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Tag: कुमुद दुबे

रौनक
लघुकथा

रौनक

कुमुद दुबे इंदौर म.प्र. ******************** आँफिस से लौटे साठे जी, घर मे कदम रखते ही पत्नी शोभा से बोले शोभा ! मैं कुछ दिनों से देख रहा हूॅ अपनी कालोनी के अतुल जी के यहाँ, जहाँ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था, आजकल रौनक बनी हुयी है। देर रात तक घर की लाईटें जलती रहती हैं और लोगों का आना जाना भी लगा रहता है। क्या बात है? शोभा बोली! मैने उनकी पडोसन माला से पूछा था, वह बता रही थी-अतुल जी के माता पिता साथ ही रहते थे। दम्पती बहुत ही मिलनसार, व्यवहारिक और काॅलोनी के लोगों की किसी भी प्रकार की परेशानी हो सहायता के लिये सदा तत्पर! बच्चे बडे बूढे सभी के चहेते रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अधिकांशतः समय अपने गाँव में ही व्यतीत कर रहे हैं! फिलहाल कुछ दिनों के लिये आये हुये हैं। . लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३...
संकल्प
कहानी

संकल्प

********** रचयिता : कुमुद दुबे श्रेया, पति शुभम के साथ कुछ दिन पहले ही सुरभी के पडौस में रहने आयी थी। सुरभी के मिलनसार स्वभाव के कारण उसे श्रेया के साथ घुलने -मिलने में समय नहीं लगा। सुरभी के पति राकेश रिटायर पुलिस ऑफिसर थे। ड्रायवर की सुविधा समाप्त होने के बाद सुरभी और राकेश घर से बाहर आना-जाना आँटो से ही करते थे। श्रेया कार चलाना जानती थी, अतःउसकी सहायता से सुरभी के भी बाहर के काम और आसान होने लगे थे। श्रेया के ससुर जी के अचानक बीमार होने से शुभम उन्हें माँ माला के साथ गाँव से इलाज के लिये लेकर आया। डाॅक्टर की सलाह पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पडा। ससुर जी को इलाज के बाद अस्पताल से छुट्टी तो मिल गई परन्तु कुछ दिन फाॅलोअप के लिये शहर में ही रुकने की सलाह दी गई। औपचारिकता के नाते सुरभी उनके स्वास्थ के हाल लेने श्रेया के घर गई। बातचीत बीच में ही रोककर श्रेया सुरभी से कहने लगी आँ...
मेरे बाबूजी
कविता

मेरे बाबूजी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे मुझे अपने बाबूजी पर घमंड करना आता है उन जैसा पिता जहाँ में नजर नहीं आता है जब मैं छोटी थी पर, छः बहनों में बड़ी थी फिर भी थी मैं उनकी लाड़ली सब याद है मुझे, उनका साईकिल पर बिठा बाजार ले जाना अपने साथ बिठा दूध रोटी खिलाना लड़ियाते हुए खाने से थाली में पानी ढुल जाना फिर मिठी-सी डाँट पडना सब याद है मुझे, सहैली के घर पढने जाना देर रात तक घर न लौटना उनका चिंता करना फिर चुपके-चुपके लेने आना, सब याद है मुझे, स्कूल की खेल प्रतियोगिता में भाग लेना बाबूजी का उत्साहवर्धन करना सब याद है मुझे, परीक्षा के दिनों में ऑफिस से छुट्टी लेकर आना परीक्षा हाॅल के सामने ग्लुकोज, संतरे, अंगूर लिये बैठना उनका इस तरह इंतजार करना सब याद है मुझे, शनिवार-रविवार की छुट्टी में किराना लेने शहर जाना देर होने पर चाचाजी के घर ठहरना फिर दूसरे दिन ...
ऐसे थे दासाब
कविता, स्मृति

