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Tag: अर्चना “अनुपम क्रान्ति”

भारत की आबादी
हास्य

भारत की आबादी

अर्चना "अनुपम क्रान्ति" जबलपुर (मध्यप्रदेश) ******************** पेट में ना हो दाना फिर भी है ईमान जियादी (विकासवादी) हम नेक काम करते हैं करके बाली उमर में शादी। बढ़ियां लगती सुकुमार सी बाला छः-छः बच्चे लादी, भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। हम दो और दो से चार भले फिर चार से हो गए चौदह। कुछ प्यारे बच्चे पढ़ गए अपने कुछ रह जाते बोदा, हम फैल रहे हैं ऐंसे जैंसे 'कोविड' और मियादी। भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। हम रख कानून को ताक पे अब नियमों को सारे तोड़ चले बस पाँच और दस सालों के भीतर चीन को पीछे छोड़ चले, चाहे ना पूजे रेडीमेड ना! गांधी जी की खादी, भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी ।। हम भले रहे भूखे-नंगे पर पक्की बात हमारी। चाहे कितनी ही बेटी हों वो लगें न हमको प्यारी, दो बेटे होना बहुत जरूरी बोलें सबकी दादी। भैया दुनिया में सबसे अच्छी भारत की आबादी।। ...
प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’
कविता

प्रकृति के त्रैमासिक ‘नूतन वर्ष’

अर्चना "अनुपम क्रान्ति" जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दे भेंट धरा पर दिव्य गगन चहुँओर छत्र बिखराता है। जैसे अवनि में स्वयं उतर नववर्ष मनाने आता है।। नटखट खग छोड़ देश अपना यहां कलरव गान सुनाते हैं। और घास-पात की ओसों से करतब कर खुशी जताते हैं।। इस धुँध में भी मकरंद पुष्प की हो सुगंध भीनी भीनी। वाह सुबह खिले जब धूप; ताप सुखमय प्रकृति धीमी-धीमी।। सरसों के पियरे बलखाकर नृत्य जता कुछ कहते हैं। आलिंगन गेहूँ की बाली का कर बधाई संग रहते हैं।। और चने मटर की छीमी की उस नोक-झोक के क्या कहने। गेंदा गुलाब और सुमन कई अवतरित हुये जिम संग रहने।। हम भी ऐसे ही मिलजुलकर खुशियाँ हरएक मनायेंगे । इन मूक जीव अथ प्रकृति के नियमों को सतत् निभायेंगे।। है धन्य धरा यह भारत की जहाँ हर मौसम खिल जाते हैं। एक नहीं यहाँ त्रैमासिक; नूतन वर्ष सदा सुख लाते हैं।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक...