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विकृती को मान्यता
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विकृती को मान्यता

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** बीते अनेक वर्षों मे, फिल्मों में दुर्जन खलनायकों को महिमामंडित करते बाजारवाद का योजनाबद्द षड्यंत्र हम देखते आ रहें हैं। इसमें सद्गुणी, सज्जन नायक कहीं तो भी पीछे पड़ता गया। आगे चल कर नायक में ही खलनायक की विशिष्टता (दुर्गुण) की भी बाजार को जरुरत महसूस होने लगी। इसी तरह आज वर्तमान में समाज में भी नायक और खलनायक में अंतर करना कठिन हो गया हैं। अच्छाई और बुराई में आज इतना साम्य हो गया हैं कि उनमें भेद करना कोई जरुरी नहीं समझता। नैतिकता और अनैतिकता के सारे मापदंड ही ध्वस्त हो चुके हैं। समाज के लिए भी अहितकर बातें समाज के ध्यान में ही नहीं आती। उसका एक महत्वपूर्ण कारण यह हैं कि समाज ने विकृती को जीवन का अभिन्न अंग समझ लिया हैं और उसे स्वीकार भी कर लिया हैंI यह भले हीं विडम्बना लगे परन्तु आज का कटु सत्य यहीं हैंI ‘सब चलता हैं,’ हमें क्या करना?’,’ह...
विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री
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विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विद्या ददाति विनयम् की साक्षात् साकार प्रतिमा, सर्जक मेधा एवं साहित्य- साधना के प्रतीक! हिंदी, संस्कृत एवं मगही के अधीती विद्वान, अप्रतिम ज्ञानगर्भित-शिष्यवत्सल प्राध्यापक, काव्यशास्त्र के प्रकांड विद्वान, गंभीर चिंतक, प्रखर वक्ता, सिद्धहस्त लेखक, उत्कृष्ट कवि, लघुकथा के पुरोधा तथा जरूरतमंदों के सहारा, एक सच्चे समाजसेवी एवं प्रगतिशील व्यक्तित्व के धनी मानवता के पैरोकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री अपने कर्म-वाणी-लेखनी और आचार-विचार-व्यवहार से स्वयं को आजीवन मांँ सरस्वती के सच्चे उपासक पुत्र सिद्ध करते रहे। अपने जीवन के अंतिम दिन (यानी प्रयाण-दिवस २५ अगस्त, २००४) तक इस सरस्वती-साधक ने १२ घंटों के प्रतिदिन के स्वाध्याय एवं लेखन के अकाट्य नियम में कोई परिवर्तन नहीं किया!! किशोरावस्था तक ही किशोर वय श्यामनंदन के स्वाध्याय का यह आलम था कि इनके पिता...
असली भगवान है सिर्फ़ “मां”
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असली भगवान है सिर्फ़ “मां”

शिवांकित तिवारी "शिवा" सतना मध्य प्रदेश ********************              इस सृष्टि की रचना करने के कारण हम सभी ईश्वर को सबसे बड़ा रचनाकार मानते है। उसी तरह मां भी इस धरा पर शिशु को नौ माह तक अपनी कोख में रख अथक पीड़ा सहन करने के उपरांत जन्म देती है अर्थात् शिशु की रचना करती है। इस प्रकार ईश्वर के कृत्य को आगे बढ़ाने में उसकी पूर्णतः सहभागिता होती है। इसीलिए मां को धरती पर ईश्वर का रूप कहते है। मां की कोख में रहने पर शिशु की पूरी संरचना होती ही है एवं जन्म के पश्चात भी मां उसकी ऐसी परवरिश करती है कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाये और अपने जीवन में सफलता हासिल करें। इस तरह मां सिर्फ जन्मदात्री ही नहीं अपितु उसकी पालनकर्ता भी है। मां के बिना संतान का जीवन पूर्णतया अधूरा, सूना और रुका हुआ होता है। वास्तविकता में मां हर किसी के जीवन में विशेष महत्व रखती है, इस एहसाह को शब्दों में बयां नहीं किय...
घर एक मन्दिर ही है
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घर एक मन्दिर ही है

