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Tag: सुधीर श्रीवास्तव

कुहासे को चीरता गीत संग्रह ‘भर दो प्यार वतन में’
पुस्तक समीक्षा

कुहासे को चीरता गीत संग्रह ‘भर दो प्यार वतन में’

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.) मेरा मानना है कि मानव भाषा विकास के साथ ही गीत का जन्म हुआ होगा। गीत संप्रेषण की वह विधा है जो मानव मस्तिष्क में उपजे भावों को गेयता की परिधि में रखकर या फिर यूँ कह लें कि स्वर संवाद श्रृंखला में पिरोकर किसी अन्य तक पहुँचाने का उचित एवं प्रभावी तथा हृदयगम्य माध्यम है। गीत के जन्म का कोई सही समय साहित्य के क्षेत्र में निश्चित नहीं किया गया, किन्तु गीत मानव अभिव्यक्ति होने के कारण मानव भाषा विकास के साथ ही माना जाना उचित होगा। वर्तमान में गीत शैली बिना संगीत के अधूरी या फिर यूँ कह लें कि नीरस सी लगती है जिसके कारण गीत का महत्व संगीत के साथ ही बेहतर लगता है। ‌ जीवन के हर क्षेत्र में मानव की जिजीविषा, समर्पण, दायित्व बोध और ईमानदारी का का बड़ा योगदान होता है। जिसे इसका आत्मज्ञा...
यमराज मेरा यार- हास्य व्यंग्य काव्य संग्रह
पुस्तक समीक्षा

यमराज मेरा यार- हास्य व्यंग्य काव्य संग्रह

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : संजीव कुमार भटनागर सुधीर श्रीवास्तव द्वारा रचित काव्य संग्रह "यमराज मेरा यार" एक अनूठी साहित्यिक प्रस्तुति है, जो अपने शीर्षक से ही पाठकों की जिज्ञासा को जागृत कर देता है। आमतौर पर यमराज को मृत्यु, भय और संहार का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस संग्रह में यमराज एक अलग ही रूप में प्रस्तुत किए गए हैं – मानो वे कवि के सखा हों, जिनसे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर संवाद किया गया हो। सुधीर श्रीवास्तव की भाषा सहज, प्रवाहमयी और व्यंग्यात्मक चुटकी से भरपूर है। वे गहरी बातों को भी हल्के-फुल्के शब्दों में कहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। कहीं-कहीं पर दार्शनिकता का भी पुट मिलता है, जो कविता को और अधिक प्रभावशाली बनाता है। "यमराज मेरा यार" संग्रह केवल मृत्यु और यमराज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन, समाज, राजनीति, नैतिकता औ...
इक तेरे भरोसे पे
पुस्तक समीक्षा

इक तेरे भरोसे पे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव सरल, सहज, मृदुभाषी, बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी कवयित्री मीनाक्षी सिंह की 'इक तेरे भरोसे पे' के रूप में तीसरा संग्रह है। इसके पूर्व आपका 'बातें जो कही नहीं गई' और 'निर्मल उड़ान' ने उनकी साहित्यिक पहचान को काफी हद तक स्थापित कर दिया है। ऐसे में प्रस्तुत संग्रह के प्रकाशन के बाद उनकी रचनाओं पर चर्चा परिचर्चा होना स्वाभाविक ही है। हालांकि मैं उनकी प्रथम पुस्तक की समीक्षा करते हुए जो महसूस किया था, वह काफी हद तक सफल भी मान सकता हूँ। खेल, समाज सेवा और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच साहित्य में समर्पण उनका जुनून ही कहना उचित होगा। जो उनके व्यक्तित्व को और निखार ही रहा है। प्रस्तुत काव्य संग्रह के प्रथम खंड-भक्ति भाव में पुस्तक के नामकरण वाली पहली रचना है, जिसमें उनकी अनंत सत्ता में आस्था, विश्वास...
स्लोगन
कविता

