Sunday, May 12राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: आयुषी दाधीच

वो समझ ना पाई
कविता

वो समझ ना पाई

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं, न वो इधर की, न वो उधर की समझी जाती हैं, हाँ वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। उसको तो तुमने दो हिस्सो में बांटा हैं, जन्म से लेकर बीस वर्ष तक, तुमने नाजुक कली सा पाला हैं, अपने दिल के टुकड़े को, किसी और के हाथ थमाया हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रह जाती हैं। तुम कहते हो, वो इस घर की बेटी हैं, वो कहते हैं, वो उस घर की बहू हैं, इसी में उसकी पहचान मिट जाती हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फंसी रहे जाती हैं। कली से फूल बन महका रही वो उपवन, गमो को पी के बढ़ा रही वो वंश, फिर भी, न जाने कहां है इसका अंत, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को स...
समझ ना पाई
कविता

समझ ना पाई

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं, न वो इधर की, न वो उधर की समझी जाती हैं, हाँ वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। उसको तो तुमने दो हिस्सो में बांटा हैं, जन्म से लेकर बीस वर्ष तक, तुमने नाजुक कली सा पाला हैं, अपने दिल के टुकड़े को, किसी और के हाथ थमाया हैं, तुम सब ने समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। तुम कहते हो, वो इस घर की बेटी हैं, वो कहते हैं, वो उस घर की बहू हैं, इसी में उसकी पहचान मिट जाती हैं, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई हैं, वो बीच मझधार में ही फसी रहे जाती हैं। कली से फूल बन महका रही वो उपवन, गमो को पी के बढ़ा रही वो वंश, फिर भी, न जाने कहा है इसका अंत, तुम सब न समझ लिया है उसको, पर वो खुद को समझ ना पाई है, वो बीच मझधार मे...
तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ
कविता

तुझसे आस लगाएं बैठी हूँ

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं, तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं, कुछ अपने मन की, तो कुछ तेरे मन की, बात मैं कर डालूं, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । तु तो चंचल मन की हठ वाली है, आधी राह से फिर मुड़ जाती है, मैं राही तेरी आस में वही रुक जाती हूँ, तुम मुझसे मिलने आओगी ना, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं , तु आए तो, मैं अपना मन हल्का कर डालूं। सारे जग में, मैं तेरी ही बात करती हूँ, फिर भी तुम मुझसे खफा हो जाती हो, मैं तुम्हें पूर्ण करना चाहूँ, तब तुम अधूरी सी रहती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं। तुम अपनी मनमानी करती हो, मेरा मन जब अशांत हो, तो तुम अपनी हलचल करती हो, मुझसे अपने आप को, पूरा तुम करवाती हो, फिर मेरी पूर्ण कविता बन जाती हो, मैं तुझसे आस लगाएं बैठी हूं । परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए....
बातें हैं
कविता

बातें हैं

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** बातें हैं, बातों का क्या, बातें तो चूड़ी की तरह होती है, जो घूमकर फिर वही आ जाती है, बातें है, बातों का क्या। तुम जितना उसे समझना चाहोगें, जितना उन पर घोर करोगें, वो उतनी ही तुम्हें उलझती नजर आयेंगी, बातें हैं, बातों का क्या। बातें पेंच की तरह होती हैं, उसे जितना कसो वो कसती ही जाती हैं, उसे जितना मोड़ो वो मुड़ती ही जाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। बातें हैं, बातों का क्या। यें बातें ही तो, क्या कुछ करवाती हैं, किसको झुठा, किसको सच्चा बतलाती हैं, बातें हैं, बातों का क्या। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
संस्कृति
कविता

संस्कृति

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** संस्कृति शब्द में ही, संस्कृति का अर्थ समाया है, भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। खाने से लेकर पहनावे तक, सब में है विभिन्नता, त्योहारों की तो बात है निराली, भाषा की तो कहावत है जानी, 'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी।' भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। जाति, धर्म का भेद न जाना, सबको अपना है माना, मान सम्मान में सबसे ऊपर, पधारो नी म्हारे "देस" कहकर सबको अपनी ओर बुलाएं, ऐसे भारत देश की है कुछ खास संस्कृति, मैं क्या बताऊ, इसकी तो अपनी ही पहचान है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
कह रही हूँ कुछ अपने बारें में
कविता