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                   यह बात निस्संदेह नितान्त सत्य ही है कि घर एक मन्दिर की तरह है। मन्दिर में जाते ही प्रभु से समीपता का एहसास होता है, ऐसे ही घर में जहाँ परस्पर प्यार,लगाव, आकर्षण है, जाते ही अपनेपन का एहसास हिलोरें लेना लगता है, घर की देहरी में आते ही सारी थकान दूर हो जाती है तो यह मंदिर ही जैसा लगता है,नहीं तो मकान ही है, ईंट सीमेंट से बना, जहां एक दूसरे से विमुख कुछ प्राणी बस किसी तरह रहते हैं। पति-पत्नी दोनों या सिर्फ पति की नौकरी,बच्चों के स्कूल,टयूशन व शाम को ऑफिस से लेट आना, फिर घर रसोई के काम, बच्चों से पढ़ाई व अन्य जानकारी लेना अगले दिन फिर वही रूटीन, जिंदगी यूं ही बीतती जाये तो मशीन से क्या अलग है,एकाएक इस महामारी के कारण हुए लॉकडाउन या अब कुछ अनलॉक के कारण जीवनधारा तो बिल्कुल ही बदल ही गई, पहले कहते थे,मरने की फुर्सत न...
जीवंत गाँव : आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत
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जीवंत गाँव : आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                             आजकल 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का नारा बुलंदियों पर है, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्रद्धेय मोदी जी का नया संकल्प आत्मनिर्भर भारत का है। यह नया संप्रत्यय या संकल्पना नहीं है अपितु अत्यंत पुरानी है। राष्ट्रपिता बापू तो स्वराज की कल्पना ही आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, आत्मगौरव और राष्ट्र बोध के रूप में ही करते थे। पहले हमारे गाँव आत्मनिर्भर थे। आपसी भाई-चारा, सद्व्यवहार, शालीनता, संस्कार वहाँ के जन जीवन में रचा बसा था। लेकिन, विकास, आधुनिकता, नगरीकरण, वैश्वीकरण, वर्चस्व और सत्ता की भूख ने सब निगल लिया। गाँवों की क्या गजब जीवन शैली थी, पुजारी और पशुच्छेदन करने वाले चमकटिया, सबकी अपनी-अपनी इज्जत थी, सम्मान था। कोई किसी भी जाति का हो, सबसे कोई न कोई रिश्ता था- बाबा, काका-काकी, भाई-भौजी, बूढ़ी माई, बुआ, बह...
हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष
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हरफनमौला कवि बाबा नागार्जुन की १०९ वीं जयंती के अवसर पर विशेष

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं जन कवि हूँ मैं साफ कहूंगा क्यों, हकलाऊं                                        जन कवि कहे जाने वाले बाबा नागार्जुन की यह पंक्तियां उनके व्यक्तित्व, जीवन दर्शन तथा साहित्य में भी चरितार्थ होते दिखाई देती हैं। अपने समय की प्रत्येक महत्वपूर्ण घटना पर तेज तर्रार कविताएं लिखने वाले क्रांतिकारी बाबा नागार्जुन ने अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाई तथा जन आंदोलनों पर भी उनका महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। बाबा नागार्जुन का जन्म ३० जून १९११ ज्येष्ठ पूर्णिमा अपने ननिहाल तथा ग्राम जिला मधुबनी में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोकुल मिश्र तथा माता का नाम उमा देवी था। इनकी चार संतान हुई लेकिन वे जीवित नहीं रह पाए। इनके पिता भगवान शिव की पूजा आराधना करने बैजनाथ धाम (देवघर) जाकर बैजनाथ की उपासना शुरू कर दी। इस प्रकार अ...
धन्यवाद कोरोना
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धन्यवाद कोरोना

