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Tag: बृजेश आनन्द राय

पीली-पीली सरसों फूली
कविता

पीली-पीली सरसों फूली

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** भटकी बयार राहें भूली, कुंजन-कलिन बहारों में। पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। कभी कुहासों में पालों की, बूँदे टप-टप गिरती हैं कभी सुबह सूरज की किरणें, साक सुनहला करती हैं आलू हरे-भरे खेतों से, हरियाली महकी जाए चमकीली अलसी पुष्पों से, रँग लतरी में भर आए लहराते अरहर को देखो, बांगर-खेत खदारों में। पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। शिशिर झूम के हवा उठाए, तृण-तृण में कंपन आए चना-मटर अरु बरसीमों की, खेती सुख से लहराए गेहूंँ के उठते सुगन्ध से, आस जगे सबके मन की गन्ने के खेतों में देखो, पोर-पोर बरसे रस की गाजर मूली लहसुन लहके, छोटे-छोटे क्यारों में । पीली-पीली सरसों फूली, पग-पग खेत कछारों में।। धुंँधले-बादल बैठन चाहें, धरती की अकवारी में टप-टप बूँदे बरसन चाहें अमवा अरु महुआ...
तेरा-मेरा साथ सुहाना
कविता

तेरा-मेरा साथ सुहाना

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरा-मेरा साथ सुहाना। ऐ 'चन्दा'! तुम ॲगना आना।। बचपन से ही साथ रहें तुम किस्सों की 'बहु-बात' रहे तुम संग तुम्हारे तारे देखे 'विस्तृत-क्षितिज-किनारे' देखे जब-जब पहलू में तुम आए मीठे-मीठे सपने लाए 'सपनों में फिर याद समाना'। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। सॉझ रहे तुम मेले में जब लौट न सका अकेले में तब साथ तुम्हारे यादें आईं यादों में हॅस, रातें-आईं साथ मेरे तुम छत पे आए नभ से आ ऑखों में छाए फिर ऊपर-नीचे तक छाना। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। जलधारा में विम्ब तुम्हारे मन्दिर-मन्दिर दीप तुम्हारे कदली-वट-ॲवला-पीपल-तरु- 'तुलसी-चौरा', 'रीत-तुम्हारे' तुमने श्रद्धा के ऑचल में कितने दीपक-राग सजाए अर्चन बन गया 'गान-पुराना'। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्र...
मधु मोह कल्पना नश्वर है
कविता

मधु मोह कल्पना नश्वर है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने सोचा कल्पान्तर में तेरा- मेरा प्यार अमर है। तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह-कल्पना नश्वर है'।। ‌अद्भुत अनन्त आश्चर्य भरी जब प्रथम बार सम्मुख आई। मन ने चाहा बस तुम कह दो; 'हे प्राण! तुम्ही हो सुखदाई। मम-आत्मरूप, आरंभ-शुभम् जीवन की तुम अभिलाषा। तुम हो प्रेम-प्रणय का अम्बर; मैं धरा-लोक की परिभाषा।' कुछ दिन तो सब सच लगा मुझे: 'ना हम-तुममें कुछ अन्तर हैं।' तुमने जीवन में समझाया; 'मधु-मोह कल्पना नश्वर है'।। निषिद्ध किया ना तूने कभी; जो कुछ भी ईच्छा थी मेरी। रूप- रंजना अभिसारों में; हे समवय! सम- ईप्सा तेरी। प्रियं दर्शिनी, प्रियं भाषिणी गौर-वदन, नयना सुखकारी। तृप्ति-अमरता-आलिंगन-की; भू-लोक-विस्मृता आभा री! चन्द-वर्ष सब ऐसे बीता जैसे, 'बरसे पावस ईसर है'। तुमने जीवन में समझाया; 'मध...
किसे जगत से क्या मिलना है!
कविता

किसे जगत से क्या मिलना है!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** किसे जगत में क्या मिलना है; 'न निश्चित-समय, न दिन-रातें!!' प्रेम - प्यार बस कहने को है; 'कैसा-चॉद', चॉद की बातें !! बचपन से कितने मित्र मिले; सपनों के कितने चित्र खिले! भॉति-भॉति के मुख-दर्शन में; 'मन-लूटे-हुए-चरित्र' मिले! सबकी-सब बहुरंगी-माया; पर किससे कितना निभ पाया! जहॉ-जहॉ थी प्रेमिल बातें; वहॉ-वहॉ विरहा की छाया! तब वो लगता कितना सच था: रहे राग बस कल्पित गाते! 'प्रेम-प्यार' बस कहने को है; 'कैसा-चॉद', चॉद की बातें!! 'दीर्घ-नयन से दृष्टि व डोरे; काले - सर्पिल - केश - घनेरे! दमकति-दशन, कपोलन-गोरे; सुमुखि-सलोनी, रूपसि-भोरे!' उस अवसर सब रही कल्पना... प्रिय-दर्शन की विविध-अल्पना! सदा खोज वह उत्तम सुख की जिसमें मन की व्यर्थ जल्पना..! आज सोच में डूब-डूबकर ऑसू में कंकर ही लाते! 'प्रे...
लैंसडाउन की उॅचाइयों पर
कविता

लैंसडाउन की उॅचाइयों पर

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** लैंसडाउन की उॅचाइयों पर- टहलते हुए... 'शीतकालीन ठंडी-तीव्र हवाओं और सख्त चट्टानों के बीच ऊर्ध्व-वृक्षों की छाया तले दोपहर से तिरछे पड़ते सूरज की छुट-पुट किरणों के बीच- लहराते केशों के बीच मूर्तमान गौर वर्ण का 'श्वेत-फूल', दृष्टि निच्छेपित थोड़ा-नीचे पथ पर सखियों संग मुस्क्याता- अपनी श्वेत-दंत-प्रकाशित- लाल होठों की पंखुड़ियों के बीच- अंजाने ही लहराता है कौमार्य की लहर!' हृदय वहीं रुक जाता है.. एक युवा-यात्री, ठिठक-ठिठक-कर अपार आभा से गुजर जाता है... -घायल होकर ताउम्र के लिए...! -बस इक मुस्कान की याद के साथ... इक लम्बी ज़िन्दगी बीत जाती है... -नहीं बीतती है उस मुस्कान की याद...! ....नहीं लौटना होता है कभी उन पर्वतों पर... यह जान-बूझकर कि न वह फूल स्थिर होगा न वह मुस्कान, ...
सर्व-दीपक जला हम उजाला किए…
कविता

सर्व-दीपक जला हम उजाला किए…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा। दीप की संस्कृति आज उज्ज्वल हुई, अब चली जा रही है गहनतम अमा। हर नगर हर निलय आज रौशन हुआ, हर जगह आज दीपित है एक शमा। मन हर्षित हुआ, तन है पुलकित हुआ, सप्तरंग सजी है दीया अरु दशा। सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।। 'राग-दीपक' अलापित कहीं हो रहा, ये हृदय आज स्वर में कहीं खो रहा! उठ रही है चहक आज हर द्वार पे, जैसे बाती-दीया का प्रणय हो रहा ! गीत-माला हृदय की महकने लगी, अरु बहकने लगी है हर एक दिशा। सर्व-दीपक जला हम उजाला किए, दूर होने लगी ये तिमिर, ये निशा।। ये 'प्रकट-बाह्य-अन्तर-की' ज्योति जली, जो मन-उत्सवी का सद्व्यवहार है। है सदा ही सृजन जिस मनुज के हृदय, ऐसे हर्षे-रसिक का व्यापार है। समशीतोष्ण-जलवाय...
हे मम आत्म सखि
कविता

हे मम आत्म सखि

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** संसार के किसी अन्य व्यक्ति से नहीं एक मात्र तुमसे आशा थी कि-हम-तुम... 'साथ बिताए न बिताए हर इक समय'- अन्तिम समय से पहले एक दूसरे के समक्ष- सत्य के साथ बिताएंगे! बहुत लम्बी जिन्दगी जी लिया हम दोनो ने पर जाने क्यों लगता है कि- 'मेरा सम्पूर्ण सत्य तुम्हारे थोड़े से असत्य से भी बहुत छोटा है!' जीवन के तमाम सम्मेलनों में एक मात्र तुमसे ही सारे असत्य कह लेने की छटपटाहट थी! एक मात्र तुम्हारे ही समक्ष अपने हर एक मौन पर बयान करने..रो-लेने... सान्त्वना पा-लेने... और हर एक गॉठ खोलकर शून्य के समान हल्का हो लेने का मन था बस थोड़ा सा ही तुमसे जानना था कि- 'क्या सोचती हो तुम फिर कभी हमारे साथ के बारे में!' यद्यपि हम दोनो के कर्म अलग-अलग हैं तो परिणाम भी अलग होंगे! पर क्या अपने सम्पूर्ण सत्य...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
कविता

जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की एक छोटी सी- 'नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर-सुखमय -प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा उसकी हॅसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की...; और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा;' किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूलधूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से ऑखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में ...
उनकी याद में
कविता

उनकी याद में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उनकी याद में ऑखें लगी, बरसात हो गई! बीते सपनों से मुझे जगा, ये 'रात' सो गई !! यही रात जो प्यासे जग की किस्से सुनती थी यही रात जो चॉदनियों में हॅस-हॅस मिलती थी यही रात कि जिसमें छत पे पायल छमके थे यही रात जो अभिसारों में खोकर रहती थी यही रात आज ऑसुओ की लड़ियॉ पिरो गईं! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई!! यही रात जिसमें सब-लुटकर तुमको पाया था यही रात जिसमें गीतों-से हृदय सजाया था यही रात जिसमें अम्बर में तारे बिखरे थे यही रात, रूप से तेरे, हम भी निखरे थे यही रात आज हर सुख पे संघात हो गई ! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई !! यही रात है जिसमें तुमको अपलक देखा था यही रात है जिसने तुमसे विधि को लेखा था यही रात में रूपवती इक सजनी सोई थी यही रात है जिसने मीठी यादें बोई थी यही रात आज विर...
अब कोई भी गीत न होगा
कविता

अब कोई भी गीत न होगा

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा! अब ना कोई कविता होगी अब कोई भी गीत न होगा! जिस प्रकृति में चित्र है तेरा वो अब कितना रिक्त रहेगा जिस पानी में दर्पण तेरा उन झीलों को कौन सहेगा जिन झरनों में कभी नहाए उनमें कैसे विम्ब भरेंगे जिन वृन्तों को छूते थे तुम वो कैसे अब हरे रहेंगे कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम सा कोई मीत न होगा! दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा।। सूने पनघट पर कब जाने गोरी तेरे पॉव पड़ेंगे अतृप्त हुए यदि मानस-हंसा कैसे उनके दिन बहुरेंगे जिन बागों की तुम्हीं मोरनी उनमें कैसे स्वर बिखरेगा जिन डालों पर कूजी कोयल उनमें कैसे बौर भरेगा कैसे तुम्हें बताऊॅ प्रियतम! तुम बिन मौसम-शीत न होगा। दूर न जाओ मुझसे प्रियतम! अब जीवन-संगीत न होगा!! शरद-चॉदनी मे...
उनकी याद में …
कविता

उनकी याद में …

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उनकी याद में ऑखें लगी, बरसात हो गई! बीते सपनों से मुझे जगा, ये 'रात' सो गई !! यही रात जो प्यासे जग की किस्से सुनती थी यही रात जो चॉदनियों में हॅस-हॅस मिलती थी यही रात कि जिसमें छत पे पायल छमके थे यही रात जो अभिसारों में खोकर रहती थी यही रात आज ऑसुओ की लड़ियॉ पिरो गईं! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई!! यही रात जिसमें सब-लुटकर तुमको पाया था यही रात जिसमें गीतों-से हृदय सजाया था यही रात जिसमें अम्बर में तारे बिखरे थे यही रात, रूप से तेरे, हम भी निखरे थे यही रात आज हर सुख पे संघात हो गई ! बीते सपनों से मुझे जगा, ये रात सो गई !! यही रात है जिसमें तुमको अपलक देखा था यही रात है जिसने तुमसे विधि को लेखा था यही रात में रूपवती इक सजनी सोई थी यही रात है जिसने मीठी यादें बोई थी यही रात आज विर...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण ,पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। सर्व-प्राचीना-संस्कृत-जननी भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा,अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने- पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन-शिक्षा-धारा'।। ब्रज, बुन्दे...
तो उपकार हमारा होता …
कविता

तो उपकार हमारा होता …

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ हम कहते, कुछ तुम सुनती, कितना सरल सहारा होता... प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। तीसो दिन जो साथ कभी था, अब इक-दिन भी पास न आए, कहाँ गया वह निष्ठुर होकर, कहाँ भाग्य ने खेल दिखाए, कभी-कभी जो दर्शन होता, तो संसार हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। जब से मुझसे दूर हुई तुम, मैं एकांत से निकल न पाया, तेरे दर्शन को उर तरसे, मन व्याकुल होकर बौराया, संग व्यतीत की याद न आती, तो भी गुजर हमारा होता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। सावन-बरसा, कजरी आयी, तुमको कब मेरी सुधि आयी हम तो जरे-बरे भादौ में, तुझे क्वार की बात न भायी, चौमासे की बूंँद बिसारी, तन-मन जाए प्यासा-रोता...! प्रिये, कभी जो बात पूछती, तो उपकार हमारा होता।। ...
लगता ये मन भी पागल है
कविता

लगता ये मन भी पागल है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे मौन से तड़प उठा हूॅ, हृदय आज फिर-से घायल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है। जाने क्या तुझमें भाषित है, प्रिये-कल्पना कुछ शासित है; अन्यमनस्क तुझको देखा हूॅ, भाग्य, प्रेम पर फिर हासित है! कैसे खुद को समझाऊॅ मैं, छिना प्रेम का ज्यों ऑचल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। उच्च भाल पे शिकन पड़ी है, भौंह बीच इक बूॅद जड़ी है; स्वर्णहार गलहार- सुशोभित, कीर-नासिका-नथन-लड़ी है; कर्णफूल हैं लटके जैसे- श्रवणद्वार पे इक सॉकल है। रूप की प्यासी ॲखियों संग- लगता ये मन भी पागल है।। 'दृढ़-छरहरी, सुन्दरी-काया, रंग-ढंग की मोहक-माया; खुला-केश करधन तक बिखरे.. जैसे नाग-मणि की छाया'; अब ना श्रद्धा इन बातों में- बिछिया-चुप, मुखरित-पायल है। रूप की प्यासी ॲखियों...
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
गीत

हम तेरे मधु-गीत बनेंगे

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर, जीवन का संगीत रचेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।। दर्द-दर्द जब उभरे होंगे, भाव-भाव जब निखरे होंगे, अक्षर-अक्षर आँसू बनके- शब्द-शब्द में बिखरे होंगे! तब हम ‌ छन्दों की माला में, बिरहा के सब रीत लिखेंगे! तुम मेरी कविते बन ‌ जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। जब लहर उठेगी यादों की, जब आह! उठेगी वादों की, 'कितना सुन्दर साथ हमारा, ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!' सुखदा-संध्या के मौसम में- बारहमासा - प्रीत लिखेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे, तालों पे जब ताल चलेंगे, कैसे रोक - सकेंगे मन को, नर्तन को जब पॉव उठेंगे! तेरी लय पाने की खातिर- सरगम के कुछ नीत रखेंगे! तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मध...
हिन्दी
कविता

हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की - 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। सर्व-प्राचीना, संस्कृत-जननी, भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ - अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा, अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन - शिक्षा - धारा...
हमारा अभिमान हिन्दी है
कविता

हमारा अभिमान हिन्दी है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की धरती और गगन का अभियान हिन्दी है देश की स्वतन्त्रता और सम्प्रभुता का सम्मान हिन्दी है सिद्ध, नाथ, भक्ति, रीति, छाया का बखान हिन्दी है कोटिक सरस्वती पुत्रों का तीव्र स्वाभिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। दुहिता देववाणी की जनमन कल्याणी हिन्दी है अतिप्रिय वीणापाणि की सप्तसुर संन्धानी हिन्दी है भारत के मनुपुत्रों के हृदय की गान हिन्दी है भाषा, विज्ञान, साहित्य समाज का अनुसंधान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। भारत की अस्मितारक्षा का इतिहास हिन्दी है बहुरीति मान्यता क्षमता का विकास हिन्दी है आर्यावर्त्त की धर्मध्वजा का आकाश हिन्दी है सहस्र वर्षों से प्रवाहित गंगा सी गतिमान हिन्दी है हमारा अभिमान हिन्दी है। चन्द्रकोश पे महकती फूलों सी बोली की मा...
अब ना मुझे बुलाना प्रियतम
कविता

अब ना मुझे बुलाना प्रियतम

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब ना मुझे बुलाना प्रियतम, अब न कभी हम फिर आएंगे जाते हैं अब जग से तेरे, अल्प है जीवन, जी जाएंगे अब न हमारा हॅसना होगा अब न हमारे अश्रु मिलेंगे अब ना कोई पीड़ा होगी अब ना कोई गीत बनेंगे तेरे सम्मुख प्रणय निवेदन अब न कभी हम दुहराएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे जब-तब अम्बर में उतरातीं गिरतीं आकर सीने में झिलमिल 'यादें' पसरा करतीं मन-ऑखों और प्राणों में अब ना बदली छाने देंगे अब ना बूॅद-बिखर पाएंगे जाते हैं अब जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे चर्चाऍ भी दूर रहेंगी पास न होगी परछाईं अब सॉसों की ऑहों से ना होंगी तेरी रुसवाई सिसकी-हिचकी की आहट से दूर कहीं हम हो जाएंगे जाते अब हैं जग से तेरे अल्प है जीवन, जी जाएंगे तेरे मन में बात बसी जो उसको मैं कैसे ना जानूॅ ...
कुछ लोग दीवाने होते हैं
कविता

