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Tag: डॉ. बी.के. दीक्षित

ये कैसे नेता हैं?
कविता

ये कैसे नेता हैं?

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जो करे समर्थन तालिबान का, वो बेहूदा नेता है। इक पापी देने लगा बधाई तालिबान विजेता है। देश द्रोह में फंसकर प्यारे सारी उम्र गुज़ारोगे। जाकर जेल सड़ोगे बरसों कैसे तुम हुंकारोगे? पत्थर पड़े अक़्ल पर तेरी, है कोई औक़ात नहीं। चली ज़ुबां कैंची जैसी मालूम है तेरा हाथ नहीं। गर्म लौह पर, वार करें कब, आता है योगीजी को। धधकी आग छुपाएं कैसे आता है मोदी जी को। अफगानी संकट है ऐसा मानो सांप छछूंदर है। पाक चीन दो बिल्ली मानो, माल बांटता बंदर है। कुछ मत बोलो धूर्त विपक्षी, देखो तेल, धार को देखो। स्वप्न तुम्हारे खंडित होंगे, अब पुनः पुनः हार को देखो। बिजू की ललकार यही है, तुम शक्ति कलम की पहचानो। तालिबान नहीं सगा किसीका, अपनीअपनी मत तानो। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर म...
ग़ुलाब
कविता

ग़ुलाब

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** पत्ती-पत्ती, पंखुड़ि-पंखुड़ि, ख़ुद में एक कहानी गढ़ते। भोर सुहाना, दिन मस्ताना रंग निराले ख़ुद में भरते। तोड़े बिना डाल से इनको, ध्यान मग्न हो देखा करिये। टूट रूठकर गिरें जमीं पे, अंजुरि भर, मत फेंका करिये। प्रीति ग़ुलाबों सी होती है, महक़ परिंदे सम उड़ती है। सूख जाएं तरु के प्रसून, ख़ुशबू कभी न कम होती है। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं। सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप ...
किरायेदार
आलेख

किरायेदार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** कहीं कोई स्वयं में मस्त, कहीं कोई भीड़ में भी तन्हा, कहीं जीविका चलाने के लिए हाड़ तोड़ परिश्रम तो कहीं वज़न कम करने हेतु घण्टों पसीना बहाना। कोई धन अर्जित करके भी आनंदित नहीं तो कोई धन अभाव के उपरांत भी अत्याधिक प्रसन्न। कोई अलग-अलग नस्ल के श्वान घर की रखवाली के लिए पालता है। लेकिन न चाहते हुए श्वानों की रखवाली करते-करते मजबूर सा प्रतीत होता है। कोई बिल्लियाँ पालकर स्वयं को पशु प्रेमी मान बैठता है। लेकिन अंदर से खुश नहीं हो पाता। कोई भव्य आलीशान भवन बनाकर कुछ दिन स्वयं की प्रशंसा करते हुए दिखता लेकिन अंदर से सुख धीरे-धीरे ख़त्म होने लगता। कोई किराए का शानदार बंगला लेकर बंगले के असल मालिक को मूर्ख समझता है। ऐसे लोगों का दर्शन थोड़ा अलग हटकर रहता है, ऐसे लोग कहते हैं कि दुनिया से जाना ही है तो मकान निर्माण में क्यों खपें? जीवन जी भरकर ज...
भाषा
कविता

भाषा

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** सरल सहज अभिव्यक्ति, दिल को सदा लुभाती। बहुत कठिन शब्दोंकी, भाषा नहीं मन को भाती। साहित्य जगत की, हमको समझ न आती भाषा। माँ हिंदी दुनिया में छाए, जन-जन की है ये आशा। भूषण** दिनकर, महादेवी, अज्ञेय, पंत या निराला। मानस की चौपाई दोहे, हरि बच्चन की मधुशाला। चक्रधर की अद्भुत शैली, नीरज जी की थी हस्ती। गुरु सत्तन की कविताएं, कुमार विश्वास की मस्ती। है सम्रद्धि हमारी भाषा** नित नूतन भाव जगाती। वो बहुत अभागे होते, जो कहते हिंदी नहीं आती। बिजू यदि ज्ञान नहीं हो, व्याकरण निष्ठ भाषा का। ह्रदय खोल कर रखिये, प्यार प्रीति परिभाषा का। परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभा...
काबुल में कहर
कविता

काबुल में कहर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** राजनीति नहीं आती हमको एक बात कह देते हैं। ठीक नहीं है आरजकता क्यों कर वो सह लेते हैं। कदम डिगे सत्ता के कैसे, कुछ भी तो न कर पाये। साफ़-साफ़ ऐसा दिखता लौट के बुद्धू घर आये। डाल दिये हथियार आपने बिना लड़े ही हार गये। संकट में आवाम फंसी वो दुबिधा में क्यों डाल गये। पाक परस्ती, होकर जनता, पता नहीं क्या पायेगी। अफगानी है कौम निराली कैसे क्या कर पायेगी? याद आज इंदिरा की आई, नाकों चने चबा देती। गनी बेचारे नहीं भागते जनता संबल पा जाती। दोष क्या है मासूमों का, अस्मत क़िस्मत खो बैठे। बहुत बुरे हैं अमरीकन, जो विष बोकर हैं घर बैठे? तालिवान के दस्तों को, यदि दुनिया ने रोका होता। संयुक्त राष्ट्र हिम्मत करते कभी नहीं धोखा होता। भयभीत लगे सारी दुनिया, आतंकी हमले जारी हैं। बिजू का गुस्सा केवल ये, आतंकी सब पर भारी हैं। पर...
कुछ अच्छा नहीं लगता
कविता

कुछ अच्छा नहीं लगता

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** रोज़ के अख़बार नौकरी या व्यापार, गाड़ी-घोड़े कार नगद और उधार, कुछ अच्छा नहीं लगता। सुबह या फिर शाम, काम या विश्राम, मान और सम्मान, प्रसिद्धि या नाम, कुछ अच्छा नहीं लगता। सब टीवी चैनल बोर, केवल कोरोना का शोर, हैं चीत्कार चंहु ओर, टूटती सांस,जीवन डोर, कुछ अच्छा नहीं लगता। बस अपनों की फ़िक्र, और एक ही ज़िक्र, ज़िंदगी का चक्र, कितना विचित्र, कुछ अच्छा नहीं लगता। सब मापदंड ध्वस्त, कोई नहीं है मस्त, इक रोग से परस्त, हैं कोविड से त्रस्त, कुछ अच्छा नहीं लगता। ये अंधकार और हार, क्षमता से अधिक भार, संभव कहाँ उपचार, विस्मृत हुए उपकार, कुछ अच्छा नहीं लगता। सभी मंदिर मस्ज़िद बंद, अस्पतालों में कुप्रबंध, अंदर छुपे हुए जयचंद, नेताओं के मुँह बंद, कुछ अच्छा नहीं लगता। कोरा विपक्षी हल्ला, बिन पतवार मल्लाह, लूट खुल्लम खुल्ला,, शिकवा, शिकायत गिला, कुछ अच्...
हालात
कविता

हालात

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? सब कुछ होगा पास मग़र, तन्हा हो जायेंगे। रिश्ते नातों की मर्यादा पता नहीं कब टूट गई। धन वैभव अम्बार लगा पर क़िस्मत फूट गई। निपट अकेले पड़े बेचारे, जो सांस नहीं ले पाए। क़िल्लत है हर जगह, काश ऑक्सीजन आये। विपदा में ही जीना होगा, दूजों को सिखलायेंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आयेंगे? बार-बार धोते हाथों की भाग्य लकीरें घिसतीं। जीवनरक्षक दवा दुआ, ऊँचें दामों पर बिकतीं। हुआ पलायन मजदूरों का, भूखे प्यासे दिखते। काल कोरोना बन बैठा है, कैसे वो भी टिकते। अपनों के संग रह लेंगे, ये बात सभी दुहराते। अंदर है जो दर्द छुपा, वो खुलकर न कह पाते। पता नहीं कब आ जाए, कुछ, समझ न पाएंगे। क्या किसी ने सोचा था, ऐसे भी दिन आएंगे? परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्...
मन सभी का
कविता