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आप सब सोंच रहे होंगे कि जहां एक ओर पूरी दुनिया इस कोरोना नमक महामारी से हड़कंप मची हुई है लोग कोरोना के नाम से डरे सहमे नज़र आ रहे हैं वहाँ इसे क्या सूझी जो कोरोना के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया जा रहा है। हम सभी यह अच्छी तरह जानते एवं मानते हैं की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। हमने कोरोना के नकारात्मक पहलू को देखा, सुना और समझा पर इसके दूसरे पहलू पर यदि गौर फरमाएँ तो इसके कुछ फायदे हमें दिखते हैं। आइये देखते हैं कैसे :- प्रकृति का शुद्धि करण हुआ – पूर्ण लॉक डाउन के चलते जब सारे फैक्ट्री, कारखाने, मोटर गाड़ी वो सारी चीजें पूरी तरह बंद हो गई जिनसे हमारे वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है और रिपोर्ट बताते हैं की ५० साल के इतिहास में इतनी स्वच्छ न ही नदियां रहीं और न ही इतनी प्रदूषण मुक्त हवाएँ जिसमे खुलकर सांस लिया जा सके। फिज...
कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन
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कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   कोरोना वायरस मानव इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है।अकस्मात आयी इस विपदा से निजात पाने की अनिश्चितता विश्व के समस्त देशों में है। व्यवसाय-व्यापार, निर्माण कार्य बंद हो जाने से सामाजिक-अर्थिक स्थिति परिवर्तित हुई है।लोगों में लॉक डाउन के कारण अलगाव व विवशता बढ़ी हैं। हमारे सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हुए हैं। सोच का दायरा, रहन-सहन, जीवन शैली, आचरण, व्यवहार में परिवर्तन आया है। घर मे लगातार पड़े रहने से लोगों में उत्तेजना बढ़ रही है। कोरोना वायरस से जो बेबसी और निराशा उभरी है, उससे हमारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। हम इस समय सामाजिक परिवर्तन से गुजर रहे हैं, धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक मान्यताएं, मापदंड परिवर्तित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा शारीरिक व मनोसामाजिक ...
प्रवासी मजदूर और बरसात का कहर
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प्रवासी मजदूर और बरसात का कहर

गोवर्धन लाल डांगी चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) ******************** आज सारे संसार के सामने कोरोना महामारी का प्रकोप पांव पसार खडा़ है, मानव को झंकजोर कर रख दिया है। एक दूसरे की संवेदना शून्य सी जान पडती है। विश्व की सभ्यता, संस्कृति और सामाजिक ढांचे में अचानक बदलाव आया है, इन सब का शिकार मजदूर वर्ग हुआ है। भारत में प्रवासी मजदूरों के साथ एक राज्य ने दूसरे राज्य के साथ जो व्यवहार किया है, वह भयावह रुप है। शहर से अपने पितामह के घर पहुचे पहुंचे ग्रीष्म ऋतु से वर्षा ऋतु तक का हम सफर रहा है। रास्ते चलते जिस माँ ने अपने नवजात शिशु को जन्म देते ही मीलों दूरी तय की हो, ऐसी माँ को सलाम, जब वह घर पहुची होगी तब दरवाजे पर घड़ी भर खुब रोयी होगी, घर खण्ड पडा है, ऊपर से बादल मेहरबान है.वहाँ एक रात नही महिने गुजारने है, ऊपर खुला आसमान नीचे पैरों में बहता पानी। इन दोनों पाटों के बीच पिसता मेरे ...
इतिहास के क्षितिज में विलीन कविता
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इतिहास के क्षितिज में विलीन कविता

योगेश्वर स्वामी झुंझनू, राजस्थान ******************** कविता किसी पेड़ से अलग हुआ पत्ता नहीं जिसे हवा अपनी झाड़ू से बुहार दे.... कविता समुद्र भी नहीं जिसपे जहाज़ लंगर डाल ले.... कविता किसी मेहनती किसान की बनियान का स्वेद नहीं, जिसे निचोड़ा जा सके ... बल्कि कविता तो दुनिया के हृदय में गड़ा हुआ एक खूंटा है.... जिसके इर्द गिर्द देहाती जीवन छोटे बच्चे की तरह अठखेलियां खेलता, शरारतों को परवान चढ़ाता नजर आता है। और यही देहाती क्षेत्र, शहरी क्षेत्र को परस्पर जोड़ता है सड़कों के माध्यम से, जिसपे ना जाने कितनी ही कविताएं कवियों के रूप में अपनी कलम के साथ दम तोड़ देती है। कविता किसी जल - लिपि से लिखित उस आसमान की तरह है जो अपने मर्मस्पर्शी और भावमयी बादलों के सहारे धरा के साथ साथ सूर्य को भी सिंचित करती है कुछ बुज़ुर्ग व्यक्तियों के सुबह के अर्घ्य -जल के सहारे। कविता शब्दों के समूह ...
भटकन ही भटकन
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भटकन ही भटकन