स्लोगन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** शिक्षा का ना कोई मोल। जीवन बन जाये अनमोल।। बाँटो सदा ज्ञान का प्रकाश। मिलेगा मन को संतोषाकाश।। बाँटो जितना बढ़ेगा उतनासंग मिले सम्मान भी उतना।। शिक्षक हमको शिक्षा देते। जीवन की खुशियां भी देते।। हर जन-मन एक वृक्ष लगाए। हरी-भरी धरती मुस्काए।। प्रदूषण को दूर भगाओ। जन-जीवन को स्वस्थ बनाओ।। ध्वनि प्रदूषण मत फैलाओ। बीमारी को दूर भगाओ।। जल जंगल जमीन बचाओ। जिम्मेदारी आप निभाओ।। कंक्रीट के जंगल बढ़ते। कैसा मानव जीवन गढ़ते।। ताल तलैया कुँए खो रहे। खुशहाली के दौर रो रहे।। बाग-बगीचे कहाँ बचे हैं। केवल अब इनके चर्चे हैं।। अब परिवार नहीं मिलते हैं। बच्चे बालकपना खोते हैं।। दादा-दादी, नाना-नानी। इनकी केवल बची कहानी।। पति पत्नी भी नये दौर में। रहना चाहें अलग ठौर में।। दौर हाइवे आ...
चिंतन-मनन कराती कविताओं का संग्रह है ‘हिमकिरीट’
पुस्तक समीक्षा

चिंतन-मनन कराती कविताओं का संग्रह है ‘हिमकिरीट’

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.)  'हिमकिरीट' हिंदी काव्य संग्रह के प्रकाशन की योजना और संग्रह के हाथों में आने तक की प्रत्येक गतिविधि का मैं गवाह हूँ। संवेदनशील और सृजन के प्रति पूरी चैतन्यता का उदाहरण भूपेश प्रताप सिंह का प्रस्तुत संग्रह के रूप में सामने आया। कवि ने अपने संग्रह की रचनाओं में प्रकृति, संवेदना, अध्यात्म और मानव जीवन की जटिलताओं को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। 'हिमकिरीट' हिम यानी बर्फ, और किरीट यानी मुकुट-जो शीतलता, ऊँचाई और सौंदर्य के संयोजन का बिंब के रूप में जाना जाता है, उसे शीर्षक देना किसी बड़े का आदर करने जैसा है l प्रस्तुत संग्रह को पढ़ते समय आप महसूस करेंगे कि इसमें शब्द- चित्रों के माध्यम से भावनात्मक विचारों का अद्भुत संगम है, जिसका अनुभव आत्मचिंतन और अनुभूति करने को विवश...
सतगुरु चालीसा
चौपाई

सतगुरु चालीसा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** -: दोहा :- गुरुवर की कर वंदना, नित्य झुकाऊँ माथ। गुरुवर विनती आप से,रखना सिर पर हाथ।। -: चौपाई :- सतगुरु का जो वंदन करते। ज्ञान ज्योति निज जीवन भरते।।१ गुरू ज्ञान का तोड़ नहीं है। इससे सुंदर जोड़ नहीं है।।२ गुरु वंदन का शुभ दिन आया। सकल जगत का उर हर्षाया।।३ गुरु चरनन में खुशियाँ बसतीं। सुरभित जीवन नदियाँ रसतीं।।४ गुरु दरिया में आप नहाओ। जीवन अपना स्वच्छ बनाओ।।५ गुरुवर जीवन साज सजाते। ठोंक- पीटकर ठोस बनाते।।६ पाठ पढ़ाते मर्यादा का। भाव मिटाते हर बाधा का।।७ गुरू कृपा सब पर बरसाते। समय-समय पर गले लगाते।।८ गुरुवर जीवन मर्म बताते। नव जीवन की राह दिखाते।।९ साहस शिक्षा गुरुवर देते। जीवन नैया जिससे खेते।।१० गुरू शिष्य का निर्मल नाता। जीवन को है सहज बनाता।।११ भेद-भाव नहिं गुरु ह...
माँ ही क्यों लिखूँ?
कविता

माँ ही क्यों लिखूँ?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** एक बड़ा सवाल मैं माँ ही क्यों लिखूँ? क्या सिर्फ इसलिए कि उसने मुझे अपने गर्भ में प्रश्रय दिया, रक्त मज्जा से मुझे आकार दिया, दिन रात मेरा बोझ नौ माह तक ढोया या फिर इसलिए कि मुझे जन्म देने के लिए खुद को दाँव पर लगा दिया। या फिर अपना दूध पिलाया, खुद गीले में सोई, मुझे सूखे में सुलाया, हर पल मेरे लिए सचेत रही या फिर इसलिए कि मेरी खातिर अपने सारे दुःख दर्द भूली रही, अपनी ख्वाहिशें होम करती रही। पाल पोस्टर बड़ा किया। या फिर इसलिए कि माँ है हमारी जो मेरे हंँसनें पर हँसती रही मेरे रोने पर रोती रही, मेरी छोटी सी खुशी के लिए अपनी बड़ी से बड़ी खुशी भी पीछे ढकेल देती अपना सब कुछ भूली रहती। या फिर इसलिए कि मैं उसका सिर्फ अंश नहीं उसका ही निर्माण हूँ, वो पहाड़, मैं उसका मात्र रजकण हूँ। या फिर इसलिए क...
छंदों की गंगोत्री है ‘नवोन्मेष’
पुस्तक समीक्षा