मन सभी का

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मन सभी का... लंबी सज़ा पा गया। ज़माना कहाँ था......कहाँ आ गया। जो दिखता नहीं, अजब दुश्मन हुआ। काम आती न मन्नत.....न कोई दुआ। बंद भगवान हैं,.....क़ैद पूरा जहां। वो कण कण में है तो..जाएं कहाँ। मास्क मुँह पर लगा, न चेहरा दिखे। पुलिस भी नहीं,......पर पहरा दिखे। इस चमन में आकर दिल भर गया। दुष्ट कोरोना क्या से क्या कर गया। पाव भाजी जलेबी..... न पोहे बिके। चाट चौपाटी चौपट... न कोई दिखे। चटोरा शहर, पर स्वाद फ़ीका लगे। घर में राशन भरा... मन रीता दिखे। बाहर निकला है बिजू,अच्छा लगा। प्रकृति प्रीति का साथ सच्चा लगा।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, मह...
आपदा और प्रेम
आलेख

आपदा और प्रेम

कोरोना ने दिखा दिया कि हम भारतीय सच में प्रेम की परिभाषा ठीक से समझते हैं। दया, करुणा, फ़र्ज़, लगभग हर जगह दिखे। नाम की चाह रखने वालों ने दान खूब किया और तस्वीरों के जरिये दिखाना चाहा कि वो मानवतावादी हैं। होड़ लग गई थी प्रदर्शन करने में। कुछ तो दान लेकर दान देते दिखे। पैकेट किसी के वाहबाही कोई दूसरा ले गया। लेकिन काम तो जोरदार हुआ। जरूरतमंद वंचित तो नहीं रहे। कुछ धूर्त भी निकले। ज़रूरत से ज़्यादा मुफ्त का माल जमा कर लिया। समूचे देश में एकता दिखी। लॉक डाउन में तमाम महानुभाव बोर होते दिखे, उबासी लेते दिखे, छटपटाते दिखे, ग़मगीन दिखे, मलीन दिखे। क्योंकि उनके अंदर प्रेम नहीं था। क्रोध, ईर्ष्या, घमंड, ईगो, के कारण ऐसे लोग प्रेम न कर सके। माँ, पत्नी, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री, मित्रों से दिल खोलकर बातें न कर सके। घर में कार्य करने वालों के प्रति दयालु न बन सके। प्रेमी प्रेमिकाओं ने अपार दुख झेले। मोबाइल...
भारत की ललकार
कविता

भारत की ललकार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौलता रणवीरों का, आँख दिखाना बंद करो। सबा करोड़ भारतीय हैं हम, जयचंदों तुम डरा करो। बाँसठ वाला देश नहीं है, बच्चा बच्चा राणा है। अवसर पाते मिट जायेंगे, प्रण हम सबने पाला है। खुद में तू महामारी है, चौतरफ़ा है घिरा हुआ। श्वान सरीखे भौंकों मत, मन से तू है मरा हुआ। पिल्ला भी तो भौंक रहा है, भूख उसे अधमरा किये है। दुनिया भर के चाट कटोरे, मुँह वो अपना सड़ा किये है। सिय के पीहर वालो तुम, भूल गए उपकारों को। रामचंद्र की शक्ति को, और धनुष बाण प्रहारों को। शिव की कृपा नमो की ताक़त भूल नहीं तुम पाओगे। जब भी संकट तुम पर आये, हर जगह हमीं को पाओगे। बिजू की ललकार यही है, नव भारत से डरा करो। बदल चुका है देश हमारा, नहीं बखेड़ा खड़ा करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की ...
लाचारी
कविता

