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Tag: भीमराव ‘जीवन’

बारूदी बस्ती
गीत

बारूदी बस्ती

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अरमानों की मौन अर्थियाँ, रोज निकलती हैं। इस बारूदी बस्ती में अब, श्वासें डरती हैं।। हिंसा ने खुशियों को खाई, जब त्योहारों की। अलगू जुम्मन बातें करते, बस हथियारों की।। समरसता से डरी पुस्तकें, आहें भरती हैं।। क्षुद्र स्वार्थ में इस माली ने, पूँजी कुछ जोड़ी। हरे-भरे सम्पन्न बाग की, मेड़ें सब तोड़ी।। कलियाँ बासंती मौसम को, देख सिहरती हैं।। डरी अल्पनाएँ आँगन से, अब मुँह मोड़ रही। हँसिया लेकर बगिया विष की, फसलें गोड़ रही।। गर्वित-गढ़ में न्याय-कुर्सियाँ, पल-पल मरती हैं।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
स्वर बेदम है
गीत

स्वर बेदम है

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** राही का टूटा संयम है। इस विकास का क्षितिज अगम है।। हाँक रहा है लोकतंत्र को, थामे वल्गाएँ सौदाई।। जहाँ अडिग सौहार्द खड़ा था, वहाँ घृणा ने खोदी खाई।। ऋतुपति के संपन्न सदन में, पत्र-पुष्प की आँखें नम है।। फसलों पर संक्रामक विष का, भ्रामक रुचिकर वरक चढ़ा है। कालचक्र ने श्वेत वसन पर, कलुष कुटिल आरोप मढ़ा है।। नोंच दिया हर तना वृक्ष का, नाखूनों में उसके दम है।। दीवारों की कानाफूसी, बदल रही है दावानल में। जलकुम्भी ने डेरा डाला, समरसता के शीतल जल में।। देख रही आँखें जो बेबस, रक्त सना पतझड़ मौसम है। पाँच पसेरी लालच ने बुन किए सघन आँखों के जाले।। लगा लिए हाथों से अपने, उजले कल के द्वारे ताले।। सिले हुए अधरों के भीतर, कैद विरोधी-स्वर बेदम है।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा प...
अगणित व्याल
गीतिका

अगणित व्याल

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** छिप के बैठें हैं खादी में, गांधी!अगणित व्याल। धुँधला करने चित्र तुम्हारे, धूल रहे नित डाल।। नैतिकता अब अर्श छोड़ कर, चूम रही है फर्श। झूठ और हिंसा में बदले, तेरे सब आदर्श।। वैष्णव मन ही मानव तन की, खींच रहे हैं खाल।। जन - सेवा का चोला पहने, दुष्ट लुटेरे चोर। संविधान को काट खा रहे, रक्षक हुए अघोर।। बिंब-त्याग के,बने हुए सब, कलुष कर्म की ढाल।। फटी बिवाई छूना चाहें, छींके पर परचून। काग-भगोड़ा बन धमकाता, को कानून।। स्वर्ण-रजत के खेत काट के, जगमग हुए दलाल।। प्रायोजित दंगे जनती हैं, पूजा और नमाज। छल-छंदों से नभ छू लेना, हुआ आचरण आज।। करे गोड़से को सम्मानित, जनगण का प्रतिपाल।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जौम्बी बना रहे
गीतिका

जौम्बी बना रहे

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार के कलुष रंग में, कण-कण सना रहे। इसीलिए तो कुंभकार मठ अब, जौम्बी बना रहे।। कुटिल वृत्तियों के मौसम ने, पाया अब विस्तार। लोकतंत्र की शाखाओं पर, चलने लगे कुठार।। जुगनू लगा रहे अब नारे, यह तम तना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। धूर्त कथानक रस्सी को ही, बता-बताकर सर्प। करते आएँ सदियों अपनी, छलनाओं पर दर्प।। संस्कृतियों के अंग-अंग में, नित रण ठना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। नव विहान ने फूँक दिए ज्यों, स्वर व्यंजन के शंख। विहग-वृंद ने खोले अपने, कोरे कोमल पंख।। मठाधीश जल उठे देख यह, बम दनदना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
तामस की कारा
गीतिका

तामस की कारा

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** खपी पीढ़ियाँ सपनों में ही, हुआ न उजियारा। कब तक हो भिनसारा भाई, कब तक भिनसारा।। तेल चुका ढिबरी का सारा, बाती राख हुई। आसमान तक अँधियारे की, हँसमुख साख हुई।। सधन हुई है दिन-प्रतिदिन ही, तामस की कारा।। नकबज़नी में रोटी के, नख, घिस-घिस टूट गए। पुस्तक का घर मावस के कुछ, गुंडे लूट गए।। चौराहों पर बेकारी का, चीख रहा नारा।। श्वास-श्वास पर पूरब के हैं, प्रतिबंधित पहरे। जब-जब सोचे निकले बाहर, पाँव धसे गहरे।। खर्च हो गया भूख-प्यास पर, दम-खम था सारा।। स्वर्ण-श्रंखला में बँध घंटे, भूल गए बजना। आठ पहर विरुदावलियाँ ही, उनको जो भजना।। रुद्ध हुई गंगा यमुना की, समरस जलधारा।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...