छंदों की गंगोत्री है ‘नवोन्मेष’

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.) वरिष्ठ साहित्यानुरागी डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' का छंदबद्ध काव्य संग्रह 'नवोन्मेष' के अवलोकन के साथ ही यह महसूस हुआ कि अपने नाम के अनुरूप ही संग्रह अपने विशिष्टताओं का महाकुंभ जैसा है। अपने "दो शब्द" में कृतिकार का शब्द भावों के बारे में विचार है जब कोई भाव रचनाकार के दिल के तार को झंकृत कर उसके दिमाग तक पहुँचता है, तब वह अपनी भावाभिव्यक्ति को शब्द रूप देता है। नवोन्मेष का अर्थ है नया उत्थान, नया तरीका, नई खोज या कुछ करने की नई पद्धति जो निराली हो और पहले से बेहतर हो। इसी को पोषित करने के उद्देश्य से "नवोन्मेष (छंदबद्ध काव्य संग्रह)" की परिकल्पना की गई है और इसे धरातल पर उतर गया है। आचार्य ओम नीरव जी का मानना है कि डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' जी‌ काव्यकला में पारंगत छंदबद्ध...
मातु शारदे
छंद

मातु शारदे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सरसी छंद (१६, ११) मातु शारदे मैया मेरी, देती मन को जान। शीश हाथ पर उसका मेरे, बढ़ता मेरा ज्ञान।। सच्चाई के पथ चलने की, देती हमको सीख। निज के श्रम से सब मिलता है, दे ना कोई भीख। मानवता का पथ ही आगे, करता नव निर्माण। सुख सुविधाएँ बढ़ती जाती, होता सबका त्राण। माना मैं मूरख अज्ञानी, इसमें क्या है दोष। कभी कहाँ मुझको आता है, इस पर कोई रोष। दूर करेगी हर दुविधा माँ, इसका मुझको बोध। जिसको भी चिंता करना है, वो ही कर लें शोध।। ज्ञान ज्योति माँ सदा जलाती, नित नित देती ज्ञान। समझ रही है मैया मेरी, मैं मूरख अंजान। कालिदास मूरख को भी तो, बना दिया विद्वान । घटा मान विद्योतमा का, सभी रहे हैं जान।। दंभी रावण की मति फेरी, उसका हुआ विनाश। और विभीषण को मैया पर, था पूरा विश्वास। कंस और श्री कृष्ण कथा ...
यादगार रायबरेली यात्रा
संस्मरण

यादगार रायबरेली यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  रायबरेली काव्य रस साहित्य मंच का प्रथम भव्य राष्ट्रीय आयोजन दिनांक ५ मई को 'कलश उत्सव लान' में आयोजित किया गया। जिसमें मुझे बतौर संरक्षक जाना ही था। हालांकि स्वास्थ्य कारणों से मैं खुद बहुत आश्वस्त नहीं हो पा रहा था। लेकिन अग्रज स्वरूप संस्थापक शिवनाथ सिंह शिव जी के स्नेह आग्रह को ठुकराना भी नहीं चाहता था। आयोजन की तैयारियों को लेकर आभासी संवाद निरंतर हो ही रहा था। गोरखपुर से जब आ. अग्रज अरुण ब्रह्मचारी जी, अभय श्रीवास्तव जी एवं लक्ष्मण सरीखे प्रिय अनुज डॉ. राजीव रंजन मिश्र ने जब आयोजन में शामिल होने की सहमति जताई तो मेरी उम्मीदें बढ़ गईं। क्योंकि राजीव जी और अभय जी के साथ मैं अन्य साहित्यिक आयोजनों में पहले भी जा चुका था, दादा अरुण जी के साथ विभिन्न आयोजनों का भागीदार बनने से उनका अग्रजवत स्नेह हमेशा मु...
कर्मों का बहीखाता
कविता