लाचारी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जो राशन मिला था ख़तम हो गया। गरीबों पर हाय क्या सितम हो गया। भूख लगती अधिक, दोष उनका नहीं, कल मिले न मिले ऐसा मन हो गया। बंद पाउच हुए,पान गुटका ख़तम। कोरोना ने ढाया...ये कैसा सितम। तम्बाखू रुलाती..कहीं आती नहीं। ज़िन्दगी बिन उसके...भाती नहीं। दीन नेता हुए,अब दिखते नहीं हैं। न निकलें घरों से, मिलते नहीं हैं। वोट बस्ती के उनको लुभाने लगे। घर भरे हैं जहाँ, फिर भराने लगे। चंद पैकेट लेकर निकलते हैं वो। बनके हीरो कोरोना मचलते हैं वो। खींच फोटो....दनादन डाला करें। आपदा है विकट, मुंह काला करें। मोहल्ले में बांटों, ये व्यवस्था रहे। मन शुद्ध हो, सच्ची आस्था रहे। झाँकी न तुम यूँ दिखाया करो। कभी मेरी गली में आया करो। मुँह सुरसा हुआ, देश खाने लगा। कोरोना अब सच में रुलाने लगा। काम भी है जरूरी...मिलता रहे। पेट खाली और होंठ सिलता रहे? बना ठीक दूर...
यूँ निकल कर
कविता

यूँ निकल कर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** यूँ निकल कर न बाहर आया करो। लॉकडाउन है सबको बताया करो। हुक्म देने की आदत---बुरी बात है, रूठ जाये वो ग़र, तो मनाया करो। रोगप्रतिशोधक क्षमता घटे न कभी, खाओ कुछ भी मग़र, चबाया करो। चाँद पहलू में है क्यों ख़बर न तुझे, चाँदनी रात हो, छत पर जाया करो। झाडू पोछा सफाई कार्य कोई भी हों, हाथ पत्नी का थोड़ा, बटाया करो। कोरोना कोरोना..... करो न पूरे दिन, अन्य अच्छे भी चैनल लगाया करो। मैं अर्जुन बना.....वह बनी है सुभद्रा, स्वयं बनो पात्र उम्दा,दिखाया करो। देव दूतों से बढ़कर हैं, पी एम हमारे, उनसे वायदा किया, वो निभाया करो। राम बन न सको, तो मांगो न सीता, बन कर लंकेश, हलचल मचाया करो। बिजू होना है जो.....वो होकर रहेगा, प्रीति नूतन रहे.....गीत गाया करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कान...
जुआं
कविता

जुआं

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** धर्मराज मत कहो उन्हें, जो हार गए निज पत्नी को। द्वापर युग बेहतर कब था, याद करो हठ धर्मी को। दिखे नपुंसक पाँच पांडव, द्रोण गुरू भयभीत दिखे। अर्जुन जैसे राजकुँवर..क्यों तुमको जगजीत दिखे? जुआं बुरी है बात पता था, धर्म विरुद्ध आचरण था। फिर क्यों खेले धर्मराज, पता नहीं क्या कारण था? सूदपुत्र कहते-कहते अर्जुन नहीं थका करते थे। जाति सूचक शब्दों को, क्यों हर बार बका करते थे? पाँच पति के जिंदा होते, चीर हरण क्या सम्भव था? देव कुंड से जन्मी कन्या, हो लज्जित असम्भव था। पुत्रमोह के बशीभूत, हर युग में पिता दिखाई देता। भीष्म प्रतिज्ञा ये कैसी, क्या नहीं सुनाई देता था? पौरुष भी कायर होता है, धन का लोभ छोड़ नहीं पाये। द्रोण सरीखे महापुरुष, धर्म नीति को जोड़ न पाये? रही चीखती भरी सभा में, द्रोपदि की पीड़ा सुन लेते। भीम सेन की गदा बोलती, दुर्योधन ...
मुसीबत के मारे
कविता

मुसीबत के मारे

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मुसीबत के मारे शराबी हुए। परेशां बहुत सब क़बाबी हुए। पान गुटका भी देखो ग़ायब हुआ। सुधरा ज़माना नायाब हुआ। तेल की धार पर, सबकी नजरें टिकीं। चना दाल तक खूब महंगी बिकीं। बंगला गाड़ी और गहने धरे रह गये। किसानों के घर वो भरे रह गये। एक अदना सा शत्रु, भयानक हुआ। रोग फैला है जिसने जिसको छुआ। सब्जी वाला भगवान दिखने लगा। माल कैसा भी हो, सब बिकने लगा। अचकन पहने न दिखते नेता कहीं। जो हारे थे वो, या फिर विजेता यहीं। पंजा कमल की नदारत है छाया। कंधे झुके हैं, और शिथिल है काया। पुलिस डॉक्टर नर्स योद्धा हमारे। नमन है इन्हीं को हुए ये सहारे। नगर कर्मचारी, हैं ग़ज़ब के हितैषी। दुष्ट करोना तेरी होगी ऐसी कि तैसी।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर म...
समंदर और नदी
कविता

