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Tag: अशोक शर्मा

ठिठुरन
कविता

ठिठुरन

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय पुराना बीत गया, धूँध से सहम रीत गया, कहीं बाढ़ की आफत आयी, महामारी ने छीना सब हर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कुंठित मन का आस है झेला, कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला, दिनकर को ढक दी तम चादर, जन जीवों में छिपा उत्कर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कामगार भी ठिठुर गए हैं, सबके अरमां भी बिटुर गए हैं, मानवता पर बड़ी बीमारी, अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। लटके कुसुम भारी जल कण से, दुबके बाल शीतों के रण से, देती है दर्द अब ठलुआ रुई ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
किस बात का दीप
कविता

किस बात का दीप

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? क्या अंधियारा मिटा चुके हो, दीन हीन उजड़े बागन में? क्या कुम्हार के बच्चों का, बिस्कुट टॉफी है याद तुम्हें, या आधुनिक जगमगता में, पर्यावरण सुधि तुम भूले? किस बात के बम पटाखे, छोड़ रहे हो तुम गगन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? जिसने मर्यादा को जीती, उनके स्वागत में नर नारी, ले मसाल प्रसन्न हो भागे, दीप जलाए घारी घारी। क्या कुछ मानवता अपनाए, तुम भी अपने युग सावन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में? कैसे हो रोशन हर कोना ? साफ सफाई बड़ी नेक किये। पर अंधियारा छिपा हिया में, चाहे जलाए लाख दिए। क्या एक बाती प्रेरण की, कभीजलाए अपने जीवन में? किस बात का दीप जलाते, हो तुम अपने छत आँगन में। क्या तुम अपने छल कृत्यों, ...
गांधी व शास्त्री
कविता

गांधी व शास्त्री

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत में जन्म लिये, तम को प्रकाश किये, कर्म श्रेष्ठ बड़े नेक, फिर दोनों आओ ना। बापू सत्य के पुजारी, अहिँसा थी बड़ी प्यारी, सबको आजाद किये, करो मरो गाओ ना। पग में खड़ाऊं सोहे, धोती में ही तन मोहे, हस्त लाठी लेके चले, वो अगुवा बनाओ ना। भारत के लाल रहे, बहादुर ढाल रहे, एकता के थे पुजारी, सबको बताओ ना। नारा है जय जवान, बढ़ता रहे किसान, सादगी थी बड़ी न्यारी, वो कर्म सीखाओ ना। खुश्बू राम राज की हो, उन्नति आकाश सी हो, दोनों देने एक दिन, अवतार लाओ ना। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
बम बनाकर, बम हो गए
कविता

बम बनाकर, बम हो गए

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने भौतिक विचारों से, और कलुषित व्यभिचारों से, देखो ना हम क्या हो गए? बम बनाकर, बम हो गए। मानव का ही सोचा विस्तार, मानवता पर ना किया विचार, जमीन पा हम ज़मीर खो गए, बम बनाकर, बम हो गए। कितना चिकना सुंदर ऊपर, सबसे बुद्धिमान है भू पर, घृणा बीज दिलों में बो गए, बम बनाकर, बम हो गए। बम है विनाश का ढेला, घृणा गद्दारी का रेलमरेला, भर, आंखें बंद कर सो गए, बम बनाकर, बम हो गए। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
वार
छंद

वार

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धार छन्द (चार वर्ण-सात मात्रा-२२२१) सीमा पार। बैरी चार। अत्याचार। हाहाकार। चारो ओर। मानो खोर। नाता तोड़। माथा फोड़। भागे लोग। बिना जोग। ऐसी होड़। खाना छोड़। ना है आस। कोई पास। काया खास। सत्यानाश । छूटे कूछ। नाही पूछ। काटे पेट। देवी भेंट। पानी आज। खोयी लाज। धोती ढाल। खोती लाल। खोटे लोग। का है योग। ना है रोध। कोई बोध। नाही नेह। कोई गेह। तेरा क्षेम। कैसा प्रेम। मानो खार। सीमा पार। रोको यार। ऐसी धार। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्...
क्यूँ न गीत खुशी के गायें
गीत

क्यूँ न गीत खुशी के गायें

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** जब स्वच्छंद अम्बर तले, लहर रही हो हरियाली, जब उपवन के पुष्प देख, हर्षित हो रहा हो वन माली, तब क्यूँ न गीत खुशी के गायें! जब जग में जगी हो मानवता, मानव में ना हो विषमता, सेवा में समर्पण हो तन मन, पूजा जाए जब अपना वतन, तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें! जहाँ महिला जग में न्यारी हो, महके भाईचारा की क्यारी हो, जब राग द्वेष आडम्बर परे, दिखते नारी नर खरे खरे, तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें ! जहाँ शिक्षा की ही पूजा हो, सब हो अपना ना दूजा हो, भूखे को भोजन देने पानी, बड़ी लंबी पंक्ति में हो दानी। तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें! परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
ये भी विकलांगता है
कविता