कर्मों का बहीखाता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सब जानते हैं जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल पायेंगे गीता का यही ज्ञान, है जीवन का विज्ञान। कौरव पांडव का उदाहरण सामने है रावण विभीषण, सुग्रीव बाली के बारे में हम सब जानते हैं कंस का भी ध्यान है या भूल गए। सबका बहीखाता चित्रगुप्त जी ने सहेजा, किसी को राजा तो किसी को प्रजा तो किसी रंक बनाकर भेजा अमीर गरीब का खेल भी मानव का नहीं कर्मानुसार उसके बहीखातों का खेल है। यह और बात है कि हमें अपने पूर्व जन्म या जन्मों का ज्ञान नहीं होता, इसीलिए अपने कर्मों का भी हमें पता नहीं होता। और हम सब इस जन्म के साथ ही पूर्वजन्मों के कर्मों का फल पाते हैं। क्योंकि हमारे कर्मों का बही खाता निरंतर भरता रहता है, उसी के अनुसार कर्म फल का निर्धारण होता है और हमें अच्छा बुरा कर्म फल मिलता है। वर्...
कहाँ है आजादी
हास्य

कहाँ है आजादी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये कैसी आज़ादी है? जहां हमें तो कोई आज़ादी ही नहीं है, कदम-कदम पर अंकुश है नियमों की बंदिशें, कानूनों का डर है अपराध, हिंसा की न छूट है साम्प्रदायिक दंगा फैलाने की भी कहाँ आज़ादी है? लूटमार, हत्या, बलात्कार की बात क्या करें भ्रष्टाचार, बेईमानी और धोखाधड़ी की भी तो तनिक न छूट है। सब कहते हैं देश शहीदों की शहादत से मिला है, तो भला इसमें मेरा क्या दोष है? उन्हें शहीद होने का कीड़ा कुलबुलाया था पर शहीद होकर भला क्या पाया था, कौन याद करता है आज उन्हें ईमानदारी से कोई तो बताए हमें। वे सब सिर्फ़ औपचारिकता वश ही याद किए जाते, बहुत हुआ तो पुतला बनाकर खड़े कर दिए जाते हैं सौ दो सो मीटर जगह घेरने के अलावा सिर्फ धूल-धक्कड़ से नहाते हैं , जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हर समय तने रहते हैं, हमें लगता वे अभी तक श...
मधुब्रत गुंजन : एक अनूठा उपहार
पुस्तक समीक्षा

मधुब्रत गुंजन : एक अनूठा उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.) वरिष्ठ शिक्षक/कवि/संपादक/छंद प्रणेता डॉ. ओम प्रकाश मिश्र 'मधुब्रत'जी के काव्य संग्रह "मधुब्रत गुंजन" का प्रारंभ ही कवि के परिचय के बाद उनकी "साहित्य के प्रति अनुराग एवं लेखन की प्रेरणा...." में उनके साहित्य के प्रति अनुराग आरंभ, रचनाएं, सम्मान एवं पुरस्कार, शैक्षणिक सम्मान और पुरस्कार, रचनाओं के प्रकाशन, संप्रति एवं शैक्षणिक कार्य स्थल के बारे में विस्तार से लिखा गया। इसके प्रारंभ में ही डॉ. मधुब्रत के साहित्य के प्रति बढ़ते अनुराग, उन्हें प्राप्त होने वाले सानिध्य, प्रोत्साहन और वरिष्ठ, श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ने और उसमें रहने का पता चलता है। प्रसाद,पंत, निराला, महादेवी वर्मा, दिनकर, डॉ. राम कुमार वर्मा, राम नरेश त्रिपाठी, हरिवंशराय बच्चन, प्रोफेसर क्षेम के साहित्य से प्र...
देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की
पुस्तक समीक्षा

