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Tag: भीमराव झरबड़े ‘जीवन’

जंगल वाली सोच
कविता

जंगल वाली सोच

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** हुआ पाशविक हृदय आचरण, मनुज रहा अब नोच। इस मिट्टी में उग आई है, जंगल वाली सोच।। आसमान में नाच रहा है, प्रजातंत्र कनकौआ। डोर थमी है जिन हाथों में, बाँटा उसने पौआ।। नव विहान का सौदा करके, सौंप गया निम्लोच। उग आई है इस मिट्टी में...... (१) रोज मुनादी करते टी वी, माॅडल से इठलाकर। हवा आजकल बाँट रही है, खुश्बू घर-घर जाकर।। लगे शिकंजे जगह- जगह पर, मांग रहे उत्कोच। इस मिट्टी में उग आई है...... (२) हार भूख से डाल दिये हैं, अस्त्र सभी होरी ने। तृप्त कर दिया है जन गण को, केवल मुँहजोरी ने।। घाट-घाट का पानी पीता, है जिसकी अप्रोच।। इस मिट्टी में उग आई है..... (३) अपने मंडल के सूरज ने, बना लिया परकोटा। झूठ-मूंठ के बाँट उजाले, मोटा माल खसोटा।। आशा लेकर नव 'जीवन' की, पुश्त हुई सब पोच। इस मिट्टी में उग आई है..... (४) निम्लोच- सूर्यास्त पोच- निक...
सह भइये
गीत

सह भइये

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** भूखा प्यासा, अपने ही घर, रह भइये। पीर हृदय की, नहीं किसी से, कह भइये।।१ उसका सूरज, वही उगाता, रोज यहाँ, मान न इसको, झूठ सत्य है, यह भइये।।२ वही रेफरी, और गोल का, कीपर भी, गेंद तुल्य तू, मार यहाँ पर, सह भइये।।३ तस्वीरें वह, रोज यहाँ की, बदल रहा, अधिकार उसे, है नेक यहाँ, वह भइये।।४ आसमान से, बहुत बड़ा है, दिल उसका, पकड़ न पाया, उसकी कोई, तह भइये।।५ धमकाता वह, डरती उससे, यह जनता, साथ हमेशा, वह रखता बम, छह भइये।।६ ठान न उससे, रार चार दिन, 'जीवन' के, साथ-साथ में, पानी के तू, बह भइये।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
अब भोर हर नवेली
गीत

अब भोर हर नवेली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** अब भोर हर नवेली, हमको उड़ान देगी। हर सांझ स्वप्न को अब, अपने वितान देगी।।१ हर चाह पूर्ण होगी, आजाद है वतन अब। बस कर्म शक्ति हमको, कर में कमान देगी।।२ अधिकार है सभी को, शिक्षा स्वतंत्र समता। यह है सदी हमारी, खुशियाँ समान देगी।।३ धारण करो सदाशय, सौहार्द नित बढ़ाओ। ये गुण फकीर को भी, ऊँची मचान देगी।।४ तलवार झूठ की पर, गर्दन सटी भले हो। इंसानियत हमेशा, सच ही बयान देगी।।५ माँ के सरिस लगेगी, तब यह धरा हमें भी। जब राष्ट्र प्रेम की उर, गरिमा उफान देगी।।६ अब सोच को निखारो, मत द्वेष रंज पालो। हर निम्न सोच 'जीवन', उर पर निशान देगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर...
मन वियोगी
गीत

मन वियोगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** आधार छंद- सार्ध मनोरम मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ, मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ। मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१ याद में जलने लगा है मन मरुस्थल, वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२ अनमना शृंगार तन को टीसता अब, बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३ हो गई गायब हँसी इस आरसी की, रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४ छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा, प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५ कल्पना की डोर थामे आज 'जीवन', सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...