समंदर और नदी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर...सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ...सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल...कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ......कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं...एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र....हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ...या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ..यूँ कि..तीव्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू,.....परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ.....लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा...तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर....तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे....तू बहुत मनचली थी। यार, आजा समा जा, मेरा आग़ोश ले ले। अब ठहर...
कुछ ऐसा करो न
कविता

कुछ ऐसा करो न

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** जहाँ करोना फैल रहा, क्षेत्र वहाँ का सील करो। हटकर नई योजना हो...और नहीं अधीर करो। खोल दुकानें दो सारी, दूरी ज़्यादा से ज्यादा हो चालू हों उद्योग, कमसे कम आधा तो फ़ायदा हो। चंद रईशो की संपत्ति से देश नहीं चल पायेगा। बंद हुए व्यापार सभी, तोकैसे हल मिल पायेगा? वेतन, बिजली, टैक्स आदि, बहुत ज़रूरी होते हैं। कुछ लोग आपदा में भी तो बहुत गरूरी होते हैं। खण्ड-खण्ड भागों में, अब कर्फ़्यू सख़्त लगा दो। जहाँ न फैले कोरोना.....उस जगह छूट दिला दो। मजदूरों से कहो की, वो सब कार्य करें कारखानों में। घर नहीं जायें तीन महीने, रहें वो उन्हीं ठिकानों में। दो मीटर की दूरी हो, अनुशासन कड़ा दिखाना है। बीमारी भी दूर रहे, और मिलकर हाथ बटाना है। जामाती की जेल बनाओ, नित्य पिटाई होती हो। जो-जो अकड़ दिखाए उसकी खूब सुताई होती हो। खुली छूट सेना को दे दो, सील इलाके...
मुस्कराते रहो
कविता

मुस्कराते रहो

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** करो योग घर में, मुस्कराते रहो। सुबह शाम पोछा लगाते रहो। कामवाली को कह दो आना नहीं। वेतन पूरा मिलेगा....बहाना नहीं। न्यूज़ पेपर को...बासा करके पढ़ो। न नुस्ख़े बताओ...न कहानी गढ़ो। हवन कर, धुंआ से... हवा शुद्ध हो। अब करोना के संमुख बड़ा युद्ध हो। नमो को सुनो....और पालन करो। घरों में रहो.... और तनिक न डरो।   परिचय :-डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak।com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंद...
प्रलय या महामारी
कविता

प्रलय या महामारी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** धन वैभव और प्रचुर सम्पदा के स्वामी थे। राजा मनु के राज्य कई, वो निष्कामी थे। रानी सतरूपा, प्रियपुत्रों की थी किलकारी। भूमंडल के मालिक, थे जनता के हितकारी। प्रलय हुई बचा नहीं पाए, सब कुछ छूट गया था। ख़त्म हो गया राज्य समूचा, पल में डूब गया था। रानी सतरूपा के संग, कदम हिमालय ओर चले। संभल न पाये बाहुबली, प्रकृति कोप से गये छले। जीवन फ़िर से प्रारंभ हुआ था, पीढ़ी दर पीढ़ी तक। हम पहुँच गये हैं शायद आधुनिकता की सीढ़ी तक। असहाय हुई पूरी दुनिया, जब दुष्ट करोना ललकारे। गुरु द्रोण नहीं, भीष्म नहीं,,,,,,कौन इसे अब संहारे? अमरीका इटली घबड़ाये, चीन गले तक भरा हुआ। ईरान अकड़ को खो बैठा, रूस फ्रांस भी डरा हुआ। युगपुरुष नमो की सीख यही, धैर्य धरा पर हो जाये। चैन टूटने लगे रोग की, जो जहाँ वहीं पर रुक जाये आधा पेट मिले भोजन, महामारी को हम भगा सकें विश...
करोना होली
कविता

