राम जब वन को जाते हैं
विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)
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प्रेमी प्रजा की आँखों से
आंसू बह जाते हैं
ह्रदय ह्रदय में बसे राम
जब वन को जाते हैं
मात कौशल्या देख दृश्य
यह करुण पुकार करें
ह्रदय फटा जाता है उनका
कौन् उपाय करें
कोई नहीं जो उनके दुःख
को दूर भागते हैं
यह क्या सीता माई भी
प्रभु राम के संग चली
लक्ष्मण भी संग साथ चले
यह कैसी विकट घड़ी
देने को सांत्वाना नहीं
कोई भी आते हैं
कैकेइ, मंथरा हो रहीं
पुलकित तन मन से
भरत राज कर लेंगे
दूर हुई बाधा हमसे
मुर्छित दशरथ से भी
उनके दिल न् लजाते हैं
परिचय :- विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं य...


