रामनारायण सुनगरिया भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) ******************** यह ऐसी स्थिति होती है कि कोई भी मृगमरीचिका की तरह दिग्‍भ्रमित होकर इधर-उधर डोलता रहता है। कुछ भी निर्णय लेने में अपने आपको अक्षम पाता है। किसी भी स्थिति में उसे विश्‍वास अपने घेरे में नहीं ले पाता। हर जगह अनिश्‍चय ही अनिश्‍चय प्रतीत होता है। किसी भी व्‍यक्ति, किसी भी सिद्धान्‍त, किसी भी परम्‍परा, किसी भी हालात इत्‍यादि पर वह स्‍पष्‍ट स्थिरता नहीं रख पाता है। इन अदृश्‍य बन्धनों में हम ऐसे जकड़ते चले गए। उन कारणों को ज्ञात करना आज अत्‍यावश्‍यक प्रतीत होता है तथा उन पर अंकुश लगाना हर विचारवान नागरिक का सामाजिक दायित्‍व हो गया है। आज जहॉं-जहॉं छोटे-बड़े स्‍वार्थपरक समूह गठित हो गए है, जो स्‍वलाभ के लिए समाज के शाश्‍वत मूल्‍यों को दीमक की तरह चाट रहे हैं। इनकी सक्रियता हर क्षेत्र में व्‍याप्‍त होती जा रही है। धर्मो के विशेषज...
सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को
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सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिट्ठी ना कोई संदेश, इस दिल को लगा के ठेस कहाँ तुम चले गए....? हर दिल अजीज, उम्दा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत सर आज आप हमारे बीच नहीं हैं ख़बर सुनने के बाद ना जाने कितनी बार मेरी आँख नम हुई गला रुंध सा गया! मेरी मन: स्थिति कुछ भी लिखने की नही है लेकिन आपकी इस आत्महत्या ने मानव जाति के लिए जो सवाल छोड़ें हैं उसको लिखना भी जरूरी लग रहा है! एक पूरा जीवन जो इस धरा पर आने में सतरंगे सपनों से लेकर नौ माह का खूबसूरत समय लेता है, अचानक ऐसी कौन सी विवशता, लाचारी, दुख, दर्द इंसान को घेर लेता है कि जिंदगी जीने से ज्यादा मौत प्रिय लगने लगती है! हर कोई सवाली है इस वक्त कि आखिरकार ऐसी क्या पीड़ा ऐसी कौन सी मानसिक विचलन मन में रही होगी कि सुशांत सिंह राजपूत जैसी शख्सियत ने मौत को गले लगाया? क्यों अचानक अपनों को रोता विलखता छोड़ कर इंसान चल देत...
रक्तदान दिवस
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रक्तदान दिवस

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** दान की महत्ता क्या होती है यह सनातन धर्म से अधिक कौन जानेगा? हमने अपना तन, शरीर, सर्वस्व देकर भी शरणार्थी की रक्षा की है। राजा शिवि ने एक कबूतर की जान बचाने के लिए अपना पूरा शरीर काट काट कर बाज को दान कर दिया। राजा बलि ने संपूर्ण सृष्टि तथा स्वयं को भी भगवान वामन अवतार को दान किया। ऋषि दधीचि ने जीवित ही अपनी रीढ़ की हड्डी का दान किया जिससे वज्र का निर्माण होकर मानव समाज की रक्षा हुई। इसी प्रकार मानव कल्याण के लिए रक्तदान का भी विशेष महत्व है। भारत जैसे बड़े देश में रक्त की उपलब्धता एक बहुत बड़ा विषय है। एक्सीडेंट, चिकित्सा, सर्जरी, आदि हेतु भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है जबकि हम चिकित्सालय व अन्य सभी संस्थाओं के माध्यम से ७५ लाख यूनिट ही एकत्रित कर पाते हैं। कई परिवार रक्त की अल्पता के कारण उजड़ जात...
भारतीय जीवन में रचा बसा है पर्यावरण
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भारतीय जीवन में रचा बसा है पर्यावरण

