा लगने लगता तो बच्चों को कहना पड़ता - "जल्दी निर्णय करो! देखो और लोग भी प्रतीक्षा मे खड़े हैं!" बच्चों के साथ कही जाओ तो बहुत धैर्य रखना पड़ता है । हमें देख कर ही तो बच्चे सीखते है फिर हम ही जल्दी परेशान हो जायेगे तो उसका असर सीधा बच्चों पर पड़ेगा ही! एक ...
मृत्युदंड क्यों नही
आलेख

मृत्युदंड क्यों नही

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** पता चला है कि हैदराबाद में फिर एक बेटी के साथ हैवानियत करने के बाद भी दरिंदों का मन नहीं भरा। तो उसकी लाश को ट्रक के पीछे बांधकर दूर ले जाकर जला दिया गया, तब प्रशासन क्या कर रहा था। क्या नेताओं और समाज के ठेकेदारों का कोई कर्तव्य नहीं बनता? एक तरफ तो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगवाया जाता है, और दूसरी तरफ हर रोज बेटियाँ दरिंदों की हवस का शिकार बनती जा रही हैं। क्या गलती थी डॉ प्रियंका की? क्या औरत अपना जिस्म लुटाने के लिए ही बनी है? कि जिसका जब मन किया उसे अपने हवस का शिकार बना ले। क्या उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं? बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमेशा बेटियों की गलतियां निकालते हैं कि कपड़े छोटे पहनना होगें अपना जिस्म दिखा रही होगी। फिर बताइए कि जो बच्ची मां का दूध पी रही है उसके साथ भी क्यों हैवानियत होती है उसे भी दरिंदे नहीं छोड़ते...
हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?
आलेख

हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध है, या केवल औपचारिकता पूरी करते हैं?

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** कर्तव्य अर्थ :- किसी भी कार्य को पूर्ण रूप देने के लिए सजीव व निर्जीव दोनों नैतिक रूप से प्रतिबद्ध हैं। तथा दोनों कर्तव्य के साथ अपनी भागीदारी का पालन करते हैं। हम जानते हैं कि कर्तव्य से किया गया कार्य हमे एक विशेष परिणाम उपलब्‍ध करवाता है। जो वर्तमान एवं भविष्य के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इंसान को कर्तव्य का प्रभाव केवल इंसानों में ही नजर आता है। परन्तु इस धरा पर इंसान के अलावा पशु - पक्षी और निर्जीव वस्तुएँ भी अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य अदा कर रहे हैं l यह किसी को नजर नहीं आता है l क्योकि वर्तमान में इंसान अपने स्वार्थ को पूरा करने में दिन - रात दौड़ भाग कर रहा है। उसके लिए एक पल भी किसी को समझने का नहीं है l आईए कर्तव्य को विभिन्न विश्लेषण के साथ समझने का प्रयास करते हैं। मनुष्य अपने कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध :- मनुष्य ...
मोबाइल की लत
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मोबाइल की लत

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मोबाइल फोन जैसे जीवन में प्रवेश कर चुका है। यह अत्यंत लाभकारी और विनाशकारी दोनों ही साबित हो रहा है। छोटे बच्चों का बचपना इस मोबाइल और इंटरनेट में कहीं गायब सा कर दिया है, जिस उम्र में बच्चे खेल कूद किताबें पढ़ना व व्यायाम अन्य लाभकारी शारीरिक और मानसिक विकास बढ़ाने वाले कार्य करते हैं उस उम्र में छोटे छोटे बच्चे भी आजकल मोबाइल में लगे रहते हैं, स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि बच्चे सारा सारा दिन मोबाइल में वीडियो गेम यूट्यूब फेसबुक इत्यादि चलाते हैं, और एक अलग ही काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं ,जिसके कारण उनका मानसिक और शारीरिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। यह स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि बहुत से माता-पिता तो बच्चों मेंमोबाइल की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सक की सहायता ले रहे हैं। मोबाइल यदि हिसाब से चला जाए तो लाभकारी है किंतु इ...
उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में
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उतना ही भोजन ले थाली में व्यर्थ ना जाए नाली में

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** जिस प्रकार मानव को जीवित रहने के लिए पानी और हवा की आवश्यकता है इसी प्रकार मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता पड़ती है जहां कुछ लोगों पर खाने के लिए कुछ  नहीं है वहीं कुछ लोग भोजन का अनादर कर देते हैं और इतना खाना वेस्ट करते हैं जो कि बिल्कुल ही गलत है आपने शादी विवाह में देखा होगा कि लोग अपनी थाली में इतना खाना ले लेते हैं कि वह खा भी नहीं पाते और बाकी खाना फेंक देते हैं जो कि बेहद ही गलत है हमें उतना ही भोजन थाली में लेना चाहिए जितना हम खा सकें खाने को बिल्कुल भी नही छोड़ना चाहिए शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति खाने का अनादर करता है वह पाप का भागी बनता है जहां कुछ एनजीओ और संस्थाएं शादी विवाह आदि में बचे खाने को गरीब और असहाय लोगों में जिन पर खाने के लिए कुछ भी नहीं है उनको देकर पुण्य के भागी बन रहे हैं वहीं कुछ लोग खा...
रिश्ते
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रिश्ते

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रिश्ते आदमी को जन्म से ही अपने आप मिल जाते है। भले ही रिश्तों का कोई आकार प्रकार ना हो, परन्तु रिश्ते धीरे धीरे अपने आप जुड़ते जाते है और श्रृंखलाबद्ध हो जाते है। अटूट बंधनों में बंध जाते हैं। कुछ रिश्ते अचानक कोई लॉटरी खुल जाए ऐसे भाग्योदय जैसे उस लॉटरी में खुले इनाम की तरह मिल जाते है। जैसे परिवार में किसी की शादी तय होती है और वरमाला पड़ते ही अचानक कई सारे रिश्ते जुड़ जाते है। कुछ रिश्ते पुष्प जैसे होते है, खिलते जाते है, बहार लाते रहते है, महकते जाते है और हमेशा खुशबूं ही बिखेरते रहते है। गुलाब की पंखुड़ियों में अक्षरों से लिपट जाते है। कुछ रिश्ते पत्थर जैसे जडवत रहते है। अक्षरशः गले में पत्थरों की माला जैसे बोझा बन लटकते रहते है और उन्हें जबरन ढोते रहना पड़ता है। कुछ रिश्ते मन में चिडचिडाहट पैदा करने जैसे होते है। बिलकुल हैरान परेशान ...
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आलेख

अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं? अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद,...