देशप्रेम और देशभक्ति का पर्याय – चंदन माटी मातृभूमि की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक- सुधीर श्रीवास्तव वरिष्ठ कवि डॉ. रवीन्द्र वर्मा जी की पुस्तक "चंदन माटी मातृभूमि की" कुछ माह पूर्व ही मुझे प्राप्त हो गई थी। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से कुछ लिखने का विचार आगे बढ़ता रहा। अब जब नवोदय परिवार ने यह अवसर उपलब्ध कराया, तो थोड़ा विवश हो गया। जो अच्छा ही है कि एक विचार को अब साकार करने का समय आ ही गया। देशप्रेम और देशभक्ति रचनाओं का १७७ पृष्ठीय १०८ रचनाओं वाले काव्य संग्रह "चंदन माटी मातृभूमि की" को रचनाकार ने "अपने भारत राष्ट्र को समर्पित सभी बलिदानियों, देशधर्म व स्वतंत्रता को लड़े वीर क्रांतिकारियों, इस देश की अखंडता व स्वाभिमान के लिए जीवन समर्पित करने वाले सभी महान पुरुषों को श्रद्धावनत नमन करते हुए समर्पित किया है। विद्या वाचस्पति मानद उपाधि प्राप्त रवीन्द्र वर्मा के इस पुस्तक की भूमिका म...
भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की
पुस्तक समीक्षा

भावों की पोटली है : पोटली …एहसासों की

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव पिछले दिनों जब अनुजा भारती यादव 'मेधा' का एकल कविता संग्रह "पोटली ...एहसासों की" स्नेह स्वरुप प्राप्त हुई थी, तो बतौर कलमकार से अधिक अग्रज के तौर पर मुझे अतीव प्रसन्नता का बोध हुआ था, तब मन के कोने में यह जिज्ञासा, उत्सुकता अब तक बनी रही कि मुझे कुछ तो अपने विचार व्यक्त करने ही चाहिए। वैसे भी काफी समय से भारती से आभासी संवाद और आभासी मंचों, पत्र पत्रिकाओं में पढ़ने सुनने का अवसर जब-तब मिल ही जाता है। सबसे अधिक प्रसन्नता तब हुई, जबसे यह ज्ञात हुआ कि मेधा के पिता (श्री राम मणि यादव जी) स्वयं एक वरिष्ठ कवि साहित्यकार हैं। तब से लेकर अब तक उनका स्नेह आशीर्वाद मिलता रहने के साथ संवाद भी जब तब हो ही जाता है। गद्य, पद्य दोनों विधाओं में सतत् सृजनशील संवेदनशील मेधा पारिवारिक दायित्...
संघर्ष
लघुकथा

संघर्ष

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य के अभाव में उपजी परिस्थितियों के चलते लीला को अपनी बच्ची के लिए घर छोड़कर निकलना पड़ा। बच्ची को साथ लेकर वह अपनी एक सहेली रमा के घर पहुंची, और अपनी पीड़ा कहते हुए रो पड़ी। रमा ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि जब तक उसके रहने का प्रबंध नहीं हो जाता तब तक वह यहीं रहे। उसने पति से कहा कि लीला के लिए काम का प्रयास करें। कई दिनों के प्रयासों के बाद रमा के पति के माध्यम से लीला को काम तो मिल गया। पति से बात करके रमा ने लीला को अपने ही घर में एक कमरा रहने के लिए दे दिया। लीला की बच्ची छोटी थी, इसलिए उसने ना नुकूर भी नहीं किया। वैसे भी अभी उसके हाथ में इतने पैसे भी नहीं है कि वो कहीं अलग कमरा लेकर रह सके। शुरुआती संघर्ष के बाद पढ़ी लिखी लीला के काम से उसके मालिक इतना प्रसन्न थे कि उसकी...
रिश्तों के जज्बात
कविता

रिश्तों के जज्बात

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी होता है या नहीं पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है, आपको विश्वास हो या न हो क्या फर्क पड़ता है। आखिर ये कैसा रिश्ता है किस जन्म का संबंध है, संबंध है भी या नहीं ये मैं कह भी नहीं सकता। क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का मैं न हूं कोई ज्ञाता। पर आज रिश्ता है हमारा उससे जिसे देखा तक नहीं तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं। फिर भी वो जानी पहचानी लगती है इतनी छोटी होकर भी नानी दादी सी लगती है। वो चाहे जितनी दूर है हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं ये तो कहना मुश्किल है। पर वो आसपास है घर के आंगन में फुदकती लगती है, हंसाती और रुलाती है, बेवजह सिर खाती है। अपने छोटे होने का लाभ उठाने का मौका भी वो कहाँ छोड़ती है, अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है। हमसे अपने रिश्ते बताती है जाने क...
ईश्वरीय विधान
संस्मरण