ऐसे थे दासाब

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे प्रस्तुत रचना मैंने “पिता दिवस” पर अपने ससुर जी स्व.पं.नारायण राव जी दुबे, जिन्हें हम दासाब कहते थे, की स्मृति में लिखी है। मेरे ससुर जी मां दुर्गा के अनन्य भक्त रहे। उनका जन्म दुर्गा अष्टमी को हुआ और दुर्गा अष्टमी को ही वे इच्छा मृत्यु को प्राप्त हुए। इन्दौर, उज्जैन और देवास जिले के लगभग ४०-५० गांवों में वे कर्मकाण्ड के साथ जीवनपर्यन्त भागवत प्रवचन करते रहे। उनके जीवन से जुडे एवं इस रचना में समाहित, उन संस्मरणों को प्रत्यक्ष देखने समझने का अवसर तो मुझे नहीं मिला। लेकिन जो कुछ मुझे इस परिवार में आकर देखने-सुनने को मिला उसी के आधार पर यह कविता मेरी उनके प्रति स्वरचित श्रद्धांजली है। जब दासाब भागवत प्रवचन कर लौटते खादी का धोती कुर्ता पहने दिखते थे तालाब के पार हम पगडंडी-पगडंडी दौडते हो लेते थे उनके सा...
एक पहल ऐसी भी
लघुकथा

एक पहल ऐसी भी

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे सचिन  का ट्रांसफर पूना हो गया था। एक नये बने काम्प्लेक्स के केम्पस में सचिन ने फ्लेट ले लिया था। जिसमें स्विमिंग पुल, पार्क, बच्चों के लिये प्ले ग्राउंड, झूले, फिसलपट्टी, कम्यूनिटी हाॅल, सभी कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। सचिन की पत्नि सुचिता और छः साल का बेटा प्रमेय बहुत खुश थे। रोजाना शाम सभी बच्चे पार्क में एकत्रित होकर खेलते। बच्चों की मम्मियों में भी आपसी परिचय अच्छा हो गया था। सुचिता को बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। साथ ही स्वच्छ वातावरण में रहने की वह आदि थी। शाम के समय पार्क में छोटे-बडे़ सभी बच्चे  इकट्ठे होते थे। कुछ बच्चों की मम्मियां बच्चों के खाने-पीने की सामग्री भी अपने साथ लेकर आने लगी थीं। बच्चे प्ले एरिया में कागज व फलों के छिलके फेंक देते! तो सुचिता को यह पसन्द नहीं आता। उसने एक-दो...
बिछुड़ना
कविता

बिछुड़ना

=================================================== रचयिता : कुमुद दुबे खडे़-खडे़ निहारती रही सोचती रही, कितना दुर्बल था वह जब मेरे हाथों में सौंपा था, गर्मी सर्दी बरसात हर संकट से बचाकर उसे पोषित किया, दिन प्रतिदिन बढ़ते देखती रही आनन्दित होती रही, आज भी मैं उस दिन को भूल नही पायी हूँ जिस दिन उसे छोड़कर जाने को मजबूर हुयी थी, दुखी हुयी थी दूसरों को सौंप कर उसे। अरसा बीत गया आज अचानक सामने से गुजरी, चुपके से निहारते न जाने कब उसके समीप पहुंच गई, फलों से लदा वह कटहल का पेड़ नतमस्तक हो जैसे कह रहा हो जो देकर ना ले वही तो प्यार है बाकी सब व्यापार है फिर मैं नम आँखे लिये अनमने मन से चल पड़ी अपने गन्तव्य को। लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे जन्म- ९ अगस्त १९५८ - जबलपुर शिक्षा- स्नातक सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्व...
चयन
संस्कार

चयन

चयन =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे कालोनी का सांस्कृतिक कार्यक्रम था। बच्चों के लिये गीत वाद-विवाद आदि विभिन्न प्रकार की प्रतियोगितायें आयोजित की गई थी। उत्साह-वर्धन के लिये पुरुस्कार भी रखे गये थे। वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिये निर्णायक मंडल में तीन गणमान्य नागरिक आमंत्रित किये गये! जिनमें एक रिटायर स्कूल प्रिंसिपल अनुराग शर्मा जी को भी आमंत्रित किया गया। अनुराग जी  ईमानदारी के लिये मशहूर थे। समिति के अध्यक्ष द्वारा तीनों जजों को ससम्मान मंच पर आमंत्रित किया गया। माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कराया गया। समिति के सदस्यों द्वारा हारफूल से स्वागत करते हुए तीनों जजों का परिचय दर्शकों से कराया गया। उन्हें बकायदा मंच के समक्ष प्रथम पंक्ति में बैठाया गया।    कार्यक्रम के प्रारंभ होते ही समिति के सचिव द्वारा तीनों जजों को एक-एक पर्ची ...