करोना होली

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** होली खेल संग, रंग भर नयन में, पिचकारी छुओ मत नेह बरसाइये। बृज की धरा मन में धारण करो सब, बचाओ देह, मन से रंग जाइये। भय से भरा विश्व, हठ मत करो कुछ, ग़ुलाबों के फूलों से घर को सजाइये। प्यार हो राधा सा, कृष्ण की मुरली हो, नमन कर कष्ट को मिटाइये। गोबर के कंडे घृत हो गऊ का,थोड़ा सा उसमें कपूर भी मिलाइये। बैठ पास होली के रोली का टीका, फ़ीका न हो माथा झुकाइये। घर का बना भात, गुड़ डाल अच्छे से, केसर मिलाकर ढ़ंग से पकाइये। मखाने की खीर में मेवा मुठ्ठी भर, मिट्टी का एक चूल्हा जलाइये। मावा है दूषित, गुजियाँ हों गुड़ की ग़र, जो भी बनें, घर पर खिलाइये। ताला लगा द्वार, अंदर छिपे हम, खोलें न कैसे भी, द्वार मत खटखटाइये। खानी मिठाई अन्य कोई रसीली आदि, देख आज मेरे वाट्सअप पर आइये। हाथ मत मिलाओ, गले मत लगाओ, नमस्ते नमो नमः सबको सिखाइये। अंगोछा गले डाल,...
पितरेश्वर
कविता

पितरेश्वर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** पितृदोष मिट गया शहर का, प्रण लेकर पूर्ण किया मन से। बरसों तक की गुप्त साधना, महानायक हो तुम जनजन के। अन्न ग्रहण न किया आपने मन की अभिलाषा पूर्ण हुई। हो विकास चहुं ओर शहर का, जो भी बाधा हो दूर हुई। शहर भोज ऐसा भारत में, न दिया न शायद दे पाये। हों अनुज सरीखे मेंदोला, तोकार्य अपूर्णन रह पाये। इंदौर शहर की शान बढ़ी, थी घोर तपस्या पावन भी। छटा मनोहारी हरियाली, लगती हमको तो सावन की। हो प्रदेश के सर्व मान्य, ये देश आपको जान गया। बंगाल जगाकर थके नहीं, केंद्र आपको मान गया। पुण्य आपके कर्म आपके, सब भलीभूत होने वाले। कर्तव्य पथों पर डटे रहो, अधिकार शीघ्र मिलने वाले। हो श्रेष्ठ सियासत के योद्धा, नीति निपुण राजनेता। महाभारत के अर्जुन जैसे, भारत माँ के सच्चे बेटा। रंग भगवा से हो रंगे आप भगवान राम की कृपा रहे। हनुमान ह्रदय में बसे रहें, वाणी ...
दोस्त
कविता

दोस्त

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** दोस्त हैं ज़िंदगी पर सभी तो नहीं। ढूँढ़ इक मित्र, जिसमें कमी तो नहीं? जो सभी के रहें, मत मानो उन्हें। दोस्त हैं ये नहीं, थोड़ा जानो इन्हें। जो हवा देख कर रुख़ बदला करें। वह किसी के नहीं, आप समझा करें। बात हर बात में, वो जो बदला करें। दोस्ती ये नहीं जी, क्यों सज़दा करें? यूँ तो दुनिया में होता, फ़क़त स्वार्थ है। हुआ और न होगा .... कोई निस्वार्थ है। महज़ पहिचान को, तुम दोस्ती मत कहो। जश्ने शिरक़त रहे, खुशक़िस्मती भर रहो। जो छुपाएं सभी कुछ, न बतायें कभी। मिलें वो सभी से .... न मिलायें कभी। महफ़िलों में बुलाकर ... तबज़्ज़ो न दें। है दोस्ती खूब गहरी, पर इज़्ज़त न दें। दोस्त दुश्मन में , जो फ़र्क़ जाने नहीं। बिजू दोस्त उनको, कभी माने नहीं।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण क...
सियासत
कविता