ईश्वरीय विधान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  साहित्यिक क्षेत्र में ज्यों-ज्यों मेरे कदम बढ़ते जा रहे हैं, संबंधों का दायरा भी उतना ही बढ़ता जा रहा है। जिसके अनेक बहाने भी होते हैं। जिसे अप्रत्याशित तो नहीं कहूँगा। क्योंकि साहित्यिक यात्रा में ऐसा होता ही रहता है। कभी हम किसी अंजान शख्स से आभासी माध्यम से बातचीत करते हैं, तो कभी किसी ऐसे ही अंजान शख्स का फोन आ ही जाता है। यूँ तो अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से कभी न कभी पहली बार ये सिलसिला शुरू ही होता है, यह और बात है, जो आगे भी जारी रहता है और बहुत बार नहीं भी रह पाता। इसकी भी अपनी पृष्ठभूमि, कारण और परिस्थितियां होती है। ऐसा ही कुछ १० मई' २०२४ को पड़ोसी राज्य की राजधानी से एक उच्च शिक्षित युवा कवयित्री से पहली बार साहित्य की एक विधा के बारे जानकारी के उद्देश्य से आभासी संवाद हुआ। सामान्य शिष्टाचार...
पूर्वजन्म का नव अनुबंध
कविता

पूर्वजन्म का नव अनुबंध

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी हो सकता है बिल्कुल हो सकता है और यकीनन होता ही है। हमें खुद इसका अहसास भी होता है जीवन का कोई भी पहर हो जाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ हो बोध करा ही देता है हमें पूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों का और जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का। जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससे जिसे हम आप जानते पहचानते तक नहीं कभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहीं न नाम का पता, न शक्ल सूरत का कोई चित्र न दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध। फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता है और बन जाता है एक रिश्ता जिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत से और अटूट विश्वास करने लगते हैं पिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़ संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैं इस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरह ...
मृत्यु मेरी दोस्त
कविता

मृत्यु मेरी दोस्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है? आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है? आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है? तेरा सच मुझे पता है तुझे आना नहीं होता है तू तो हरदम सिर पर सवार रहती है सिर्फ डराती, धमकाती है पर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है। तो सुन तू इतना हैरान परेशान न हो तू स्वतंत्र है जो करना है कर आने की धमकी देकर मुझे मत डरा तुझे अब, कहां आना है तू तो हमारे जन्म के साथ ही सुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही है बड़े असमंजस में समय काट रही है। उहापोह से बाहर निकल जो करना है खुशी मन से कर अपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करो मैं तुझसे डरता नहीं हूं, इसलिए बेवजह समय जाया न कर, डरने का कोई कारण भी तो नहीं है। आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ है फिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है? अच्छा है जब त...
आभासी रिश्तों की उपलब्धि
संस्मरण

आभासी रिश्तों की उपलब्धि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  २४ अप्रैल २०२४ की सुबह लगभग साढ़े दस बजे सात समंदर पार खाड़ी देश से आभासी दुनिया की मुँहबोली बहन का फोन आया। प्रणाम के साथ उसके रोने का आभास हुआ, तो मैं हतप्रभ हो गया है। जैसे तैसे ढांढस बंधाते हुए रोने का कारण पूछा तो उसने किसी तरह रुंधे गले से बताया कि भैया, आपके स्नेह आशीर्वाद को पढ़कर खुशी से मेरी आंखे छलछला आई, मैं निःशब्द हूं, बस रोना आ गया, समझ नहीं पा रही कि मैं बोलूं भी तो क्या बोलूं? रोते-रोते ही उसने कहा यूँ तो आपकी आत्मीयता का बोध मुझे कोरोना काल से है, जब मैं कोरोना से जूझ रही थी और आपने उस समय जो आत्मीय संबंध और संबोधन दिया और आज भी उस स्नेह भाव को मान देकर मुझे गौरवान्वित कर रहे है। पर आज तो आपके स्नेह आशीर्वाद की इतनी खुशी पाकर रोना ही आ गया। हुआ ये कि लगभग एक सप्ताह पूर्व जब उसने मुझे ...
वसंत पंचमी
कविता