ये भी विकलांगता है

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** नर मूर्तियाँ बना प्रभु ने, किया काम उत्तमता है। रह गयी कुछ कमियाँ, जग कहे अपंगता है। ये भी विकलांगता है। पाँव एक ही होकर भी, गिरी राज लांघता है। जो है दो पैरों वाला, देखो टाँग खींचता है। ये भी…। पैदा हुआ है मंद बुद्धि, खामोश ही रहता है। जो ज्ञान का सागर बन, गर समाज बाँटता है। ये भी…। जिनके हैं चक्षु दुर्बल, ना साफ दिखता है। वह आंखें है मक्कार, जिनका पानी गिरता है। ये भी…। हाथ अंग भंग हों पर, पद भोजन कराता है। मजबूत बाहुबली आज, अबला चीर हरता है। ये भी…। अपंग हस्त पाद चक्षु, मन झकझोरता है। और भूखों न्याय मांगे, सत्ता से न मिलता है। ये भी …। देखो यह सवाल हमें, भी रोज सालता है। होगी दुनिया से दूर कब, ये विकलांगता है। ये भी…। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर...
एक कोशिश और
कविता

एक कोशिश और

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ एक कोशिश फिर से करते हैं, टूटी हुई शिला को फिर से गढ़ते हैं। आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... हाँ, मैं मानता हूँ इरादे खो गए, हौसले बिखर गए, उम्मीद टूट चुकी, सपनों ने साथ छोड़ दिया, हमने कई अपनों को गवाया, अपनों से खूब छलावा पाया, तो क्या हुआ? अभी तक जिंदगी ने हार नहीं मानी है, कोशिश करने की फिर से ठानी है, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... हौसलों में बुलंद जान भरते हैं, उम्मीदों को नई रोशनी देते हैं, सपनों को फिर निखारते हैं, इरादों को जोड़ते हैं, हार का मुंह तोड़ते हैं, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... जीवन में इंद्रधनुष लाते हैं, दुनिया को खुशियाँ दे जाते हैं, आओ फिर सपनों की उड़ान भरते हैं, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं....। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (...
दर्द को भीतर छुपाकर
कविता

दर्द को भीतर छुपाकर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द को भीतर छुपाकर, बच्चों संग मुसकाते। कभी डाँट फटकार लगाते, कभी-कभी तुतलाते। हँस हँसकर मुँहभोज कराते, भूखे रहते हैं फिर भी। स्वच्छ जल पीकर सो जाते, गोद में लेकर सिर भी। आँधी तूफाँ आये लाखों, चाहे सिर पर कितने। विशाल वक्ष में समा लेते हैं, दर्द हो चाहे जितने। बच्चों की खुशियाँ और, माँ की बिंदी टीका। पड़ने देते किसी मौसम में, कभी न इनको फीका। पर कुछ पिता ऐसे जो, मानव विष पी जाते। बुरी आदतों में आकर, अपनों का गला दबाते। माँ की अन्तरपीड़ा और, बच्चों की अंतः चीत्कार। जो न सुनता है पिता, समाज में जीना है धिक्कार। माँ तो है सृष्टिकर्ता पर, पिता है जीवन का आधार। अपनी महिमा बनाये रखना, हे! जग के पालनहार।। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
स्त्री या वेदना
कविता

स्त्री या वेदना

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम माँ बहन भार्या हो, जग में खूब सम्मान है। हाँ, तुम वही स्त्री हो, सृष्टिकर्ता तेरी पहचान है। तुमने पुरुषों को जन्म दिया, जो पौरुष दिख लाते है। कभी अदब कभी रौब से, तुम पर हुकुम चलते हैं। तुम अबला बन सहती हो, समाज के जुल्मों सितम। शिक्षा की देवी हो तुम, भावे न तुमको अहम। काली दुर्गा देवी बन, तिहु लोक में पूजी जाती। रणचंडी नारायणी बन, शक्ति स्वरूपा कहलाती। पर कहीं-कहीं भाग्य ने, बेरहम हाथों में थोप दिया। अनचाहे पौधे जैसे, दहेज मरु में रोप दिया। ना समझे जग तेरी पीड़ा, कोख में तू मेरी जाती। कहीं बेरहम कहीं कोठों पर, मर्यादा तार तारी जाती। बन लक्ष्मी मूरत तुम, ममता रूप दिखाती हो। जब बढ़ जाये पाप धरा पर, चामुंडा बन जाती हो। कहीं दरिंदों के हाथों, मर्यादा कुचली जाती है। बन स्त्री रूप ज...
पर्यावरण और मानव
कविता