सियासत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** कहाँ गए वो दिन भारत के, सम्मान सभी का प्यारा था। मर्यादित भाषा थी सब की, कर्तव्य हमारा नारा था। आक्रोशित होना बुरा नहीं, अंदर के भाव नियंत्रित हों। मृत हुई आत्मा, मन कुंठित, तुम बुरी तरह क्यों चिंतित हो? पहले पी एम को याद करो, इन्दिरा, राजीव महान हुए। उनके कुल के तुम वारिस हो, गुण उनके तुममें नहीं छुये। भद्दी गाली, सतही भाषा, डंडे मारो, क्यों बोल गये। देख भीड़ जनता की क्यों, जहर जुबाँ से घोल गये? होकर बाशिंदे मूल रूप से, कश्मीर भुला कर रोये कब? राम लला का केस चला .... कैसे बरसों तक सोये तब? धारा हटी तीन सौ सत्तर, बेचैन हुए कपड़े फाड़े। अच्छे काम सुहाये कब, हर जगह अड़ंगे ही डाले। मनमोहन को भी तंग किया, घोषणा पत्र भी फाड़ दिया। अब तलक हमें कुछ याद नहीं, तुमने क्या अच्छा काम किया? अधीर आपका नेता है, वो जोर-जोर चिल्लाता है। दो कौड़ी का ...
बेटी
कविता

बेटी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** अंतर्मन के इक कोने में ..... उसे बिठाकर रखा है। बेटी है तीरथ चारधाम, मंदिर मस्ज़िद मक्का है। शब्द शब्द बेटी बन जाता ... भाषा भाव मनोहारी। दिल धड़कन में रहती है, उपवन की है हरियाली। परिवर्तन की आँधी में, माँ तो उसकी डरने लगती। बेटी है इक मंत्र सरीखी, ह्रदय पीर हरने लगती । उच्च मानकों का संबोधन, सर्वोत्तम होती है बेटी। घर वो कभी स्वर्ग नहीं होता, जहाँ नहीं होती बेटी। दो कुल की इज़्जत, मर्यादा,बेटी क़िस्मत होती है। कष्ट ज़माने भर के हों, कभी न विचलित होती है। जिस कमरे में बचपन बीता, रोकर जहाँ हँसी बेटी। मंदिर एक बना देना.....उस जगह जहाँ खेली बेटी। सभी खिलौने बचपन के, मुस्काते हैं बनकर बेटी। गुड्डे गुड़िया चीता भालू, सब कहते खुद को हैं बेटी। पेन, पेंसिल, रबर सॉफ़्नर, बेग, अनछुए आदि-आदि। वक़्त मिले चर्चा कर लेना, सोए ना होंगे कई रात। होंग...
किनारों में बंधकर
कविता

किनारों में बंधकर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर ..... सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ..... सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल ..... कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ..... कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं ..... एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत ..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र ..... हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ ..... या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ, यूँ कि ..... तीब्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू ..... परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ ..... लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा ..... तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर ..... तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे ..... तू बहुत मनचली थी। ...
माँ
कविता

माँ

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ का अभिनन्दन प्रकृति करे। धरा खेत सब .... हरे भरे। सरसों है .... पीत बसन तेरे। पीली चादर .... अद्भुत डेरे। स्वर ताल हमें सिखला दे माँ। मैं क्या गाऊँ .... बतला दे माँ। लिखूँ किताब, या अभी नहीं? कुछ ठीक ठाक,कुछ जमी नहीं। शायद तुझको हैं .... काम बहुत। माँ तेरा है जग में .... नाम बहुत। दे अलग विधा.... स्वर हों न हों। पाऊँ कुछ कुछ, कुछ खोना हों। जो भी हो .... उसे जगा भर दे। हे जग जननी .... कुछ तो वर दे। अब दौर कलम का चला गया। मोबाइल में सब .... लिखा गया। चरणों में चढ़े .... फूल नकली। ना महक़ कोई.... ना हैं असली। असली आशीष.... ज़रा दे माँ। स्वर लोरी.... मुझे सुना दे माँ। सुत बिजू तेरा.... तू मेरी माँ। सबको ये बात.... बता दे माँ।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में...