वसंत पंचमी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** वसंत पंचमी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, ज्ञान की देवी सरस्वती और धन की देवी लक्ष्मी का अवतरण दिवस भी वसंत पंचमी को हुआ था, इस दिन ज्ञान की देवी माता सरस्वती का कलश स्थापन‌ कर पूजन, आरती किया जाता है, वसंत पंचमी पर वाणी की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती की पूजा, प्रार्थना का विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और देवताओं की प्रतिनिधि विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी हैं, माता सरस्वती की पूजा आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित है, माता के रहस्योद्घाटन का दिन भी वसंत पंचमी को ही माना जाता है। ये दिवस सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, माता सरस्वती को वागेश्वरी, भगवती, शारद...
अयोध्या से अयोध्याधाम
कविता

अयोध्या से अयोध्याधाम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज जब अयोध्या में राममंदिर का भव्य निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा का इंतजाम हो रहा है, तब अयोध्या के चहुंमुखी विकास का कार्य भी बड़े जोर शोर से आगे बढ़ रहा है। आज अयोध्या को दुनिया में अपनी गरिमा, उचित पहचान, स्थायित्व और सम्मान प्राप्त हो रहा है, राम और मंदिर-मस्जिद विवाद से कल तक अयोध्या जानी पहचानी जाती थी, आज अयोध्या राम, भव्य राम मंदिर और चहुँमुखी विकास से पहचानी जाने लगी है, राम जी के विग्रह की अब जब प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल रही है। कोई माने या माने दुनिया तो मान रही है अयोध्या अब सिर्फ राममंदिर से नहीं अयोध्याधाम बन खूब इतराने लगी है। देश ही नहीं दुनिया भर में अब अयोध्याधाम अपनी चर्चा हर रोज हर पल कराने लगी है, बिना किसी घोषणा के ही अब तक की अयोध्या अयोध्याधाम ब...
प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं
कविता

प्राण प्रतिष्ठा और दुष्ट आत्माएं

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आज एक बार फिर यमराज का बिना किसी सूचना के मेरे घर आगमन हुआ, मैं पहले से ही दुखी था, अब और दुखी हो गया जैसे किसी ने मेरे घावों पर नमक रगड़ दिया। मैं कुछ कहता सुनता उससे पहले शायद उसने मेरे दर्द को महसूस कर लिया और बड़े आत्मीय भाव से कहने लगा, प्रभु! आप परेशान हो मुझे पता है पर आपकी परेशानी का सीधा सा उत्तर मेरे पास है। मैंने संयम बनाए रखा और बड़े प्यार से कहा यूं तो मैं परेशान बिल्कुल नहीं हूँ फिर भी तुम्हें यदि ऐसा लगता है तो तुम ही बता दो, मेरी परेशानी का हल दे दो। यमराज बोला-मुझे चेहरा और मन पढ़ना आता है यह अलग बात है कि मेरा राम मंदिर, निमंत्रण और राजनीति से दूर-दूर का नहीं नाता है। मैं बस रामजी को और रामजी मुझे जानते हैं मेरी वजह से थोड़ा-थोड़ा आपको भी पहचानते हैं, फिर भ...
अनुभवों संग पक्षाघात बना  वरदान
संस्मरण

अनुभवों संग पक्षाघात बना वरदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** संस्मरण (द्वितीय पक्षाघात का एक वर्ष) गत वर्ष ११-१२ अक्टूबर की रात जब सोया तब क्या पता था कि सुबह का अनुभव इतना पीड़ादायक होगा। लेकिन ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही सबकुछ चलता है और सुबह जब होकर उठने को हुआ तब मैं एक बार फिर मुझे पक्षाघात का शिकार हो चुका था। तब से लेकर आज एक वर्ष पूरा होने तक मुझे पीड़ा के अलावा अनेकानेक खट्टे-मीठे अनुभवों से दो चार होना पड़ा। यह अलग बात है कि अभी पता नहीं है कि मुझे इस पीड़ा से कब मुक्ति मिलेगी। लेकिन इस पीड़ा के बीच जिस कटु अनुभवों से दो चार होना पड़ा, उसने पक्षाघात से भी ज्यादा पीड़ा दी। ईमानदारी से कहूं तो विश्वास कर पाना खुद ही कठिन हो रहा है, मगर जो खुद महसूस किया, जिसका खुद साक्षी हूं, जो मेरे साथ हुआ है, उसे नजरंदाज कैसे कर सकता हूं और फिर नज़र अंदाज़ कर देने भर स...