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** हमारे पूर्वज सृष्टि के आरम्भ से ही प्रकृति की लय, ताल में रहते थे। जीव जंतुओं, पेड़ पौधों से उनका इतना गहरा आत्मीय संबंध जुड़ा था कि वे उनसे संवाद कर सकते थे। उन्होंनें प्राकृतिक उपादानों को देवी देवताओं की पदवी देकर पूजा अर्चना करके सदैव उनके प्रति सम्मान दर्शाया। उपनिषद ने वृक्ष को ब्रह्म कीसंज्ञा दी है और, वृक्षो रक्षित रक्षितः, जैसा सार्थक वाक्य रचा। हमारा प्राचीन साहित्य ,अध्यात्म लोकविश्वास वृक्षों से जुड़ा है। नारियल को श्रीफल कहा गया है। वट वृक्ष की पूजा, पीपल की पूजा ,आँवले की पूजा भारतीय नारियों के जीवन का अभिन्न अंग रहा है। भारतीय चिंतन में धरा को मातृशक्ति के रूप सेंपूज्यनीय माना गया है और मनुष्य को उसका पुत्र। माता भूमि पुत्रोsहं पृथिव्याः। यजुर्वेद में कहा गया है :-                                                 ...
चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना
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चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                     कभी यह गाना हमारे बहुत ही अजीज अच्छू बाबू (श्री अच्छेलाल राजभर) प्रायः गुनगुनाया करते थे। आज सुबह-सुबह अच्छू बाबू की याद आयी और यह गीत अनायास ही मेरी जुबान पर आ गया। मन बड़ा बोझिल हुआ। आज इस कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण जो पूरे देश में भारतीय गरीब मजदूरों का देश के कोने-कोने से पलायन हो रहा है यह काफी दर्द भरा एवं खौफनाक मंज़र है। यह मंजर कभी हमारे पुरनियों ने १९४७ में भारत विभाजन के दौर में अपने आंखों से देखा था। उसमें से श्री लालकृष्ण आडवाणी जी जैसे महानुभाव भी अभी हैं, जो विभाजन में यहां आ गए थे। उस खौफनाक मंज़र को हमलोगों ने तो फिल्मों में ही देखा या सुना है। वह मंज़र देख कर दिल दहल जाता है। आज वही मंज़र जब भारत स्वतंत्र है तब देखने को मिल रहा है। बस अंतर यही है कि...
हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव
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हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** हिंदू साम्राज्य दिनोत्सवम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी का यह दिन कोई सामान्य दिन नहीं था। मुगलों अफगान तुर्कों के अत्याचार भरे शासन के कई दशक बीत जाने के बाद एक हिंदू सम्राट के राज्याभिषेक का स्वर्णिम अवसर है ऐसा समय जब तुर्कों से युद्ध का विचार भी करना, देश में अपराध माना जाता था। राज्य धन संपदा को समाप्त करने वाला माना जाता था। राज्य के वैभव और यश व कीर्ति से समझौता करना माना जाता था। ऐसे प्रतिकूल समय में छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक, मुगलों व तुर्कों के शासन के कब्र में अंतिम कील ठोकने के समान था। देश में यह दिन अनन्य उत्साह से मनाया जा रहा था, कई दशकों बाद एक हिंदू राजा अपने स्वाभिमान से एक बड़े भूभाग पर राज्य कर रहा था, उसका क्षेत्र तो महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश तक सीमित था किंतु शिवाजी राजे की नजरें दिल्ली पर टिकी थी, कई मर...
आपदा और प्रेम
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आपदा और प्रेम

कोरोना ने दिखा दिया कि हम भारतीय सच में प्रेम की परिभाषा ठीक से समझते हैं। दया, करुणा, फ़र्ज़, लगभग हर जगह दिखे। नाम की चाह रखने वालों ने दान खूब किया और तस्वीरों के जरिये दिखाना चाहा कि वो मानवतावादी हैं। होड़ लग गई थी प्रदर्शन करने में। कुछ तो दान लेकर दान देते दिखे। पैकेट किसी के वाहबाही कोई दूसरा ले गया। लेकिन काम तो जोरदार हुआ। जरूरतमंद वंचित तो नहीं रहे। कुछ धूर्त भी निकले। ज़रूरत से ज़्यादा मुफ्त का माल जमा कर लिया। समूचे देश में एकता दिखी। लॉक डाउन में तमाम महानुभाव बोर होते दिखे, उबासी लेते दिखे, छटपटाते दिखे, ग़मगीन दिखे, मलीन दिखे। क्योंकि उनके अंदर प्रेम नहीं था। क्रोध, ईर्ष्या, घमंड, ईगो, के कारण ऐसे लोग प्रेम न कर सके। माँ, पत्नी, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री, मित्रों से दिल खोलकर बातें न कर सके। घर में कार्य करने वालों के प्रति दयालु न बन सके। प्रेमी प्रेमिकाओं ने अपार दुख झेले। मोबाइल...
हमने क्या-क्या देखा
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हमने क्या-क्या देखा