कह रही हूँ कुछ अपने बारें में

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ, खामोश हो के भी, खामोश ना होना तुम, मेरे हर लफ्ज को, अपनी रूह से लगाना तुम, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। थोड़ी सी चंचल हु मैं, नटखट और मस्तीखोर भी हु मैं, हर बात पर गुस्सा करने वाली हु मैं, अपनी ही धुन मे रहने वाली हु मैं, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हु मैं, दिल में एहसास लिए फिरती हु मैं, चाहती हु इस जहाँ में पंख फैलाना, मंजिल को पाने की कशमकश है अभी जारी, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। यूँ ही कुछ लिखते रहना पसंद है मुझको, तुम सुनो तो, सुनाना पसंद है मुझको, यूँ ही हल्के से मुस्कुराना पसंद है मुझको, पर किसी का डांटना, म...
वीरान सी बस्ती
कविता

वीरान सी बस्ती

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सुनसान सी सड़के झांकती है मेरी और, मानो कह रही है वो मुझसे, अपने कदमो की आहट से, महका दे इस गाँव को। वीरान सी इस बस्ती में , झुका हुआ बरगद का पेड़ खड़ा है, मानो वो मुझसे कह रहा है, आ बैठ़ मेरी छाँव में। वीरान सी इस बस्ती में, खाली पड़े मकानों की दीवारें, मुझसे कुछ यूँ बोल रही है, आ खेल तू इस आँगन में। वीरान सी इस बस्ती में, खेतों की ये मिट्टी, मुझसे कुछ यू बोल रही है, आकर छू ले मुझको, चारों और फैला दे, सौंधी सी मिट्टी की खुशबू को। वीरान सी इस बस्ती में, सुनसान सी सड़कें, मानो मुझसे कुछ कह रही है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
आसमां ने कहा
कविता

आसमां ने कहा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। क्यूँ मायूस है आज तू, क्यूँ खफा है आज तू, मैने भी उससे कहा, सून ले आज तू, ना मै मायूस हूँ, ना मै खफा हूँ। चाँद की चाँदनी, आज कुछ यूँ बिखरी, चेहरे की मुस्कान ने, कुछ यूँ बयांकिया, देखते ही देखते, सपनो का बादल यूँ छटा, मानो सारा भ्रम अभी टूटा। आँखो मे नीर था, मन मे उद्वेग था, क्या आज तुमसे मै, मायूस और खफा था। आसमा ने कुछ यूँ कहा, देखते ही मुझको। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
मेरी पहली पदयात्रा
यात्रा वृतांत

मेरी पहली पदयात्रा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज तो पुरे परिवार का शाम का भोजन मौसी के घर पर था। सभी एकत्रित हुए मिल-जुल कर भोजन किया और हम सब बाते करने लगे तभी अचानक मेरी माँ ने कहा कि गढ़बोर चारभुजा की पैदल यात्रा करनी है, तो वहा चले क्या तो सभी ने एक बार तो हाँ कर दी। सभी यात्रा की योजना बनाने लगे कि सुबह कितनी बजे निकलना है कैसे क्या करना है, यहाँ से कितना दूर है। सब कुछ जैसे ही तय हुआ की एक-एक करके ना जाने के कुछ बहाने बनाने लगे। ये सब कुछ दो घण्टे तक ऐसे ही चलता रहा कोई चलने के लिए हाँ करता तो कोई ना करता, समय बितता गया और वापस सभी अपने घर जाने लगे। सभी ने एक दूसरे को शुभ रात्रि कहा और तभी मेरी भाभी ने कहा कि आपके भैया ने हाँ कर दी तो मै चलने के लिए तैयार हूँ, फिर कुल मिलाकर हम पाँच ने हाँ की जाने के लिए। घर पर आए तब तक रात के दस बज गये थे, फिर थोड़ी देर बाद ...
ऐ जिन्दगी
कविता

ऐ जिन्दगी

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कहना है तुमसे बहुत कुछ, कहाँ से शुरू करू नही पता, कुछ तुम कहो, कुछ मै कहु, ऐ जिन्दगी, कुछ तो बता। वक्त का पता ना चला कब बीत गया, मेने तो अभी तुम्हे देखा भी ना था, वक्त का बीता हुआ पहर, फिर से ना आयेगा ये पता है मुझे, फिर भी ऐ जिन्दगी कुछ तो बता। ख्वाहिशो ने ख्वाहिश की तुझसे मिलने की, पर तुझसे मिलने का फासला बहुत लम्बा था, तेरे बिना मै कुछ नही, मेरे बिना तुम नही। ऐ जिन्दगी कुछ तो बता। हर वो लम्हा याद है मुझे, जब तुमने मुझे पुकारा था, वो पल अब यादो के झरोखे मे सिमटे है, अब तो उन पलो को याद करके केवल मुस्कुराना है, ऐ जिन्दगी कुछ तो बता। आखो मे सपना है, दिल मे अरमान है, उसे पुरा करना तेरा काम है, क्योंकि तुम ही मेरी जिन्दगी हो। ऐ जिन्दगी कुछ तो बता। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. ह...
भारत देश की शान
कविता