कुछ लोग दीवाने होते हैं

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ लोग दीवाने होते हैं विरले अन्जाने होते हैं राष्ट्र -धर्म के लिए जिन्हें नव-राह बनाने होते हैं उनको धन की कुछ चाह नहीं कुछ जीवन की परवाह नहीं पा सका न कोई थाह कभी सागर मस्ताने होते हैं सारा जग उनका अपना है पर स्वदेश पहला सपना है मातृभूमि-भाषा पे मिटकर कुछ अलख जगाने होते हैं छोड़ दिया घर-बार जिन्होंने पाया सबका प्यार उन्होंने कुल-वंश में नहीं बधें जो- अभिनव-पहचाने होते हैं नींद नहीं जिनको प्यारी है बस-करने की तैयारी है सबसे प्रिय सबसे अलग- कुछ मन में ठाने होते हैं चलते रहते नई राहों पर रोते हैं जग की ऑहों पर सुख-दुःख में जिनके कर्म- सदा - पहचाने होते हैं ना सोचें क्या राह कठिन है ना जानें क्या बात कठिन है देश-राह में चलने वाले- अद्भुत सैलाने होते हैं परिचय :-  बृजेश आनन...
बसन्ती महक उठी
कविता

बसन्ती महक उठी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बासन्ती, महक उठी ! चंचल-प्रकृति-बीच- कोयल बहक उठी ! गुलमोहर की डालों-पे गिलहरी-लहराई ! अढ़उल की शाखों पे- गौरैया-शरमाई ! सेमल-पलास बीच दिशाऍ लहक उठी ! पीपल पे हरी-हरी बदली छिटक उठी...! पाकड़ पे 'उजास' फूटा, बरगद पे ठिठका ! मौसम का ठौर-ठौर वृक्षों पे अटका ! महुआ के गुंचो में रसना समा रही ! अमरइया की मंजरी- किसको न भा रही ! मोरों को लय-ताल तीतर समझा रहा.. कपोत कुछ आगे फिर- पीछे-को जा रहा.. ! नीम के कोतड़ में तोते आनन्द-भरें... कठफोड़वा के श्रम पे ना जरा भी गौर करें..! जामुन के फूलों पे- भवरी-लहराई ! छींट-सारी पहनाई! शिरीष की शाखों-पे कर्णफूल लटक रहे ! अमलताश अब भी- पीताभ को तरस रहे! अर्जुन ने देखो, नव-किसलय है पाया! गूलर का फूल कहॉ सबको नजर आया! अन्दर ही अन्दर 'प्रकृति'...
गौरैया
कविता

गौरैया

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा दिन-भर किया-करें धमा-चौकड़ी फेरा एक नहीं, दो नहीं दस - बीस में आऍ कभी-कभी डेरा करें कभी मंडराऍ बच्चे देख हर्ष करें कभी करें टेरा अढ़उल के फूलों में चीड़ियों का बसेरा सुबह-शाम चीं-चीं-चूॅ-चूॅ, करें ना अघाऍ केलों के पत्तों में दौड़ - दौड़ जाऍ लगे वहॉ घोसल में चुज्जों का जनेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा आर्यन जब पास जाए वो भी फुदक आऍ आर्या भी मम्मी से चावल मॉग लाए चारो तरफ बिखराए बनाकर के घेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा इधर-उधर दाना चुगे दौड़े - कूॅदे धाऍ जरा सा आहट मिले फर्र से उड़ जाऍ पीछे-पीछे दौड़ें सभी हो - कर फिरेरा अढ़उल के फूलों में चिड़ियों का बसेरा परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश)...
ऐ वसन्त!
कविता

ऐ वसन्त!

