मनोरमा जोशी
इंदौर म.प्र.
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झिलमिल झिलमिल आई दिवाली,
खुशियों की सौगातें लाई।
बच्चें बूढे सभी के मुख
पर मुस्कुराहट आई।
जब जब दिवाली आती,
मन के दीपक है जल उठते,
स्नेह युक्त दीपक बाती में,
दिल से दिल घल मिल जुड़ते।
झूठी चमक दमक में दबकर,
दम दम जी दम फूल रहा,
तेल बिना सूखी हैं बाती,
जीवन पल पल झूल रहा,
क्या मालुम कब कोन बुझेगा,
बहकी बहकी बयार चल रही,
दीपक द्धष्टी दिशाहीन हैं,
कैसे दीप जलेगा मन का,
वातावरण विषाक्त चहूँदिश
कंपित दीपक है जनमन का।
हालातों पर गौर करों अब
कैसे जन का दीप जलें फिर,
दानवता का दमन करों अब,
मानवता दिनमान फलें फिर।
घर समाज देश हित सारे
दीपों की रौनक बढ़ जावे।
राजी हो लक्ष्मी गणेश,
पूजन से पूरन हो काज,
दीपों की आभा से निखरें,
तन मन घन तीनोँ के साथ।
आशा प्रदीप जन मानस का,
कल पुनः प्रजित प्रजलित होगा,
रात के बाद दिन होता है
मंगल प्रभात प्रस्फुटित होगा।
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