पर्यावरण और मानव

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** धरा का श्रृंगार देता, चारो ओर पाया जाता, इसकी आगोश में ही, दुनिया ये रहती। धूप छाँव जल नमीं, वायु वृक्ष और जमीं, जीव सहभागिता को, पर्यावरण कहती। पर देखो मूढ़ बुद्धि, नही रहीं नर सुधि, काट दिए वृक्ष देखो, धरा लगे जलती। कहीं सूखा तूफ़ां कहीं, प्रकृति बीमार रही, मही पर मानवता, बाढ़ में है बहती। वायु बेच देता नर, सांसों की कमीं अगर, लाशों से भी बेच देता, भाग ठीक रहती। किला खड़ा किया मानो, जंगलों को काटकर, खुशहाली देखो अब, भू कम्पनों में ढहती। भू हो रही उदास, वन दहके पलाश, जले नर संग तरु, जब चिता जलती। बरस जहर रहा, प्रकृति कहर रहा, खोट कारनामों से, जल विष बहती। वृक्ष अपने पास हों, तो दस पुत्र साथ हों, गिरे तरु एक, धरा, बड़ा दर्द सहती। ऐसे करो नित काम, स्वस्थ बने तेरा धाम, स्वच्छ वात्तरु जल से, धरा खुश रहत...
सत्य कहूँ तो जग छूटे
कविता

सत्य कहूँ तो जग छूटे

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य कहूँ तो जग छूटे, अपने अपनों से रूठे। सीख न पाए हम, मीठे झूठ का हुनर। कड़वे सत्य बोलूं, तो अपने हमसे रूठे। सत्य कहूँ… सांच पड़ गया भारी, छीना बहुत से रिश्ते। जो मेरे अजीज थे, दिल हमसे उनके टूटे। सत्य कहूँ… हुआ बन्द बटुए में, जो बोला था सच। एकटक स्वयं को देखूं, नेत्र भरे दम भी घूटे। सत्य कहूँ… कहूँ साँच अकेले ही, नहीं दे पाता प्रमाण। बाहुल्यता जिसकी रही, उसमें बने हम झूठे। सत्य कहूँ… जो आंखों ने देखा, पर नहीं देखा किसी ने। उस जघन्य को कैसे कहूँ, सोच अन्तः अश्रु फूटे। सत्य कहूँ … मैंने सोचा चौबीस कैरट, होता है एकदम खरा। पर समाज में चल रहा, मिलावट के बलबूते। सत्य कहूँ… सत्य विजय पाता है, इतिहास इसका गवाह। अंत समय तक सत्य कहूँगा, चाहे दुनिया हमको लूटे। सत्य कहूँ … परि...
तम्बाकू: एक भूरा जहर
कविता

तम्बाकू: एक भूरा जहर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आया प्रचलन अमेरिका से, दुनिया में बोया जाता है। आर्यावर्त में नंबर दूसरे पर, यह पाया जाता है। हो जाती है सुगंध की कमी, जब यज्ञ पूजा में, तंबाकू ताजगी खातिर, तब सुलगाया जाता है।। मगर देखो कैसा रूप, धारण कर लिया इसने। तम्बाकू सुर्ती खैनी का बिजनेस, कर लिया जिसने। धरा पर रूप धारण करके, चूरन बनकर आया। मुखों में हम सबके घाव, कैंसर कर दिया इसने।। बीड़ी सिगरेट जैसा उपयोग, इसका धूम्रपानों में। धुँआ बन जहर भरता है, यह तो आसमानों में। तम्बाकू हुक्का चिलम की, आदत बनकर देखो। लगाता आग सीने में, श्वशन के कारमानों में।। लिखा हर पैक पर होता, तम्बाकू जानलेवा है। फिर भी हम खाते हैं इसको, जैसे सुंदर सा मेवा है। समझ आता नहीं हमको, मेधा चकरा सी जाती है। जानलेवा बिके थैली में, तो यह कैसी सेवा है।। धारा बर...
शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव
आलेख

शिक्षक दिवस : गुरु श्रद्धा एवं सम्मान का उत्सव

अशोक शर्मा प्रताप नगर, जयपुर ******************** गुरु शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है, ‘गु यानी अँधेरे से ‘रु यानी प्रकाश की ओर ले जाने वाला। प्राचीन काल की बात करें तो आरुणी से लेकर वरदराज और अर्जुन से लेकर कर्ण तक सबने गुरु की महिमा को समझा और उनका गुणगान किया है। गुरु शरण में जाकर ही भगवान राम भी पुरुषोत्तम कहलाए।एक बार अपने स्वागत भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन कैनेडी ने कहा था, "अमेरिका की धरती पर एक भारतीय पगड़ीधारी स्वामी विवेकानंद तथा दूसरी बार डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के द्वारा अपने उदबोधन से भारतीयता की अमिट छाप जो अमेरिकावासियों के हृदयों पर अंकित हुई है, जो सदैव अमिट रहेगी।" निःसंदेह यह प्रत्येक भारतीय के लिये अपनी संस्कृति एवं महापुरुषों के प्रति गौरान्वित भाव-विह्वलता से परिपूर्ण श्रद्धा के भावों को अभिव्यक्त करने वाले क्षणों के रूप में रहे होंगे एवं अनंत काल तक रहें...