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐ वसन्त! तुम मत लाना पानी संग पत्थर; सरसो खड़ी है हमारे खेत में! कुछ दिन रुक जाना, फिर बरसाना; पर केवल रसधार! पकने वाली है अरहर की फलियॉ, लगने वाली है गेहूं में बाली; अपनी सखी हवा से कहना, 'धीरे बहने को' ; लोट न जाने देना अलसी को, जी भर कभी निहारना; नाचते चने के ऊपर- लहराते लतरी को! चूक न करना कोई ! बहते रहना, फागुन से चैती तक... निर्बाध ... अनिन्दित... रसमय होकर!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
कुछ भी स्थिर नहीं है जग में
कविता

कुछ भी स्थिर नहीं है जग में

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ भी स्थिर नहीं है जग में 'रूप-रंग' झुठलाना होगा! ठुकरा कर 'प्रणय-निवेदन' मेरा प्रिय, इक दिन पछताना होगा...!! ज्यों-तेरा बचपन है बीता त्यों-बीतेंगे दिन यौवन के साँझ घिरी आती है देखो, 'इन्द्रजाल-जीवन-अम्बर-के!' ये 'गगन-सिन्दुरी' भी जाएगी... 'सब-स्याह-में-खो-जाना होगा!' ठुकरा-कर प्रणय-निवेदन मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। मैं मन्दिर में देख रहा हूँ, 'प्रत्युष का इक दीप बुझ रहा, जहाँ अगुरु-धूम सुवासित था, वहाँ उमस औ घुटन उठ रहा', 'मन-सुकून' था जिस दर्शन में- अब-लगे न फिर पाना होगा... ठुकरा-कर 'प्रणय निवेदन' मेरा प्रिय, इक-दिन पछताना होगा।। 'नव-मूरत' का मोह है केवल 'न-विग्रह-प्राण-प्रतिष्ठित' है अन्तर्मन में झाँक के देखो! 'सत-सुन्दर-छवि' स्थापित है 'नयन-यवनिका' फिर से खोलो 'चिर-सत...
हे मॉ, हे मॉ सरस्वती
भजन, स्तुति

हे मॉ, हे मॉ सरस्वती

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे माँ, हे माँ सरस्वती विद्या-दायिनी, माँ भगवती! नत-सिर, निमीलित नयन प्रणम्य शिरसा, करूँ निवेदन रुग्ण है आज, विश्व-जीवन उद्धार का कुछ करो चिन्तन हे माँ, हे माँ प्रज्ञावती विद्यादायिनी, माँ भगवती! संकट में है मनुज-जीवन नाश का है सर्वत्र-दर्शन अज्ञानता का है प्रवर्तन करो, करुणा का आवर्तन हे माँ, हे माँ विद्यावती विद्यादायिनी, माँ भगवती! वीणा की मधु-रागिनी से कमण्डल-प्रवाहिनी से दिव्य-ज्ञान-संजीवनी से सर्व-प्राण का संचार कर दो हे माँ, हे माँ जीवनदात्री विद्यादायिनी, माँ भगवती! अस्तित्व का सागर लहराए मन, जीवन-गीत गाए अमरता की ज्योतिपुंज फिर मनुजता में समा जाए हे माँ, हे माँ मनुष्यमती विद्यादायिनी, माँ भगवती! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं ...
आओ खाएँ चूड़ा-लाई…
कविता

आओ खाएँ चूड़ा-लाई…

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ खाएँ चूड़ा लाई 'चाऊ-माऊ', खिचड़ी आई मुन्ना आओ, मुन्नी आओ झुन्ना-टुन्ना, तुम भी आओ आओ सारे बच्चे आओ सब पुआल पर बैठें आओ गजहर पर सभी सज जाओ कुरई अदल-बदल कर खाओ बैठो, बोर-चटाई लेकर गुड़-तिल और चबैना लेकर देखो, धूप सुहानी निकली लगता निज-घर लौटी बदली बहु-दिनों से छायी हुई थी सबसे खार खाई हुई थी दादा जी को खूब सताया 'झुनझुन-मुनझुन' को रिसियाया सुन्दर बाछा-बाछी हैं ये द्वार-दौड़ के साझी हैं ये बारिश-मड़या में रहते थे टाटी से झाँका करते थे आज जब पगहा है निकला देखो, कैसे दौड़े अगला! श्वानों के शिशु खेल रहे हैं पटका-पटकी मेल रहे हैं कूँ-कूँ कभी काँय-काँय करते कभी ये-वो भारी पड़ते रानू-चीकू, पतंग उड़ाते एक दूजे से पेंच लड़ाते, जब 'कोई-जन' पतंग उड़ाए काट दिये पर क्यों पछताए पतंग खेल भैय्या लोगों का ...