भारत देश की शान

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** भारत का हर कोना-कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... देखो ये भारत देश हमारी पहचान है। उत्तर मे कश्मीर है जिसके, हिमालय जिसकी पहचान है, जहाँ रचे गए पंचतंत्र और नाट्यशास्त्र, ऋषियो की है वो तपस्थली, ऐसा ये सुन्दर कश्मीर, भारत देश की शान है। भारत के इस स्वर्ग मे कैसा वो अत्याचार था, कश्मीर का हिन्दू- मुस्लिम युद्ध देख, सबकी आंखे नम हुई, वो लहुलुहान दृश्य देख, सबका ह्दय रो पड़ा, चारो ओर एक ही गुंज 'आजादी, आजादी '। भारत का हर कोना -कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, ये कश्मीर भारत देश की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्व...
काश तुम
कविता

काश तुम

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** काश तुम भी वो सब कुछ कर पाती, जो तुम करना चाहती हो। काश तुम.... क्यो तुम अपने सपनो को दबाए रखती हो, अपनो की खुशी के लिए। क्यो तुम्हे ही हर बार झुकना पडता है, अपनो की खुशी के लिए। क्यो तुम्हे ही हर बार समझना पड़ता है, अपनो की खुशी के लिए। काश तुम भी वो सब कुछ कर पाती, जो तुम करना चाहती हो। काश तुम... काश तुम एक लड़की होकर भी, वह सब कुछ कर पाती जो, तुम करना चाहती हो। काश तुम.... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
ज़िन्दगी के नाटक मे
कविता

ज़िन्दगी के नाटक मे

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ज़िन्दगी के नाटक मे... हर कोई इस तरह रम गया है, मानो उसे भी ना पता कि वो कौन है। बस दिखावे के चक्कर मे, दिखावटीपन की ज़िन्दगी जी रहा है। असल ज़िन्दगी से वो खफा है, क्योकि अभी वो ज़िन्दगी के नाटक मे रमा है। यहा किसी को नही पता की, कौन अपना है कौन पराया है। हर कोई यहां अपनी मंजिल को पाने मे लगा है, असल ज़िन्दगी का तो उसे पता ही नही। ज़िन्दगी के नाटक मे... सभी ने झूठ का मुखौटा बेखुभी पहना है। हर कोई अपनी ज़िन्दगी से बेख़बर है, इस ज़िन्दगी के नाटक मे। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
होली
कविता

होली

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** रणघोष हुआ, आगाज हुआ, देखो आया फागुन का महीना, लाया खुशियो की बोहार, देखो-देखो आया होली का त्योहार, आई सबके होठो पे मुस्कान। कोई पिचकारी लाया, तो कोई ले आया गुलाल, क्या खुब लगी गुलाल, सबके चहरे हुए लाल, देखो-देखो आया होली का त्योहार। सभी रंगे एक दूजे के रंग मे, क्या सुन्दर दृश्य हुआ रंगो के रंग मे, देखो -देखो आया रंगो का त्योहार, लाया खुशियो की बोहार। रणघोष हुआ, आगाज हुआ होली है ... होली है ... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते...
पापा
कविता

पापा

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज अचानक मुझे दीदी ने कहा, पापा पर कुछ लिखने को। तो मेरे मन मे ख्याल आया, क्या लिखु मै उनके बारे मे, जब मुझे कुछ याद ही नही, उनके साथ बिताए हुए पलो के बारे मे। क्या लिखु मै उनके बारे मे; सच कहु तो मुझे नही पता, किस तरह का रिश्ता होता है, एक बेटी और पिता का। काश! मुझे भी पता होता, कि पापा का प्यार कैसा होता है। सुना है कि पापा का प्यार, नसीब वालो को मिलता है, पर क्या फर्क पड़ता है जनाब, प्यार तो प्यार होता है। मुझे कभी कमी ही नही खली, पापा के प्यार की, क्योकि मुझे नाना-नानी, मामा व अपनो का प्यार जो मिला था। काश!मै उनके बारे मे कुछ लिख पाती, वो मुझसे और मै उनके नाम से पहचानी जाती, वो मुझसे और मै उनसे हर वो बात कहे पाते, वो मुझसे और मै उनके साथ खुब मस्ती करते। क्या लिखु मै उनके बारे मे; ...
माँ
कविता