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** जब से हमने कोरोना को देखा ना पूछो, हमने क्या-क्या देखा इंसान में हमने भक्षक को देखा इंसान में हमने रक्षक को देखा इंसान को हमने लूटते देखा इंसान को हमने लुटाते देखा पकवान खाते अमीरों को देखा ठोकरें खाते मजदूरों को देखा धनवानोंं को भंडार भरते देखा गरीबों को रोड़ पर मरते देखा विदेशों से लोगों को आते देखा देश में लोगों को पैदल जाते देखा स्वास्थ्यकर्मी पुलिस और निगम कर्मी के रूप में भगवान को देखा उनसे दुर्व्यवहार करने वाले हैवान को भी देखा लोगों की सेवा करते साधक योगी को देखा स्वस्थ होकर धन्यवाद देते रोगी को देखा दूरदर्शन पर महाभारत व रामायण को देखा दुनिया को व्यायाम और योग में परायण देखा साथ समय बिताते परिवार को देखा बैर भाव की गिरते दीवार को देखा जब से हमने कोरोना को देखा ना पूछो, हमने क्या-क्या देखा . परिचय :-  डॉ. सर्वेश व्यास ...
कोरोना के बाद की दुनिया
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कोरोना के बाद की दुनिया

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** कोरोना, यह शब्द कुछ माह से मन को झकझोर जाता है, इसने मानव सभ्यता की वर्तमान व भविष्य की योजनाओं को उथल पुथल कर के रख दिया। इस संक्रमण के बाद के जन जीवन पर इसका बहुत प्रभाव रहने वाला है, आने वाले कई वर्षों तक हमें संक्रमण से सावधान रहना होगा, प्रदूषण को रोकना और प्रकृति के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विश्व की महाशक्तियों को युद्धक जैविक हथियारों की होड़ को समाप्त करने के विषय में महत्वपूर्ण व कठोर निर्णय लेना होंगे। क्योंकि संदेह यह है कि चीन के वुहान प्रान्त की रासायनिक लैब से फैला यह कोरोना वायरस वैज्ञानिकों द्वारा युद्ध में जैविक हमले के लिए बनाया जा रहा था, इस संदेह को चीन का डब्लूएचओ अधिकारियों को चीन में जांच न करने देना बल देता है। मास्क, सेनेटाइजर, हाथ धोना, दूर रहकर व्यवहार करना ये आम जन जीवन का अंग बन जाएंगे। ...
कोरोना:  सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा
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कोरोना: सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                           भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में शुमार हैं, इसके मूल्य और विश्वास, सत्य, अहिंसा, त्याग सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करते हैं। जन-जन से परिवार, परिवारों से समाज, समाजों से राष्ट्र का निर्माण होता है। अपने देश भारत का निर्माण इसी संकल्पना पर आधारित है। शाश्वत मूल्य, 'अनुव्रत:पितुः पुत्रः' (पुत्र पिता का अनुवर्ती हो) अर्थात निर्धारित कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करने वाला हो। 'सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम' से भारतीय संस्कृति अनुप्राणित है। हमारे यहां कहा गया है कि मनुष्य दूसरों का अध्ययन न कर स्वयं के अध्ययन में समय व्यतीत करे, हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में विचार करे। इस वैश्विक परिदृश्य में कोविड-१९ को हमें सम्मिलित प्रयास से ही अपने इन्हीं प्राचीन शाश्वत म...
सत्य, अहिंसा, त्याग की प्रतिमूर्ति भगवान बुद्ध
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सत्य, अहिंसा, त्याग की प्रतिमूर्ति भगवान बुद्ध

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ वह जन्म भूमि मेरी, वह मातृ भूमि मेरी। वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी। वह युद्धि भूमि मेरी, वह बुद्धभूमि मेरी। वह मातृ भूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी। पंडित सोहन लाल द्विवेदी की यह पंक्तियाँ भारत की संस्कृति व सभ्यता इस तथ्य को उदघाटित कर रही हैं कि तथागत भगवान बुद्ध भारतीय संस्कृति के अधिक निकट हैं। भारतीय संस्कृति और मानव कल्याण के उत्थान के लिए बुद्ध की अहिंसा और सत्य का अतुलनीय योगदान है। सम्पूर्ण विश्व मे सबसे पहले शांति और अहिंसा का पाठ हमारे महान राष्ट्र भारत ने ही पढ़ाया था। अखिल विश्व का सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश, जिसने अपनी सभ्यता व संस्कृति के प्रकाश से सारे जगत को आलोकित किया था। "यूनान मिश्र रोमा मिट गए जहां से, कुछ बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी।" भारत की सुदीर्घ उदात्त विचारों की श्रृंखला का जयघोष क...
मां तो बस मां होती है
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मां तो बस मां होती है

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** बच्चा जब जन्म लेता है तो सबसे पहले मां की गोद को ही अपनी दुनिया समझता है। मां बच्चे को दूध पिला देती है, और वह तृप्त हो जाता है। गोद में अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है। मां का अर्थ है ममता का भाव। मां शब्द सुनकर खुशी होती है। मां तो अपने बच्चे को तब से प्यार करती है, जब बच्चा उसकी कोख में होता है। बच्चे की हर धड़कन में मां का श्वास होता है। बच्चा मां का स्पर्श पहचानता है। ईश्वर द्वारा प्रदत्त अनुपम कृति उपहार है मां ईश्वर नहीं तो ईश्वर ने अपनी जगह मां को ही भेज दिया। मां मामता और वात्सल्य से परिपूर्ण होती है। मां परिवार के नींव का पत्थर होती है, जिस पर परिवार रूपी महल मजबूती से खड़ा रहता है। मां बच्चे को सभ्यता और संस्कृति की घुट्टी पिला-पिला कर बड़ा करती है। मां मैं विनम्रता, दया, त्याग, करुणा क्षमा इत्यादि गुण विद्यमान होते...
माता भूमि:पुत्रो अहं पृथिव्या:
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माता भूमि:पुत्रो अहं पृथिव्या:

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। . परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी निवासी : वाराणसी, काशी शिक्षा : एम ए; पी एच डी (मनोविज...
एक भावनात्मक पत्र
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एक भावनात्मक पत्र

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** प्रियवर, आप और घर पर सब कैसे है? अपना और परिवार का ध्यान रखे। इस वैश्विक महामारी के दौर में घर मे ही रहे, सुरक्षित रहे। इस सदी में पहला ऐसा मौका आया है की घर-परिवार के बीच लम्बे अरसे तक साथ रह सके। अतः प्रतिदिन पकवान बनाएँ, नई-नई डिश, रेसिपी बनाकर, बनवाकर खाएं और प्रेम पूर्वक, आदर सम्मान के साथ खिलाएं, स्वास्थ्य रक्षकों, सफाई कामगारों, पुलिस प्रशासन आदि का सम्मान, सत्कार करें। यही हमारी आप सबकी सांस्कृतिक पहचान और पुरातन संस्कार है। कहावत है - १. धन तो हाथों का मेल है २. रुपया-पैसा तो नाचने - गाने वाले भी कमा लेते है। ३. भिक्षावृत्ति भी धन दिला देती है। क्यों कहा जाता है धन हाथों का मेल है? क्यों कहते है रुपया-पैसा तो नाचने गाने वाले भी कमा लेते है? क्यों कहा गया है - भीख मांगकर भी धन जोड़ा जा सकता है? जब हम स्नान करते है तब साबुन क...
कैंसर के कारक
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कैंसर के कारक

योगी मनोज गर्ग इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** साथियों, पिछले दो दिनों में लगातार भारतीय सिनेमा के दो सितारों का कैंसर से असमय ही देहांत हो गया है। बिगड़ी हुई जीवनशैली में पिछले वर्षों में कैंसर रोग बहुत तेज़ी से पूरे विश्व मे बढ़ते जा रहा है। भारत मे प्रतिवर्ष लगभग १०-१२ लाख लोग कैंसर से ग्रस्त हो जाते है। पंजाब में तो कैंसर के इतने पेशेंट है कि वहाँ से चलने वाली एक ट्रेन का नाम ही कैंसर ट्रेन रख दिया गया है। हर कुछ घर छोड़कर मिलते जाते कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या भयावह स्थिति की और इशारा करती है। क्या कारण है इस भयानक रोग के ....??? क्या सिर्फ तम्बाखू और शराब से ही कैंसर होता है? भारत मे तो बहुत कम महिलाएं इनका सेवन करती है फिर फीमेल कैंसर पेशेंट की संख्या पुरुषों के बराबर क्यों?? एग्रीकल्चर में घातक केमिकल्स का बढ़ता उपयोग बिना केमिकल के अब फल, सब्ज़ी, अनाज की खेती होती ही नह...