माँ

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** माँ शब्द का एहसास ही कुछ और होता है -२ क्योकि यह हजारो, लाखों मे नही, पूरे ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली शब्द है। माँ की दुनिया तो अपने बच्चो मे ही समाई रहती है, पता नही वो कितने दर्द को अपने अन्दर छिपाए रखती है। -२ माँ का हृदय समन्दर सी गहराईयो को लिए फिरता है, ना जाने इसमे कितने आशीर्वादो का बवन्डर भरा है। -२ पता नही वो किस तरह हर दर्द को छिपा के हमेशा मुस्कराती है, वो 'माँ' है इसलिए मुस्कराती है। -२ बीमार होने पर कहती है मै ठीक हु, कुछ नही हुआ मुझे, ओर फिर काम पर लग जाती है। अपने बच्चो की खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखती है, क्योंकि वो 'माँ' है। -२ माँ शब्द का एहसास ही कुछ ओर होता है। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह ...
जीमणा री याद
आंचलिक बोली

जीमणा री याद

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मारवाड़ी कविता इस कविता मे मैने एक गाँव के जीमने को याद करते हुए कुछ अपने विचार लिखने की कोशिश की है । (१) आज घणा वक्त पछे शहर रो जीमणो जीम्यो, पर जीमणा मे वो बात कोणी जो पहळा गाँव रा जीमणा मे वेती। जीमता-जीमता मैने गाँव रा जीमणा री याद आगी, कतरा बरस होग्या पेल्ली जसा जीमणा जीम्या ने। शहर रा जीमणा मे वो मजो कोणी जो गाँव रा जीमणा मे वेतो। (एक गाँव रो बालक स्कुल भणवा जावे उ बालक रे मन री दशा को वर्णन है) ध्यान मु हुन्जो (२) सुबह रो जीमणो को नुतो आतो तो मन मे उतल-फुतल मचती, कि अबे स्कूल जावा की छुट्टी मारा जीमबा ने... पर कि करा घर वाला स्कूल भेजता, अन कहता कि मू स्कूल मे बुलावा आई जावं, मै भी स्कूल तो जाता पर मन भणवां मे न लागतो। सहेलियाँ ने भी पूछता थारे जीमबा जाणो की, आपा सब ...
अपने सपनो के लिए
कविता

अपने सपनो के लिए

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपने सपनों के लिए हार को कभी हार ना मानना तुम, जीत को कभी जीत ना मानना तुम, अपने ऊपर विश्वास रखना तुम, कर दिखाओगे अपना सपना पूरा एक दिन तुम। अपने सपनों के लिए... जब चारो ओर तुम्हारा ही नाम गूंजेगा, सब को तुम्हारे ऊपर फक्र होगा, अपनो से अपना सा प्यार मिलेगा , चारों ओर तुम्हारी ही मेहनत का गुंज होगा। अपने सपनों के लिए ... तुम वो सब कुछ पा सकोगे एक दिन, जो तुम पाना चाहते हो, हर वो सपना जो तुम्हारी आखों में तैरता है, एक दिन वो तुम्हारी मुस्कान बनेगा । अपने सपनों के लिए ... बस एक ही बात याद रखना तुम, ज़िन्दगी की राह के राही हो तुम, हँसते-मुस्कराते हुए दुनिया का सामना करो तुम, कर दिखाओगे अपना सपना पूरा एक दिन तुम, अपने सपनों के लिए ... परिचय :-  आयुषी दाधीच शि...
आज अचानक
कविता

आज अचानक

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आज अचानक मुझे उन लम्हो की याद आई, वो भी क्या वक्त था। जब हम अपने दोस्तो के साथ, खुब मजे से दिन भर खेला करते थे। न किसी का डर न किसी की डाट, बस अपनी ही धुन मे रहा करते थे। आजकल के बच्चे भी दिन भर, मोबाइल मे गेम खेला करते है। उन्हे भी न किसी का डर न किसी की डाट, बस अपनी ही धुन मे रहा करते है। फर्क बस इतना सा है, हम अपनो के साथ खेला करते थे ओर अब मोबाइल के साथ खेला करते है। आज अचानक मुझे उन लम्हो की याद आई। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...